कुछ पौजणा
रंद सदानी
सिमारौ जनु पाणी.
कुछ रौंदा बारामासी
हैरा का हैरा
शीला पाखों जनु घास।
कुछ दिखेंदा नि पर
बिणाणा रैन्दा
कुरौ-कुमरा जन।
कुछ पिल्ला फ़ौड़ू जनु
उबजी जांद अचाणचक।
अर कुछ ज्वा
जिंदगी भर मौळदा नि।
जुबाना घौ
ध्वका घौ
बिरह-बिछौहक घौ
अपणासा घौ
दुश्मन-बैरी घौ
वियोग-शोकौ घौ
प्यार-पिरेमा घौ
निरपूतौ घौ
कुपूतौ घौ।
हाँ
मौळयै जांद यूँ मा
कुछ घौ
जब सुबेरौ भूल्यूँ
ब्यखुंदा घौर बौड़ी
ऐ जांद ।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
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