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Monday 29 July 2024

नाटक : द्यू बुझौ

 


पात्र -:

गजै अर फागुणी : सैणी-मैंस

सुमेर अर बिज्जू : गजै-फागुणी बाळा

जगदीश प्रसाद नोटियाळ : गौं कु प्रधान,

बादर सिंग राणा : सरपंच

मदन सिंह बिष्ट अर सुनिता देवी : वार्ड मेम्बर

सुजान सिंग : फरियादी, पंच्यैत मा नालिस कनू वळौ

गमलू : गौं कु धादी

सोबनु-सिताब : गौं का जाण्यां माण्यां लौफर

 

1.

(पर्दा खुल्दो)

सीन 1 -: रात साडै-आठ बजे बगत, गजै सिंगा उबरा चुलाणा मा एक डिबुली उंद कुछ छौ पकणू, फागुणी कबैर चुलाणा लखड़ा घचौळदी त कबैर डिबुली खरौळदी। चुलाणा द्वी तर्फां द्वी छव्टा गुरमळा (बडौ वळु सुमेर नौ साल अर छवटु वळु बिज्जू चार सालौ) छन कतामती कना। तै सुमैरौ एक थकुला छौ पकड़यूँ, अर सु बिज्जू योक बडीख छौ भुयाँ कटकाणूं। तखमु गजै सिंग छन गिलास उन्द बे कुछ प्यैणू अर बडीख उन्द धर्यां प्याजक ठुंगार मनू ।

सुमेर - (कतामती अर गीतै भौंण मा) सुरवा भातौऽ, सुर्रा भातौऽ। होऽलुउऽऽ (जिबड़ौ सळबळाट करदू) आज सुरवा भात खाण मीऽना। ऐ माँ, मि उणी खूब दियाँ वां, ये बिज्जू बाँठी हटगा भी। सु अज्यूँ हडगा नि चबै सकदू। सु सुरवा खौलु। माँ कुखड़ा हडगा नि होन्दा ना जादा कड़कड़ा ?

बिजु - ना माँ ना। अफलाँ बाँथी सब मिल खाँळ देयोख म्याळ दाँत (सु ईंऽऽ करि दांत दिखान्दू)। तू चुप! उल्लू कु पत्था। (अर सु सुमेरा पीठी पर एक घमाक मारदू तै बडीखै बदिन)

फागुणी - (डाडुळ उच्यै) चुप्प रा रे कव्वा का लौड़ौ ! एक छन कतामती कना। अद्योखा कै मुल्का। निखाण्यैं औलाद। रौन्दू छौ बुबा खवौण्यां त औलाद यनु किलै लबरान्दी।

गजै- (गिलासै घुट्टी मारी) आऽ र्थू र्थू ! (गिच्चौ बांगू करि) छीऽऽ थूऽ। (फेर बीड़ी सोट मरदू) खम्म खम्म, खर्ररर।  ह्वैगी तू फिर सुरु ? मैने कितने बार बोला तेरु कु कि तू खान्द टेम गुजराट नै करा कर। खम्म, खम्म आ खम्ममऽ, हे ब्वैयी यु खांसी बि ज्यौण नि द्यौंणी।

फागुणी - हे ब्वैयी यु खांसी ज्यौण नि द्यौंणी ? हौर फूका तै झिकुड़ी, खूब घटकावा तै मरछवाड़ी पाणी। मथि बटी सु बीड़ी पर बीड़ी । सनक्वळी जाण तुमुल बि यख बटे, नि द्यौखण पण तुमुल बि यूँ कु हरीष। (वींन सु बिज्जू सट्ट कौळी डाळी अर वैकु मुंड मलासण लगीं)

गजै - द चुप रा ? हल्ला ना कौर। अपणु दिस्टांत अफूँ मा धौर। द्यौख पक्यूँ कि ना सु सिकार। एक पीस द्यै ठुंगार उणि। (सु बडीख अग्नै पसारदौ)

फागुणी - अद्यौखें औलाद। कनी कतामती हुईं छन नोना अर बुबा सब्यूँ तैं। (स्या डाडुळ डिबुला उन्द घुमांदी अर एक टुकड़ौ उब निकाळी हाथन पित्वड़दी)। थौड़ी देर हौर जागा।

