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Thursday 23 January 2020

मर्छवाड़ी पाणी




  उबरा मा बक्यौ थौल सज्यूं छै, उबरा दैं कूणा पर द्यबता थान, जख दिवा धुपणु, चिमटा, फौड़ी, फोटो, पुराणी फूलों माला लटकणि छै, कमरा बीच मा बक्या माराजो आसण, अद्दा कमरा मा मुड़ी एक पुराणी दरी बिछी छै जु छौळ निवाळु कन वलूँ तैं बैठणे व्यवस्था छै, बक्या आसणा तौळ एक दन्ना बिच्छयूँ छै। बक्या मुख समणि द्वी थाळी एक मा ज्यूंद्याल, फूल, पत्ती अर सौ-सौ रूप्या द्वी नोट अर पच्चास कु एक,  हैका थाळी मा पिठैं कुछ सिक्का, अर धूप बत्ती। बक्या माराजे भेष-भूषा द्यबतों डंकरी वळी, मुंड पर लंबी चूळ, ज्वा वे टेम खुली छै, लटुलों पर चिफळपट त्यौल, लाल टीका, हाथ उन्द चांदी धगुला कंदूड़ा उन्द चांदी मुरुकुला। जै टेम मि वखमु पौंछि पैली बटिन तीन आदिम बैठ्यां छयी तौं कि तबारि पूछ चलणी छै। मि हाथ जोड़ी एक तर्फा बैठग्यों अर चुप चाप बक्या अर पुच्छैरुं बीचे बात सुणु रौ।
      बक्यान अगरबत्ती उठैन अर गिच भितर कुछ मंत्र पढ़णा दगड़ थाने तर्फां अगरबती दैं-बौं घुमायी अर अगरबत्ती भुयाँ रखणा बाद द्वी हाथ मुंड मा धरि,  मुंड भुयाँ टेकि, अर!  झट झटाक मुंड ऊब करि। द्वी झटाक गर्दन इने-उने घुमायी अर  होऽ.हो..होऽऽलक करि एक लंबी किल्कताळ मारि।  दंगड़ मा ज्यूंद्याल उछाळी, मुट्ठी बांधी, बंध मुठ्ठी कुछ ज्यूंद्याल पकड़ी अर बोली, भगत जख्मु समझ ऐली हाँ बोल्यां समझ नि ऐली ना बोल्यां, अर झट, मुट्ठी सामणि बैठ्यां आदिमा हाथ मा दीनी।
बौं तरफ मुख कैर बोली भ्वट्य्या यु तीन पाँच को मामला किलै छिन औणु।
होेऽऽलक,  आऽऽ थ्रुऽऽ.... ।
भ्वट्य्या यो चौपाई नि द्वपायी मामला छ, मर्द नि जनानी ध्याणी बात छ।
बोळ छैे कि ना?
झम ज्यूंद्याल वों आदिमें तर्फां। समझ औणी त हाँ ब्वाला नि औणी त ना ब्वाला।  
आऽऽ थ्रुऽऽ.... ।
  फिर बक्यान मौण झटके बोली, यो द्वी जनानियों मा कज्यै, लड़ै झगड़ा ह्वयूँ, द्यबता पुकारे ग्यों रे भगत, द्यबता। फिर ज्यूंद्याल उछाळी, मुट्ठी वूं का हाथों मा। ल्या कति छ ? कति छ ? कु बी तथ्य छ अगर द्वि, चार, छः सम संख्या मा ज्यून्द्याळ ऐगि त प्रश्न सुलझ्यूं माने जान्द याने पूंजी अर तीन-पाँच मा जटिल स्थिती, एक दाणी ऐगि त समझ पक्कू समाधान, अखंड मातिम।
भक्तौंन मुठ्ठी ख्वली ज्यून्द्याळ गिणी अर मुंड मा धरि। वूं सब्बी आदिमन कुछ देर स्वौचि याददास्त ताजी करि अंदाज लगैन फिर हाथ जोड़ी बोली परमेसुराऽ सच्ची बात छ। किलेकि जांच-पूछ, शंका-समाधाना ये तरिका मा आदिमों ध्यान खट वखि चलि जान्द जख जब क्वे वाकिया ह्वे होलु, जै बात पर मनखी शक-सुब हून्दन त यनु लाग मिलणा बाद आदिम शकैं पुष्ठ्ठी नजरिया से द्यखदू।
