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Friday, 21 February 2020

मातृ भाषा




जै भाषा तैं
ब्वै पुटगा उन्द बी सुण्णा रऽया
आँखा खुलणा बाद
बाळो मन किलकारियों मा
बिंगाणु रैन्दू, सनकाणु रैन्दू
अपणी छुँवी
जै भाषा मा
दै-दादैऽ कानियों दगड़
हुंगरा भरणा रऽया
ब्वै-बाबोऽ लाड़
भै-बैण्यों प्यार पाणा रऽया
जु भाषा
ब्वै दुधै धार दगड़
शरीर मा पौंछी
हमु तैं दुन्यें भाषा
सिखण लेख बणैन्द
वा छ मातृ भाषा
उन त मातृ भाषा
न कब्बी बिमार होन्दी
न कमजोर
पर हाँ !
वा म्वरी जान्दी लाचार ह्वे
सक्स्यै सक्स्यै
जब हमेर जुबान
ठुल अर बडू द्यखणें
लालसा मा लंबी ह्वे
वीं तैं दुसरा तौळ दबै देन्द।
@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग'

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