बैसाखा मैनों आखरी हफ्ता, मधुमास लगभग क्या पूरो निमणिगे छौ अर ग्रीष्म ऋतु कि भणभणी लगण लगि छै। नौकरी लगणा ठीऽक छब्बीस-सत्तैस साल बाद तै दिन पुज्यै खातिर बाखरै ख्वौजी मा हैका गौं जाण पड़ौ। हैको गौं क्या भिज्यां दूर, बिच मा बड़ौ लंबौ बण जु हमारा गौं अर तै गौं कु औड़ू बि छौ। तै बण मा छौ हमारु मरुड़ो अन्वाळपाणी। मन मा घंघतौळ बि छौ अर उलार-उमंग बि। किलै कि सु जंगळ, बाटू अर मरुडा़ मेरा बित्यां सुंदर अतीत को साक्षी जु छौ। बांज, बुरांसौ उनि हरयूँ- भरयूँ बण, उकाळ-उंदारा सर्पीला बाटा-घाटा। कळ-बळ छळ-बळ कर्दा पाणी गदना, नौळा। बांजै जड़यूँ अर छव्य्यों ठंडो पाणी, परकति का आगण मा हिलांसों कंयारु ककळाट, घुघुत्यूं घुरऽ-घुरऽ, गुणि-बांदरौंक बिगच्याट धिधड़ाट उच्याद। हेरां दां ! सोब उनि त छौ, जौं तैं मि तीस साल पैली अच्छा बाय बोली जिंदगी तैं दौड़े ल्ये ऐग्यूँ छौं ईंटोंऽ का जंगळ मा।
खैर सु डांडी-कांठी, गाड़-गदना, बाटा-घाटा, भ्योळ-भंगार, पौन-पंछी, खौ-बाग यख जुग बटिन रै ह्वळा, पर मनखी प्रकृति उर्जित चीजों तैं भी अपणा बगत कु यी समझदू।
तब्बी त वा तड़ी मरदू कि क्या जी फलाणी चीज मेरे समय में ऐसी थी वैसी थी।
हाँ कुछ कमति छौ त
वा छै तखौ तै धरती को कौथिग/उत्सव। कौथिग बोला त, एक दिनों नि सदानी को। जनु कि गौचरों मा ग्वाळौं हल्लारौळी, गाजी घंडुळयों घिमड़ाट, बल्दौं डुकरताळ, बाखरा चिन्खौं मिम्याट, बांजा डाळियूं अर घासा पाखौं मा घसेरियूँ गीत, काळा कनूड़ अन्वाळौं मुरुली तान उगैरा उगैरा। यु
इलै कम नि छौ कि बण द्यौल अपणी चीज-बस्त अर संपद लुकै होली बल्कि इलै कम छौ कि
मेरा जन कतिगा लोगुन टाटा बाय-बाय करियाली छौ वे काठा जीवन का संतोषी पराभव तैं।
बोला त पलायनै औनार तौं बणूं मा भी दिख्येणू छौ। छानी मरुड़ा अब ना का बरोबर खैना
छन। कुछैक मवसी यी खैनी कनि तौं सणी, निथर कै जमाना मा गौं कि हर मवसि को अपणू मरुड़ा होन्दू छौ, सु बेनाप जमीन बि लोगुं कि आपस मा बंटि रैन्दी
कि सु फलाण मवसी को खर्क च। गाजी पालण-पोषण अर अलैद नाज पाणीऽ आमद का खातिर लोग
बसग्याळ मरुड़ा जान्दा छौ। पर आज सु मरुड़ा अर घासा तपड़ का तपड़ भी बांजा पड़यान।
मन मौण्यां तै धरती
मा खुट्टा पड़दा यी झमाझम यादें बरखा सुरू ह्वेगी अर सु बरखा बित्यां दिनों फर जमी
बिसरियां लापड़ों तैं उतरण लगि। जन मेरा खुट्टा अग्ने बड़दा उनि तौं जगा देखी एक का
बाद एक बित्यां दिन याद औण लगिन। उडंगड़ ढागोंक घण्जा, उड़्यार, बिसौंण्यां, बांजा डाळांक ढवोर, बुरांसा डाळों फर र्खुच्यां अपणा अर दगड़यों का नौं, बड़ा-बड़ा डांग, घासक पाखा, गदरों मा ताल जख
