ब्याखुन्दा जनि निन्यारों झ्यां झ्यां
बंद ह्वेन उनि अंध्यारऽन सर्री धर्ती पे झप-झपाक मारिन। जून अजीं मथि चरपाणी डाना
पिछने चार हाथ तौल छै। ठंडी बथों सर्सराटन बांजा लौबु छवटा नोनु जन झर्रझर छिंज्यटि
कना छै। जेठा मैना मा बंजकोट मंगरा पाणी धार बरीक ह्वेग्ये छै। छब्बीस अठैस सालो ज्वान
परलाद यीं जुगमुग मा मंगरा पाता मा हगण्यां बैठयूं बंठा भरणु इंतजार कनु छै, बंठा
कति भर्येन दिखेणु त नि छै पर गजगज बाज से अंदाज लगणु रो कि कति भर्येर्नं।
घौर
बटिन त वा उज्याला मा निकळी पाणी ल्येणु पर बाटापुन दगड्यो दगड़ छुवीं बत मा तैन
अंध्यारु कैर्यली छै, ऐरां फौजी मनखी सालभर मा द्वी मैने छुटटी इनि खुद बिसराण मा
निमणी जान्द।
जनि
बंठा भर्यणें गदगद ह्वेन उनि वा चम्म पाता बटि उठी अर एक झटाक मा बंठा कान्धी
धरिन, जनि पिछने मुड़ि त, हक्का-बक्की। वेका मुख अग्वाड़ि छः फुट से बी लंबू जक्स
हाथ फैले खड़ू ह्वेगी। परलादा गात एक दां डौरिन झर्झराट ह्वेगी फिर बी तेन हिकमत
करि द्यखणें कोसिस करि पर वींकु मुख अर आकृति साफ नि दिखेणु छै।
परलादऽक
गात होर गर्गराट झर्झराट ह्वेगी, तैन फौजी रोब द्ये गुस्सा मा पूछी, कौन है बे तू
? चल हट, कांडई के कठैत का रास्ता रोकने वाला कौन है तु तू….? अर तैन बौं हाथन
बंठा समाळी अर दैं हाथन वीं आकृति तै धक्का देणु हाथ अग्ने करि त हाथ हवा मा खाली,
जबकि वा आकृति हाथ भर नजीक
दिखेणु छै, परलाद डोरिन पाणी-पाणी ह्वेगी अर कपाळ पर पसीना। फिर बी हिकमत करि वा
मंगरा से दस कदम अग्ने दैं बौं ह्वे खड़ंचा बळा ठुल बाटा मा ऐग्ये। तैन हकलाट मा
फिर पूछी क्वो.. क्वो छ बे तू क्या चाणु ?
जक्सन
उनि हाथ फैले ब्वली, सूण रे मि यीं धर्ती कु छौं, आज से सात पीढ़ी पैली त्यारा दादन
मितैं जुत्ता मारि यख बटिन भगेन अर बोली कि मेरी सात पीढ़ी तक तु यख ना दिख्यै अर
आज तू वीं बगत्वार सिंग कठैत बुढ्ये आठवीं पीढ़ी संतान छ, अब तू अर तेरु सैरु
खानदान मिन सफाचट कन।
परलादन
अंधाबिमोळी मा बंठा भुयाँ धरि अर मसाण दगड़ फौंदरी कन लगिन पर वा जनि तै फर झपाक
मनु हाथ बडौ हाथ कुछ ना औं। मसाणन फिर बोली अरे गुस्सें तू मैं दगड़ नि जीत सकलो त्वेन
बी जितण त ल्वदळा बाड़ै बणयूं वीं बूट ल्यो जे बदिन तेरा दादन मि हरेन फेर मि यीं
धर्ती हमेशा वास्ता छोड़ी द्यूला। ल्यो वा जुत्ता।
प्रह्लाद
नस्सा मा जन चार हथ खुट्टा टयेकि हॉपम् हांप चढ़े चढ़िन, मंगरा बटिन द्वी सौ मीटर
मथि आम जंगळों बाटु छै अर बाटु दैं तर्फां गौं मा जान्दू, सौ मीटर अग्ने धार मा
इंटर कौलेज, अर कौलेज सामणी लग्यूं पैनु ख्वाळु, पैनु ख्वाळा मा दस बारा कठैत मौ स्वारा
भारा। उन त सरु कांडई कठैतों अर मनोड़ी सरुळ बामणों गौं छ पर अब कुछ हौर जजमान अर
बामण परिवार घरजवैं कारण मिस्येग्यां। गौं कु वा पुस्तैनी मौल्याण मंगरु धार पिछने
बांजा जंगल बीच छ, आहा बांजा जड़यूं ठंडु पाणि, अजक्यालां फ्रीज बी झकमार। बांज जंगळा
बीच होण से मंगरो नो बंजकोट पड़िन।
