सौंणा मैना (अगस्तै) धाद मिली, उन त धाद का सब्बि अंक हमारा साहित्या दस्तावेज छन पर अगस्त को यो अंक ऐतिहासिक दस्तावेजी अंक छन, ऐतिहासिक इलै कि यु हमारा लोकसाहित्य, लोकगीत अर लोकसंस्कृति का शिखर पुरुष श्रद्धेय गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी का सृजनै स्वर्णजयंती अर उमरै हिरक जयंती पर आधरित अंक छन। दगड़ मा हमरि लोकभाषा अर संस्कृति की मानक मासिक पत्रिका धादै स्वर्णजयंती, सुंदर संजोग। ये दां यु मेरु सुभाग रौ कि श्रद्धेय नेगी जी का जलमबारा दिन बारा अगस्त संस्कृति विभाग प्रेक्षागृह देरादून मा ये पावन दिन कु साक्षी रयूँ। जख वूंका सौ गीतों पर श्री ललित मोहन रयालजी कि रची शौधपोथी “कल फिर सुबह होगी” को लोकार्पण बि ह्वेन। जु अपणा मा विलक्षण प्रतिभा कु द्योतक छन। आजौ यु रैबार ये पोथी पर ना बल्कि धाद का अगस्त अंक पर पैटाणू। आप विद्वानोंक बोलण सच्चू छ कि गढ़वाळ तैं बिगण हो त श्री नरेंद्र सिंह नेगी तैं बींगा गढ़वाळ समझ मा ऐ जौलु। गढ़वालै आत्मा तैं इतगा सिद्धहस्ता से सैद कै साहित्यकार कलाकारन चित्रित करि हो। श्री नेगी जी पर जति बोला कम ही छन सु व्यक्तित्व गढ़ावळ सागर छन या बात आप विद्वनोंल धाद का ये अंक का बड़िया समझण अर बींगण वळी भाषा मा समझायूँ ।
धाद मासिका ये अंक मा धादा सम्पादक अर हम सबूंका प्रिय लोककलम का
सशक्त हस्ताक्षर श्री गणेश खुगशाल गणी जिका सारगर्भित सम्पदाकीय का दगड़ तैरा
विद्वानोंल श्रद्धेय नेगी जिका सृजन अर रचनाधार्मिता पर अपणी नजर अर नजरिया
पैटायूँ। चौदवूं लेख श्री पंकज सुन्दरियाल जीकि कविता छन। सुन्दरियाल जी अपणी कविता का आखिर मा ल्योखद कि तुम जनो क्वी नि ह्वै, बिल्कुल सच्ची बात अब्बी त ना पर
भबिस्या मा होलू क्वी जरूर, किलै कि या धरती बगत बगत फर अपणा सच्चा पुत्रों तैं जलमेन्दी।
पत्रिका मा पैलो शौधात्मक आलेख श्री देवेश जोशी जिको छन जैमा श्री
जोशी जीन ”नरेंद्र सिंह नेगी जी का सृजन मा लोकतत्व“ उकेर्यूं। लेख जोशी जिको मानव विज्ञान, साहित्यै गैरी परख अर आपार शब्द संपदा
तै बतान्दू। श्री जोशीजी जति सिद्धस्त रचनाकार
छन वति गूढात्मक अर संवेदनशील विवेचनाकार समिक्षक छन। आलेख मा जोशी जीन श्री नेगी
जीक सृजनता को बारिकी सि विश्लेषण करियूँ। श्री जोशी जी रूसी कवि रसूल हमजातोव अर
श्री नरेंद्र नेगी जी तैं एकी औनारा व्यक्तित्व बतांद कि अपणी माटी अपणी भाषा से
सच्चु आत्मीय लगौ कु प्रतिफल छन कि यूँका सीमित क्षेत्रीय सृजन हौणा बाबजूद बि
जगप्रसिद्ध छन। कास ये बात अपणों से मुख मौड़ी पछिमें तर्फां भाजणी नईं पीढ़ी बिंगो
