ब्वै फजल उठ जांदी छै
या
वीं का उठण सि फजल होंदी हो
ख्वणी-ख्वणी
ना फजलन जाणी ना ब्बैन ।
खादरा, धुर्पला अर
भैर संतरा डाळी मा
चुँच्याँदी घिन्दुड़ियाँ
ब्वै तैं जगौंदी हो
या कि!
ब्वै उठणा खबसाटन
स्या फजल होणु इशारा करदाँ हो
ख्वणी-ख्वणी
ना घिन्दुड़ियून बतैन ना ब्वैन पूछी।
तै मंगरन बि कब्बी
वीं तैं अहो! ना, नि करि
कि अज्यूँ मि नांगी छौँ
कख छन तू बंठा ल्ये
यति हुर्रमुर्रा मेरी निंद ख़राब कनी।
चम्म घाम चमचौंण तक
हम फसोड़ी सियाँ रौंदा
ब्वै कि बाँटी अद्दा निंद
अर
ब्बै बिजीं रौंदी छै
हमारा बाँटिग अद्दा राती तक।
घामा औण तलक
सु बगत ही तति लम्बो होन्दू हो
या ब्बै का तति लम्बा हाथ
कि स्या सब्बि काम छंटयै छुँटयै
खाली ह्वे जांदी छै
हमु तैं लाड़ करि उठाण उणि।
दादौ हुक्का भरी जांद छौ
जुठ्ठा भांडा सुखिला ह्वै जांदा छाँ
भैर भितर खौड़ सोरयूँ रैंदो छौ
गुठयार पुन मौळ सुतर ह्वे जांदो छौ
अर
गौड़ी भैंसी मु साळी बैठी
कुछ दूध भितर परोठा उंद
कुछ केतली उंद लड़बड़ी चा मा
अर कुछ दूध भद्याळी उंद
ताताणु धरयूँ रैंदो छौ हमारा वास्ता।
आटू औल्याँ खस-खस्सा
हाथन जब ब्वै उठौन्दी छै हमुतैं
तब
हमारी पुतळणयाँ मुखड़ी
समणी होंदी छै
घाम से भी दमकौँणयाँ
वीं कि मुखड़ी
अर स्या
लड़बड़ा चा गिलास दगड़
बोल्दी उठा बा, छाँट उठा
आज तुमारा पिताजी औणा म्येल्यौ
भैर ठंगरा मा बैठी
सु कव्वा रैबार ध्ये गयूँ।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
मटई ग्वाड़ बैरासकुण्ड
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