सर्री झगड़ै जड़ छ त
या कारक ‘दार' छ
दार न ह्वावू त
सोब आध्या पध्या
क्वे कब्बी पूरो नि
सम्पूर्ण नि।
सब्यूं पैथर 'दार'
थ्वकौऽक - थ्वोकादा
मालौऽक - मालदार
कर्जोऽक - कर्जदार
फौजौऽक - फौजदार
राजौऽक - राजदार
गलौऽक - गलदार
पलौऽक -पल्लादार
सलौऽक - सल्लदार।
न जाण कति दार छ ?
कण कना दार छ?
क्वे गिणती नि
पर ?
यूँ सब्यों बुबा छ
मायादार ।
माया बिगैर न क्वे दार
न क्वे भार
सब्बी हीरो जीरो, शून्य।
ये मायाऽ पैथर
राम रावणी, माभारत
विश्व युद्ध जना
कति मानव विद्धन्स ह्वेन
माया अर दारा बला ऐथर सब्बी निर्बल।
मायादार द्वी विद्युत
धाराओं एक युग्म
माया ऋणात्मक
दार धनात्मक
द्वियों मेल से विद्युत सर्किट पूरो
निथर अपूर्ण अधुरो।
जगत चराचरे
संरचना ही
माया अर ये कु मैंस दार।
माण-सम्मान
यश-कीर्ति
भक्ति-सन्यास
भै-वैरागय
बिगैर मायादारऽक संभौ नि
पर यूँ सब्यूं मा
येका दिव्य गुण का परताप
जगत वैऽभौ छ, चराचर छ
स्वाणु छ, अस्तित्व मा छ।
जीवने गंगोत्री
माया छ
यख बटिन ही
कारक 'दार'
निर्मल गंगा बणि
संगसार तैं
सुचि कैर
जीवन राग मौल्यान्दी
तब्बी
तुम, हम अर या दुन्याँ मायादार छ।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'
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