Search This Blog

Wednesday 24 January 2018

गजल "अपणा हिस्सो मौल्यार"



अगास मा सर्गक ससराट दयखणु रो
अपणा हिस्सोक मौल्यार ख्वजणू रो।

बामण ब्वनो रो हर साल, किस्मत बर्खली ये दों
मि रोज फजल पाताडों तें, ध्यान लगे पूजणू रो।

ब्याली अयाँ छां बल साब बरखा ल्येकी
परधानाsक गिचल छप-छपी चिताणु रो।

दयो गिड़को, डुकर्ताल ह्वे, म्वटा थ्वपा बी ऐन
वा बदल छिट, मथि सुखिन, मि भुयाँ टपराणु रो।

लिगी छां चकडेत, मथि-मथि उर्ये ते बरखा
मि तों का झपटयां थैलोंsक धूळ दयखणु रो ।

टाटा करि चल्गे छै बरखा, कारों काफिला दगड़
मि गुस्साsल, ढांगा बल्दों पुच्छयडू मरक़ाणु रो।

लोगोंक न्यौन्याल इंग्लिस स्कूल मा गेन टाई पैरी
मेरा पैंछिला पूठा चबाणा रे, मि मुख पल्याणु रो।

टपराणी रे कज्याणी वोंsका टेट सुलार दयेखि
मि तेsकी फटि चदरि सिलक्वारी मारी, बुथ्याणु रो।

गांव में रहो, पहाड़ बचाओ हम तुम्हे विकास देंगे
वा दयरादून उड़ी, मि शीला उबरों धुँयेरू लगाणु रो।

ठगणु रो, छकणु रो सदानी, विकास सुण-सूणी
आखिर अगास ही, अपणु हिस्सो मौल्यार ख्वजणु रो।
अपणु हिस्सो मौल्यार ख्वजणु रो।।

@ बलबीर राणा "अडिग"




No comments:

Post a Comment