सुमेर - अरे माँ पक्का पक्यूं होलु। दे ना योक टुकड़ी, पैली मि चाखुला बल कन हौंणू। (सु बि थकुलौ अग्नै पसरदू)

फागुणी - (सुमेरा हाथुन लखड़ा मारदी) चुप्प ?? निखाण्यैं औलाद ? जरा ठौ बि नि यूँ कव्वा लौड़ौं तैं, हौन्दू बुबा भल कमौउ हौन्दू त औलद भल-बुरौ पौंन्दी। द्यौखा कन गिगड़ाणा डयौर परै जन गरूड़।

बिज्जू - (माँ कौळी बटे बाबा कोळी उंद बैठद अर गजै कु गिलास पकड़दू) अले गजै, मि ऊँ बी पिलौ रे। अफूँ त खूब घतकौंळूं।

फागुणी - हौं तू बि घटकौ ? सुल्टी चीज कख बटे सिखण औलादन। बाबा झांझी त औलादन कख पकड़ण कमप्यूटर। मेरु भाग फूटी ज्वा यीं कंगला- धंगळा दरौळया पल्ला पड़ी। कन-कना रिस्ता छौ औणा।

गजै - कन-कना रिस्ता छौ औणा ? अरेऽऽ ! सुकर समझ कि त्वै तैं मि जना सिद्दौ मिस्त्री आदिम मिली। निथर रौन्दी मल्ला ख्वाळै बिमला बौ जन दिन रात गारन्टी रुजगार मा ढूँगा-डोळी पर जौतीं ( सु गिलास गिच्चा फर लगान्दू अर जथ्या छौ गिलास उंद पूरौ एक घटाक मा घड़क)। सीऽऽ आऽ र्थू र्थू । छीऽऽ मास्तौं कति कड़ू करियूँ सु (कोळी उन्द बैठयूं बिज्जु सु खाली गिलास अपणा गिच्चा उन्द टरकान्दू)

बिज्जू - ऐ ब्वे ! सुऽऽऽ..... (सु गिच्चौ बांगू करदू अर गजै तै कि हरकत फर एक चपद लगान्दू) ऐंऽऽ यांऽऽ । मौरी तेरी मारान, उल्लू कु पथ्था झांझी कै मुळकौ। भ्वौळ बे त्यार कौळी नि बैठण मिल। (सु गजै कौळी बटे चड़म उठदू)

गजै - (तै कि गाळी फर) साले यतनु पितनु, अज्यूँ गिच्चाऽ जाळु नि खुली अर गाळी देखा सालै। तब बुनी तू कि मेरु दस पास करयूँ, यीं गाळी सिखाणी तु ये उणि। कन गळद्यौ बण्यूँ, सौर कु बच्चा। आऽऽ हिच्च।

फागुणी - अलौ ! तुमुतैं कति बार समझाली मिन कि प्यौणा बाद मैं दगड़ बकवास नि कन वा, निथर ?

गजै - निथर क्या गौ ?

फागुणी - निथर ! छौड़ी दयूण मिल तुमारु यु झक्का-तक्का। तब रौण तुमुल चैन फर। (सु भितर खंड जान्दी भांडा ल्यौणू)

गजै - ना यार यनु बात नि कौल, (झांझ मा मुंडी कैदा करि) ऊँऽऽ... थुर्रर..... (सैद तै उणि जादा चढ़ी छौ) त्याल बगैर यु गजै क्वी कामौं नि छन। थुर्रर.....। तू साक्षात गिरा लछमी छ भाई, गिरा लछमी।  देवी छ देवी। मैली देवी। आऽऽ हिच्च। (सु तखमु चुलाणा बगल मा लटकी जान्दू)

सुमेर - ऐ पापा सिकार पाकी लौ। पैली सिकार खौ, फेर स्यै जयां। (गजै सिंग निचंत)

फागुणी - (फागुणी भैल खंड ऐ) ए क्या ह्वाई रे यूँ तैं ? तब बोला ना। कैमा लगौंण यूँ कि छुवीं। अरे प्यौंणी त सर्री दुन्यां छन पर यूँ तैं अंगळतौ लगदू सु नशा।  ऐ सुमेर उठौ रे अपणा बुबा तैं।

