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Thursday 23 January 2020

औंण पस्वा ल्येंण च्यैत


   

  "औण पस्वा ल्येण च्यैत" ये कावत फर एक अणमनमाथिग किस्सा छ, किस्सा पर बाद मा औला पैली द्वी चार छवीं मा जरा भूमिका देणु छ ताकि आपतैं किस्से जल्वड़ि तलक पौंछे  सकलो। जन सब्यों तैं पता छ हमारु गढ़वाल पैली बटिन हिदुत्व आस्था अर परम्परा कु संवाहक रयूं । हमरी धार्मिक संरचना जख नाथ पंथ का प्रभो से तंत्र मंत्र झाड़ पूछ मा कुछ रुढ़िवादी रैन वखी शुद्ध वैष्णव पूजे पद्धत्तिन मंखियों तैं आध्यात्मिक आत्मबल से सक्षम बणै। आज बी हमारा आध्यात्म का केंद्र बिंदु मा हमारा लोक द्यबता विराजमान छ वूं का थौळ मंदिर हर घोर गौं मा विराजमान छ। यूँ द्यबतों का मंडाण कौथिग पुराणा जमाना बटिन अज्यों तलक बी आम धार्मिक अर सांस्कृतिक कौथिग का रुप मा कर्ये जांद चै व्यक्ति घर्या द्यबता ह्वो या पंचैती। जै आदिमों या गौं ख़्वालों कौथिग हुरयों रैन्द वां कु पूरो समर्पण त रैन्दू ही छ पर पास पड़ोसियों अर गौं वलूँ की भी असीम श्रद्धा रैंद्। पैली जमाना मा कै आदिम तैं क्वे अलग सी न्यूतो निमंत्रण नि देंण पड़दू छै, कार्ड वार्डो क्वे चलन नि छायो हाँ मुख जुबानी स्वाल रैबार देंदा छाँ वा बी दूरsक यार आबतों तैं।  द्यबता मंडाण मा त जखि बाजा भौंकरा बजिन बखि सटकिन। खैर अजक्याल त लोग कारड अलग फोन अलग अर सोशियल मीडिया मा मैसेज प्रसार अलग छां कना। हाँ  जबैर बटिन रैबार देणु यू आधुनिक माध्यम ऐन मितैं लगणु लोग पर्सनली ज्यादा होणा छिन, बल अरे मितैं क्वी खबर नि, न फोन न मैसेज। तss बोलाsss जी, बाजा भौंकरोन सरु पाsड़ च थथरांणु अर भाई साब ब्वना बल मितैं क्वी खबर नि। सवाल यू छ कि इतगा ऐड़ कनै हुयाँ हम ? विशुद्ध जबाब कैमा नि, लोकाचार जब एक लंबा टेम तलक प्रचलन मा रैन्दू त वा हमारा व्यौहार अर आचरण कु पर्मानेंट हिस्सा बण जांद, अजक्याल क्वे अपणु घोरो या पंच्यैती काम ह्वो सब माध्यम से न्यूतणों चलन चलणु, माराज जन बी ह्वो पौंछ जयां, यानी खुशामद ही नि, खुसामदे हद। ये से आदिम अफूं मा भाव खाण बैठ गयूं। मिन करि तुमुन करि सब्योंन करि अब यो एक रिवाज बणग्ये, जु नि कर्लो  या त वा अफूं तैं ज्यादा चिताणु या वे की मनसा नि इन चितै जाणु, फेर  वे का कारिजन अणसुणे होणें छ। हाँ भै म्वन बचण मा अज्यों बी धर्म धाद काम कने लगीं।
         बात कर्दा द्वी बीसी अर वां से पैली की त अपणा इलाका मा लोग जै दिन सुणदा छाँ  कि फलाण मौ या गौं-ख़्वाला मा कौथिग उर्येणु छ या द्यबतों मंडाण लगणु  त लोग अपणा हिगनत्यार पर ए जांदा छां। लोग वख मैजूद हूंण अपणु कर्तव्य समझदा छां। यू श्रद्धा भाव का दगड़ सैयोग बी रैन्दू किलेकि कौथिगेर न ह्वो त कौथिगक क्वी मतलब नि सरु रस-जस जनता पर हूंद। जीवन मा इना औण जाण अर व्यौवार सब आउटपुट इनपुट कु सिद्धांत छिन साब। तुमन सेवा लगै जरूरी छ मि बी अभिवादन कार्लो या मिन सेवा ब्वली त आप भी जरुर प्रतिउत्तर मा वनदं कर्ला उनि अगर मि आपक सुख दुःख मा सामिल नि होवुन त जब भ्वोळ मेरी बारी आली त मितैं आसा नि रखण चैन्द कि लोग मैं फर सिम्पैथी दिखाला, सामाजिक ब्यौवार द्वेरी प्रक्रिया होंदी बल।