परलाद
जन तन अंध्यारा मा हथ-खुट्टा मारी दौड़ी-दौड़ी घौर पौंछी, थ्यबलणि बाज मा जोर जोर से
चिल्लाण बैठग्यों जुल्त्ता जुल्त्ता, बूल्ट बूल्ट। वेकी ब्वै चुलाणा उन्द आग छै
जगोणि ब्वनै मन मा बोली क्या बुणु यू मास्ता कखि दारू त नि प्येन येन, अरे परलाद
क्या ब्वनु तू ? पाणी कख छ क्या जुत्ता जुत्ता कनु, लोकुं दगड़ फौंदरी ना कैर्यां रे,
ब्वै चुलाणा उन्द लखडा समाळी बड़बड़ाणी छै।
उन
बी ते जमाना मा वा सैरु गौं पूरा इलाका मा नम्बर एक कु फौंदर्या गौं छै। कै कारिज
या खौळा म्यळों मा कखि फौंदरी ह्वो त समझा एक आदिम कांडे कठैत ह्वालु। इन बात नि कठैतें
एक मुठ्या धाक बी छैं छै तब।
परलादन
उनि अन्दाबिमोळी मा घौरा कूणा काणि जपक्वलि लगैन पर कखि जुत्ता नि पायी यति हौस बि
नि छै कि अपणु फौजी गम बूट ही ल्ही जौं। सात पीढ़ी पैली जुत्ता मिलण त दूरे बात तबारी
माटू बी नि मिलण्यां। जे बुढ़ये बात मसाण छै कनु वीं बुढ़या पूत संतानिन आज चार
ख्वाला मा बांटि अलग-अलग मुन्डीत ह्वै सौ-डेड सौ मवासौं गौं बणग्यूं छै। जब तेतैं
कुछ नि मिली त वेन एक सुगट्या उठायी अर हव्वा मा धार पोर बांजकोटे तर्फा चलग्ये।
कुछ देर बाद जब बुढलिन क्वे आवाज नि सुणी त विंतैं चिंता होण लगि कि या कख ग्ये।
बुढलिन सर्रा ख्वाळा पन पूरी कानी बतै।
लोग
बाग जबैर तलक कठ्ठा होन्दा तबैर तलक मथि द्वी किलोमीटर दूर बम्वठ बटिन गौं ईस्ट
देवी द्वारी माता डंकरी औतरी पौंछग्यों। माताऽन बोली चला, मेरा भौट्या पर असन ऐग्ये
क्वी आसुरी शक्ति ते दगड उलझीं च, अग्ने द्वारी माँ पस्वा पिछने गौं बळा, टोर्च
मसाल ल्येकी। सब्बी धार पल्तर बंजकोट मंगरा पौंछिन, त वख प्रह्लाद बेहोस हालत मा
मंगरा नजिक मिली। वी जगा दस मीटर होर-पोर ढुंगा-ढोळी खड़तम्-खाड़य्या हुईं छै। जु
लठ्ठा वा घौर बटिन ल्ये वेफर लम्बा बाल बिलक्यां छाँ।
माता डंकरिन
ज्योन्द्याल अरोखि परोखि वे तैं बख बटिन उठाणो आदेश दीनी। सर्रा गौं डोरिन थथर्राण
बैठग्यों। घौर मु ल्ये पंडिजिन फिर झाड़ा ताड़ा करि, सर्रा गौं का मनखि नमाण पैरा
लगिन जति मनखि वति मुखे बात। अगला दिन द्वी जौंळा बखरों बलि दिये ग्ये। डाक्टरन
दवै दारु करि। मुश्किल से एक हप्ता बाद जब वा थोड़ा बुलाण लेख ह्वेन तब तैन अपणी
जुबानी बतैन कि कानी क्या ह्वे। कति सच्ची कति झूठी बात छ, या त परलाद कु ज्यू
जणदू ह्वलु। मैना दिन बाद वा असल कुशल अपणी डियूटी पर निकली। आज बी अगला भै फौज बटिन
रिटेर ह्वे असल कुशल अपणा बाल गोपाल दगड़ सेर मा छ।
मसाण
दगड़ फौंदर्यें लोक कान्यां हमारी बी अपण बुढयों मा भौत सूणिन पर बीसवीं शताब्दी मा
यना साक्छात नि सुणिन। अज्यों तलक बी यूं मसाणें कान्यूं से रात बे रात गौं मा दूर
तलक यकुलू जाण त दूर अपणा कुलांण पिसाब
जाण बी डौरद लोग।
यीं घटने बात बात अस्सी दशक मा सन सत्तासी अठासी
बीचे ह्वली, अर सात पीढ़ी बूटे बात क्या छ त सूणा।
चमोली
जिला घाट बिलोक पट्टी मल्ला दशोली मा कठैतों परसिद्ध गौं च कांडई। गौं कु इतियास
