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Tuesday 16 June 2020

जलम भूमि कंणाट (मुक्तक)


कब्बी इकुलांस कु उकताट
लगान्दी छै धाद मितैं
कुछ स्वेणा बुणि किन
कुछ अपणा समझी किन
ऐ जान्दी तुमारी याद मितैं ।

यूं टयड़ा म्यड़ा बाटा घाटा
अब अफूं ही बाटू नापणा चा
खड़िखड़ि उकाळ तड़तड़ि उलार
अब अफूँ ही अफूँ मा थकणा चा ।

कन म्येसि पे म्येसि मिले किनी
सब्यूल जाणे की ठाणी चा
इकुलांस मा बुढ़ै गयां अब 
या जुगों की लौंची ज्वानी चा।

इकुलांसे की ढा मा छ या
खैरी खैरण्यां कु कबलाट मितैं
यूं द्यो थानों की दशा देखी
ऐ जान्दी तुमारी याद मितैं।

ज्वानी चांठा घ्वीडों जन
भीटा पाखों मा सरपट यख
धार गाड़ से लड़णी बौराणी
बुढ़या हटगों कु सामर्थ यख।

नि दिख्येली तौं बंद कमारों बटि
लौंकदी कुयेड़ी चैमासे की
ईंटों का बणों बे कने दिख्येली
लकधक फूलपाती मधुमासे की।

यीं ममता की पीड़ा छ या
पिरेम कु धकध्याट मितैं
यूं घर कूड़ी स्वांपट देखी
ऐ जान्दी तुमारी याद मितैं ।

बांद तैं फंची झट ऐ जा
माँ माटी सुगंध ल्येणु कु
एक अपणुपन ही बच्यूं छै मैंमा
हौर कुछ नि यख देणु कु।

क्वे नि छ सत्कार कनू यख
सब अपणा बाटा खिसकी गयां
मेमान बणि ना अयाँ लाटा
अपणु सामळ दगड़ पांजि लियाँ ।

तुमारा जलड़ा ये क्वोख से जलम्याँ
ये कोख कु प्रमाद मितैं
यूँ जलड़ों की कणाट देखी
ऐ जान्दी तुमारी याद मितैं ।

उंद मा क्या बेभौ द्येखी या
कर्मो तैं इतगा सौंग लगिन
सेरौं मा कत्गा खेणु करि ज्वा
चढ़णों इतगा असौंग लगिन ।

देख्याँ छै ये माटा म्यारा
मिट जाणी वाळी जात यख
खैरी बिपदा मा हँसणी ख्यलणी
अर दमकणा वळा गात यख।

औती नि छौं संततवति वळि छौं
छै ब्वे होणु कु ऐसास मितैं
दूध धार  धे भौरीं छाती कु
दिलांदी ममता की याद मितैं।

कब तक इकुलांस हैंसणु रैलु
कब्बी ना टुटण वळि आस पर
जग्वाल तैं बी अब सक सुब होणु
झिकुड़ा का विस्वास पर।

क्या गुनों करि विधाता न
यीं धर्ती बे मुख लुकाणा छाँ
धागु त्वोड़ी चलि जाणा  Nk¡
उब नि औणु ढुंगो फर्काणा छाँ।

जुग बटिन कति ऐनी गैनी
नि छ तुमसे क्वै फरियाद मितैं
अपणी नि तुमारी पीड़ा देखी
ऐ जान्दी तुमारी याद मितैं।

@ बलबीर राणा अडिग

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