Search This Blog

Tuesday, 21 April 2020

खैरी


यू खैरी कब तलक राली
कब जाली र्निभगी मांमारी।

कैकु छै यू पाप करम
भैर ओंणु कैकु अधम
ब्याळी तक छै तु रमसाणु
आज किलै ह्वेन धड़म
जीवन कैन करि अशुभकारी
क्वो ल्येन र्निभगी मांमारी।

द्यो द्यवता किलै छ रुष्ट
ज्ञान विज्ञान किलै छ चुप 
एक वायरस चैंर्या बण्यूं 
इन्सान डौरन कुणा घुप
काल भैकाल परलयकारी
कख बटिन ऐ या मांमारी।

ये खुणि न दिन, न रात
मुख सामणि कर्दू बात 
बिगैर बाटा घाटो ऐ जांद
हजार खुट्टा लाखों हाथ
लिपट्येन येन धर्तीं सारी
अदृष्य बैरी दृष्य मांमारी।

कन मचयूं येऽकु भैकाम
जै, तै फर चिपकणु सरेआम
बाटा घाटा सुनपट कर्यां
गाड़ी घ्वड़ा तपणा घाम
मेल मिलण सब लाचारी
कति सताली या मांमारी।

र्निआश्रीतों कु ह्वयूं निरोण
गरीब गुर्बोऽन कनें कमोण
सरकारी तंत्र दौ फर लग्यूं
जिन्दगी कन ह्वेगी समलोण
कब द्याख कब कैकी बारी
चट चटकाणु या मांमारी।

सुण ल्या रे मनखी नमाण
ह्वोलु ये कु काम तमाम
जर्रा सी होर ठौ खै ल्या
यकुला रै किए येन समाण
बचै ही इलाज छ अबारी
निबट जाली या मांमारी।

अरे वासरस यति बी ना उछळ
कबैर तलक कर्लु अतळ वितळ
डट्यां छां हम पराजय नि छां
होलु भारत ये लडै मा सफल
जोर शोरे लडै त्वे दगड़ जारी
तेरी ऐसी कि तैसी रे मांमारी।

दौ - दांव
अतळ वितळ - तितर वितर

@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग'

No comments:

Post a Comment