अब लाज मा गळोड़यां लाल नि होन्दी,
माया झिकुड़यों बिंवाळ नि होन्दी,
जख ज्यू हाल बिंगादी छै एक कराळी नजर,
मुखड़याँ अब उनि खुलि किताब नि होन्दी।
उटंगरी दगड़या धपाक मारि बतै जान्दा छाँ,
अबै उबै साला मुला मा समझे जान्दा छाँ,
अब फेसबुक वर्टसैप मा वा हियाराम कख रै,
जनु एक चिठ्ठी मा ज्यू उगाड़ी देन्दा छां ।
स्वचणु छौं दगड़या हम कख बटि कख ऐग्याँ,
यतिगा व्यवारिक ह्वेग्यां कि भावना खै ग्याँ,
दूर परदेश तलक खूब बात विचार छै होणु,
अपणा भितरे भितर इकुलकार ह्वे कि रैग्याँ।
अब क्वी भै भै मा समस्यो समाधान नि पूछदू,
नोनु बुबा मा घंघतौळो निदान नि जाणदू
चैली नि पूछदी ब्वै मु गिरस्थिक लौ लकार
ना क्वी बूढ़ बुढ़या सौ सल्ला मणदू।
आँछरी परियूँ कि बात अब कैतें नि स्वान्दी
हुन्ड फुन्ड रै कैतें मुळकै याद नि बिथान्दी
अब क्वी सुदामा तैं सौंजड़या नि चितान्दू
ना क्वे कृष्ण बणि दगड़या धरम निभान्दू ।
ठुला होणा पैथर ब्यवारिक बणि रैग्याँ
मशीन ह्वेग्ये हम, मनखि कख रैग्याँ
दौड़म दौड़ मा इतिगा पूर पौंछिग्यां अडिग कि
आफूं अग्ने अर अपणेस पिछवाड़ी छोडि़ ग्याँ।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
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