(सुमेर अर बिज्जू गजै सिंह तैं घचौळदन)

बिज्जू-सुमेर- (दगडा) ऐ पापा उठ ले। ऐ सिकार बणिगै। उठ ले पा।

फागुणी- ऐ उठाणैं रावा अपणा तै झांझी बुबा तैं, जबार तक सु भात पकदू मि मैजुळ जाणी कुछ कामा वास्ता। अर खबरदार सिकारौ डिबुलौ ना कतौळयां वा।

(द्वी गुरमळौं तै हिदैत दे फागुणी भात चुल्ला चढ़ै मैजुळ जांदी, कुछैक देर द्वी भै गजै तैं घचौळदन पर सु दगड़िया निचन्त पलौक पड़यू रैन्दू, तै फर क्वी हरकत नि हौन्दी, त बाळा बि ख्यौलण मा मस्त ह्वै जान्दा। पन्द्रा मिलट बाद फागुणी मैजुळ बटे औन्दी, भात द्यौखदी पकी कि ना)

फागुणी- ऐ नि उठणू रे तुमारु बुबा (वींन भातै पतैली भुयां निकाळी) सुमेर भितर बटे थकुला ल्यौ, सु अब्यौर ह्वैगी आज खाणूं। ऐ लौ, ऐ उठा लौ। ऐ सुमेरा पापा

(सुमेर थकुला लान्दू अर फागुणी थकुला उन्द भात अर सिकार डाळदी, द्वियां गुरमुळा सिकार अर भातै पतैली हौर-पौर बैठी फेर कत्तामति करदा)

सुमेर - (फेर, जिबड़ौ सळबळाट करि) सुरवा भातौऽ, सुर्रा भातौ …(अर सु थकुला फर मैसी जान्दू) बिज्जू फूऽऽ... फूऽ... करि  चमचै बदिन कब्बी भात टटौळदू त कब्बी सिकारा टुकड़ा

फागुणी - भली कन खावा रे, गिच्चौ ना फुक्यां। (स्या तै बिज्जू भात कतौळी ठंडू करदी) ऐ उठा लो ! ल्या भात खा। (स्या गजै तैं घचौळदी, गजै फर हलचल नि देखी स्या हड़बड़ै जान्दी) ऐ लो ! हे क्या होय रे ! ऐ तुम किलै नि उठणा ? स्य रुणपित्त ह्वै, अरे मास्तौ आज लगी कूड़ी घाम ! ऐ तौं मारर्छोन सु कच्ची जैरीली नि बणंयी छौ ?

(स्या हबड़ाट मा सट्ट उठदी अर भैर सगौड़ा बटै द्वी कगजी लिम्बू ल्यै एक गिलास उन्द निचौड़दी)

फागुणी- ऐ सुमेर तै भात छवाड़ त, यख औ तेरु बुबा मरदू मैल्यौ आज। ले यीं गिलास अपणा बाबा गिच्चा खल्यौ मि तौंकु गिच्चा कताड़दी। (द्वी माबत गजै गिच्चा एक गिलास कागजी पाणी कुचाड़दा। कुछैक देर बाद गजै बक्क्-बक्क... उल्टी करदू तखमु दिसाण मा)  

फागुणी - द रे छीऽऽ। अब करि निरभागिन सब्यूँ कि निखाणी (सर्रा उबरा कच्ची दारु कि गन्दी बासन भौरी जांद। तैका बाद झिंगारै बदिन सु सिकार भात क्वै नि खांदू, छि छि करि सब्बी भात छौड़ी देन्दा)

(पर्दा बंद)

2.

