धर्ती पर जीवन संघर्षों वास्ता च, आराम त यख बटिन जाणा बाद, ना चै किन बी कन पड़ल, ये वास्ता लग्यां रावा, जत्गा देह घिस्येली उत्गा चमक, उत्गा संचय जु यख छुटलू। @ बलबीर राणा 'अडिग'
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Saturday, 9 March 2024
ब्वै फजलै जात्रा
भजन
मनख्यूँ का गैल्या,
पाप भर्यों मैल्या
चल पंछी बणी जौला
बद्री विशाल का चरणों मा
चल माथा टेकी कि औला
जै बद्री बोली कि औला
जै बद्री बोली कि औला
दुन्याँ का रंग मा नि रंगणु
तैं रंग मा पाप भर्यों चा
माँ चंद्रवंदनी को मंदिर
ऊँचा डांडा मा कन सज्यूँ चा
प्वतळयूँ का भेष मा जौला
बादळ बणी कि उड़ी जौला
माँ चंद्रबदनी का चंरणों मा
फुल पाती चढ़े कि औला।
जै माता बोली कि औला
जै माता बोली कि औला
जै माता जै माता जै माता जै
जै माता बोली कि औला।
काली मठ मठणयाँ काली
हे माता तू रक्षा कारी
केदार कांठा भोले शंकर
हे बाबा रुष्ट ना ह्वायी
सौजी उकाळ चढ़ोला
बाबा का दर्शन कर्योला
बाबा केदार का लिंग मा
जल दूध फूल चढ़ोला
जै केदार बोली के औला
बम बम बम बोली औला
गढ़देवी माँ धारी माता
सुरकंडा सुरकूट कांठा
जगपाल माता जगदम्बा
देणी हुयाँ ईष्ट देवी नंदा
माँ नंदा जात मा जौला
झूमी झूमी जागर लगौला
चौ सिंग्या खाडू का पीठी मा
माता भिटोळी चढ़े औला
जय नंदा बोली कि औला
जय भगोती बोली कि औला।
गढ़भूमि हमरु गढ़वाल
वीरों भड़ों की चा थाती
तेरा खातिर मरि मिटी जौला
गढ़भूमि हे जलम माटी
पुरखों का बाटा हिटोला
छाँचड़ी झुमेला ख्यलोला
ढ़ोल दमोंऊं की थाप मा
पाँच भै पंडो नचौला
जै गढ़भूमि बोली कि औला
जै गढ़वाळ बोली कि औला।
जै माता जै माता जै माता जै
जै माता बोली कि औला
जै बद्री बोली कि औला
जै बद्री बोली कि औला।
मनख्यूँ का गैल्या,
पाप भर्यों मैल्या
चल पंछी बणी जौला
बद्री विशाल का चरणों मा
चल माथा टेकी कि औला
जै बद्री बोली कि औला
जै बद्री बोली कि औला
@ बलबीर राणा अडिग
बींगणे बात यु छ कि
जन तुम मानणा तन नि मानणी दुन्याँ,
जन तुम चिताणा तन नि चिताणी दुन्याँ।
मथि पूर कांठा बीच ज्व पठाळ चमकौणी
तखा काठ कष्टों मा भी खूब हैंसणी दुन्याँ।
भैर बटे जौं का ठाट-बाट देखी तुम मौळयणा,
तौं का भितरै भितर बि खूब कणाणी दुन्याँ।
जौं झवपड़ी छपरों गळयूँ देखी तुम भिनाणा,
तौं का घिबच्चोळ मा बी रम-रमकणी दुन्याँ।
सु जून, गैणा, नक्षतर कैल बोली दूर छन,
सगौर आंकुरी चैणी कख नि पौंछणी दुन्याँ।
आखिर जु पिसणु अपणा बारा गारा पिसणू अडिग
कैकी सुद्दी दळेणी कैकी मैसी पिसैंणी दुन्याँ।
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
7 फरवरी 24
विकासा स्वेणा
अब सु पूसौ जन
घाम ह्वेगी
घौर औणूs कू
साल मा एक दां
वा बि मुश्किल सि
सुपन्याँ जन सट औन्दू
अर चट चलि जांद
अर बाज बाज
साल त!
रिति रै
जांदी ब्वै कि आस।
हेरां!!! दगड़्यौ
क्या कन?
या मा
तै कु बि
क्वी दोष नि।
किलै कि सु
ब्वै-बाबा का
विकासा स्वेणा उँणि
छौपदू छौपदू
इतगा दूर पौंछयूँ
कि
तख बटे
सुपन्याँ बणि त
ऐ सकदू
पर
बगत बणि ना।
@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
14 फ़रवरी 24
बल मि गयूँ नोनू हगाणू
बल मि गयूँ नोनू हगाणू,
सु आयी मितैं दंगाणू।
लाटा तैं सिखाई क्या कि,
सब्यूँ तैं छन बुबा बणाणू।
घ्यू खायी बल बुबाsन, अर
नोनू छिन हाथ सुंघाणू।
बिच्छी कु मन्त्र पता नी, अर
गुरौ दूळ छिन हाथ कुच्याणू।
जै पता नि ताळ अर चाल,
सु छिन पनवाणी नचांणू।
बिगैर गळी कंठ कु भान,
भौंयोरुं भरसु छन राँसो लगाणू।
छंद न मंद छुवीं न बात अडिग
कख छिन सुद्दी माळा गंठयाणू ।
©® बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
ग्वाड़ मटई, चमोली
लड़ीक
अपणी मनसै टाळबरै
अर सर्री कुटुंबदरी आसा फर
अपणा आप पूरो खर्च ह्वे जांदो लड़ीक ।
घौरे साग-भुज्जी अर सामळ
बाबे बीपी, ब्वे घुनै दवै जामळ
कज्याणी धोती, नोनू सुलार
गौं-ख्वालौं न्यूतो, डौ-डड़वार
संगता घटै जन भंवार उड़दू रैंदो लड़ीक।
यार-आबत वार-पार
सुख दुःख मा आर-सार
चैता मैन बेणियूँ आळू भिटोळी
पंच्यैत-संज्यैत कारिजै गडौळी
जंतमंत करि बोकणू रैंदो लड़ीक।
क्वाँसिलौ कंयारु भितर बटे
मजबूत करड़ो भैर बटे
आँख्यूँ आँसु भितर गौटी
मुखड़ी पर बिपदा-भै रोकी
आफत मा सब्यूँ धीरज बंधान्दो लड़ीक।
अबैर दां ना, हैको त्यौवार बतान्दू
ब्वे तैं मैना अर तारिक गिणान्दू
नौकरी मा औबर टेमा खातिर
हैका साल भुली ब्यौ खातिर
हर बार छुट्टियों तैं टालदू सु लड़ीक।
जिम्मेदार्यों बोझ
काँधियों उणि समझांदू
घौरै इज्जत परमत
थकदा ख़ुट्टों उणि बींगांदू
जब कब्बी असौंग ह्वे जांद त
चुपचाप अफूं मा कणान्दू लड़ीक।
©® बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
ग्वाड़ मटई बैरासकुण्ड चमोली