क्या करलि गंगसारी राणी, जैका
छोरा बुद्धि ना बाणि, इनि हाल नागपुर्या काकिऽक बि छै, नोनु र्निबुद्ध लाटो, जख देखी
तवा परात, वखि बितैन रात, घचौरी घच्वर्यूं घ्वोड़ु। बाद मा कखि आळी जाळी ना ह्वो इलै
काकिन बगत पर आळी ब्वाळी करि ब्यवै दिन। पर ब्यौ बाद बि तेतैं ना सौंण बर्खो ना भादो
गर्जो।
एक दां ब्वारी छै मैत जयीं, काकिन बोली जा रे घुंत्या ब्वारी बद्यै ल्यो अर काकिन तैका हाथ पांच रुप्या धरिन कि बाटापुन ‘कुछ’ ल्ये लियां, सौरास रितो हाथ जाण ठिक नि।
ऐरां घुंत्या ठैऽरि गरुड़ौ घिन्दुड़ु। तैन स्वोचि ‘कुछ’ क्वी चीज होन्दी ह्वली अर वा बजारपुन ‘कुछ’ खुज्याण लगिग्ये।
घुंत्या- लालाजी तुमारा यख ‘कुछ’ बि च ? जी हाँ, यख कुछ ना भौत कुछ च, ब्वऽलाऽऽ तुमुतैं क्या चैणु ? जी मितैं भौत कुछ ना, *कुछ* चैणु। दुकानदारोऽन बि तैकि मुडळी बिंग्याली छै।, कुछ खुज्ये-खुज्ये तेतैं ततऽन बजार कुछ नि मिली अर वा अणमणु रिता अग्ने बाटा लगिन ।
चल्दा-चल्दा बाटपुन कै गौं मा एक बौडी सग्वाड़ी मा तुमड़ा छै गाणि, घुंत्यऽन पूछि बौडी सु क्या छ ? बौडिन बि तैका पूछणा ढंग-ढाळ से मसखरी मा ब्वलि या बि छ *कुछ*।
घुंत्या लाटा तैं ‘रुद्री रब्ये’ ह्वेगी। तैन बौड़ी हथ मा झट पांच रुप्या पकड़ाई, लै बौडी ये ‘कुछ’ मितैं द्ये द्यै। बौडी तैं बि ‘काणा त्वै क्या चैंद, द्वी आंखा साणा’। बौडिन सबसे ठुलु तुमड़ु तैमु सौंपिन। घुंत्याऽन बि चम्म तुमडौ भारु लगैन।
एक दां ब्वारी छै मैत जयीं, काकिन बोली जा रे घुंत्या ब्वारी बद्यै ल्यो अर काकिन तैका हाथ पांच रुप्या धरिन कि बाटापुन ‘कुछ’ ल्ये लियां, सौरास रितो हाथ जाण ठिक नि।
ऐरां घुंत्या ठैऽरि गरुड़ौ घिन्दुड़ु। तैन स्वोचि ‘कुछ’ क्वी चीज होन्दी ह्वली अर वा बजारपुन ‘कुछ’ खुज्याण लगिग्ये।
घुंत्या- लालाजी तुमारा यख ‘कुछ’ बि च ? जी हाँ, यख कुछ ना भौत कुछ च, ब्वऽलाऽऽ तुमुतैं क्या चैणु ? जी मितैं भौत कुछ ना, *कुछ* चैणु। दुकानदारोऽन बि तैकि मुडळी बिंग्याली छै।, कुछ खुज्ये-खुज्ये तेतैं ततऽन बजार कुछ नि मिली अर वा अणमणु रिता अग्ने बाटा लगिन ।
चल्दा-चल्दा बाटपुन कै गौं मा एक बौडी सग्वाड़ी मा तुमड़ा छै गाणि, घुंत्यऽन पूछि बौडी सु क्या छ ? बौडिन बि तैका पूछणा ढंग-ढाळ से मसखरी मा ब्वलि या बि छ *कुछ*।
घुंत्या लाटा तैं ‘रुद्री रब्ये’ ह्वेगी। तैन बौड़ी हथ मा झट पांच रुप्या पकड़ाई, लै बौडी ये ‘कुछ’ मितैं द्ये द्यै। बौडी तैं बि ‘काणा त्वै क्या चैंद, द्वी आंखा साणा’। बौडिन सबसे ठुलु तुमड़ु तैमु सौंपिन। घुंत्याऽन बि चम्म तुमडौ भारु लगैन।
अब ! चल तुमड़ा बाटे-बाट चौरास, घुंत्या लग्यूँ
सौरास।
शब्दार्थ :-
आळी ब्वाळी - जैसे तैसे/दिन रात
बद्यै - बुलौंण
तुमड़ा - कद्दू
रुद्री रब्ये - खुशी बरखा
ठुलु - बड़ू
@ बलबीर राणा
‘अडिग’
#udankaar
बद्यै - बुलौंण
तुमड़ा - कद्दू
रुद्री रब्ये - खुशी बरखा
ठुलु - बड़ू
हा.. हा.. हा वाह अडिग जी, मजा ऐ ग्ये ! 👌👌😊
ReplyDeleteधन्यवाद ममगाईं जी
ReplyDeleteधन्यवाद ममगाईं जी
ReplyDeleteभौत बढ़िया भाषा दगड कानि,,,,🙏🌺
ReplyDeleteधन्यवाद भुला सते जी
Deleteअडिग जी सुन्दर साहित्य रचणा छ्याव।ठेठ गढवलि क सब्द आपक साहित्य म मिलण भलि बात च।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय, अभिवादन च आपक । यनू सारू दिणा रयाँ।
Deleteभौत भलि कानि..अडिग जी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीय। सारू देणो आभार जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआदरणीय सब्बी पाठक बंधुओं से करबद्ध विनय च कि वेब वर्जन व्यू मा ऐ,फॉलोवर गैजेट तैं क्लिक करि ब्लॉग फॉलो कैर्यान, यीं से डारेक्ट आपतें मेरी रचनाएं by email aur blog par mil jaali
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