कि उन्नती कु पैलु ड्वार अपणा घौर बटे खुलद।
पत्रिका मा दुसरो लेख हमरि लोक अर लोकभाषा शब्द संपदा का स्तम्भ
भाषाविद श्री रामाकांत बेंजवाल जी को छन जेमा श्री बेंजवाल जीन श्री नेगी जीका
सृजन मा “हल्दीहाता मांगळ गीत“ संकलन पर अपणी नजर रखी, कि श्री नेगी जीन हमारा लोक मा इना-उना
विखर्यां, अद्दा-पूरा मांगळौं तैं इकठ्ठा अर संगीतबद्ध कैर अपणा कंठ सि हौर बि
लोकप्रिय बणायी, ज्वा हळिदीहाथ नौ कैसेट का रुप मा आम लोक जनमानस तक पौंछी। दगड मा
यूँ मागळौं तैं नयाँ साज सज्जा अर कलेवर मा धरी श्रीमती उषा नेगी जीन पल्लवित करि, ज्वा आज हमारा करिजोंमा स्टेटस सिम्बल बणी।
पत्रिका मा तीसरु संस्मरणात्मक आलेख उत्तराखंड साहित्य रत्न श्री
गिरीश सुन्दरियाल जी को छन, आलेख मा सुन्दरियाल जीन अपणा गीतूँ बिज्वाड़ मा श्रद्धेय नेगी जिकी
छत्रछाया तैं कुतग्यळी अर कौंकळी लगाण वळा अप्रीतम संस्मरण से रखी। सच्ची मा देखा
त हमारि ये पीढ़ी का लोक साहित्यकार, कवि, गीतकार, लोकसंस्कृति पिरेमियों अर गवव्यूँ कि सृजनता को बीज नेगी जिका सृजनता
से यी अंकुरित ह्वेन। साब क्वी बि व्यक्ति
अपणा च्वैसा फिल्ड मा अग्नै पौंछणा वास्ता एक
आदर्श छवि रखद अर वे छवि तैं अराध्य रुप मा पूजी अपणू करम करदन। अर सु आईडियालॉजी व्यक्ति तैं प्रेणा द्ये प्रेरित करदी अर लक्ष्य
चुँळखी पौंछाणूं हाथ पकड़ी गौळा तरान्दी। सैद करमों कु यां सि बड़िया प्रतिफल क्या
होन्दू जख सुन्दरियाल जी पौंछयां अर बड़ा सिद्धहस्त सि अपणी मातृभाषै जात्रा
सकुटुम्बदरी कना। आलेख मा श्री सुन्द्रियाल जी एक बात टक्क लगे बोलदन कि जै लेखन
का कन्टेंट मा ज्यान होली वा यी ज्यूंदू रैलो। बगत कलम कागज खर्चणा बाद जब तुम
संतुष्ट नि त समाज कनक्वै संतुष्ट ह्वै सकद। बिल्कुल गुरुजी वर्तमान लिख्वार
सोशियल मिडीयै यीं झ्टट-पट्ट झूट्टी वाह-वाही मा कन्टेंट उना दी द्ये पाणा ज्वा एक
आदर्श समाजा वास्ता चैन्द। चलो आम अर खास मा फरक बि त हौंण जरूरी छन। नेगीजी
प्रतिष्ठा मा आपक गीत सर्व नेगी चालीसा छन।
पत्रिका मा चौथु आलेख गढवळी लोकसाहित्य अर संस्कृति का पुरोधा श्री
नन्द किशोर हटवाल जिको छन जैमा हटवाल जीन “माँ नन्दादेवी लोकगीत, राजजात अर नरेन्द्र सिंह नेगीजी” शिर्षक मा माँ नन्दादेवी जागरों कि
लोकप्रसिद्धी पर शोधात्मक विवरण दियूँ छन। आलेख मा नरेन्द्र सिंह नेगीजी अर
संजदारों अथक श्रमसाधना से कन-कन पड़ौ ह्वै माँ नन्दा का जागर कैसेट का रूप मा ऐन, अर जागर का कुछैक यी सिद्धहस्त जणगुरौं से भैर आम लोक का गिच्चा मा श्रद्धै पाती बणिन। या ही विद्ववता कु