बतौंन्दू कि वा गौं सतरहवीं शताब्दी मा सत्तर अर बहत्तर सिंग द्वी भै कठैतों संतति
छ। वीं जमाना मा कै बुढया सत्तर अर बहत्तर साल मा द्वी नोना ह्वेन त वोंकु नौ
सत्तर सिंग अर बत्तर सिंग धर्यें ग्ये, वूं का दुसरा या तीसरा पीढ़ी मा बगत्वार
सिंह कठैत ह्वेन। सैरु गौं तौंकि जागीर छै, बगत्वार सिंह भौत बड़ू भड़ बादुर, हिम्मत
वळू छै, गौं मा बगत्वार सिंगे धक्का धूम छै, कठैत जी जमीन जैजाद बटिन गाजी-पाती धन
मा सम्पन छाँ। दगड मा तौं कु पुस्तेनी घट म्वळा गदरा मा छयो, खैर घट आज बी छ पर अब
बीसेक साल बटि बांजा पड़ग्यों।
बल,
एक दिन बगत्वार सिंह कठैत आद्दा राति घट बटिन छै घौर औंणु। घट बटिन घौरे दूरी लगभग
छयेक मील, पर सैंणु ना, लादो अर उकाळ।
बटापुन उन त
बिसौण्यां कखि बी ह्वे सकदू पीठा भारा हिसाब से, पर कुछ चुण्यां बिसौण्यां यन
होन्दन बाटापुन जखमु आदिम ना चै किन बी थौ ल्येन्दू। इनि एक बिसौण्यां छै भीमसणें मुंगेर
(मुंगरु), भीमसणें मुंगेर नौ कन पड़ी ह्वलु साफ नि छ पर लोकोक्ती बतौंदी कि बल कै
जमाना मा गौं पंडौं नाचणा छां, बौण बटि स्लेळ पाती दिन भिमसणा डंकरिन बड़ू डांग फोड़ी
यखमु बिसौण्यां बणाई। तब तैकु नो भिमसणें मुंगेर पड़िन।
वे
दिन राति मा जब बगत्वार सिंह कठैत भग्वाड़ी स्वलटु ल्ये घट बटि घौर औणु छै त
व्यौहार से भिमसणें मुंगरा मा थौ बिसाणु लगिन, जनि तमाखु चिलम सुलगाणु बैठी तनि एक
जगस ऐन अर तमाखु मांगण लगि। कठैतन बोली तु क्वो च बे ? वेन बोली मि यीं बणों मालिक
छौं, बुढ़या पर साक्षात भिमसण परकट ह्वेन खुट्टा बटिन निरखालिस चमड़ा बुटन मसाणों
जुत्तम जुत्ते।
भाज
साले जगस यख बटिन यु गौं मेरु खानदानी च तु मसाण कख बटि यखो मालिक ह्वायु, हमरी यीं
धर्ती मा अब खुट न धर्यां। तब मसाणल बोली कबैर तलक, त बुढ्यान ब्वली सात पीढ़ी तक।
बुढयान बोली मि कन करि मानों कि तु यख बटिन चलग्यों, त मसाणल बोली तुम द्यखदा रावा
जब मि पार चनग्याळा डाना पौंछलु त रगड़ू पड़ण जनु गिगड़ाट कर्लो त समझ्यां मि तख
पौंछिग्यों। ठिक अद्दा घड़ी बाद पार चनग्याळा डाना पैर पढ़णु जन गिगड़ाट ह्वेन,
बुढ्या निसफिकर ह्वै चिलम खीसा धरी स्वलटी उठैन अर चलग्यों घौरे तर्फां।
वीं बगत्वार कठैते
आठवीं पीढ़ी संतान परलाद दगड़ वा मसाण अपणु बदला ल्येणु ते दिन उलझी छै अर वीं
जुत्ते फर्मेस छै कनु जै बदिन बगत्वारन वा डंगड्यायूं छै।
नोट- बगत्वार सिंग काल्पनिक
नो का अलौ पूरी कानी सत्य घटना पर छ।
कानीकार : बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’, मटई
ग्वाड़ चमोली।
प्रह्लाद व वबगत्वार सिंह कठैत की किस्सागोई बड़ी रोचक लगी, लगा जैसे गांव में बैठ दादी सुना रही है
ReplyDeleteहार्दिक आभार कविता रावत बहनजी। आप मेरी हिंदी गढ़वळि द्वी कलमों तैं सारू देणा रैन्दा। बल, लिख्वार तैं पाठक ना मिलो त लेखण क्वी मेत्व नि होन्दू। धन्यवाद बहनजी।
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