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Tuesday 14 April 2020

कौथिगो हरण


मन आयी कि कौथिगोऽक हरण करि जौं
कौथिग तैं घौर ल्ये सदानी तैकु बणि जौं।

हिकमत करि डरोमर बाटा लगिन
मार ताणी तेऽका द्येळि पौंछिन
तख देखी मि चक्कर मा चड़िन
क्वो छ कौथिग घंगतौळ मा पड़िन।

भिज्यां भीड़ छै, घिमसाण मचीं छै
कत्गा बानी बानी की दुकान संजी छै  
सब्बी छव्टा-बड़ा, ज्वान जमाण छाँ
लौड़्यां-बैख, बूड़-बुड्या नमाण छाँ।

पुंप्याट् फुंप्याट घमघ्याट तै पूछिन
डमड्याट धमडयाट  तैं पूछिन
एक के दो, दो के चार तैं बी पूछिन
हर माल सस्ता, लूट लो तैं बी पूछिन।

तों सब्यों तैं पूछी यख कौथिग क्वो छ
वूंन ब्वोली यफुने छ, यो छ, स्वो छ।

कैन ब्वोली भै साब पागल त नि छाँ क्या
इतगा बड़ू कौथिग बी दिखणा नि छाँ क्या।

मि दन्दवोळ घंघतौळ मा पडिन
तख बटिन दूर धार मा बैठिन।

स्वोचि साचि कि, खाली हाथ मिन जाणें नि
कौथिगो हरण कने छ यूंन मितैं पच्छयाणें नि।

फेर टक लगै कौथिग तैं ढूंढ़णु रो
एक एक चीज तैं खंगल्वणु रो।

पर यो क्या?
कै तैं उठों कै तैं ली जौं
कै तैं पकडों कै तैं छवाड़ों।

हाथ मा हाथ धरि मयादारों तैं
हैंसी ठिठोली कर्दा सौजड्यों तैं
एक हैका गिचा जलेबी डालदा बुडडी-बुड्यों तैं
ब्वै बाबों हाथ पकड़ी ख्यल्दा उछल्दा वाळों तैं
कै तैं उठों कै तै ली जौं ।

भुल्ली तैं सूट छांण्दा भैजि तै
भुल्ला तैं खिलौणा खरीदणी बैणि तैं
चरखी मा चकन्याट कर्दा परिवार तैं
गुरमुटी मा बैठयां यार आबतों खबरसार तै।

आखिर दां सब्यों तैं उठैन, कै तैं नि छवोड़िन  
कुछ तैं ज्यू मा भोरिन, कुछ तैं मन मा पांजिन।
खुसी, प्यार, पिरेम, हौंस, उल्लास सब्बी उच्येन
कौथिगो हरण करि सदानी वास्ता मि घोर ल्येकि ऐन।



@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग'

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