गर्मियूँ दिनों मा पड़या रौन्दा, गौचर गैठा पाखा उगैर
उगैर । क्या कुछ नि दिखेणू छौ जखमु कै ना कै दिनें याद नि जुड़ीं हो। वीं धरती हर
एक कृति बित्यां दिनों कि गवै द्यौणी लगि।
यादों का तलौ मा
मंसा कु उमाळ बढ़दो गयूं अर ना जाण कबारी मि बाटा कु अबाटा लग्यूँ। मूल गंतव्य छोड़ी
हैकि उकाळ चढ़णू लग्यूँ सड़म-सड़म, हांपम-हॉप!! तौं
मरुड़ा/छानी’ अर अल्वाडों’ (आलू पुंगड़ा) तर्फां।
जौं तैं मेरा बाबाजिन अपणा ज्वनि गरम पस्यौ बदिन सिंच्यूँ छौ, जौं पुंगड़ौं कि आमदल मि पढी-लिखी दुनियां द्यौखण
लेख बणिन। मेरु दगड़या मोहन मौळयुं जनु बिगैर छुवीं-बत म्यार पिछने छौ लग्यूँ ।
माटी पिरेमल यनु
खैंची कि अन्जाद तीन मीलै खड़ी उकाळ कबारी पूरी करि पता नि चलि अर मि पौंछिग्यूँ
अपणा मरुड़ा अन्वाळपाणी जख मेरा बाळापन सि ज्वानी तलकै हर चौमासन अपणी रुण-झुण मा
सिंचयूँ छौ। तख दखि धिरगम ठौ त ह्वैन कि आज बि हमारा पुंगड़ा बंजर नि छया। गौं का
कै हैका भैऽन सु खैना कर्यां छां। म्यार बाबा खैण्यां पुंगडौं बदिन कै परिवारौ आज
बि गफ्फा चलणू या खुसी बात छै। जशीली जु
छै वा भूमि। मरुड़ा हौर-पोर खूब टकटकी लगै द्यखणू रौ। पुंगडौं कि घैर बाड़ उनि छै, चौंतर्फां बांजा डाळा उनि खड़खडकार खड़ा, खरका नजीक बुराँस अर अंग्यारा डाळा उनि ठंगर्या
मुंडयां छां अज्यूं बि। पर यूँ मा एक चीज नजर नि औणी छै कि हमारी छानी कखमू रै
ह्वली ? किलै कि तख अब पुंगडौं सैज बड़िग्ये छौ, कखिमु झाड़ झंकार उगी छौ। जै भै को तख खैनु
कर्यों छौ तैन अपणी परमानैन्ट साळी हौर मथि बणियाली छै। तखमु सु डांग, तखमू सु बांजो मुडौं, स्या पुंगडौ कूण हौर भितर खस्कीगे कखमु रै होली
सु छानी मि गिचा पर अंगुळी लगै स्वचणु छौ।
जब पता नि चलि त मिन मन तै बुथायी कि फुक्का रे
अब क्या कन तै छानी खंडरौ कु। अर जनि मिन तै माटोक तिलक कनू हाथ बड़ैन तनि मेरी नजर
एक ठंगर्यां बुरांस डाळा फर पड़ी जै का टुक्कू फर यकुलौ फुन्ना छै अज्यूं भी
खिल्यूँ। यनु रौब से कि जन सु लड़ै जीती अयूं हो। हाँ लड़ै त जीती छै तैकी, ऋतु चकरै लड़ै, किलै की फागुण, चौत अर अब बैसाख भी जाण वळु छौ।
तबरि झप्प कुछ याद
आयी। अरे यार सु बुंरासौ डाळू वी त छ ज्वा तीस साल पैली बाबन हमारा झंवर्या मा
रोपी छौ। फेर एक दां दै-बौं कि जमीनों म्वैना करि त यकीन ह्वेगे कि सु डाळो वी छन
जु बाबन अपणा कृषक जीवन का सच्चा दगड़या झंवर्या बल्दै खाड़ मु तैकी याद मा लगाई छौ।
