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Saturday, 3 May 2025

गढ़वळि फिल्म "खोळी का गणेश”



सबसि पैलि त ‘खोळी का गणेश’ फिलमै सर्री टीम तैं बधै अर शुभकामना देन्दू कि आपक श्रम साध्यन एक भलि फिल्म गढ़वळि सिनेमा मा दीनि। भौत सालों बिटे एक भलि फिलम द्योखणू मिली। अजक्याल या फिलम राज्य अर देसै राजधानी दगड़ हौरि जगा बि खूब चर्चा मा छ। फिलमों मतलब केवल मनोरंजन ना बल्कि सिनेमा चरित्र का अनुरूप चारित्रिक गुणों मा सबल अर अब्बल होण होंद, अर इना गुण यीं फिलम मा लोग देखणा। विशेषकर कथा विषै अर निर्देशन। पटकथा एक ज्वलंत सामजिक विषै पर छ अर डारेक्शन मा धीर र्धिघम यानि परिपक्वता छ। फिलम ब्वाला त घरजवैं, चक्रचाळ, बंटवारू, औंसी कि रात, जना भलि गढ़वळि फिलमौं का दगड़ छ। यनु पुळबैं केवल मि ही ना बल्कि कतिगा देखदारों का मुख सि सुणेणू। एक-एक करि फिल्म का सब्बी पक्षों कि छाळ-छांट कने कोसिस कनू। उन मि एक कवि अर कथाकार छौं फिल्म समिक्षक ना, फिर कोसिस कनू। 

पैलि बात - या बात केवल ‘खोळी का गणेश’ फिलम ना बल्कि पूरा गढ़वळि सिनेमा जगत का वास्ता छ। त यीं बात पर मि फिलम का टैटल पर औन्दू, फिलम को टैटल छ ‘खोली का गणेश’ मि आप अर आम गढ़वळि लोक उच्चारण कनू ‘खोळी का गणेश’। त ‘ल’ अर ‘ळ’ द्वी शब्दों कि छाळ-छांट इनि चा कि हमारि गढ़वळि मा द्वीयूं अर्थ अलैद होंद। गढ़वळि मा ‘ल’ कि जगा पर य उक्षिप्त परिवेष्टित ‘ळ’ को प्रयोग होंद। यांकि पूरी व्याख्या कन यख गलत ह्वे जाली। मोटु-माटी देखा त अगर हम ‘ळ’ कि जगा ‘ल’ ल्यौखला त हमरि गढ़वळि मा शब्दों कु अर्थ बिल्कुल बदलि जांद। जनु कि ‘खाल’ मतलब चमड़ा, अर ‘खाळ’ मतलब तलौ या तालाब, ‘छाला कु मतलब नदी या गदेरौ कु किनारा, अर छाळा कु मतलब फफोला या छाले’। मोल - कीमत, अर मोळ - गौबर। यनु उच्चारण विभेद ‘ण’ का जगा ‘न’ मा बि दिखदो, जनु कि विणाश - विनाश, कठिण - कठिन, पाणी तैं पानी इत्यादी। त माराज अपणि पीढ़ी का वास्ता भाषा कु सही उच्चारण रूप अर उपयोग पौंछाण साहित्य अर संस्कृति वर्ग का का सब्बी लोगों कि जिम्मेदरि होन्दि, कोसिस चयेंद कि लोक की असली पछयाण बची रावो।

अब इखमु देखा कि अगर क्वी एक्टर व्यवहारिक रूप से गढ़वळि नि बच्यान्दो अर जब वेतैं हम स्क्रिप्ट मा यनु लेखि द्याला त सु संवाद ‘ल’ जनु करलो ज्यां सि वेकु उच्चारण गलत होलू, अर भाषा बनौटी अर थर्पीं जन लगलि, बिल्कुल रोबोटिक। इलै वे कलाकार तैं बिंगांण पड़लो कि भै साब, मेला कु मतलब बीज होन्दू अर मेळा कु कौथिग। जनु कि चला भै म्यौळा जंयोला आज। यख बि ‘खोली’ कु मतलब खोलण यानि खोलना होणू। जनु कि, खोली दे माता खोल भवानी धारै मा किवाड़ा (एक लोक गीत)। ये कारण ‘ळ’ पर बात रखण जरूरी समझी। 