(पर्दा खुल्दो)

सीन 2 - द्वफरै एक बजै बगत । गौं प्रधान जगदीश नोटीयाला घौर मु प्रधान अर गमलु कि छुवीं बत चलदी।

जगदीश प्रधान - (गमलु तैं बीड़ी सुलगै देन्दो) ले रे गमलु।

गमलु - (गमलु बीड़ी पकड़द) हैं… हैं..! द रै भैजी हम छवटौं तैं किलै कना हौर छवटू। मि जगौन्दू त बीड़ी ? (चिफळी गिच्ची लगै) तुमारा सारा त छन हम द्वी रुवटी खाणा निथर ये गमाल सिंगै क्या औकात छन यीं जमाना मा।

जगदीश प्रधान - द रै भुला, क्या बात कनू यार, जैन खाण अपणा भाग अर कर्मों कु खाण, हम क्वौ हून्दा द्यौण वळा ? त्वैन यणमण्यां बात नि कन रे गमलू। अच्छा त्वैन बि सूणी ब्याळी रात क्या ह्वै गौं मा ? कुखड़ी-काखड़ी बल।

गमलु - ना भैजी ना ! क्या मामल छ ? मि परभंगस तैं कख पता। रुमुक दां औन्दू गारन्टी रुजगार बटे ज्वा आपौ चलयूँ पल्ला मंगरा। वै का बाद द्वी टिकड़ा खै थौकन फसौड़ीपट, सुबैर खुल्दी आंखी।

जगदीश प्रधान - चल नि पता त, पता चलि जैलौ। योक काम कौर मथि धार मा जौ अर आज ब्याखुन्दा चार बजै पचैतै धाद लगै ओ, कि सब लौड़यां बैख नमान बैठक मा पौंछि जयां।

गमलु - ठिक दिदा। पर बतावा त सै क्या बात छन ? क्या छ सु कुखड़ी-काखड़ी मामलो।

जगदीश प्रधान - हिट तू अब्यौर ना कर, ब्याखुन्दा पता चलि जैलो।

गमलु - ठिक दीदा मि जान्दू।

(गमलु गौं मथि धार मा बटे धर्म-धाद लगान्द - ऐ गौं वळौ सूंणा-सूंणा। गौं वळौ सूंणा लौ। ब्याखुन्दा ठीक चार बजी प्रधान जी खौळ मु पंच्यैत छन, सब्बी लोगूं कि हाजरी जरुरी छ। गौं वळौ सूंणा-सूंणा। सु तीन बार सु धै दौरान्दू)

(पर्दा बंद)

3.

(पर्दा खुल्दो)

सीनबगत ब्याखुन्दा चार बजै, गौं प्रधान जगदीश नोटीयाळा खौळ मा गौं पंच्यति लगीं, जगदीश प्रधान, सरपंच बादर सिंह राणा, मदन सिंह बिष्ट, सुनिता देवी, सुजान सिंग, गजै सिंग, फागुणी, गमलू, सोबनु, सिताब अर पन्द्रा से बीस हौर लौड़यां बैख, बाकी नाननिता जौं कु एक घ्याळ छौ मचांयूँ। 

जगदीश प्रधान  - त सूणा भै-बंदो आजै फरियाद सुजान काकै कि छन, तौं कि नालिस पर पंच्यैत बैठी। चला त सरपंच साब सुरु करा।

सरपंच बादर सिंह - दिदा सुजान पैली त तू पंच्यैतै फीस जमा कौर 500 रुप्या।

सुजान सिंग - (सुजान जवरकट्टा खीसा बटे रुप्या निकळदू अर सरपंचा अग्नै रखदू) ल्या पंच परमेसुरौ अब मेरु न्यौ-निसाब कौर द्या।

सरपंच बादर सिंह - हाँ त सुजान भै बतौ क्या मामल छिन ? अपणी नालिस बतौ। क्या मामल छन ?

सुजान सिंग- दिदा क्या बतौं, कैमा लगौंण। अब गौं मा मरजादा हरचीगे। अलौ भरस्ट ह्वैगी, दया धरम गयूँ बिलैत,  लोग खौं बाग बण्याँ। यनु चलणू रैलू त योक दिन लोगों तैं अपणी चीज बस्त बचौण मुस्कल ह्वै जैलो।

सुनिता देवी - ज्य्ठा जी पैली ना बुझावा। सीधा-सीधा मामल बतावा। हमू मा इतगा टेम नि। अज्यूँ ब्याखुन्दा भैंसौ चाटू बि काटण सिमारा बटे, अजक्याळ यीं रुड़ियूं मा कखि हरियूँ घासौ तिरण नि, अब योक सु तिमलौ डाळू ही बच्यूँ।

मदन सिंह - यार काकी त्वैतैं सदानी कौ-बौ ह्वयीं रैन्दी। नि छन त्वैमा बगत त किलै हौन्दी तू पंच्यति मा हुर्स्यळी ?