म्यारा गुडडू जबारी तू ये डाळू द्यखलो त्वैतें मेरा ये दगड़ये जरुर याद आली रे। अरे
सु बुंरास त छ मेरु झंवर्या। ततिग मा मेरा आँखा उन्द तर-तर चौमास बरखौण लगि। साला
फूल भी उनि कड़कड़ौ अकड़ूबाज दिख्येणू जनु सु झंवर्या छौ। कुछ कमति छौ त तैकि
मुळक्याट, तैं झंवर्या का जनि जै दिन तैन यखमु पराण छोड़ी
छौ।
सरा बण मा अजक्याल
कखी बुंराँसा फुन्नों (फूलों) नामों निसाण नि छौ पर सु किलै छन अज्यूं तलक ? मितैं यु एक पहेली छै। फेर दुबारा बाबै बात याद
ऐन, गड्डु ये डाळै याद धरियां रे आज बटे यु मेरु
झंवर्या छ। फेर आँख्यूँ बटि छड़छड़ाट...... सैद यें तैं पता छै कि मि औणू तब्बी त
अज्यूं तक रयूँ। बंसता बादौ सु बुराँसी फुन्न मितैं तीस साल पिछने ल्हीगी।
असाडौ मैनु, खर्कचौळौ दिन (गाजियूं एक जाग/खर्का बटि हैका
जगा जाणों दिन) अर यु छानी। बाबाजी तीन बीसी का ज्वान। ज्वान इलै कि उमर का एक भी
निसाण तौंका मुख शरील पर नि छया। झंगर्याळा लटुला, चटक चाल, कामें सरपट रप्तार।
नै-नवाणौं जन रसिक मिजात। ब्वै पच्चपना धौरे दड़दड़ी द्वार गातै मनख्याण, रुन्ड-मुंड धणकार। ग्यूँवण्यां लाल गळोड़यूँ पर
पस्यौ धारा इना कि जन रमथमा बुग्याळों मा बसग्याळा छीड़ा झरना। थौक तौं द्वीयूँ का
शरीरल सैद पच्छयाणी ही नि। बारामासी लेणा परताप गीज खुराक भली रैन्दी छै। दगड़ मा
मि अर मेरी द्वी बेणियाँ। बाकी हमारु पशुधन/गाजी मा योक बल्दौं जोड़ी, द्वी गौड़ी एक ब्यनार एक दुध्याळ, द्वी बाछी, लैंण भैंस दगड़ ज्वान पौन, पच्चीसेक ढ्यपरा बखरौं दगड़ तौं का चिनखा, बाल्ली-बाल्ला अलैद। अर हम सब्यूँ दगड़ सु बुढया
अमात्य झंवर्या बल्द। जानवर।
झंवर्या जानवर इलै
कि सु हमू तैं मूक लाटो जीव छौ। फर सु अपणा आप मा हमारी गिरस्थी को एक जबाबदार
पराणी छौ, सारा गुठयारौ सर्वेसर्वा, बल रिंग लीडर। किल्वाड़ा बटि निकलदा ही पूरा
गुठयारजनों को घौर बटे जंगळ तलकौ अगलर्या, गौं का हौर गौरुं-बल्दौं दगड़ लडी़-भिड़ीऽ सब्यूँ तैं
बचान्दू। यूँ सबसे इतर तैकु नैतिक कर्तव्य ‘हल को सल्ल’ गौं भर मिसाल छौ। जै दिन बाबा ग्वाळो होन्दू वे दिन तैं ते
पता होन्दू कि आज गुस्सें जी भली जगा ल्ही जाला चराणू । पर जै दिन हम बाळा नादान
ग्वाळा रैन्दा तै दिन सु पूरी कमांड अपणा हाथ मा रखदू कि आज कै तोक मा चरण। वे तैं
पता रैंन्दू कि यूँ छवारोन अफूं ख्यलण पर लगि जाण अर हमुल तनि रै जाण सूखा
गैठा/तपड़ौं़ मा गिच्चू घूसण।
हम बाळौं बाळूपन खूब