या बात आज ना बल्कि गढ़वळि सिनेमा का उत्रार्ध बिटे देखणू मिलद। भाषा सही लिखे जावो अर सही उच्चारित हो या जिम्मेवारी फिल्म संबन्धित सब्बी किरदारों कि होन्दि। स्क्रिप्ट राईटर, डारेक्टर, एक्टर अर मददगारी, यामा सब्बी सामिल छन। यीं बात तैं मि केवल यीं फिलम का बाबत नि बल्कि आज पूरा गढ़वळि सिनेमा जगत का परिप्रेक्ष्य मा बोन्नू। अगर हम भाषा संस्कृति बचाणैं बात कना त यखमु या बात झूटि ह्वे जाणि, अगर केवल मनोरंजन अर अपणू व्यवसाय देखण त फेर बात अलैद छ। भाषा बाबत हौरि कारकों का अलौ सबसि बड़ौ कारक मितैं जु दिखद वा छ हिन्दी का चश्मा से गढ़वळि ल्यौखण अर बोन्न। आशा च मेरि यीं बात तैं फिल्मकार अन्यथा नि ल्हेल्या अर अग्नै अपणि भाषा वास्ता सुधारौ बाटू द्यखला। 

दूसरी बात - कि ‘खोळी का गणेश’ एक सफल फिलम (फिल्म का जगा ‘फिलम’ गढ़वळि उच्चारण) छ। क्वी बि फिलम भलि या खराब फिलम निर्माता, निर्देशक, कलाकारों या हौरि सायक टीम से ना बल्कि दर्शक से होन्दि, टीम त अपणू सौ प्रतिशत लगान्द, अपणों नौ गुय्या रखण क्वी नि चान्दो। फेर बि पूरि कोसिस कना का बाद कुछ इना चीज छूटी जांद ज्वा दर्शकों पर छाप नि छोड़ि सकद। सब्बी एंगलों बिटी देखा त ‘खोळी का गणेश’ फिलमन दर्शकों मा छाप बि छोड़णिन अर वे मिथक तैं बि तोड़णिन ज्व आम लोग बोल्दन कि गढ़वळि फिलम मा क्या रख्यूँ छ ? 

तिसरि बात - पटकथा लेखन, संवाद अर निर्देशन, या तिन्यां चीज श्रियुत अविनाश ध्यानी जिका खाता मा जांद, ध्यानीजि युवा फिल्मकार छन। स्क्रिप्ट लेखन, निर्देशन का अलौ वा एक बड़िया अभिनेता बि छन, जनुकि मिन मथि बोलि कि फिल्मै पटकथा हमारा समाज मा साख्यूँ बिटे चलणि छूवा छूतै कुप्रथा पर छ, यनु संवेदनशील विषै रखि निर्देशकन भौत बड़ि जिम्मेदरि निभैन। फिल्म मा संवाद सटीक अर विषय अनुगत छन, संवाद सुद्दी लम्बा नि खिंच्या। यांका अलौ कैमरा एंगल, शौट, विजुअल इस्टेल, लोकेशन जगा, सेट डिजेन अर संपादन मा बड़िया काम होयूं, ये पर जादा बात कने मेरि जानकारी कम छ। हाँ फिलमै भावना अर सामजिक रैबार समाज तलक पौंछाण मा डारेक्टर सफल से बि उपर छ। 

चौथी बात कलाकार - फिलम का लीड कलाकारों मा अभिनेता शुभम सेमवाल अर अभिनेत्री सुरुचि सकलानी अपणा अभिनै का पैला पैदान मा होण पर बि यनु नि लगद कि स्ये नवाण छ। अर द्वीयून अपणा अभिनै से या बात साबित करियाली कि स्ये लीड रौल मा कै बि फिलम तैं सफल बणैं सकदन। दगड़ मा अज्यूं भौत कुछ सीखणैं जरोरत छ, बड़ौ कलाकार बणणे जात्रा सतत जारी रन्दिन। संजय मिश्रा बणण मा बगत लगद। द्वी नौन्याळौं तै अग्नै वास्ता शुभाशीष।  

