Search This Blog

Monday 1 June 2015

भैर वाळी भितर बल

भैर वाळी भितर- भितर
भितर वाळी भैर बल
मोंस्याणि का कोळि स्येलि
अपणी ब्वे गैर बळ।

सेमन्या प्रणाम की मिठी भोंण मा
हेलो हाई की मर्च कैन मिले
अंग्रेजी लोड़ल थैंचि-थैंचि
निखाणी आज किले बणे
हम गँवाड़ी का गंवार नि
ऐग्या अब त सैर बल
मोस्याणि का कोळी ......

बिंग तो जाता हूँ
बोलना नहीं आता बल
मेरे को क्यों दोष दे रहे हो
मम्मी डेड ने नहीं सिखाया बल
समे-समे की बात मान ल्या या
घुमे ल्या बगत-बगत का फेर फर
मोस्याणि का कोळी......

दूध बोली कु तिरिस्कार कैर
पढ्यां लिख्याँ अनपढ़ किले
वा अंग्रेजियांण नि छयी अपणी ब्वे छयी
जैन बोतल नि, दुधि कु दूध पिले
किले जिझक् किले सरम
दिन दोफरा हो या, राति सुबेर बल
मोस्याणि का कोळी .......

खूब सीखा अर सिखावा
देश परदेश की भी विन्गावा
ब्वनु-बच्यांण तब्बी होन्दु
बिन जाण्या लाटू रैन्दु
फर?
अपणी ना बिसरा ना हर्चावा
ये कु ब्बी उत्गा मान बढ़ावा
निथर? मिट जाळी पच्छ्याँण नि रैलू वर्चस्व
भिंडयाँ ह्वेगी देर अब ना करा अबेर
नि पड़दी मोस्याणि का कोळी स्येलि
नि बनाण 'अडिग' अपणी ब्वे गैर ।

रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

No comments:

Post a Comment