मैक फर चिपकी जांदा, कवि अर नेता जात,
एक दां सुरु ह्वैग्यां गुरू, तब नि छोड़दा साथ।
तब नि छोड़दा साथ, जब आंद तौं छंद-मंद,
ताळी बजि जाली त, गिच्चू नी होण्यां बंद।
छुवीं छप-छपी अडिग, नी लगदी तौं तें थैक,
जख भी मिली जावो, जंता मंच और मैक।
@ बलबीर राणा अडिग
मटई वैरासकुण्ड
https://udankaar.blogspot.com
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