सुनिता देवी - त्वैल चुप रौंण मदनी, तेरी जन सुंगरै घ्वौठ थौड़ी छन मिमा कि सब्बी काम चूंडी-चांडी ह्वै जांद। 

मदन सिंह- ऐ काकी गिच्चौ समाळी बात कौर, म्यार नौन्याळौं तैं तू सैंतणी ज्वा अंट-संट बकणी।

सरपंच बादर सिंह - ऐ चुप रावा। जै कि पंच्यैत डाळीं वैकि बात नि ह्वै सुरु अर तुमारु सुरु ह्वैगी। तुम द्वीयूँ घौरौ खिर्त छन त जावा पंच्यैत बटे भैर, अर छक्की कज्यै करा।  हाँ छांट बोल भै सुजान।

सुजान सिंग - संरचपंच साब बोन क्या छ। तुम जाण्दा छन कि चैड़-अचैड़ ढैली पाई वास्ता म्यार सु दसैक कुखड़ा छन पळयाँ अर तौं मदै ब्याली रुमुक दां एक चौरी ह्वयूँ अर खयै बि गयूँ।

जगदीश प्रधान - खयै बि गयूँ ! तुमुतैं कन पता ?

सुजान सिंग - अरे पता वळी क्या बात छ ! मिमा सबूत बि छन ब्यटा सबूत (अर सु एक थौला बटै कुखड़ा पाँखौं अर एक कलंकी थुपड़ू लगान्दू भुयाँ) ल्या यु छन सबूत। (सु आँखा पूजण बैठी) माराज यनु चलणू रैलू त गौं मा हम गरीब-गुरबौं नि रौणू दिन औण वळू छन। इना हिगमत ह्वैगी यूँ सालौं की, कि भितर पटपाड़ बटे ल्ही जाणा चूंडी। 

सुनिता देवी - ज्य्ठा जी, आप कन सकरा ह्वै बतौंणा कि सु कलंकी अर पँख तुमारा कुखड़ा का ही छन ?

सुजान सिंग - ब्वारी ! क्या बात कना ? लोगुन अपणा गौड़ी दूध पच्यांणी अर मि अपणा कुखड़ै कलंकी नि पच्छयांण सकदू। (कुखड़ै कलंकी हथ मा ल्यै) च्वौरन क्या समझी कि हम यी चलाक छन। यु द्यौखा मेरा अपणा कुखड़ै कलंकी डामी छौ। (कलंकी पर डामौं निशाण दिखान्दू)

(तै देखी सोबनु-सिताब झस्स झस्क्यां। गजै ताण्यौंण बैठयूँ), तबार !!!

सुजान सिंग - ऐ च्वौरौ बच्चा खड़ू किलै छौ उठणू। बोनू किलै नि कि मैं यी छौं यीं गौं फर कलंक।

गजै - ऐ काका गिच्चा समाळी बात कौर वा। तू झांझ लगै कि त नि अयूँ ? फेर ना बोल्याँ, मि तुमारी उमर भूली जौलू।

सरपंच बादर सिंह - ऐ झगड़ा नि। त, सुजान दिदा तेरौ बोनो मतलब छन कि ये गजै ल तेरु कुखड़ू खायी।

सुजान सिंग - खायी क्या ? पचै बि याली।

मदन सिंह - बौडा तुमु मा ये बातौ क्या सबूत छन कि तुमारु कुखड़ू गजै सिंगल ही चौरी ?

सुजान सिंग - अरे मदनी ब्यटा याँ से बड़ौ सबूत क्या चैणू। यु पाँखा अर कलंकी ये गजै साळी पिछनै मिली मितैं।

सोबनु-सिताब एक दगड़ा - अरे हाँ !! आज सुबैर ये गजै खौळ मा कुकुर हटगा चबाणू हमुळ बि देखी। (द्वियां खी-खी...करि हैंसदा)

