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Wednesday 29 April 2020

हळया


चै घाम ह्वो या बर्खा बत्वाणी
मिन धिर्तीऽ गीत त गाणे छ
खौळा मेळा ह्वो बार त्यौहार 
मिन द्वी सीं चीर लगाणें छ। 

हळया छौं मि गर्व से ब्वल्दू
जग्या छ भूख मिटाणु कु
या धर्ती कि छत्ति चींरी की
कर्म जीवन जोत कमाणु कु। 

लाठ हळकूड़ु नेसड़ू जुवा
ये महायुद्ध का शस्त्र मेरा
रौंळया पौंल्या दगड़या छाँ
भूदेव जितणा अस्त्र मेरा।

रुखड़ा ह्वो या तलबला सेरा 
पस्यो कि गंगा बगायी मिन
पुटुगे आगा सब्यूं बुजणी रौ
मनख्यतौ धरम निभायी मिन।

जुग बटिन अमर या सृष्टि
बिगैर मेरा आबाद नि रैन
ज्ञान बिज्ञान टुकू पौंछि ह्वलु 
पर मेरा बिगैर स्वाद नि ऐन।

रस पीनी सबुन ये शरेलौ कु
पौंण पंछी क्या जीव नमाण
सबुन बिथायी जीवन मेरु
मनखी क्या परकति अजाण।

जीवन सदानी खंतड़ों मा
तड़तड़ा घाम सुखणु रौ
सुकिला दुन्यां का ठाट मा
अपणा सुपन्यां जलाणु रौ।

जीवन रस्म रिवाजों खातिर
जीवन कर्ज मा दबणु रौ
मेनत कु मान कब्बी नि मिली
राजनीति अठवाड़ मा कटणु रौ।

जीवन पर दया कनु वळु
दया कु पात्र ह्वेग्यूं आज
वेऽकी पीठी सवार ह्वेकिन
जमानु मंगल पौंछग्यूं आज।

@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग'

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