Search This Blog

Saturday, 26 November 2022

खुद मा



ख्वणि-ख्वणी,

वींतैं बि होन्दू ह्वोलू या कि ना ?

जन मितैं होन्द

जनु  कि,

बैठ्यां-बैठ्यां मा उच्चामुच्ची 

अचाणचक गात उन्द हिळऽ हिळाट

कि कैन ठंडूऽ पाणी ढोळी ह्वो

या, झस्स झस्साक,

कि कैन पिछने बटि सौजी

गळोड़यूँ पर चस्साऽ हाथ धरिन ह्वो,

अचाणचक होर-पोर सुगन्ध औण लगीं ह्वो,

चौं दिशा फजलो जनु उदंकार दिखण लग्यूँ ह्वो,

इकुलाँसी डांडी-कांठी

मुळऽ मुळकोण बैठिन ह्वो,

गाड़ गदन्यूँऽक डरोण्याँ सुँस्याट

मन मोण्याँ संगीत जनु बजण लग्यूं ह्वो,

ज्यू फ्योंली, मन मा बुराँस खिलण बैठ जान्द ह्वो

हिया हिलांस जन खुद्योण लगी जान्द ह्वो,

या, कब्बी-कब्बी

इकुलकार मा चड़क चौंकि जान्द ह्वो

कि, कखि वींऽन धै त नि लगाई

या अबेर-सबेर

जनि आँखी मुन्दण लगीं हो स्येणू

उनि चुड़ियों छमड़ाट सुणण लग्यूँ ह्वो

भिभड़ाटा बीच वा खणमड़ौ खितखिताट

कन्दूड़ा बजण लग्यूँ  ह्वो।

या, कब्बी-कब्बी

कांसे घनोळी जन वा छाळी बाज 

सियाँ मा चट्ट निन्द बिजाळी जान्दी हो।

 

पर, ऐरां दगड़यो !

तुम ब्वना

यु तेरु बैम च, खाली तबोक ख्याल च

गंवारो मन थंवार च

यनु कुछ होन्द जान्द नि

खुद मा

सुद्दी ब्वनै बात च

यनु कवितों मा होन्द, सच्ची मा ना।

 

ख्वणि-ख्वणी ?

या

मैंई पागल ह्वलू

क्वो जाण !

 

तुम ब्वना

कैकी खुद बिगैर भी

जीवन चल्दू क्या सरपट दौड्दू  

हिंकर-फिंकर उकाळ-उंदार

कब्बी तैलो कब्बी सीलो

सुख-दुखों बदिन भरेणा रैन्द

मना कुठार ज्यू कुलाणा

ऐड़-चैड़ा वास्ता।

 

पर, तुम माना न माना

जेतैं तुम बेमतलबा ख्याल छन ब्वना

यूँमा कुछ चीज त छैं छ

ज्वा हर बगत हमू दगड़ रैन्द,

ओठंड़यूऽ फर मुळक्याट,

मुखड़ी फर चळक्वाट

ज्यू मा धकध्याट

मन मा उलार

वीं याद मा/ खुद्योण बगत ।

ये  बाना

यीं प्रकृति तैं द्यखणू

यीं कु श्रृंगार पच्छयाड़णू नजरिया

अर

पिरेम कनु हियाराम।

 

असौंग शब्दों अर्थ

 

ख्वणि-ख्वणी = पता नि

ऐड़-चैड़ = बगत-बेबगत

 

रचना : बलबीर राणा अडिग


No comments:

Post a Comment