फागुणी - हौंऽऽ कन ना ! ये गजै साळी पिछने मिली मितैं ! सु मुंडी सरी धौळी ह्वैगी फर झूठ बोनू सरम नि औणी तुमुतैं। सुकर छन तुमारी उमरौ ल्याज धना हम निधर जनी भाषा तुमुल बोली ना, सु ल्याज रखण वळी नि। अर तुम द्वि लौफर बेसरम क्या छाँ भौंण पुरौणा (सोबनु-सिताबै तरफा आँखा कताड़ी) तुमारा लक्षण कै उणि नि गौं मा पता। कुकुर हटगा चबाणू छौ हमारा खौळ मा ? याँ को मतलब कि हमारी औकात सिकार खरीदणें नि च अर हम चौरी करि खान्दा। द्यूळा मास्तौं खाब कताड़ी। तुम क्या तुमारी मवसी तैं बि तौली द्यूला सिकार मा। रौतैं बेटी छौं मि, रौतैं । 

सुजान सिंग - ब्वारी सरम त तुमुतैं औण चैन्द ! जनु मालिक तनि कज्याण। झक्क मारी तुमुन पौढ़ी ल्येखी, अरे तति अंतबिंती ऐगी त भीख मांगा। सुप्पा भौरी द्यूला।  (बुढया खड़ू ह्वै गरजण बैठयूँ)

गजै - ऐ बुढया जादा ना उछौळ वा। भौत ह्वैगी, अब अग्नै तिन एक शबद बि बोली त !

सुजान सिंग - बोली त क्या बे ? सौर कु बच्चा, झांझी। (अर सु एक झप्पाक गजै कळनसा फर मरदू) चौरी अर सीना जौरी बि। (लाल पिंगळू ह्वै गजै जबार हाथ उठान्दू सुजान फर तबार लोग बीच बचौ करदा, अरे छवाड़ा-छवाड़ा, यु बात ठिक नि)

जगदीश प्रधान - बौड़ा जी यु त भौत गलत बात छन। आप दाना आदिम छन, यनु हत्थापाई ठिक नि।

फागुणी - हौं दाना छन ! खब्यौस कै मुल्कौ, द्यूळा दांत तौड़ी जथ्या बच्याँ छन। कन छन हाथ उठौणू बिगैर बातक। पंच लोग यीं गाळी अर हत्थपाई को ये बुढ़या फर जुरमानू लगा। निथर मिन भौळ पटवारी मंगौण अर तुम पंचौंन बि लपेटण यी झूठा अभ्यौग फर।

(सब चुप्प, फागुणी लाला पिंगळी ह्वै कमर फर हथ धरीं गर्जणी छै)

फागुणी - पैली त यनु बतावा कि अगर हमारा साळी पिछनै सु पाँखा अर कलंकी मिली बि होला त यीं बातै क्या गारंटी छ कि यूँको कुखड़ू हमुल खाई ? क्वै हौर बि त फेंकी सकदू तौं तैं हमारा साळी पिछनै।

(सोबनु-सिताब फेर झस्स झस्क्यां। हौर सब्बी एक दगड़ा हौं यार सच्ची बि, तुकै बात। ब्वारी ठिक बोनी)

सुनिता देवी - बोल भुली फागुणी हौर क्या सफै द्यौण चान्दी तू।

फागुणी - दीदी सफै क्या द्यौण तौं कु कपाळ (मुबैल निकाळदी) ले बात कौर मेरा भैजी दगड़, जोन ब्याळी यूं तैं नन्दपरयाग बजार बटे सिकार खरीदी दीनी अर नालड़ौं तैं खट्टै-मिठ्ठै। मितैं कुछैक खर्चा-पर्चा छौ दिन्यू जौं बदिन सु निरभगी ब्याली तै मरछवाड़ी पाणी प्यै मौरी बि गे छौ। (गजै तरफा सान करदी)

सरपंच बादर सिंह - अच्छा ब्वारी तुमारी बात सच्ची ह्वै सकद। पर सूणा ! पैली बात तुमार साळी पिछनै सुजान सिंगा कुखड़ा पँख मिल्याँ, दूसरु कुकरौ हटगा चबाण बि दिख्यौ तुमारा खौळ मु, यु बात त सच्ची छै ना ?

