चिंता अर चिंतन
कबेर तलक रेलू खाळी मंथन
अब मंथन कु बगत नि
चट करा कुछ जतन।
सुख छै: त रगर्याट किले
बिन तीसक् टपट्याट किले
जै पाड़े असन-आतुरिल
उन्द भाज्यां तुम
शैरों बटिन ते फर
चिंता अर चिंतन किले।
हिम्मत छ त आवा दों
बारामासी जुद्ध जुटयूं
तुम भी बोलां बिटवा दों
दुःख बिपदा को आतंक मच्युं
सुख की बंदूक चलावा दों।
द्वी दिनी मेहमान किले
पिकनिक तक ही पहाड़े सैर किले
अगर पलायन समझदां छां तुम त
घर की कुड़ी फर जाळा किले।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
बैरासकुण्ड चमोली
No comments:
Post a Comment