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Friday, 15 September 2023

घौ



कुछ पौजणा 

रंद सदानी

सिमारौ जनु पाणी.


कुछ रौंदा बारामासी

हैरा का हैरा

शीला पाखों जनु घास।


कुछ दिखेंदा नि पर 

बिणाणा रैन्दा

कुरौ-कुमरा जन।


कुछ पिल्ला फ़ौड़ू जनु 

उबजी जांद अचाणचक।


अर कुछ ज्वा 

जिंदगी भर मौळदा नि।


जुबाना घौ

ध्वका घौ

बिरह-बिछौहक घौ

अपणासा घौ

दुश्मन-बैरी घौ

वियोग-शोकौ घौ

प्यार-पिरेमा घौ

निरपूतौ घौ

कुपूतौ घौ।


हाँ

मौळयै जांद यूँ मा

कुछ घौ

जब सुबेरौ भूल्यूँ

ब्यखुंदा घौर बौड़ी

ऐ जांद ।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

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