फागुणी - हौं कुकरौ हटगा चबाणू छौ ? कै का हटगा ? तौंका ज्व बिगैर सच्चै कु लांछन लगाणा ? यीं बात क्व सच्च करलो ? जोब मिल बोलीयाली कि हमारा यख ब्याळी रात सिकार बणी अर सिकार कख बटे आई सु बतैयाली त अब क्यांकु सकस्याट ? ¼स्या बिकराल रुप मा खैंकरी बोल्दी½ यीं झुट्टी बात फर मिन तुम सब नापण। 

¼फागुणी बिकराल रुप देखी सोब डौरिन हक्क बक्क, अर एक हैका मुख द्यौखदा½

सरपंच बादर सिंह - ¼ निमाणू ह्वै) ब्वारी तति गुस्सा ठिक नि, अग्वाड़ी गौं-मौ मा रौण हम सबुन। ठंड ह्वै जावा। चलो “छुवीं अर छांस जति फुलावा वति फुलद”, कैकि सच्ची अर कै कि झूटी, यीं बातौ दूध कु दूध अर पाणी कु पाणी कना वास्ता गजै सिंग तैं द्यू त बुझौण पड़लो। बोला प्रधान जी ?

जगदीश प्रधान - जी काका बिलकुल सयी, पंचैतन निसाब त कने छ। बोला पंच नमाण। (सब्बी हौं करि मुंडी हलकौन्दा) गजै सच्चू छिन त तै उणि द्यू बुझौंण मा क्वी हर्ज नि हौण चैन्द। (हौर लोग बि गुमणांट करदा। हौं सु ठिक च, यु ठिक रैलौ)

गजै - बिलकुल सरपंच जी। मि द्यू बुझौणू त्यार छ । फर मैं फर ज्वा अभ्यौग यीं बुढ़यान लगायी तै कु जुरमानों बि बतावा। ऐसा थौड़ी होता कै फर भी लांछन लगा दो, हमैर बि इज्जत छै कि ना ? यीं गौं खानदानी पडयार मवसी छन हमरी।

जगदीश प्रधान- गजै शांत ह्वै जावा तुम द्वियां।! त्वैल सिकार नि खाई त द्यू बुझौ, बाकी सुजान बौडा कु मसला पंचैत देख ल्यैली।

(ल्यावा रे तै वियां बटे द्यू, फटाफट द्यूळौ लियै अर जलैयी जान्द)

सरपंच बादर सिंह -  बोल गजै, पंच परमेसुरौं सामणी, मि सौं खान्दू कि अगर मेरी कुटुम्बदरिन कुखड़ी खाई होली त मेरु निरबिज ह्वयाँ निथर जु झूठ बोनू तैकू।

(जनै गजै द्यू बुझाणू अग्नै जान्दू। तबारी फागुणी कौळी उन्द बैठयूं छवटु बिज्जू बोलदू)

बिज्जू - ऐ पापा, ना लो ना। द्यू ना बुझौ। त्वैळ झांझ मा नि खाळी सिकार ति हमुल त खाई छैं छ।

(गजै झप्प द्यू बुझौन्दू, जन्ता तै बिज्जू बाळै बात सूणी हैंसण लग्यान)

सोबनु अर सिताब - (खुबसाट करदा)  अरे भाई बच गयां रे ! हमारु तुरुप ठिक बैठी, ज्व सु सुजान बुढया नि समझी। (द्वियां जीत्यां जन हथुगुळयां मिलौन्दा अर सळबट तख बटे निखुळी जान्दन)

सुजान सिंग - (मुंडी खाड़ डाळी कणांणू) द रै कनू बजूर पड़यूँ, कुखड़ी बि मेरी खयैन अर पाँच सौ रुप्या बि मैं सै। कन निसाब छन यु। अरे मास्तौ नि हौण तुमारी मवसिन।

(फागुणीऽन तै सोबनु-सिताब बातै बींग्याली छै अर स्या तौं का पिछनै दनकदी चप्पल हाथ ल्यै)

फागुणी - ऐ चौरो कख छन भाजणा। रुकाऽऽ, कमीनौ मि खवोन्दी तुमुतैं कुखड़ी, हरामी लुंड लौफर, लोगूं मवसी लड़ै क्या मिली तुमुतैं, साला कुबीजौ, नि खाण पायी तुमू ऐसूं बग्वाळ। 

पर्दा बंद 

 

नाटक : बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’

ग्वाड़ मटई चमोली

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