अगर सह कलाकरों कि बात करे जाओ त भैजी गोकुल पंवार जी जना लोक का ऐन-सेन एक्टर दगड़ विनय जोशी कि दीपक दगड़ बड़िया जोड़ी, सुशील रनाकोटी, अरविंद पंवार, रश्मि नोटियाल, दिव्यांशी कुमोला, राजेश नोगाई दगड़ सब्बी कलाकारों कु बड़िया नापि-तौल्यूं अभिनै छ। हाँ यख बि कुछेक कलाकरों कु संवाद उच्चारण विभेद लगि, किलै कि कति जगा तौंकु लिंगीय संवाद मा संबोधन गलत होणू, ह्वे सकद स्ये बि व्यवहारिक हिन्दी परिवेश से होला यांमा वूंकु दोष नि, पर औण वळा टेम पर यीं बात तैं याद रखला त अपणा व्यौहार मा गढ़वळि रखि आप बि दीपक रावत जना दमदार अभिनै कोरि सकदन। 

अब बात करला यीं फिलम का सबसे सशक्त एक्टर दरवान दास, दीपक रावत जिकी जोन अपणि दमदार एक्टिंगै छाप देखदारों पर छोड़ि। पता नि सु मनखि आज तक कख लुक्यूं छौ या मि ही लिक्यूं रयूं, खैर मि त लुक्यूं ही छौ पर इनै-उनै की त सूणि जांदू छौ तौं बौडरों पर। अविनाश ध्यानी जितैं साधुवाद, आपक धौर बिटे दरवान दास एक यादगार भूमिका बणगे। दीपक का सद्यां अभिनै का वास्ता शब्द कम पड़णा। येकु एक मुख्य कारण यु बि छ कि कलाकार विशुद्ध व्यौवारिक गढ़वळि परिवेश बिटे छ, इलै वेतैं संवाद का अनुरूप ढळण मा जादा मीनत नि कन पड़ि होली । जति बगत अर मीनत हौरि कलाकार संवाद बींगण मा लगांद तति मा विशुद्ध लोक कलाकर अपणि एक्टिंग तै सुधारी देन्दू। या बात सब्बि कलाकरों तैं टक लगै कि बींगण जरूरी छ। 

अग्नै बात करे जावो गीतकारै त विनय जोशी जिन बड़िया गीत लेखिन अर वूंतैं आधुनिक संगीत मा ढाळी अमित बी कपूरन वर्तमान लेक बणाई। हाँ क्वी गीत लंबा समै तलक हमारा लोक मा बजणू रैलू अर लोक का कंठो मा आणू रैलू इनि सम्भावना कमति लगणी। कालजयी गीत बणाण अर होण अफूं मा एक बड़ौ संघर्ष होन्द, या बात हमारा गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी जी मु जै कि सीखण पड़ली।  

अग्नै बात सिनेमेटोग्राफी की त उत्तराखण्डी फिल्मों मा यनु काम कम ही देखणू मिली आज तलक, यीं फिलमै सिनेमेटोग्राफी उत्तराखण्डी सिनेमा का भविष्य वास्ता शुभ संकेत छ कि फिल्मकार यीं बात पर अब बड़िया फोकस कना। अर करदा बि किलै नि जब इतगा बड़िया साज-बाज मैजूद हो, बगत का दगड़ बोगण जरूरत बि होन्दि अर जरूरी बि। 

आखिर मा निर्देशक अर लेखक अविनाश ध्यानी मु काम कनो बड़िया अनुभौ छ या बात यीं फिलम मा देखणू मिलद। बिजातीय प्रेम कथा एक जटिल विषै छौ, यु विषै आपन समाज मा रखी बड़ी हिम्मत दिखै। फिर एक दां पूरी फिल्म कुटुम्बदरि तैं बधै अर साधुवाद। 


 @ बलबीर राणा ‘अडिग’

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