प्रतीक छन कि आम द्यौखण मा जु मात्र गीतोंकि एक कैसेट छन वेतैं लोकममर्ज्ञ विशेष मा शेष ढूंढी अतिविशेष बणैं द्यन।
हमारी लोकगीत विरासत चाँचड़ी झुमैला समाळण वळा अर नन्दा की कथा का नटककार श्री हटवाल
जी से जादा क्वी मनखी माँ नन्दा
कु मर्म समझै सकलो। जन कि हटवाल जिका कानी संग्रे भयमुक्त बुग्याल मा संकलित कानी ”मेरा भुला” कानी को नायक डीडी
(देवीदत्त) कैलखुरा उर्फ द्यब्वा गौं मा अपणी पीठी दीदी की आसा अपेक्षा अब साब बणि
नि समझदू, उन नेगीजी तैं आजै साब ख्वाब द्यौखण वळी पीढ़ी कति समझली यु एक यक्ष
प्रश्न छन हम सब्यूँ तैं।
पत्रिका मा पाँचवां आलेख श्री हिमांशु शेखर बेंजवाल जीको छन। जैमा
श्री बेंजवाल जी सात समोदर पार अमेरिकै धरती बटी रैबार पैटान्दा कि श्री नेगी जिका
गीत कनक्वै परबासी भैबन्दो तैं अपणी थाती माटी से जोड़ी रखदा। ‘खुद’ शब्दौ अर्थ हिन्दी मा याद अर अंग्रेजी मा रिमेम्बर बोले जांद। पर ज्वा
व्यापकता खुद मा छन सु याद अर रिमेम्बर मा नि छन। मेरा बिंगण सि खुद मनखी
भावनात्मकता कु वा प्रतीक छन जेमा अतिरेक पिरेमें कौंकळी अर क्वांसा मन-पराणें वा अद्यौखी स्थिति छन जै तैं
बिगैर मैसूस करि नि जाणी सकदन। बल दूरा मनखी तैं जादा खुद लगेन यु अनुभौ मेरु आज
तलक अपणा मुल्क गौं गुठ्यार सि दूर रै खूब मैसूस करियूँ। बेंजवाल जीक लेख
परबासियूँ कि खुद, हौंस-उल्लास श्री नेगी जिकी सृजनै व्यापकता
बतौंदन।
पत्रिका मा छटवां संस्मरणात्मक आलेख “सब्बि धाणी देरादून का बाना नरेन्द्र
सिंह नेगी” शीर्षक से गढवळी कवितों का सशक्त हस्ताक्षर अर “सब्बि धाणी देरादून” गीत का लिख्वार श्री वीरेन्द्र पंवार
जीको छन। आलेख मा श्री पंवार जीन सब्बि धाणी देरादून गीतक जलम, कर्मजात्रा अर लोक प्रसिद्धी जात्रा
कु विवरण दियूँ छन। आज यु गीत एक मुहावरा का रुप इस्तमाल होन्द त ये का पैथर श्री
पंवार जिकी समाज पर कुराड़ जनी करीकरी नजर अर रचनाधर्मिता कु द्योतक छन। ये गीतन
उत्तराखण्डियत वास्ता श्री नेगी जिकी व्यंग धारणा तैं हौर तागत दिनी, कि नेगी जिन बोली त कुछ न कुछ त छ। इलै
श्री पंवार जीन शिर्षक मा, “का बाना जोड़ी” यु ये गीतै उपलब्धि
तैं बतान्द। चै उच्ची तड़तड़ी नाका खातर हो या उन्नति, सच्च मा आज देरादून हौणकारी को पर्याय
बणिगे। भैसाब अगर देरादून मा मकान जमीन छन त तब द्यूलु लौड़ी हाथ। त बोला ! नोनू तैं
लौड़ी नि मिलण्यां साब अजक्याल, सु छन पैंतीस साला कुंवारा बैठयाँ
ब्योली जग्वाळ मा।
पत्रिका को सातवां आलेख हमारा लोक संस्कृति का संग्यौर श्री गिरीश
बडोनी जिको छन जैमा श्री बडोनी जीन नेगी जिका गीतों मा खुदै औनार बिनारौ विशलेषण
