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Thursday 24 March 2022

भजन : रचीं छै श्रृष्टि जै प्रभु की

 


रचीं छै श्रृष्टि जै प्रभु की,
वा यी श्रृष्टि चलाणु लग्यूँ। 2
 
ज्वा डाळू रोपी हमुल पैली,
तेको यी फल अब हम पाणें लग्याँ।
 
रचीं छै श्रृष्टि जै प्रभु की,
वा यी श्रृष्टि चलाणु लग्यूँ।
 
यीं धर्ती मा शरील पायी,
यीं धर्ती मा सब फिर समायी।
छै सचू नियम यीं धर्ती को,
क्वै औणा लग्यां क्वी जाणें लग्याँ।
 
रचीं छै श्रृष्टि जै प्रभु की,
वा यी श्रृष्टि चलाणु लग्यूँ।
 
जैल भेजी जगत मा खाणु,
तै ह्वेगी छै फिर बौड़ी आणु।
ज्वा भेजणू वाळो छै धर्ती पर,
वा यी वापिस बुलाण लग्यूँ। 
 
रचीं छै श्रृष्टि जै प्रभु की ,
वा यी श्रृष्टि चलाणु लग्यूँ।
 
जैन थाम्यूँ संगसार सारो,
जैन बांध्यूँ समोदर खारो।
अगास पाताळ कु छै ज्वा मालिक,
मालिक वा यी पाळोंण लग्यूँ।
 

रचीं छै श्रृष्टि जै प्रभु की,

वा यी श्रृष्टि चलाणु लग्यूँ।

@ बलबीर राणा 'अडिग' 

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