आज एक दां फेर जस्वद (जशोदा) काकी अपणा खौळ बटे भैर नि दिख्यै। बाटापुन औण-जणदरौंन काकी तैं एकतर्फां वौलू (घूँघट) मा गुठ्यारपुन मौळ-सुतर कन देखी। एक आद घसैरी दगड़यून धै भी लगै छौ कि ऐ दीदी, ऐ चौतू ब्वै चल रे घास ऊणि। पर जस्वद काकिन मराण्यां बाज मा बानु मारी कि ना ले आज घौरेपुन काम छौ भिज्यां। जबकि सब्यूँ तैं पता छौ कि वीं कि गिरस्थी एक दिन भी बिगैर बौण जयाँ नि चल सकदी। एक भैंस अर गौड़ी दुध्यार, वूं कि बाछियां, एक जोड़ी बल्द, द्वी नवांण कलौड़ियां। गुठ्यार छौ गाज्यूँ न भरयूँ। बैला-बन्ठरों काम त सूख्याँ पराळ-सराळ न भी चलि जान्दू पर लेन्दी गाजी वास्ता त हरयूँ-तरयूँ त चैन्दो, बिगैर चाटू को तौं मा दूध ढांटण मुश्किल ह्वै जान्द।
बल, नि ह्वयूँ कु एक दु:ख अर ह्वयाँ का हजार दु:ख। भगवानल अध्यड़ा
उमर मा त योक लड़ीक पुत्रबीज दिनी छौ, सु भी निहोण्यां होणू। द्वी झणा हाथौं मा पालणा
छां तै सणी। घौर मु घ्यू दूधै गंगा हर बगत छै बगणी, खाण-पीण, ओड़ण-पैरणें क्वी
कमी नि छ। ब्याळी को जुळक्या नटखट चैतू चौदा-पन्द्रा मा पौंछद चैतू झांजी
बणिग्यूँ। ब्याळी तक लोग पीठ पिछनै औता छै ब्वना अर आज नांगी नाचि नि, द्वी चारौंन देखी नि।
जादा पुळक्यौण मा औलाद कुलक्षणी
बणि जान्द समणी दिखेंणू छौ। तैका कुलक्षणल आज जस्वद काकी सरम का मारि अपणा खौळे दानेण बटि भैर नि निकळी। क्वै
पूछलो कि दीदी सु चोट कनै लगिन त क्या बतौंदी। इलै चुप्प ‘अपणा बल्दै मार
खायीं’ अपणा भितर रुण वाजिब समझी। कख नौरु कख पाणी धौरु वळी बात छै हुयीं। भैर लोगुं मा छुवीं लगाण अपणा भितरै इजत नांगी कन।
गजै सिंह काका
गारा माटौ क ग्वठया सल्ली/मिस़्त्री छौ, सिद्दो गौ समान मनखी। जीवनभर ब्यंठ्या (सायक मिस्त्री) ही रयूँ। अब जै बुड़ापम
गोठ चिंणणूं काम छौ मिलणू। लौण-मानणा अलौ गजै काका डेली फजल उठी काम पर निकळी
जान्दू अर ब्यखुन्दा थौक-थाकी घौर आन्दू। खैर घौर मु इत्गा कंगळ-धंगळ नि छौ, पूरो गिरस्थी छयो। जमीन जैजाद मा अद्यळ-बुस्यळ जनि भी हो पर
द्वी झणों मीनतन साटी, झंगोरु, ग्यूँ अर क्वोदल कुठार भरियां रैन्दा। बाकी तामी-पाथी सत नज्जा होन्दू यी छौ। गुठ्यार
भी गाजी धनल सदानी भरीं रैंदी। साल द्वि साल मा भैंसी बाखरी बिकी बैंक डाखना मा ढैला-पाई भी
जमा छै छयी। सेर-पाथी दूध घ्यू बेची चा-चीनी कु
खर्चा निकळी जान्दो। बाकी घौर गिरस्थी वास्ता सु ब्यंठ्या गिरी परमानेंट नौकरी अलैद छै।
गौं समाज मा रौण त बाग का जनु
बिराळौ कनु पड़दो साब। गिरस्थी मा कति
परकारा खर्च छन जौं कि हणती ना गिणती। ऊँज-पैंछ, तौ-त्यवार, यार-आवत, पौ-पगार, डो-डड्वार, न्यूतो-ब्यूंतौ अर गौं कु दर-कर सब्यूँ मा सामिल हौणें
पड़दो। गिरस्थ मा निरस्थ नि ह्वै सकदा।
गजै काका
