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Friday, 30 March 2018

गजल "जलम भुमि"



जन्म लिनी जे थोल, जख बाळापन बितेन
जे माटा पल्यां पोस्यां छकी घुड़मुंडी खैंन।

रुंड-मुंड देह बणाण वळी हव-पाणी त्वे सेवा
डाला-बोटी, गाड़-गदनों फाळ मारण सिखैन।

स्वाणी प्रकृति को भरिं कुठार ज्ञान को भंडार
तेरी जोतsन यूं आंख्यों तेँ दुन्यें माया दिखेंन।

पैली किल्क्वरी फर जे अवाज मा दुलार सुणि
जे बोली भाषा मा अपणोंक भिज्यां लाड़ पैन।

धन-धन त्वे जलम भूमि, धन-धन हमारू जोग
तेरु दूधो कर्ज आजतालक क्वी उतैर नि सकेन।

ब्वे की कोळी छै वा वसुधा, बुबा को आशीष छ
याद रख्यां ते जलम भुमि से कबि मुख न लुकेन।

जख रैला भुलो जरूर भिटवली कर्या बिसर्या ना
खुद लगीं रेन्द ते धर्ती, वा तुमारी जग्वाल मा रेन्द।

रचना: बलबीर राणा "अडिग"

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