जणदो छौ सु सयाणू लाटो। दिनभर अपणा गुठ्यारै टोली तैं चरै-चुरै कि छैल ढळक्यां मा ही घौरा बाटा लगे देन्दो। मजाल
क्या एक बि बाछुरो तैका आदेस से भैर ह्वोन। अगर सु बाटा पैटीग्यूँ त पिछने बटि
लंगत्यार लगि जान्दी छै सबूँ की। तैका पिछने तै को जोड़ीदार सरू फिर हौर।
सु झंवर्या गुणी
इत्गा कि हौळा टेम पर तैं तें पता रैन्दू छौ कि आज क्वो पुगडौ बाण। यनु ही तैको
पाळीऽ सौंजड़या सरू भी। रौंल्यां-पौंल्यां जोड़ी, क्या मजाल सरू अपणा बड़ा भै बात काट द्यौ, अज्ञाकारी।
जीवन वृतांत मनख्यूँ
हो या कै जीव को पर याद वी रन्दन जु कै का जीवन मा क्वी प्रभौ छोड़दन। झंवर्या मेरु
प्रेरक छौ जैन कर्म कर्तव्य अर जिम्मेवारी परिभाषा सिखायी छौ ।
झंवर्या अर सरू कि
जोड़ी बाबाजी छव्टा बाछुरा मा लंया छां, झंवर्या सरु से मैना मा बड़ू छौ। बछड़ा बटि जब सु बौड़ हुयां त
बाबन तौं तें हौळ पैटाणा दगड़ हौर कामें ट्रेनिंग बि द्येनी। जनु कि अपणा पाळी लगण, गुठयार बटि बोण चरण जाण, औणा बाद अपणा किल्वाड़ा पर गैंडु बंधणें जग्वाळ
कन, दैयीं मा रिगण, पुंगड़ा मा जै किन चुपचाप जुवो काँधि धरणैं जग्वाल कन अर
गुस्सें भाषा समझण, ले-ले, हों-हौं हुंगरा पर ही बिगैर सिंटगी का तिर्वाल
ढिस्वाल मैसी पर सीं पर हिटण उगैर-उगैरा।
कतिगा आज्ञाकारी हौन्दू सच्चू बल्द। हमारा पाड़
मा बल्द बणण सौं बि होन्दू कि! बल मि ये जलम मा तेरु कर्ज नि द्ये सक्लो त अगला
जलम मा तेरु बल्द ह्वलू। यानी पूरौ कु पूरौ गुलाम। पर साब बल्द कर्ज उतारणों गुलाम
ना बल्कि एक सच्चो सेवक हून्द ज्वा ताउमर अपणा गुसैं का सानी अर सिंटगी फर सीधी
सिं चलद आत्माअनुशान सिखान्दू, जुगों बटै बैल को
प्ररारब्ध मनखी माणिक तैं पुटगौ निवाळु द्योणू रौ।
किसाणै सान अर नाक
पुंगड़ा मा जुत्यां तैका बल्दौंऽ कि जोड़ी अर साळी मु बंधी गौड़ी मने जान्द। बाबा जी
अपणा बल्दौं कि माथपुरसी सरा गौं लगान्दू अर सु भी अपणा मालिका दुलारौ सिला अपणा
मूक संघर्षोंन देन्दा।
बौड़पनों जीवन भी भौत
उळर्या काटी तौं द्वी भैन, सरू जरा सि सीद्दो
निमाणू छौ पर सु झंवर्या नम्बर एक को फोंदर्या’ व रसिक। अपणी औलाद खूब बडै़न तैन चानफुर्या नसलौ जु छौ।
बाबा हौर गाजी का अलैद यू तैं अलग डैट खलान्दू छौ। डैली एक भदयाळौ झंवौंरौ पींडो, हप्ता दिन मा एक लाल भेली अर घास-पात त क्या
ब्वन। पौंठा फरकै चल्दा द्वी। मंखळसार मा
एक हुदंगड़ रैन्दो तौंकु। बिगैर लागक कै भी गौड़ी मा धिरकी, कै खुणी डुकरताळ-खड़तमखाड़ त कै दगड़ फौंदर्या।
मखळसारा बगत मेरु
