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Monday 6 April 2020

ब्वै तैं बुरु नि लगद

जब तु मसोड़ी मसोड़ी
प्येन्दू छै
पुटुग भर्यां बाद
मुल हैंसी लात मर्दू छै
ब्वै जितम फर
होर त होर !
बेशर्मी द्याखा
एक लंबी मूतैऽ तराक बी
छोड़ी दूेन्दू छै ब्वै का मुख फर
पर !
ब्वै तैं बुरु नि लगि
बल्कि
होर आनंदित ह्वे
भुक्की प्येनी चटा-चट
तब क्या ?
आज क्या ?
वीं कि ममता मा क्वी फरक नि ऐन
चै तू अपीड़ ह्वे
मुख म्वोड़ी हूंद किले नि चल्गे
वींऽन अपणु *पटक्वा* (पागोड़)
होर कस्याली
जीवने सबसे बड़ी
बुडापै लडै खुणि।

@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग'

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