    भगतोंऽन बोली परमेसुर ह्वेगी जु बी होंण छै, अब अग्ने रस्ता बतावा। फिर बक्यान ज्यूंद्याल उछाळी मुट्ठी वूंऽकी तरफ करि बोली ल्या, कति छ ?  द्यबता झूट नि ब्वली सकदू। भगतोऽन ज्यूंद्याल मुंड मा धरिन। भगत ? द्यबता घत्तयूँ छ रे..  घत्तयूँ। घात जैकार ह्यीं।  वे दिन बटिन तै  घौर मा क्वे बर्गत नि। पाळी बल्दा स्यूं नि पैट्णा, भैंसेऽ थन मा दूध नि छिन औणु, नोना बाळा चळ-बिचळ छ हव्यां पढण मा ध्यान नि, अर अर ..... होेऽऽलक, थ्रूऽऽ...।  अर ये ध्याणी शरील उडंगर छिन ह्वयूं दिन-ब-दिन सुखणी छ, चीड-़चिड़ी छिन ह्वयीं,  खाणी प्येणि नि छ लगणु। ब्वाला छै कि ना ? प्रभो सच्ची बात, सच्ची बात।  सब्योंन दगड़ भौंर र्पुयेन। अब तुमुल ही सही बाटू बतौंण परमेसुर, जस मिली चैन्द, प्रभो जन आप ब्वलला उनि करुला। मनखि माणि से गल्ती ह्वे जान्दी जु बी द्यबता छ न्यूज-पूज, कुखड़ी-बाखरी सब द्योला। पर ! प्रभो यनु बता यू द्यबता कै जाग कै दिशो छ ? अर क्वो छ यु ?  बक्यान थाळी मा ज्यूंद्याल एक अंगुठन अलग-अलग करि, तीन एक तरफ द्वी एक तरफ अर एक, एक तर्फां, फेर मुंड झट उठै अर मुख बौं तरफ करि चूळ मलासी हैंसद-हैंसद बोली अरे ब्वन क्या छ, जै ध्याण दगड़ यू झगड़ा ह्वेनी वेका मैत कु वीर भैरुं छै रेे... भैरु। दगड़ मा कच्च्या वीर बी छ, पूरब पच्छिम दिशा बटिन अयूँ, रौली तैरी किन अयूँ।            बक्यान वूंकी तर्फां बड़ा आँखा करि बोली टेम पर ये द्यबता शांत नि कर्ला त, अरेेे अब्बी, अब्बी त चौपायी दोष देणु भ्वोळ द्वपायी खंडित ह्वली मैंखुणि ना बोल्यां। भगत लोग सन्न। वून हाथ जोड़ी पूजे विधान पूछी अर वखि बटिन उच्चयणु कनु वचन दीनी। बक्याऽन एक पांच कु सिक्का, ज्यूंद्याल पिठृठें एक कागज पर बांधी अर बोली अरे भोट्या घौर जांद सै ही नये ध्व्ये ये पुड़िया सब्यों मा अरोखि परोखि उच्चयाणु कैर दियाँ वे दिन बटिन फर्क नि पड़लि त मेरु नों ना लियाँ रे। ल्या,  होेऽऽलक।
अब वूं तीन आदिमों छाँळ निवाळ कना बाद मेरु नंबर आयी मिन भी 150 रुय्या एक थाळी मा, एक थाळी मा इग्यारह रुप्या डाळी, अगरबत्ती जलै अर हाथ जोड़ी अपणि संका समाधान पूछी। बक्या माराजन द्वबाटा, चौबाटा बटिन गाड़ गद्ना घुमे-घामे मितैं अपणा बाटा ल्ये ऐन, बल वा ध्याण बचपन मा गोरु मा छै जयीं द्वी बल्द आपस मा लडिंग ध्याणऽन डौरिन किलकारी मारी अर तब्बी तै जंगळ की बयाळन लियाली। अब कज्याण त दगड़ नि छै, पुछदू त कै तैं?  चलो ठीक छ प्रभो अब क्या कन? अरे ! क्या कन जंगल की बयाळ छ, एक बखरु, एक सफेद कुखड़ि दे दियां फिर देखा ते ध्याणी मुखड़ी फर चमक, र्दुसुपन्या खतम, चळविचळ खतम, अर हैका साल दूसरु जुंगडू तैयार धैर्यां। ‘काणा त्वेखुणी क्या चौणा द्वी आँखा साणा‘  मिन बी हाथ जोड़ी पंद्रह हजारे फंच्ची बांधी अर किनारा बैठग्यों।