काम तौं तें कै का भी बल्दौं दगड़ भिड़ाण अर तौं ग्वाळों मा अपणी धौंस जमाण होन्दू
कि हमारो झंवर्या गौं कु चौम्पियन छ। सर्रा गौं बल्दौं मा हाम छै तै कि। अपणा
पुंगड़ा बाणा बाद गौं-मौ कि मदद अलग। हाँ एकहत्या आदत तौंकि जरा खराब छै, बाबा अलौ हैका मु नाड़ जान्दा छां। ये सणी तौंकि
स्वामी भगति ब्वाला या पिरेमे पराकाष्ठा या गलत आदत, पर साब छां गुसैं लगु। बाबाजी हौळा बगत तौंका वजै सि बंध्या
रै जान्दा छां घौरे मु।
समै दगड़ झंवर्या-सरू
जोड़ी बौड़ बटि बल्द बणिन। टेम फर पखारण जरुरी होन्द। अब दाना सयाणौं जनु
धिर्गम-धीरज दिख्योण लगिन तौं मा।
गौबंसै जादा सि जादा
उमर अठ्ठारह से बाईस साल तक मने जान्द, सरू लगभग पंद्रा साला ध्वोर बोण चरद भ्योळ लम्डयूँ। तै दिन
मैंई ग्वाळौ छौ। तैं दिनों लग्याँ मसाणैं देणदारी मितैं पन्द्रा साल बाद द्योण
पड़ी। अर झंवर्या पूरा बाईस साल मा बैकुण्ठवासी ह्वेन।
बाबाजी जीवन काल कु एक बीसी से जादा बगत यूँ
बल्दौं सैयोग सि परगति पर रयी। सु जोड़ी वूँका जीवना द्ववफरा बटि छा ढलकां तक दगड़या
रैन।
जीव पिरेम यीं कानी
असली म्वोड़ अग्ने द्यौखा।
सच्च बात छन साब कि
जब क्वै भी जोड़ी टूटद त तौं मा बचण वळु को जीवन अद्यया पद्यया ह्वै जान्द। सरूऽ
मौना बाद तै का पाळी दगड़या झंवर्या भी टूटी सि गयूँ, अब सु इक्वाण ह्वैगे छौ। कति दिन तक त सु तैका किल्वड़ा
हौर-पोर रिंगणु रौ, तैकु किल्वठौ चाटदू, अड़काट लगान्दो, रम्भान्दो। तुणा-मुणी करि घास पींडू खान्दू। गाज्यूँ मा शोक
लक्षण द्यौखणु एक अलैद अनुभौ मिली तबार।
बाबा गिरस्थी जोतणा खातिर कुछैक मैना बाद तैका
जन एक इक्वाण बल्द कखि बटिन ल्येन, नै दगड़या दगड़ सु कति दिन तक ज्यूळा फर मौण फरकाणू रौ पर
आखिर दां समै कु साझीदार बणण तेन वाजिब समझि। अब नै दगड़या दगड़ सैट ह्वै अपणी
बुढ़ापै सीं खिचण लग्यूं। एक आद साल बाद सु दगड़या भी चल बस्यूँ। अब बिचारा तैं
बुढापम पाळी ट्व्कू अभ्योग भी सौण पड़ी।
अग्नै बाबजीऽन तैका
बुढ़ापा देखी तै ऊणि आराम द्योण ठिक समझि अर गिरस्थी खींचणा वास्ता नै बौंड़ौं जोड़ि
ल्यी अयूँ। झंवर्या गुठ्यारौ बड़ौ-बूड़, मार्गदर्शक। नै बौड़ौं तैं
बौण, पुंगड़ा अर दैंयीं तक
लि जाणें डियूटी करदो। कतिगा लोगुन बोली बि कि यार दिदा किलै छन तू अब तैं बुढ़या
ढ़यौर तैं सैंतणु, हकै द्ये बण कखि
लमडी मुक्ति पैलो या बाग कु गुजारु बणि जैलौ। बाबा तै लोगूं वा बात गाळी लगदी।
बाबाजी लोगू तैं गुणि सर्वत्र पूज्यते को तर्क देन्दा। किलैकि वूंका जीवनों स्वाणु