करियूँ। जन मिन मथि बोली कि खुद मनखी भावनात्मकता कु वा प्रतीक छन जेमा अतिरेक
पिरेमें कौंकळी अर क्वांसा मन-पराणें वा अद्यौखी स्थिति छन जै तैं बिगैर मैसूस करि नि जाणी सकदन पर
बडोनी जीन नेगी जिका गीतों मा नाना परकारा खुदै औनारों तैं बिरैन, ज्वा हमारी माँ-बेणियूँ खैरी, भैजी-भुल्लौं अपण्यास अर दाना-सयाणों हौंस-रोंस तैं बतौन्दी ज्वा हमारा लोक मा सम्माहित छन। बडोनी जिको बोलण छन कि पहाड़ा अर खुद
एक हैका पूरक छन अर यों दुयों तैं समझण अर समझाणों काम नेगी जी पिछला पचास साल बटे
कना छन। सच्च मा हमारा पहाड़ी लोक का अभौ अर प्रभौ सि खुद यखा जन मानस कु भावनात्मक
बिन्दु रयूँ।
आठवां संस्मरणात्मक आलेख हमारा लोक गीतों तैं पिक्चर पर्दा पर ल्यौंण
वळा कुशल फिल्म निर्देशक अर गीतैर श्री अनिल बिष्ट जिको छन जैमा बिष्ट जीन नेगी
जिका गीतों तै फिल्मांकन कनै जटिलता अर सार का बारा मा अपणू अनुभौ लिख्यूँ। जटिल
इलै कि श्री नेगी जीका गीतौं कि गैराई नापण आसान
काम नि, अर ज्व लोग नापणा वूँ वास्तव मा सिद्धहस्त गोताखोर छन वूंमा बिष्ट जी
जना कुशल फिल्म
निर्देशक हो चै नेगी जी रचनाधर्मितता का लिख्वार। आलेख
मा बिष्ट जीन एक क्लिष्ट बात बोली कि जब नेगी जिका गीतुं का असल किरदार समाज का
बीच होंन त मि बनावटी कलाकरों ल्हेकि कतना बड़ि चुनौती ल्हेकि छौं कैमरा अग्वाड़ी वूं तैं खड़ा कनू। सच्च मा ज्वा डिमांड फिल्म मैकिंगै
छन सु असली किरदार मा नि अर ज्वा फिल्म मैकिंगै डिमांड पूरो कना सु असली किरदार
नि। यु ही छन नेगी जिका गीतों कि गैराई। अर असली तैराक गोताखौर बिष्ट जी जना लोग
छन ज्वा गीतौं कि संवेदना इन
बींगद कि वूंका जिकुड़ा चीरा पड़द। “छैल नि मिललु कखि बौड़ी कि ऐजैई मैमु, चळि कि सी बाण रखी, हाथ ना पसारी कैमु, बिरड़ी की कुपथ ना जैई, दोफरा का बटोई”। सच्च मा जन बिष्ट जी बोना ईं गीत तैं आम लोग, जैमा मि बि सामिल छौं कि, कै बटोई घाम मा छैल बैठणू पर नि उकैरियूँ
बल्कि एक गवाण्यां पिरेमी कु अपणा
परदेशी मिरेमी वास्ता “कु पथ नि जाणू” रैबार छन। श्री बिष्ट जी आप भी नेगी जिकी यीं जात्रा का सै जात्री छन
आप हमारी लोक की
अमानत छन।
नौंवां शोधपरक आलेख नै छंवाळी का कवि कानीकार श्री धर्मेन्द्र नेगी
जिको छन। ढांडौं का माछा उड़ै देन्दा उड़ौण वळा। अपणी हास्य अर व्यंग्यात्मक गजल
कविता का माध्यम सि समाजै नस पकड़ण वळा नेगी जीन गढरत्न नरेन्द्र सिंह नेगी जी का
गीतों मा हास्य-व्यंग्य पर शोधपरक काम करि। हमारा लोक मा कै बि बात अर काम फर एक आम शब्द को इस्तेमाल हौन्दू कि “चला फूऽका”। पर व्यंग्यकार बोलदन फूऽका ना भै, जगावा। किलै रौंण द्या जी, जन छन बोने पड़लौ, सै त सै, गलत त गलत। मुखमुलाज्या आम मनखी नेचर