      अब मेरा बाद नंबर आयी एक बौडी कु। बक्या मराजन सुरवाती प्रक्रिया पूरी करि अर बौडी तैं बोली, दानी सयाणी ध्याण जख्मु समझ मा आली त हाँ बोल्यां नि आली त ना बोल्यां। बौडी हे परमेसुरो  मेरु नोन्याल ठीक कैर द्यावा, हूंण खाणो बाटू बतै द्यावा, ज्व बी छ जखौ बी छ जु जति मंगलो वति द्ये द्यूला, आखिर आस पर तुमु मा अयूँ । पुच्छयारन बी मुंड-मांड झटकायी ज्यूंद्याल पर ज्यूंद्याळ उछाळी, बुडळी तैं गाड़, गदना, द्वबाटा, चौबाटा, भैर भिर्त सब्बी तर्फां लिगी, बौडी मन टटौली, दोष बतायी पर ! बुडलिन हाँ नि बोली, बक्यान जै कु दोष बताणु बौडी वीं द्यबता पैली पुजणे बात ब्वनी रे। अब बक्या करों त क्या करों, बड़ी ठीड गैख्याण ऐ आज।
    देखा फिर भी बाद-बाकी लोग अफूं मा पक्का साइकोलोजिस्ट होन्दन समणि वळा मुख का भाव भंगिमा देखी बतै दिंदा।  हमर पाड़ मा सब्यों जीवनचर्या एक चार होन्दन सब्बी एक धर्म का लोग, यख सब्बी जाग गाड़-गदना, द्वबाटा-चौबाटा, धार-वार, एड़ी-आँछरी, नर्सिंग-भैरों सब्यों कु एक जना हर्त-कर्त । जमीनी बनोट अर लगभग एक नस्या द्यबता मानिद होन्दन भले नौ अलग अलग ह्वो। बक्या पुछ्यारा या गणत कन वळा समणि बैठ्यां आदिमें हाँ अर ना मा वेकु जबाब ढूँडी देन्दा। हाँ ब्वला, ना ब्वला दगड़ वां लोग आदिमें दुख्येणि नश पकड़ी दिन्दा। विश्वास बड़ी चीज छ साब, यू ही आस्था से ईलाज कु मनोवैज्ञानिक कारक होन्दन। असली बीमारी इलाज त दवै-दारु मेडिसिन कर्ली पर मानण वलूँ की ये जांच-पूछ, पूजा-पाठ से संका समाधान होन्दू याँ से मनखी कु विश्वास जगदू अर विश्वासा मनखि मा सकारात्मकता लान्दी फेर मनखि पराणी निराशा से आशावादे तर्फां उन्मुख ह्वे जांद। ये कु फर्क मनखि सोच, वेका काम पर पड़द, जै कारण प्रतिकूल हालातों मा अनुकूल प्रभाव सुरु ह्वे जांद। बल ‘दुःखी कु वेद प्यारु‘। जब आदिम पर गौळा-गौळ ऐ जांद अर क्वे बी बाटा जश नि मिल्दू त आखिर मा वा आध्यत्म का शरण मा चली जांद, प्रबल विश्वासा छ त आध्यात्म बल से जश जरुर मिल्दू ये मा क्वे सक नि हाँ अपणा कर्मों पर सकस्याट धकध्याट नि ह्वयूँ चौन्द ‘माणि किन भगवान नि माणि त ढुंगू‘।  हाँ जर्वत से ज्यादा रुढ़िपंथी इन्शानों जीवन कष्टप्रद बी बणे देंद, जादा टूणि टोकड़ा, बक्या पुच्छयारु वळू परिवार हमेशा दुखी रैन्दू, आध्यात्मिक शक्ति सच्ची भक्ति से मिलद अंधभक्ति से ना, , पेट खराब ह्वयूं छ त वेखुणी परेज अर दवे चैन्द न कि मंदिर मा भंडारु । खैर अब नयीं पीढ़ी ये च्वोळा से भैर आणि या बी भलि बात छ, पर यूँ तैं बी अपणी संस्कृति कु पल्ला नि छोडयों चौन्द निथर जंगल मा कति परकारा डाळा-बोट छाँ पर पच्छयाँण वे कि होंदी जु दूर बटिन द्यखी जावो।