बगत को साक्षी जु छौ सु। नमक अदायगी
वास्ता सदाचार गुण सब्बी जीवों को होन्द। पुटुग पिरेमा वास्ता बाग अर गुरौं जन
भैंकर जीबन भी मनखिन सादिन।
बगत बगदो रयूँ अर
हमैर गृहस्थी नै बल्दौं जागीरदरि मा चलणी बैठिन। झंवर्या अपणा बुढ़ापा दिन मालिका
प्यार पिरेम पर काटणू छौ। बाबाजी का गिणती मा झंवर्या को बाईस्वां बसग्याल सुरू
ह्वेग्यै छौ। असाढ़ै पैली रगड़-बगड़ ह्वेगी छै। बगत पंयार यानी मरुड़ा/छानी जाणों
ह्वेगी छौ, असाड़ सि पैली हम
छानी इलै नि जान्दा छां कि तख असाढ़ा आखिर मा यी छव्य्या फूटदा, हौर बगत पाणी दूर गदनों मा यी रैन्दो छौ।
तै दिन मरुड़ा जाणों
खर्कचौळौ दिन छौ। बाबाजिन फजल नै-ध्वै परसाद नवैद बणायी, थानी ईष्ट द्यबतौं ऊंणि द्यू-धुपेणू करि, भूमी भुम्याळ, बोणैं चनड़ण्यां, पाखौं आँछड़यूँ तैं भौग लगैन। गाजी तैं पिठैं लगेन। गाजी
गैना से अर बखरों तैं ख्वौड़ पटबाड़ बटि फारिग करि। जनि सरी गुठयार भैर बुरकी
झंवर्या को मुखमंडल देखी बाबाजी समझी गयूं। तौन ब्वै मु बोली यार गुस्याणी आज
झंवर्या अन्वाळपाणी मुश्किल पौंछलू रे। अब देखा नखरु सब्यूँ तैं लगद जीव बोली नि
होन्द। जनि बाबल यु बात बोली तनि तै बेजुबानै आँखी तबराण लगीं। साब क्वी जीव हो या
मनखी धरती बटि आखरी बिदै लक्षण तै कि आत्मा बींगी जान्दी।
बाबाजिन तैकु दंवळू
पकड़ी तैकि भुकी प्येनी अर तै ऊणि ढाढस बंधै। ना रे ना मि सुद्दी ब्वनू तू
अन्वाळपाणी जरुर पौंछलू। अग्नै खरकचौळै जात्रा ह्वेन। कैन बाछुरोंक, कैन घरबध्यां भैंसक दौंळु पकड़ी, दगड़ मा गौं-मौ का मददगारी भी छया, तबारी कै भी बड़ा काम का बगत एक हैकक मदद होन्दी
छै, चैै यनु खर्कचौळ हो, क्वदै गुड़ै हो, लवै मंडे या मांगा काटण, सांग उठाण उगैर-उगैर। मदद टू वे प्रोसेस छिन साब जत्गा
आउटपुट तति इनपुट, आज मेरी त भवोळ तेरी
बारी, मनखी जीवन यनि सैकारिता से चल्दू निथर इकुलौ
लखड़ौ बि नि जल्दू।
तै दिन गुठयारै
कमांड काळिन संभाली छै, स्या काळी गौड़ी यी
झंवर्या बाद गुठयारै सयाणी छै, सयाणुं मलप अनुभौ, धीर-थीर, समझ अर निर्णय, या गुण तमाम थलचर मा होन्द, हम मनखी सुद्दी इतरान्द अपणी अकल फर। काळी अग्ने बटि अर
बाकी जथ्था पिछने। लंगत्यार लगिन बटा पुन। रिक्ख भ्वट्या कुकुर (लटुलौं बदिन सु
झबरु छौ इलै हम तैं ते रिक्ख पुकरदा छा) चौकस मुस्तैद बाखरों अग्ने पिछने छौ पैरो
कनू। लाळी बिराळी ब्वै पिछने छै लबराट करि हिटणी।
सब्यूँ पीठ पर
सामर्थ का अनुसार लत्ता-कपड़ा, सामळ-तामळ, भानी-बक्साऽक बोझ छौ लद्यूँ। छानी तलक आठैक
