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Thursday 23 January 2020

वीं छवि छाप


      ओs ओss ओ काट.. काट.. काट। कुकुर भिभड़ाट घुर्घराट् करि जांदू पर !  यु क्या लोss ? कुकुर वे मनखि फर लिप्टये जांद अर वे आदिमे भुक्की पीण बैठ जांद। जन मैन स्वोचि छै कि कुकुरे डौरिन वु आदिम कखि भाजी जैलू या कै डाळा मा कर्तव्ड् बर्तवड् लगौलू अर मितैं धै लग़ै  ब्वल्लू  ए व्यटा ये कुकुर सामळ तब मि अपणा वे बुग्याल्या तैं धै लगौलू ऐ चुप चुप। उन बुग्याल्या कुकुर खादुळ नि होंदा हाँ वूं कु रौब दौब दयेखि लोग उनि डैर जांद। हामरु बुग्याल्या बी इनि घुर्घराट करदू छै पर खादुळ नि छै।
      किस्सा अस्सी का दशक कु छिन जब म्येरी उमर चारेक साल रै ह्वली। हमारु घौर गौं का सबसे देण तर्फा किनारा फर उच्चा अर रौंत्यळा जाग मा छ, ह्यूंदा दिनों मा गौं वलूँ ब्यखुन्दा तलक घाम तापणे कछड़ी लगी  रैन्द। घौरा मुड़ी बटिन गौं कु आम बाटू छ, जु गौं का मंगरा, बौंण अर दुसर गौं जांद। बाटा से हमारा घोर तक थोड़ा उकाळ छ दस पन्द्रह सिड्यों की । एक दिन इग्यारा बारा बजे बात ह्वली घौर मा मेरु  बाब अर मि छै बाकी ब्वै, काकियां, दीदीयां सब पुंगड़ा पातळ छाँ जयां कुछ नौन्याळ ग्वेरुं मा चलिग्ये छै। पीताजी साळा पिछने कुछ काम छाँ कना अर मि उर्खयळा मा छै ख्यलणु, तबारी मिन दयेखि  एक बड़ी मुच्छौं वळू आदिम जैका पीठ पर पिठू, एक हाथ पर  जांठू अर एक हाथ फर रेडियो छै वा मीन बाटू छोड़ी हमारा घौरे तर्फा औंणु, त मिन कुकुर छिल्यै दीनी, पर यू क्या ?  कुकूरे अर वे आदिमे दोस्ती देख मि डौरिग्यों, अर दौड़ी दौड़ी साळी पिछने गयूं अर बाबा तैं बोळी, बाबा हमारा घौर एक बड़ा मूछौं वळू डाकू औणु अर वा बुग्यल्या वीं कि भुक्की छ ल्येणु। बाबान कुछ नि बोळी हैसन्द हैंसद काम छव्ड़ी चौके तर्फा चलग्यां सैद वा समझग्ये छाँ कि आदिम क्व छ, मि डर-मर वूंका पिछवाड़ि लगीग्यों। बाबाजी चौक मा जनि पौंछी वे आदिमान खुट्टा बानी सेवा लगाई अर द्विया द्वी एक दुसरा सांका लगिन, अर  इनि भेटंण बैठ ग्याँ जन राम भरत भेटणा ह्वला, भ्यटणा बाद द्वियोन आँखा बी पैंछि। मि अपणा म्वोरा संगाड पकड़ि वे मिलन तैं दिखणु रौ।
     सच्ची भी राम भरत ही छाँ वा द्वी। मेरा पीताजी लोग तीन भै छायी सबसे बडू मेरु पीताजी घौरो गार्जिन मजलु काका दिल्ली नौकरी मा छाँ तीसरु चाचा फौजी। त वा मुच्चोँ वळू आदिम मेरु फौजी चाचा सेन सिंह राणा जी छै जौं तैं हौस समाळणा बाद आज पैली बार पछ्याणणु छै, एक डेड साल पैली देख बी ह्वलू पर तबारी या ख्वपड़ि तति समाळ वळी नि ह्वे सकी ह्वेली दुसर मा वे टेम पर आसाम रैफला फौजी डेड द्वी साल बाद छुट्टी आंदा छाँ। तब्बी वे आदिमान रौबदार आवाज मा मितैं धै लगायी ऐ गुडू इधर आ ले टॉफी। मि डौरिळ भितर कुणा लुकी ग्यों फिर पीताजी आया अर वून बोळी बेटा डौर ना तेरु काका च फ़ौजी ज्वान, अर पीताजी मितें भैर ल्येन । काकान मितैं कोळी डाळी हवा मा उछाली अर बोली अरे मेरा गुड्डू तू भी फौजी बनेगा।
      ऐरां तब मितैं क्या पता छै फौजी कै जीवो नो ह्वे। पर एक अमिट छाप मेरा वे बाळा चित पर पडिंन वा छै वूंकी छवि, डिल डौल भेष भूषा। वे समै मा फौजी आदिम स्यूं ड्रेस छुट्टी आंदा छाँ वे टेमा फौजियों तैं शौक बी छै स्यूं डरेस आणों। अजक्याल त उन प्रतिबंध बी छ पर फैसना ये जमाना मा छवोरा टेट तूरीकट जीन्स मा जादा सौंग चितांद्। वा छवि, साढ़े पांच फुटो तगड़ो आदिम्, भर्यो मुख,  गल्वड़ों तक ग्वोळ मूछ,  मुंड मा बैरेट कैप, मथि द्वी खिसों वळी मलेसिया कलरे फौजी कमीज, दैंण तर्फा खीसा मथि मैडल, बौं तरफा खीसा मथि नेम प्लेट, कमर मा चौड़ी वळी बेल्ट जै अग्ने एक चमकीलो बकल वेफर एक निशान, मुड़ी सीधी क्रीच वळी ओजी कलरे पेंट, खुट्टा उन्द गम बूट। मि टॉफी खाण भुलग्यों अर एक टक वे मनखि तैं देखणु रौ। तब वूंन बोली ए बोस क्या देख रहा है तु भी एक दिन ऐसा ही फौजी बनना।
      खैर वे छवि छाप ह्वो या किस्मत की बात उत्तराखंड आंदोलन बटिन अक्टूबर चौराणनबे मा कने फाळ मारी समै का पंखों दगड़ मि फौजी बणिन। शरीर डिल डौल भेष भूसा मैडल तमका सब उनि रैन, फौजी साज सज्जा खूब छ,  पर ! एक चीज नि  रैन वा छ रौबदार फौजी ठाकुरी मूछ, इच्छा से भौत कोशिश करि मूछ पालणे, पर मूछ छांटा अर बीचे जाग खाली होण से वा मितैं चैनीज बणोंण मा कसर नि छोड़दा फिर मिन हमेशा वास्ता सफाचट करणों विचार करि। फुल यूनिफॉर्म कोड मा कै भी फौजी छवि सिविलियनों तैं आकर्षित त करदी पर वे बाटो बटोही हौंण सब्यों तैं सम्भौ नि ह्वे सकद, पर जब कै बाळा मन मा बैठी वे छवि बाटू जीवने जात्रा ह्वोणि ह्वो त यनु संयोग अर सौभाग्या कम ही होंदा, यनु संयोग मेरु बी रै, मितैं जीवनों पारितोषिक ये से होर कुछ नि ह्वे सकद।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

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