होन्द “फुक्का रौंण द्या”। पर व्यंग्यकारौ चश्मा कु लेन्स मुखमुलाज्या नि होन्द। व्यंग्यकार अपणी बात रखलो चै ढंग क्वी बि हो। व्यंग्य
हैंसी-हैंसी चोट करदू जै सि कटाक त निगुरी पड़दी पर
घौ नि होन्द। यनु सुद्दी नि हिल्दी राजगद्दी, नरेन्द्र सिंह नेगी जिका गीतों से। श्री धर्मेन्द्र भैल खूब बरीक कातिन
श्री नेगी जिका हास्य-व्यंग्य गीतों पर। नेगी जी अपान सार्थक विवेचना पाठकों तक
पौंछाई, साधुवाद।
दसवां लेख श्री इन्द्रेश मैखुरी जीको छन जौं मा श्री मैखुरी जीन श्री
नेगी जिका जनगीतों पर विवेचना करि। उन त नेगी जिका सब्बी गीत जनगीत ही छन, जन कि अनिल भैऽन बोली कि नेगी जीऽक
गीतों का असली नायक नायिका हमारो समाज छन ज्वा वूँ गीतों तैं समझणा, गाणा अर अफूँ तै वे गीता भितर चिताणा।
फिर बि भारतै एक बिचारधारा जन आन्दोनल अर जनपक्ष जन सराकारौं का गीतों तैं जनगीत
नौ देन्दी, वूँ कु बोलण बि सई छ कि जौं गीतों सि समाज मा जाग्रति आवो अर समाज
अपणा हक हकूकों खातिर क्रान्ति पर ऐ जावो सु जनगीत छन। श्री मैखुरी जीऽन नेगी जिका
जनगीतों पर धाद मा पैली बार सार्थक विवेचना पैटाई हमारु धनभाग, निथर ये बिचारधारा लोग लोक की हर बात
तैं अपणा आराध्य चै ग्वेरा से जोड़दन।
इग्यारवां आलेख उत्तराखण्डै मादेबी नौ सि प्रसिद्ध कवयित्री, समीक्षक, निबन्धकार बिदुषी, कुशल मंच संचालक अर लोक भाषाविद दीदी
श्रीमती बीना बेंजवाळ जीको छन। जों मा श्रीमती बेंजवाल जीन नेगी जी का गीतों मा
माँ-बणि फर विवेचनात्मक अर रागात्मक आलेख पैटायूँ। उन त मर्द जनानी सब्बी लिख्वार
चराचर जगत का तमाम चीज-वस्तों पर संवेदनशील होन्दन फिर बि जै फर बीती वेन रीती वळी बात छ।
नेगीजी गीतों मा माँ-बण्यूं आत्मैं सच्ची पुकार माँ-बेणि ही भलिकै जाण सकदी। कै
मर्मज्ञ साहित्कारै कलम यी इना झंकृत शब्द व्यंजना उकैर सकदी कि नरेन्द्र सिंह
नेगी जीन माटि का मनै बात बींगी, छीड़ा छंछड़ों भौंण सूणि, हिमालै को माथम गूणि, निठाणेंदी अर बिबलांदी धरति कि बिपदा समझि, डांड्यूं की खैरी अर पुंगड्यूं कि
जिकुड़ि मा साक्यूं बिटी दबीं पिड़ा पछयाणी। श्रीमती बेंजवाल दीदिन प्रेम, संजोग, बिजोग, वियोग सब्बी श्रृंगारों पर रच्यां
नेगी जीका गीतों कि समिक्षा अपणा नारी तत्व से हमू तक पौंछायी दीदी आपै कलम तैं
नमन।
पत्रिका मा बारवूँ आलेख डॉ योगेश धस्माना जिको छन जैमा डॉ धस्माना जीन
श्री नेगी जिका जीवन जात्रा को परिचै दियूँ, कि जीवना कन-कना उडंगर टेड़ा-मेड़ा
