बाज बाज मर्द ह्वो या जनानी वूं कि आदत इकुले खाणें होंदी।
परिवारा हौरि मनखि फिरीं अफूं तौळी मौळी। इना परजाति तैं बोल्दन ’अफ़खव्वा’ याने अफूं
खाण वळु। केवल अपणी लदौड़ी कु पुज्यारी। अफ़खव्वें बि कति बैराईटी होंद। जन कि, परिवार तैं
साग भुज्जी न ल्यावन पर अफूं बजार होटल मा द्वी सौ रुप्या को मीट भात जरूर
सटकालु। घौर मा चा-चीनी तैं पैंसा नि
होंदन पर पाँच सौ कि डिफेंस ब्रांडा वास्ता खिस्सा टटोली निकाळी देन्दू । परिवार
मा क्वी भलि बुरी चीज होरुं तैं कमति बांटी अफूं जादा भच्काण। या क्वै चीज अलग
लुकै मौका पर अफूं सफाचट। बाज-बाज जबारी द्याळम
इकुली राउन तबार चवल्थी म्वल्थी (तला-मला)।
त साब यीं वैरायटी मा छै हमारी एक ददि किरमुली। ददि जति काम काजै भलि सगोर्या अर हुर्स्यळी छै
तति बुढ़ली ’अपखव्वा’ बि। जनि घौरा
होर मनखि-माणिक,
नोना ब्वारी इना उना लगद तनि ददि को कुछ न कुछ चुलाणा मा
चढ़ी जांन्दू छौ।
इनि एक होर अणमणमाथिक को किरदार छौ हमारु जगतु काका। गौं कू नम्बर एको जासूस, नारद मुनि।
कखै कि लंका कख लै द्ये। आजतक,
कलतक,
न्यूज ट्वेंटी फोर, सब्बि चौंनलों कु बुबा।
जगतु काका तैं किरमुली ददि आदत पता छै कि वा मनखि फिरी
खांदी। एक दिन जगतु काकान किरमुली काकी कु स्टिंग ऑपरेशन कनू पिलान बणै। सुबेर जनि
मनखि माणिक काम मा इना उना लगिन तनि जगतु किरमुली घौर धमकि। दस बजि दुफरा तक काकी
उबरा धुँयेर छौ लग्यूँ। जगतुन ब्वोली ओ ! आज मि ठिक टेम पर पौंछी। आज मिन बि दखण
या किरमुली बुड़ळी यकुली क्या क्या जी चवल्थी म्वल्थी बणें खांदी ।
जगतुन भैर बटि बिगैर धै लगै झप्प काकी उबरा डवार पर पौंछी।
हे काकी ? क्या छिन तेरु यीं दुफरा तले धुँयेर छै लगयूँ
?
किरमुली ददि तबारी अफूं तैं गुल्थया (बाड़ी/कल्यो) छै
खैंडणी। उन त बुड़लिन खिड़की बंद कैर उबरा भितर अन्ध्यारु बंदोबस्त करयूं छौ, पर जगतू
अचाणचक इना रेड मर्लो स्या त्यार नि छै। तबारी अजक्यालक जन गैस चुल्ला नि छै कि
बिगैर ध्वाँ रस्वै बणि जाली।
जगतू का अचाणचक मोर फर ओंण सि किरमुली हकबक ह्वेगी छै। वींन गिच भितर बबड़ाट
लगेन। अरे !! यु मच्यो (मास्तु) बी कख नि
पौंछी जांन्द नारद मुनि जन। लुकों तैं भल
बुरु बि नि खाण देन्दू कुकुर। अर वींन घपग्याट मा सर्पट चुल्ला मा चड़यूँ कल्यो
भद्याळी सर्र भुयाँ अपणा पिछवाड़ी सरकै। अर हबड़ाट मा जबाब दिनी।
कु..कु....कुछ ना रे जगतु। ओ ओ बैठ, भैंसो पीण्डू
छै उज्याणी। या आग सुलकाणी बि नि, निर्भगी लखड़ा निरपट गिल्ला छिन हुयाँ का।
म्यारा आँखा फुटग्ये यीं धुँयेर मा। अच्छा तु कख छौ यीं कुबगत लोगुं का उबरा ढपकणु
?
तबारी तलक जगतु बि भितर अग्यठा (चुल्लाणा) बगल चंकुला मा
अड़ी गे छौ।
इना जिट घड़ी जगतु अर किरमुली इनै-उनै छुवीं क्या लगाण लगिन
तबारी किरमुली चढ़मताळ बिछू जन चढ़कयीं खड़ू ह्वेन।
’ऐ ब्वै
!..... मोरिग्यूँ’।
हे मच्यो नि खाण पड़लू तु ऐसूं बग्वाल। जख द्याखा आणु-जाणू
दिखयेन्दू कुबीज।
अर किरमुली जगतु तैं चपट गाळी द्ये अपणू पिछवाडू झबटाण अर
ख़बसाण लगि।
जगतु खिकताट हैंसदो फ्वाँ भैर भाजिन।
अब यनु क्या ह्वेन कि किरमुली ददि फर इतगा नखरी चटाक पड़ी। त
साब बात इनि ह्वै कि जबारी ददिन सटा-बटि मा भद्याळी अगठ्या बटि भुयाँ अपणा पिछने
लुकै,
ते बगत भद्याळी तौळ एक अंगारु चिपक्यूं छै। ज्वा ददि का
पाखुला पर लगिन, सौजि-सौजि पाखुलन आग पकड़ी अर बुड़ली
पिछवाड़ा झस्स ... डाम।
हे रां दा ! अपखव्वा बुढ़ळी नि लुकांदी भद्यळी पूठ पिछने, अर नि
डमयेंन्दी झस्स। बुढ़ळी तै अफख्व्वा कु दंड
मिल गे छौ । जगतु काकऽक मिशन पुरु ह्वेगे छौ। अर किरमुली दादी पिछवाडु डामेंणे खबर
सर्रा गौं मा बाईरल।
असौंग शब्दों अर्थ :-
पखुल/ पाखुला/लव्वा- चमोली जिला मा जनान्यों मुख्य पैरवार
ज्वा ऊनी पतळी कंबल होंदी।
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बलबीर राणा ‘अड़िग’
बूढड़ि कख फंसी अपरा ही जाळ मा ! वाह अडिग जी, लाजवाब हास्य लघु कानि ! 😊👌
ReplyDeleteलाजवाब 👌
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय ममगाईं जी रावत जी सहृदय आभार
ReplyDeleteभौत मजा आयी गुरुजी जी कानी तैं बाचण मा।
ReplyDeleteअपखव्वा बुडड़ि😆😆😆👌👌🙏🙏