डांडा
छान्यों मा रंगत ऐे होळी
एक तरफ
बल्दों की लड़े दुसर तरफ बखरों की टोली।
गिचा
कताड़ी ब्वे धै लगाणी
भितर
ल्यो भैंसा तें थ्वोरु बिब्लाणी।
सुरुजु
देखा रंगमत हुयुं च
चौ चक्की
खेलण मा धै नि सुणु च।
पार डांडा
देखा बरखाक् भिभ्डाट्
छिड़ा
गदनो कु छिड़-छिछड़ाट।
पुंगडा
पातळा लकदक होला
काखड़ी
मुंगरि आलू छैमुला।
बस्ग्याली
ब्यखुन्दा आनंद-आनंद
घ्यू
दूधे रेलम-पैल रोज सग्रांद।
दिन मा
गोरु दगड़ जाणे रोंस लगीं च
पल्या
गों की गोरी कु स्वाल अयुं च।
भ्वौल,
वल छाला अपणा गोरु लियाँन
सेणां
तमलों बैठी त्वे दगड़ छ्वीं लगाण।
कनु निर्मल
जीवन छै निश्चल माया छै
आजक फिकर
ना भ्वोळक चिन्ता छै।
बरखा
का छीड़ मा लतर-पतर् गात
ड़ाला
ऐथर धर्युं रेन्दु हाथ मा हाथ।
सरूली
गौड़ी पुछै्यड़ी खड़ा करि दनकणी
धौल्या,
कल्या बल्दों तें खूब सन्काणी।
सैद यु
काल नि रयूँ अब समय नि रयूँ
यादों
की थैला की #अडिग तेरी कल्पना रयीं।
भैतिकताक
भोग, डंडा-मरूड़ा भी चड़िग्ये
आपार
सुख देणु वाळू जीवन अब नि रै ग्ये।
कुछ भी
ब्वाला भैजी भुलाओ
ठण्डु
माठु करि ज्यु जगाओ।
जै जीवन
मा ज्यादा तीस-तृष्णा नि रौंदी
वु ही
जीवन सच-मुच कु बैकुण्ड माण्येन्दु।
द्वी
गत्ये सौण बि. सम. 2072
रचना:-
बलबीर राणा "अडिग"
@ सर्वाधिकार
सुरक्षित।
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