हाथों मा सिद्धि हो कर्मो मा ऋद्धि ह्वो
मनखियत की पीड़ा नसों मा, ल्वे फर उमाळ ह्वो
नयुं सल-साज ह्वो जोश तेरु ज्वान ह्वो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी, सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
मन मा सरस्वती कु वास अर वाणी मा हिलांस ह्वो
दुन्ये रीती,जग प्रीत ज्यु मा जगीं रैयी, अंतस मा तेरा भगवान् ह्वो
प्रचंड मन-मान, गात-बबड़ाट, सक्या-पराण तों हाथ ह्वो
राष्ट्र ध्वज-गीत ज्यान से ब्बी प्यारु हो,
इन स्व मान सम्मान तेरु स्वाभिमान हो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी, सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
दुन्ये रीती,जग प्रीत ज्यु मा जगीं रैयी, अंतस मा तेरा भगवान् ह्वो
प्रचंड मन-मान, गात-बबड़ाट, सक्या-पराण तों हाथ ह्वो
राष्ट्र ध्वज-गीत ज्यान से ब्बी प्यारु हो,
इन स्व मान सम्मान तेरु स्वाभिमान हो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी, सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
हर फजल नयीं उमंग तेरी नयाँ जीवन गीतों कु तरंग-तान ह्वो
नव तौरण, लता-गता हाथ ल्हयेकि धार-धार तू बिराजमान ह्वो
जलम भूमी सदानी स्वर्ग बणि रावो, धरणी-धर तेरु बोल बचन सौं- करार ह्वो
बुग्यालों जन सुख-शांति छळकणु रे ललाट से तेरा,
माया तेरी निर्मल गंगा जनि छाळी हो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी, सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
नव तौरण, लता-गता हाथ ल्हयेकि धार-धार तू बिराजमान ह्वो
जलम भूमी सदानी स्वर्ग बणि रावो, धरणी-धर तेरु बोल बचन सौं- करार ह्वो
बुग्यालों जन सुख-शांति छळकणु रे ललाट से तेरा,
माया तेरी निर्मल गंगा जनि छाळी हो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी, सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
बीर छै तू भड़ छै माधो सिंग, गबरू कु नौ- निशाँण छै
देवथान हिमालय कु वासी तू,
गढ़कुमौं की आशाओं को नौ-नवाण छै
खडग उठो रणसिंग गरजो,
थाती-माटी की लाज को तू तरणहार छै
त्वे घत्याणी बैरियों की ललकार
कसम त्वेखुणि तेरी ब्वे की
ते तिरंगा थें झुकण ना दियां ह्वो झुकण ना दियां ह्वो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी, सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
देवथान हिमालय कु वासी तू,
गढ़कुमौं की आशाओं को नौ-नवाण छै
खडग उठो रणसिंग गरजो,
थाती-माटी की लाज को तू तरणहार छै
त्वे घत्याणी बैरियों की ललकार
कसम त्वेखुणि तेरी ब्वे की
ते तिरंगा थें झुकण ना दियां ह्वो झुकण ना दियां ह्वो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी, सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
हर्ष ह्वो उल्लास ह्वो मनखियत तेरा धोर बटिन निराश न ह्वो
ग्लानि क्षोभ् आँखर तेरा किताब से समूल नाश ह्वो
इन दिवा जलो दगड्या ब्याखुनि हैंस जो
निर्बल बिचारी रात तें, तों गैणो का सारा न रोण पड़ो
अडिग करम परधान का ड़ाला रोप
मनखीयत् का गीत कंठ भोर,
भोंण मा अपणेस ल्यो भौण मा अपणेस ल्यो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी, सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
मनखियत की पीड़ा नशों मा, ल्वे फर उमाळ ह्वो
सोंग सुफल तेरु बाटू ह्वो।
ग्लानि क्षोभ् आँखर तेरा किताब से समूल नाश ह्वो
इन दिवा जलो दगड्या ब्याखुनि हैंस जो
निर्बल बिचारी रात तें, तों गैणो का सारा न रोण पड़ो
अडिग करम परधान का ड़ाला रोप
मनखीयत् का गीत कंठ भोर,
भोंण मा अपणेस ल्यो भौण मा अपणेस ल्यो
झुकी जावो खैर-खरण्यां तेरी, सोंग-सुफल तेरु बाटु ह्वो
मनखियत की पीड़ा नशों मा, ल्वे फर उमाळ ह्वो
सोंग सुफल तेरु बाटू ह्वो।
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'
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