किलोमीटर बाटू छौ। कखि सैणू कखि चड़चड़ी चढ़ै त कखि लादौ। चार-पांच किलोमीटर तलक सु
झंवर्या सब्यूँ दगड़ ठिक-ठाक चली पर जनि
उकाळ लगि तैका हौंग हिगमतन हारमान मन्याळी। अब समस्या या छै कि लावलस्कर का
दगड़ बाटापुन टेम छौ लगणू। कब्बी छवटा बाछियूँ तैं कौळी उठाण पड़द त कब्बी कठाळा
चाँठों पर चड़ी जान्द अर ढ्यपरा कै बुजगा तौंळ छैल मा सकस्याण लगी जान्द। घाम बुड़ण
सि पैली छानी पौंछण जरुरी छौ निथर जनि निन्यारा बासण सुरु हौन्द तनि बागै डौर छै
बखरों तैं। छानी मा कुछैक व्यवस्ता पैली करिं छै जनु कि छप्पर छाण, गैन्डा किल्वडा, चुल्लौ, दिसाण अर बखरौंक
ख्वौड़ौ/पठबाड उगैर-उगैर।
उकाळ सुरु होन्दा यी
सु झंवर्यां गौळा मा गुर्त पड़ी, बाबाजिन तै तैं कुछ
समझैन अर हमू सब्यूँ तैं आदेश दिनी कि छांट हकावा यूँ तैं निथर रात ह्वै जाली। मिन
देखी कि जनि हमुल हो-हो हा-हा करि हौर गजियूँ तैं उकाळ हकौंण लगिन तनि सु बुढया
झंवर्यां भी एक-एक गोळी चढ़ण लग्यूं। मिन बाबा तैं बोली बाबा सु झंवर्या ऐ जालु
क्या, तैंऊं बाटू क्वो बतालू ? बाबन बोली ब्यटा तेन सरी जिंदगी या उकाळ चढ़ी
खपैन तैकि चिन्ता ना कैर। सु ऐ जैलो।
पूरो जथ्था
ब्यखुन्दा चार बजै हौर-पोर मरुड़ा पौंछिन। आज सालभर बाद सु छानी भी खुशी मा झूमणी
छै, तै विराणा मा बार ऐग्यै छौ, एक तर्फां बछड़ों भैं-भैं, हैका तर्फां चिनिखौं’ मिम्याट, ज्वान बौडौं डुकरताल’ कळौडयूं बुरकाट। पूरी गाजी मवसि पंयारै कौंळी घास चरद खुसी
मनोण्यां छया। सु काळू कनूड़ घंडुळयों
घिमड़ाटै बदिन गुजण लगिन। हम भै-बेणा ब्यखुनी कु लखड़ा-पाणी जुगाड़ कन लग्याँ त ब्वै
बाबा गौरु-भैंसों गुठयार। गौधुली घाम बुड़णा कुछैक बाद बांज बुरांस, खौरु डाळा मा निन्यारौन सांध्य भजन सुरू करियाली
छौ। झ्याँऽऽ... झूँऽ झूँऽऊँ...... झ्याँऽऽ... झूँऽ झूँऽऊँ......। यूँ बणचरों सानी
होन्दू कि बस कुछैक मिलट मा अंध्यारु हौण वळू छन। झटपट हमुल गौरु भैंसा किल्वाड़ा
बांधिन अर बखरों तै ख्वोड़ डाळी। सब्बी गाजी छानी भितर ह्वैग्यां।
अब दूध दूणें तैयारी
चलणी छै कि तब्बी खरका भैर भौंऽ सुणैंय। बाबन बोली ऐग्ये रे अपणु झंवर्या। खरका
गेट पर द्वी गिंटकों बाड़ छै लगयीं। तै बृद्ध फर तति सक्या नि छौ कि सु तौं लंगै
भितर ऐ जौं, दिन भरै थौकन पस्त त
हुयूँ छौ मथि बटिन यख पौंछणें जिद्दन चरणौं बगत नि दिनी होलू।
जनि बाबा तैऊणि गेट
भितर ल्येन तनि ब्वै ल बोली अरे तैकु किल्वाड़ू त घैंट नि रे आज। यति मा सु बिचरु