हस्ताक्षर कन आ अलौ अनपढ़ यी छायो इलै नौना तैं ब्वन अर समझणा अलौ पढ़ै मा मदत नि कौरी सकदू छौ। यीं जमाने नै पढ़ै नै हलण-चलण। बेटा कख जान्दो क्या करदो लाड़ न जादा कुछ नि बोल्दू। जस्वद
काकी तैं बण-बोट, डवखरा-पुंगड़ा, म्वोळ-सुतर, चुल्ला-चौक मा यी सुबेरौ घाम ब्याखुनी बूड़द
दिखैन्दो। जबारी तलक बेटुलियां छयी मदत क्या आराम छौ। बेटी-माटी कु लकार। मयेड़ी क
नोनी अर नोनी क मयेड़ी सि बड़ौ क्वी मदतगार नि हौन्द। इलै अगसर ब्वलै जान्द ‘जन मयेड़ी तनि जयेड़ी। नौन्यां बाळापन बटे इस्कोल घौर बौण सबबी
काम मा चटफट, फिटफोर रन्दिन। नौन्यूँ लकार
प्राकृतिक माना या नैत, स्या चितै जान्दन कि त्वेन भौळ कै कि गिहस्थी कु
सर्वेसर्वा हौण, इलै भगवान तौं सणी नोना सि जादा संजिद अर अकलवान
बणान्दू म्यैल्यै।
गजै-जस्वदौ चौतू
सि पैल्यां द्वी नोनी ह्वेन, लगुल्याँ ठंगरा
पौंछद यी हाथ पिंगळा करि ब्वै-बाबा गंगा नयै गे छां। बेटी हैका घौरे चीज मानी आज
भी गौं देहात मा बेटी तैं बगत पर बिवाण लोग सुखी चितान्द। बल, बेटी सुख पूस क जनु
घाम।
हौन्दा खान्दा
घौरा होण से चैतू (चैत सिंह) तेरा साल मा यी लौंच्या बणण बैठियूँ। लौंची उमर मा
सरेला सब्बी जैज बदलौ का अलैद तैका व्यौवार अर चाल-ढाळ मा हौरी बदलौ औण लगिन। तैकु उठण-बैठण, ख्यलण-कुदण अपणा उमर सि बड़ौं दगड़ होण लग्यूँ। बल किशोर उमर लगुला
जनु होन्दू साब तै ऊणि भलु ठंगरौ मिली
त सु टुक्कू पौंछी जान्द अर भलु ठंगरु नि मिली त सु भुयां अल्झी-गल्झी जाळ बणि जांद।
फिर तै फर भला फूल-फल लगणें उम्मेद नि होन्दी।
निमाणा सिद्दा
ब्वै बाबा लाड़न चैतु तैं जादा टोका-टाकी नि करदा। इलै सु जादा बिगचणु लगी। तैकी संगत बिगच्याँ उतड़ण्यौं दगड़ होण लगी। चैतू
लौंच्या मन चै-अनचै नसा-नुसौ आदी होण लग्यूँ। घौर बटे कब्बी
इस्कूला बाना पैंसा मांगदू त कब्बी ब्वै बाबा क खीसा उन्द हाथ डाळी देन्दो। ब्वै
बाबा बोलदा पर जादा ना नुकर नि करदा। किताब अर पढ़ै जन तैका जिठाणा लगद ह्व्ला।
बाकी अजक्याल सरकारी इस्कूलौं मा कख पढ़ै कख ध्यान-ज्ञान। फैनल परिक्षा मा आड़ू-ग्याड़ू
सब्बी पास ह्वै जान्दा।
गौं मा अब मोटर
रोड़ औण सि नौन्याळ घौरा काम मा हाथ बड़ौणा नि दिखेन्दा। सुबैर बटे दिन तक इस्कूल, ब्यखुन्दा घूमण-घामण। जादाकर छवारा क्या बैख नमाण अपणी
कछड़यूँ मा या त पर्यटक बणी सड़क्यूँ मा घूमन्दा या दुकन्यूँ मा झुन्ड बणैं मुबेल फर
मैस्यां दिखेन्दा। सरकार फीर्री द्योणी। पुटगै क्वी चिन्ता नि। खेती-पाती खैड़ण-खरौळण तक हुयीं। बाकी खर्चा पर्चा झपोड़ी-झपाड़ी निकळी जान्द।
कब्बी जमानु छौ जब गरीब-गुरबा नोनुल घौरा कामा दगड़ डिग्री पास करि अर अधिकारी भी बण्यां।
चैतू दोस्ती
घुमण वळौं का अलौ हौरी छै, तैकि पारटी आम तौर पर गौं सि दूर कै गदना बैठयां
