सैरी करमात ये माटै च
साला माटै,
कुछ-कुछ पाणी, त
कुछेक सुर्जा तौ अर
चंदा छैलौ भी।
बूतदा क्या उगादो क्या?
योगी-जोगी बूतद
कामी कुकर्मी जमदू
क्वौदा मंगौ झड़ू
ऋषि दगड़ हँत्यारौ
पुन दगड़ पाप
पबितर दगड़ अपबितर
स्वयं सेवक दगड़ स्वारथी नेता
ब्यौपारी दगड़ गलैदार
गुरुकुल-गुरुजी दगड़ ट्यूशन-टीचर
ब्लड डौनर दगड़ ब्लड खौनर।
हौर क्या-क्या ल्योखण
कैतें ल्योखण
भितर भली कि छाळ-छांट कर्ला त
द्यौखला
तुम, मि, सब्बी छन
कुछ-कुछ साटी मंगा पौड़।
मानी ल्या
यु सब परिकति नियम च
कखी तैलौ कखी शीलौ रैन्दो ही
फर
यु, खतरनाक भैंकर
कुबीज कख बे आई
साफ़ सच्चे दगड़ सफ़ेद
चकमकार झूठ
ज्वा मनख्यात मा फैलणु
जनु डडयाळी घासै जगा
गाजर घास
ज्वा हैरौ विस्वाघात करि
मनख्यातौ र्निबिजो कनु ।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
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