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Sunday, 17 November 2024

धरती मा स्वरग चा गढ़भूमि हमारी




वल सारी सटयाड़ी पल सार क्वदयाड़ी

रौंत्याळी डांडियूँ बीच गौं-ख्वाळी हमारी।

मेरा गौँ मुल्क देखा हरीभरी हरियाळी

धरती मा स्वरग चा गढ़भूमि हमारी।


हियूँ चूळा कांठा अर मखमली बुग्याळ 

पंच बद्री पंच परयाग, पंच छन केदार 

घर-घरौं बिराज्यान थौळ अर थान 

द्यौ भूमी धरती बसदा द्यौ द्यबता नमाण 

बारा मैना बारा मासा रंगत रंदि भारी  

धरती मा स्वरग छ गढ़भूमि हमारी।


कांठौं की पीठ बटे छीड़ा छन बगणा  

पाखौं की छत्ती बिटे छौया छन फूटणा 

बसुधारा मंगरौं बगदो अमृत जल पाणी  

गंगा जुमना कु मैत हियूँ चूळा हिमानी  

कळ-कळ छळ-छळ छप्प-छप्प छळारी ।

धरती मा स्वरग छ गढ़भूमि हमारी। 


बामणी बौडी धै लगाणी चौक का तिर्वाळी

पुंगड़ौं मा हमारा क्वो छ तू घस्यारी 

घात चटमताळ कनि काकी स्या चुनारी 

किलै खाई मास्तौ तुमुल कखड़ी सु हमारी 

तकदक साग भुज्जी छन बाड़ी सग्वाड़ी।

धरती मा स्वरग छ गढ़भूमि हमारी। 


लौ-मान बगत बार पिंगळी छ सार 

नाज-पाणी रड़का-रड़कि भौर्यान कुठार 

मौ-मदद हाथ बड़ौंदा देंदा सौंग सारौ  

खुसी खुसी उच्यांदा लोग मनख्यातौ भारौ 

सुख दुःख मा सौंग सारू देंदी बेटी ब्वारी ।

धरती मा स्वरग छ गढ़भूमि हमारी। 

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