जन तुम मानणा तन नि मानणी दुन्याँ,
जन तुम चिताणा तन नि चिताणी दुन्याँ।
मथि पूर कांठा बीच ज्व पठाळ चमकौणी
तखा काठ कष्टों मा भी खूब हैंसणी दुन्याँ।
भैर बटे जौं का ठाट-बाट देखी तुम मौळयणा,
तौं का भितरै भितर बि खूब कणाणी दुन्याँ।
जौं झवपड़ी छपरों गळयूँ देखी तुम भिनाणा,
तौं का घिबच्चोळ मा बी रम-रमकणी दुन्याँ।
सु जून, गैणा, नक्षतर कैल बोली दूर छन,
सगौर आंकुरी चैणी कख नि पौंछणी दुन्याँ।
आखिर जु पिसणु अपणा बारा गारा पिसणू अडिग
कैकी सुद्दी दळेणी कैकी मैसी पिसैंणी दुन्याँ।
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
7 फरवरी 24
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