यनु चिफ्ळू गंगल्वड़ा सुदी नि बण्यूं ठकुरो
छिड़ा छंछडां छक्की कि छपोड़यूँ ठकुरो।
यति सौंग नि छै घळमळा बणणे जातरा,
हिमालै बटिन सागर तलक रगड़यूं ठकुरो।
अतैड़ा देणा वाळा हर लपाग फर मिल्यां,
फिलबट्टों मा समळी यख पौंछयूँ ठकुरो।
तिरछी, तड़तड़ी कराळी छै नजर लगीं,
तौं आंख्यूँ मा आँखा डाळी अयूँ ठकुरो।
ढांगा यीं पीठ परे इना सुदी नि लग्यान,
गळदारों हथ कुटयूँ हल्या बण्यूँ ठकुरो।
सैणा बाटा नि हिटिं या जिंदगी कब्बी,
ढिक्का ढुंगों मा ढमणान्दू बढ़यूँ ठकुरो।
लटुल्यां घाम तापी स्येता नि ह्वेनी अडिग,
खैरी खरण्या मा झपोड़ी फुल्यूँ ठकुरो।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'
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