बाटू हिटी बाळौ नरु आज एक्सप्रेसवे का रुप मा हम सब्यूँ का प्रेरणा पुरुष नेगी दा बण्यान। सच्ची मा हमारा नरु दा खैरी का अंध्यारा मा ख्वजयां बाटा हिटी
सुख का उज्याला मा अपणी लोक जात्रा नि बिर्सियां। डॉ धस्माना अपणा आखिर पैरा मा बोलदन कि पाड़ै तरां अपणा सिद्धान्तों पर अडिग रै नेगी
जीन सरकारों तैं ऐना दिखौणों काम करि। ईं निर्भीकता अर जनपक्षै आवाज उठाणा वजै सि
सरकारी पुरुषकार वूं से दूर रैन। पर सच्ची बात कि हमारा लोकजन नायक यीं धरती मा
गढ़वाळा अस्तित्व तक अमर राला । पर बात या बि छन कि अगर सरकार अग्नै इनि उपेक्षा
करली त गढ़वळयूँ तैं नेगी जिका किये का सिला मांगणा वास्ता जनचेतना ल्हेकि सड़क्यूँ
मा ना उतरौ, सरकार का कन्दूड़ तक अडिग की बात पौंछण जरुरी छ।
संस्मरण का रुप मा पत्रिकौ तेरवां आलेख साहित्यकार कवि अर गढ़लोक का
मर्मज्ञ विद्वान श्री सतीश कालेश्वरी जिको छन जैमा श्री कालेश्वरी जीन प्रेम
श्रृंगार कु कंयारु गीत “क्या दिन क्या रात ए जी हो”, कि जीवन जात्रा ल्येखी, कि कनुक्वै या गीत नेगीजी अर अनुराधा निराला जीका कंठ मा बिरजी ‘बरखा’ कैसैट कु लोकप्रिय गीत बण्यूँ। भैजी अपणा लोक से भैर रै किन बि आपक
चेतना अपणा लोक का वास्ता धूमदी हमारु यु लोक आप जना सब्बी लिख्वारों को ऋणी रैलू।
यु छन साब सौंणा मैने धाद मासिकै औनार, ज्वा नरेन्द्र सिंह नेगी मा हमारा लोक कु परिचै करान्द।
मेरु व्यक्तिगत मानण छन कि “पैली त अपणी बाणि निथर लाटै बाणि” हमूतैं यनु शोधात्मक लेख संकलन नै
पीढ़ी तक पौंछाण पड़लू, यु जरुरी नि जर्वत छन गढ़वाळा खातर। अब आप बोलला कि पौंछणा त छन। अर मि
बोनू नि पौंछणा। जी साब इलै नि पौंछणा कि नै पीढ़ी गढ़वळी त छवाड़ा हिन्दी बि नि
पढ़णी। हिंग्लिस रीलों का चक्कर मा सर्री संतति हौर कख भाजणी। चम्म-चम्माक फेमस
होणू कुछ बि करेगा कु नजरिया समाज मा हावी छन। त मेरी गुजारिश आप सब्बी से छन कि
यूं सब्बी आलेख प्रिंट अर
इलैक्ट्रिोनिक मिडीया माध्यमों से हिन्दी मा करे जावो ताकि नरेन्द्र सिंह नेगी जी
तैं आम नै पीढ़ी पढ़ अर बींगी साको। यु पीढ़ी तनमण्यां जीवन नि ज्यौणि साब ज्वा वूँ
तैं नेगी जीका गीत चस्स झस्स करो।
नेगी जिका कुछैक गीतों पर कुछ साल पैली मेरी बि इन्नी चस्साक, झस्साक छै ज्वा मेरी सुबदरी रेस मा
कखि बिरड़ी सि ग्यां। फेर कोसिस राली कि अपणा लोक की यीं लोक बाज तैं उकेरणुं बाटू
माँ नन्दा द्येली। भगवान सि प्रार्थना छन कि भगवान श्री नेगी तैं चिरायु रख्याँ अर
हम वूंकि शताब्दी जयंती मनाउन। बस चिन्ता यीं बातै छन कि औण वळा समै मा मातृभाषै
यु जात्रा मात्र धरोहर ना बणि रावो।
जै हिन्द जै गढ़वाळ
बलबीर राणा ‘अडिग’