      बल ‘खैणी की माटू अर गैणी किन दोष‘ निकळी जांद, तो बक्यान बौडी तैं बिगैर दोषो कख छोड़ण छयी, बक्याऽन बौडी तैं सरि पृथि घुमोणा बाद आखिर दौं एक त्रुप कु पत्ता फेंकि । बल ध्याणी ये भोट्या पर सैद लगीं। बुडलिन एक झटाक मा हाँ ब्वली दीनि। केलेकि बौडिन नोना खतिर एक यू ही नि पूजी छायी। नोना कु व्योहार अर चलन का चक्कर मा वे परिवारन दुनियां नामाणा द्यो द्यबता पूज्याली छै। हार मान माणि बुडळी आज गंगाड़ बटिन इतगा दूर डांडा मुलुक अयीं छै बिगैर छ्यौ-निवाळ करि खाली हाथ कने जाण छै। जब ये बक्यान आखिर मा सैद् निकाळी त बुड़ळी रुण बैठग्ये परमेसुरों तुमुन अब ठीक पकड़ी वा निर्भगी नन छना छौरों दगड गंगाजी नयेंण जांदू छै़, वखी निर्भगी मुसलमानों की कबर बी छ बल, वखी लगी ह्वलू मेरा नोन्याल पर सैद्, बोला परमेसुरो ये की पुज्ये विधान क्या छ, जु मंगलो दयेणु तैयार छ, पर मेरु नोनू कुबाटा बटिन सुबाटु अयूँ चौन्द जश की पूजा द्योलु भगवान। पर! परमेसुरो कैन पूजण यु सैद अर कनक्वे पुजण ? बक्यान सैद पूजणे तरकीब बतायी कि फलाण बाजार मा फलाण मुसलमान पुज्येर छ वेतैं मौलवी बोल्दन वींमा जयाँ वा सब बतै द्यूला, अफूं करदू वा कर्म कांड।
अब क्वे होर गैख नि छै त बक्यान अपणु द्यबता घरेंण वाजिब समझी अर वेन एक लंबी किल्कताळ मारी होेऽऽलक,  मुंड मा द्वी हाथ बांधी, एक बार मुंड भुयाँ टेकी, मुंड उठे मुख फर हाथ फेरी अर नोर्मल ह्वे ग्यों। सब्यों तैं सेवा लगै राजी खुशी पूछी किलेकि वा अब द्यबता भेष से मनखि भेष मा ऐज्ञों छै। तै बिचारन चा पाणी नि पूछी किलेकि अज्यों हमारा बी घौर गौं समाज मा हरिजना घौर मा खुल कर खांदा पीन्दा नि छाँ। न जाण कब तलक यू कुलक्षणि रिवाज खत्म ह्वोली। हाँ बक्यांन अपणी बेटी तैं धै लगै सौंप सुपारी मंगेन, चिलम भरी अर उखम जति बैठ्यां छै सब्यों कु आदर सौंप सुपारी अर तमाखू से करि। बल सुखो नाज बर्जित नि होन्दू, अरे सूखो नाज बर्जित नि होन्दू त गीला मा क्या जैर डाळयूं, वी आग वी पाणी, भांडी बर्तन। पता नि कैन अर कब बटिन यू पर्था बणेन, बजार मा त क्वे नि पुछद क्वो छ, क्या छ, यनु दोहरा चरितर ठिक नि। भगवान रामऽल त इनि नि करि वूंन सबरी बैर खुसी से खैन, अब  समै ऐज्ञों  इनि विरोधाभाषी रिवाज से भैर औणे सख्त र्जवत छ।
