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Friday 21 August 2015

शकुनी कु बुबा


सियासत कु नशा अर कुर्सी कु मोह
नि पछयाण्दु घास नि पछ्याण्दु म्वोल्
रिश्तों का खुट्टा तोड़ी लंगडू बणे देन्दु
कुटमदारी कु ब्बी झोलम-झोल।

भूख भिज्यां अर तीस भौत
लता-पता पुटुग घळचम-घोळ
निर्मुख-बेढंग बड़ा लदुड़ो कु वा मनखी
चिफ्ली बोली हाथ जोड़ी घपरोळ।

एक घर्या द्वी घर्या सोत मा सोत
पापड कु पाणी ढळकम-ढोल
झुटु-लम्पट गलदार नंबर एक कु
शकुनी कु बुबा एक कु स्वोल।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

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