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Wednesday 16 August 2017

सिपै संकल्प 2


सुबेर उठिक माँ भारती, त्यारा चरण द्यखदू
ये जीवन पर माँ बस,  त्येरू ऋण द्यखदू
ये खातिर अरि मुंड काटोलो या खुद कटि जैलू
विश्वास करि यू अडिग पिच्छवाड़ी नि हटलू।

अब देखुला तेका भुजा मा कति दम च
हमतें कमजोर समझण तेकु भरम च
ऐ जा कखि बटिन बी जखि ऐलु थै ल्योला
ते तीन फुट्य्या तें वखि खडव्ळ डेल द्योला।

प्रतंच्या पर चढ़ियों बजर बाण जब गर्जलू
औडालु चौं दिशोंक हमर सानी पर ठैरलू
बर्खा ह्वेळी घनघोर रगड़-बड़ग मच जाली
सदानी की औडू सरोंणे आदत टूटी जाली।

फिर तांडव ह्वलू हिमालय तुंग श्रृंग पर
काळी खप्पर ल्ये आळी नचलि मुंड़ों पर 
नाद हर-हर महादेव जय हिंद को गूंजलू
वे की बलि चडली ख्वाब ब्बी फुक्येलू।

सैद मेरी पैली आहुति च जज्ञ चलण द्या
कुछ लोग जै हवा चाण्यां च चलण द्या
जै दिन यूँ कु ज्यू अफूं घुण्डों मा आलू
भारत पर लग्यूं इंडिया कु यु पाप कटि जालू।

उठा दुर्वासाक बंसज भृकुटि चढ़ावा रे
उठा चंट चाणक्य वाळी नीति चलावा रे
उठा राणा शिवजिक तलवार पल्यावा रे
भगत बिस्मिल सुभाषक आह्वान जगावा रे।

गरजा काश्मीर से कन्याकुमारी तक
गरजा मणिपुर से कच्छ भुज तक
लदाख से अरुणाचक तक कपट च
भारत आन-बान शान पर यु संकट च।

तण-तणी गन बंदूक प्रहार तें तैयार च
अबैर दों टिगर दबायी त तेको वार-पार च
एक बारा जलम मा द्वी बार अब मरण नि
हर जाग टांग अड़ण तें तेन अब बचण नि।

बासठ कु प्रतिशोध अब ल्येकी रोला
वे बारो कलंक अबैर दों ध्वेकी रोला
छवड़ले नि अरि टांग कुर्मूला सी चिप्टयां रोला
आखरी दम सांस तलक डटयाँ रोला।

09 अगस्त 2017
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग''

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