वे दिन मि सुरु से आखिर तलक बौडी पूछ दयखणु अर सुनु रै, बात चीत मा मिन बौडी तैं एक सांस मा पूछी कि बौडी तुमारू नोन्याल कति बडू छ ? क्या कर्दू ? अर क्या ह्वे वेतैं ? बौडिन रुंवासी ह्वे बोली बाबू बडूे छ खडौण्यां, द्वी नोन्यालों बुबा छ। यू ही निहोंण्यां यकुलो औलाद छ मेरी, पर! क्या कन बाबू तैऽकी सरिे कूड़ी मुंड मा धरीं, निरासपंथ वळू काम छ कनु, नाती ब्वारी तैं डैली डमखाणु , मितैं अर अपणा बुबा तैं ज्यै-स्यै गाळी देणु। अरे वु त बड़ी घौरे बेटी च वा, जु यति सौंणी, बुबाऽ बड़ीे मनख्याण छ मेरी ब्वारी, ये तैं बोल्दा भला सूत-ब्यैंत खानदान।  मिन बोली अरे बौडी बीमार नि छ क्या तुमारू लड़का ? न बुबा बिमार-सिमार नि छ वा निर्भगी, खूब खाणु पिणु तै बजार पुन अपणु ळद्व्ड़ू फानू,  सुबेर अन्वेंण (कल्यो रव्टी) खै निरपट् ह्वे जाणु तै मर्च्छवाड़ी, वखी पुन दिन मा खाणु, पीणु, घुमणु अर व्यखुन्दा हमेशा धुत्त बणि औणु घौर, फिर क्या, सब्यों की निखाणी कनु परिवार मा एक कज्यै झगड़ा कनू। बुबा तै कुब्यसनऽळ तैंन मुड़ी सर्रि सेरौं जमीन मारछों मा गिरवी धैर्याली। बुबा उन त मेरु लाटू बिल्कुल सिधूऽ गौ मनखी छ, कै मुख नि लगदु कै खुणि पल्या सौर बी नि ब्वन्यां, पर, तै मर्च्छवाड़ी पाणी प्येणा बाद वा मनखि मनख्री नि रौणु चा। पता नि क्या जी लगि तै फर, कैन क्या करि क्व जाण।
बौडिन द्वी हाथौन चटमताळी मारी, अरे मि त ब्वनू सचु भगवान ह्वलू त वे कु पट निर्बीजो निरासपंथ हुयाँ जु मेरी घरकुड़ी नि ह्वोण देणु । मिन ब्वली बौडी तु ब्वनी सीधू छ, पर ! कबैरी तलक ? बुबा जबैर तलक वा तै निर्भगी दारू नि प्येणु। मिन ब्वली बौडी सुबेर दस बजी बटिन वा मर्च्छवाड़ी पड़यों ब्यखुन्दा धुत बणि औणु रात दस इग्यारह बजि तक ड्रामा कनु सुबेर आठ बजे उठणु।  तऽऽ. इन बोल कि चौबीस घंटा मा वा केवल द्वी घंटा, आठ से दस बजि तक सीधू गौ समान छ क्या ? हों बुबा सच्ची। मिन बोली बौडी तै फर कुछ लग्यूँ-बिलक्यों नि। क्वी द्यबता, मसाण, सैद-सूद नि छ,  तै फर वा मर्च्छवाड़ी पाणी लग्यूँ बौडी,  मर्च्छवाड़ी पाणी। पूज सकणा त तैकु तै दारु पुजाऽ तैकु दारु इलाज करावा बाकी सब ठिक ह्वे जैलू किले छाँ तुम ये पूछ-जांच मा ढफकणा। बौडिन बोली बुबा तु बी ठिक छ ब्वनू पर बिगैर कुछ लग्यूँ-बिलक्यों इनि थ्वोड़ि कन छै तैंन।
    तब ब्वला इत्गा सीधू छ हमारु समाज जख कुब्यसन बी कुछ लग्यों-बिलक्यों कु कारण माने जांद। इले ही अब जर्वत छ हमु तैं ये अंधी आस्था से भैर ऐ किन कारण कु सही हल ढुंढणों कु। दुन्यां समाज दयेखि दिमाग से काम लेंण जरूरी छ। ये किस्सा जन ना कि नोनू छ लोफर महाझांजी अर ब्वै छिन डफखणि बक्या पुच्छयारा मां। ये शराबन कतिगे मवसी फुक्याली क्वे पता नि तब्बी त हामारा दशोली मा एक कावत छ ‘बल गंगाड़योन पीनी कंटर मारछैन डाळी लेंटर‘।  अब ये मा दोष जै कु बी छ छैं छिन, अब सरकार बी त यनु कनी। पैली मर्छवाडिंन बणै नंगा अब सरकारि ठ्यकोन।
किस्सा - बलबीर राणा ‘अड़िग‘

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