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Friday 16 October 2020

लोक कथा 'रोटी सत'

 

    


     कुसुमेंऽ यकुली गिरस्थी यकुलो पराण, बारा साल मा ही बिवयीं ग्ये छै, बाळापनो चकच्याट सासू हणका मुड़ी दब्येन, छौपती अर बट्टा जागा कुटळी अर दांथिन ल्येन। मैत मा एक सुंगरें जन ग्वोठ, भै बेणियां मिली पूरा दस छाँ। बाबा सनक्वळी गंगा नयेंण बैठग्यों। नोनी ठ्य्या मा जीण-जिवोर से लेकर कळदार तक खैन बल।

    बाळापन जनि सर्रपट लौंचि ज्वानी मा ऐन जवैं बादर सिहं तैं सोला साल मा ही अंग्रजोन पकड़ी फौज मा भर्ती कर्याली छै अर ठेट सात समुदर पार जर्मनी लडै मा भ्येजिन। ज्वानी रौंसे जगा बिरह बेदना मुंड सवार ह्वेग्ये छै। सै-ससुर बी सनक्वळी वीं जमाने मामारी खाब चलग्यां। अब घौर मा कुसमा अर वीं का गौरु भैंस।

    सती सावित्री से लेकर रामी बौराणी तक हमारा सनातनी धर्म मा नारी सत सदानी मुकुट मा रैन। बादर सिगें असल कुशल रंत रैबार मथि नीली छतरी वाळा भरोसु छै। वींन कैमा सुणी छै कि वा अंग्रेज भारता फौज्यों तैं पुटुग भौरीं खाणु नि देन्दा अर घौर मा कुठार उन्द नाज छै सड़णु।

    पति खातिर वा डेली चुलाणे पैली रोटी भैर छाजा रैन्दी छै धरणी कि हे परभो मेरु सत ह्वलो त यीं रव्टी मेरा बादर मा पौंछे दियां, अर रव्टी तैं एक कागा उठै लि जन्दो छै। दगड़ मा अपणा ड्वार अयां कै बी जी नमाण तैं बिगैर गाळु द्ये नि जाण देन्दी छै, “रोटी सत परमो धर्मः”

    दिन मास अर साल बित्यां, प्रथम विश्व युद्ध निमणीग्यों, लोगुं मा सूणि कि हमारा फौजी वापिस अपणा देश लौटण बैठग्ये। आसा अब उतळी होण लगिन। एक दिन तैकु फौजी शाम दां रवटी बणोण टेम कड़म कड़म चौक मा पौंछीग्यों। द्वीयां साखीं लगिन आँख्यूं मा खुशी गंगा जमुनों छळछळाट।

    तब्बी कुसमा तैं याद ऐन कि चुलणा पैली रवटी फुक्की ह्वली वा झट भिरत गेन, पर तबारी तलक वा रवटी अद्दा जलिग्ये छै। भैर आई अर रुआंसी ह्वेगी, बादरन बोली अब किलै छै पितराणी। तैन ब्वली आज अन्यो ह्वेगी मेरी पैली रवटी फुकीग्ये। बादरन बोली क्या ह्वे त दुसरी बणि जाली, कुसुमन बोली बात दुसरी रवटी नि च, अर वींन पूरी बिदागत बादर मा लगेन।

    बादर कखि ख्वै ग्यों जनि तन्द्रा टूटी वा कुसमा खुट्टा मा झुकिनं, कुसुमऽन बोली इन क्या कना ?  फिर बादरन बी अपणी बिदागत लगेन कि जबारी वा लाम मा दुश्मने गोली सामणी लड़णु छै इनि एक रवटी जन मेरा अग्ने लगि जान्दी छै अर दुश्मने गोली तेऽ फर टकरान्दी छै। हे देबी आज फिर एक हौर सति सावित्रिन अपणा पति ज्यान बचैन।

@ बलबीर राणा अडिग

16 Oct 2020

www.udankaar.blogspot.com 

2 comments:

  1. अडिग जी नमस्कार ! क्या बिगरैली अद्भुत कथा लिखी आपन ! जिकुड़ी मा छपछपि पोड़ ग्ये ! नमन आपतैं अर आपे लाजवाब लेखनी तैं ! जय हिन्द ! 👌👌

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  2. ज्यू से आभार आदरणीय ममगाईं जी आपन अपणु आशीष वचन ध्येनी मि कृतार्थ हवेग्यूं. उन ब्लॉगर मा हमारा लोग कम ही आनदं, आपतें ब्लॉग मा देखी हौरि खिलपत हवेग्यूँ

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