        अब बात कर्दा असली किस्सा "औण पस्वा ल्येण च्यैत" । मेरा पीताजी व्यगतिगक्त ह्वो या गौं समाज का हर काम मा बोल्दा छै कि फलांण काम स्वैची समझी कैर्यां लौ जोश का दगड़ होश भी रख्यां, बल "औंण पस्वा ल्येण च्यैत"। कति बार ये शब्द सुण्णा बाद जब मि समझी नि त एक दिन मिन वों से पुच्छयाली बाबा ये कु क्या मतलब ह्वे, त वूंन एक अणमनमाथी घटना सुणै जु एक अठवाड़े (बागी बली) दिने बात छै। तबारी हमारा तर्फा अठवाड़ भौत बडू कौथिग होन्दू छै खैर अब लोग जागरुक ह्वेग्या बलि प्रथा लगभग बंन्द ह्वेगी। अठवाड़ का बदली अब बड़ा अनुष्ठान अर जागरण हूणा छिन। इना बड़ा मंडाण मा गौं का तमाम पंच्यैति द्यबता भूमियाल, लाटू, हित, देंण आदि तैं बी आह्वान होन्दू, सब्यों का डंकरी/पस्वा (अवतारी पुरूष) मंडाण मा नाचदा, डंकरियों दगड़ मा संस्कृति पिरेमि लोग बी भौंड़ पुरये ताळ मिलोंदा। कौथिग देखणा वस्ता अगल बगला गौंका लोग अपणा पस्वों दगड़ बाजा गाजों ल्येकी आंदा,  देव थान चौक मा पौंछण पर मंडाण वळा गौं का बाजा भौंकर अर पस्वा ज्यूंद्याल अर पाणी छिड़के आण वलूँ कु स्वागत सत्कार कर्दा, फिर द्वी गौं का पस्वा दगड़ नाचदा भेट-गाट कर्दा ज्यूंद्याल द्ये कुशल मंगल रखणों बचन को-करार कर्दा। कब्बी कब्बी ये टेम पर द्यो औतार जन बी ह्वो पर द्वी गौं वलूँ मा बाजा बजाण अर नाचण मा जादा प्रतिस्पर्धा दिखैन्दी, ये खुणि लोग असली रस बोल्दा, आहा आज फलाणा गौं का पस्वों बडू रथ निकाळी बल। बात छै सत्कार मा ज्यूंद्याल अर पाणी कु त ये मा पाणी रौल जादा हूंदू डंकरी/पस्वों का मुंड मा ठंडा पाणी बंठा ढवोळी स्नान करे जांद, जनि पस्वा का मुंड मा पाणी बंटा पड़ी उनि पस्वा होर चरचरु बर्बरु ह्वे जोश मा औतर्दो ।
    इनि कै गौं की अठवाड़ दिने बात पिताजिन बतायी कि वे दिन बगला गौंका लोग लाव लश्कर का दगड़ अठवाड़ देखण ऐन, थानी खौळ मा चार जोड़ी बाजा भौंकरुं घमघ्याट थथराट पस्वा डंकरियों कु भिभड़ाट, सत्कार मा पाणी  बंठा मा बंठा बी मुंड मा खत्यै, पर थोड़ी देर मा सारा दर्शक दख्नेर मर्द जनाना नामाण शर्म का मारी मुख लुकौंण बैठिन, सुकर ह्वो वूं नाचण वाळा पस्वों मा कै च्यैत वळा आदिमन अपणी सूझ समझ से शर्म कन वळा आदिम पर अपणी आड़ बणै नाचदा नाचदा ऐसास करायी अर भीड़ का बीच भुयाँ कचमोड़ी कखि फुंड लुकै दीनी।
         अब वा बात क्या ह्वे ह्वली इतगा शर्म कन वळी,  जै मनखिन सब्यों तैं मुख लुकाण मा मजबूर करि, त साब बात या छै कि पड़ोसी गौं कु एक चड़यों पड़यों आदिम बी वे दिन पस्वा बणि अठवाड़ मा सामिल होंण अयूँ , अपणी स्येखी दिखोणा वस्ता खूब सज्यों धज्यौं बी छै, कपाळ पर लंबी तिलक चंदन,  गोळा मा लाल हरद्वारी साफा, पिंगळु कुर्ता, मुड़ी चळपट सफेद ध्वति छै पैरीं अर मुंड मा लंबी चूळ (चोटी) अर चिफळपट तेल। द् लौss जनि वा पस्वा चौक मा औतरीss, वेन द्वी हाथ खड़ा करि किल्ल किलकारी मारी तब्बी एक बंठा पाणिक मुंड मा स्यां। पस्वा जी मथि मुड़ी लतपत, लतपत ह्वोणें छै एक बंठा बाद पस्वा जी होर उच्चै उच्चै किलकर्ताळ मारि औतन बैठ्ज्ञों,  तब क्या होर रंगत का वास्ता चकड़ेतौन द्वी बंठा होर घमके दिनी, पस्वा जी तैं नाचणा जोश मा गातो होश नि रै, पस्वे मुड़ी स्येती ध्वति गात पर चप चिपकिनी अर भितर भैर एक नस्या, ऐ !  कन कांडा लाग्यां,... वेsकु भितर क्वे अंग वस्त्र नि पैर्यों रै। अपणी त्वहीन दगड़ जनता नमाणे बेज्जती। खुसर फुसर यख तक ह्वेन कि कुछ जनानियोन त ब्वली बल कि तेतैं जुत्ता मारी भगावा। त साब तबारी बटिन यू कहावत बणि "औण पस्वा ल्येण च्यैत"।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

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