अब सु पूसौ जन
घाम ह्वेगी
घौर औणूs कू
साल मा एक दां
वा बि मुश्किल सि
सुपन्याँ जन सट औन्दू
अर चट चलि जांद
अर बाज बाज
साल त!
रिति रै
जांदी ब्वै कि आस।
हेरां!!! दगड़्यौ
क्या कन?
या मा
तै कु बि
क्वी दोष नि।
किलै कि सु
ब्वै-बाबा का
विकासा स्वेणा उँणि
छौपदू छौपदू
इतगा दूर पौंछयूँ
कि
तख बटे
सुपन्याँ बणि त
ऐ सकदू
पर
बगत बणि ना।
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
14 फ़रवरी 24
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