मिल्दा। पता नि सु नशा वळी चीज कख बटे ल्येन्दा। सुणण मा आयी कि तैकी पारटी दयरादूण कुटदार सर्विस वळा डरैबरों का गैख छन बल। सिगरेटा पुटुग भौरी कुछ
प्योन्दा बल। कबारी दवै टेपै गोल्यां भी तौं मा दिखेन।
अंध्यारा देर
राति तलक घौर बटे भैर रौण। इस्कूल टरकौण, दिन भर गैब रौण चैतू आदतौ हिस्सा बणिगे छौ। कीचड़ मा गुलाब जलै खुशबू औणें आशा
कैतें नि रौन्दी। गौं वळा अब गजै काका लड़ीक दगड़ अपणा नोनूं कू उठण-बैठण क्या
ब्वलाण से भी डन लग्यान।
गौं का बड़ा
बुढ़योन गजै तैं समझायी कि गजै त्यारु एक बीज छ पर सु गलत संगत मा छन रे, संभाळ तै ऊणि। आज गिजी काखड़ी
भौळ गिजी बाखरी। अबैर करलो त सु हथ नि औण्यां। पर साब सच्चै त या छन कि माया निरपट
काणी हौन्दी। माया तैं हैक क लाटू पर अपणू बांठो दिखेन्द। गजै काका अर जस्वद काकी
भी माया सि भैर नि छया। ये मायाल सरु संगसार अपणा जाळ मा फंसयूँ, त तौन कख छूटणू
छौ। इलै दुन्यां का समझौण बुझौण पर भी सु कुछ नि करि सक्याँ।
कुपुतर कुपुतर
हौन्द एक हो या सौ। निथर संजय का बतौणा बाद भी अंधा धृतराष्ट्र कुछ बींगी जान्दो
या गंधारी आँखौं कि पट्टी खोली कुछ दयौखणे कोसिस कर्दी।
पर ना बिणास काले विपरीत बुद्धी। गजै अर जस्वदा समै कु जग्वाळ कन लग्यां कि संयाणू
होलु त कुछ सान समझ आली। मेरी बीबी सबकी मौत, कुब्वसन कैतें नि छ्वडदू।
सौला तक औण-औण
चैत सिंग हौर कखि पौंछिग्यूँ। गुमसुम रौण, चिड़चिड़ौ, बौल्यूं नि मानण, पढ़ै अर काम त ब्वाला यी ना। बात बात फर गुस्सा। बाबन ब्वन छौडियाली छौ, ऐरां
बिचारु दिनभर ढुंगौं का दगड़ लड़ण बळू मनखी पस्त-व्यस्त। काम बटे ऐ ब्यखुन्दा चार
टिकड़ा रुवटी दै अर नोणी मा लपकान्दू, द्वी चिलम तमाखू फुकद
खम-खाम करि परलोक ह्वै जान्दू। हैका तरफ दिनभर गिरस्थी की चक्की मा पीसण वळी ब्वै
कुछ हिगमत करि ब्वल्दी भी त सु ब्वै दगड़ भिड़ी जान्दू अर हथ-पाई पर उतरी जान्दू।
घौरा घ्यू दूधौ पौंठा पराण कुबीज ब्वै मा दिखान्दू।
तै दिन भी सदानी
की तरां गजै काक सुबैर ध्याड़ी मजूरी पर चलिगे छौ, तैन पैली गजै का खंतड़ा झपकाई कि कखि कुछ मिल जावो फेर सु ब्वै मा पैंसा मंगण लग्यूं, ब्वै मना कन पर सु बक्सा पर झपटी जख बिचारिन कुछ द्वी चार
लुकयाँ रौन्दा। ब्वैल ना-नुकर करि त तैन एक मुक्का मारी अर भैर भाजिग्यूँ।
जस्वद क नाक उन्द ल्वै धारा दगड़ थ्वबड़ा फर भी
अणकसि चोट लगीं अर थ्वबड़ू सूजी बमकार बणि छौ। ये सरमा मारी आज भी
स्या घौर बटे भैर नि निकळी। ऐरां समया कैमा ब्वन, ब्वै-बाबक स्वेणा च्यौड़ चड़ण छया अर भाग दांत पिसणू छौ ।
चाटू - रुड़ियाँ बगत हरियूँ घास जु लेन्दा गाजी तैं पुळकणू बानु मणें जान्द।
च्यौड़ – चिता
कानीकार : बलबीर राणा ‘अडिग’
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