तखि गेट फर गुर्त पड़िग्यों। अब देखा बेजुबान किलै नि पर चैतन भगवानल सब्बी जीवों
फर दियूँ छन। सु या त निरस्यै ग्यों कि आज तुमुल मेरु किलड़ू इलै नि घैंटी कि तुम
मेरा म्वनै जग्वाळ छौ कना या तै ऊणि ये बातै तस्सली छै कि मिन आज अपणा जीवने या
आखरी पंयार जात्रा पूरी करियाली, अब अग्ने मेरा बसै
नि।
हम सब्यून ताण पराण
लगै तै ऊणि उठाणें कोसिस करि पर सु उठी नि साकू। बाबान एक परात उन्द पाणी अर द्वी
मुठ्ठी कौंळी घास दिनी। तेन द्वी चुस्साक पाणी प्येनी मालिका हाथल, घासक द्वी तिरण लौंफाई पर चबै नि साको। घासा
तिरण तैका गिच्चा भैर यी अटकी गयां। बाबा तै का हालत देखी क्वांसा ह्वेग्यां। तैकी
मौण मलासद जीवने आखरी पारी तलक दगड़ौ निभाणों धन्यवाद द्योण लगी। तेन अपणी आखिर
आँसू बुन्द दगड़ मौण भुयां छौड़ि दिनी सदानी वास्ता। बाबन अग्नै पाणि बदिन तैकु
अभिषेक करि अर्घ दिनी अर खौळयूँ जन बैठीग्यूँ छानी भैर।
तै ब्यखुन्दा फेर
बणदयों’ वास्ता नैवैद्य बणिन, बणद्यौ दगड़ ऐड़ी आंछड़यूँ वास्ता द्यू धुपाणू
करैग्यों। हम बाळोन छक्की गुळथ्या अर रौंट’ खायी, दूध प्येनी। ब्वै
बाबन अन्न जल कुछ नि ल्येनीं तौन अपणा झंवर्या वास्ता छाड़ छवड़िन। भ्वट्या रिक्ख
दगड़ बाबा भी राति तलक छिलकु’ जगै भैर यी बैठयूँ
रौ तै कि माटी पर्याणूं, कखी बाग ना खै जौं।
बाबा दिसाण मा भी नि आयी किलैकि छौं ह्वेगी छै, बिगैर तै कि गति कर्यां अर नयै ध्वयै भितर औण वर्जित मानी
जान्दू छौ।
फजल बाबा दगड़ मिन
वखी सामणी अल्बाड़ा मा तैकि खाड़ खैणी अर सुर्जें पैली किरण फर तै धरती पुतर तैं
धरती का हवाला करि। नयै ध्वयणा बाद गौंत प्यै सुद्ध ह्वेन। द्वी दिन बाद बाबजिन
तैकी खाड़ मा एक बुरांसौ डाळु रौपी अर बोली रे म्यार गुड्डू जबारी भी तू यख ऐलू त
यु बुरांस मेरा दगड़ये याद दिलालो रे।
सु डाळू तैका माटा
मा कुछेक साल मा झकमकार भी ह्वे होलू अर तैफर फुन्ना भी ओण लग्यां होला। होला इलै
कि कुछैक साल बाद हमुल तै मधुवन मरुड़ैं वा तीन मैने जीवनचर्या छोड़ियाली छै सदानी
वास्ता।
मि एकटक्क तै यकुला
बुराँसी फुन्ना तैं छौ द्यखणू ज्वा मितैं तीस साल पैल्यै जीव पिरेमे अतुल्य जात्रा
पर ल्यीगे छौ, ज्वा जात्रा अब
लाखों रुप्या मा बि कन मुस्किल यी ना बल्कि नामुमकिन भी छन। मेरी आँख्यूं मा चौमास
छौ बरखणू। तब्बी दगड़या मोहनल ढसकाई अरे भाई कख ख्वै ग्यों चल बखरु ढूंढण नि जाण
क्या आज।
कानीकार : बलबीर राणा 'अडिग'
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