भैजी अब किलै नि दिख्येणी
घिन्दुड़ी मेरा छाजा
ना जाण कै मुल्क चलिग्ये
छौड़ी कि वा आज।
भली मनखी लगु छै भैजी
रैन्दी छै आस पास
करदी छै उच्छयदी वा कब्बी
खौळा धैर्यों नाज।
नखरु नि लग्दु छै भैजी
तैकु वा उच्छयाद
भैजी अब किलै नि ........
फुर्र फुर्र नचदी छै भैजी
बैठी की तिबारी
रैन्दी छै फ़फ़राट कनि
छाजा चौक सगवाड़ी
अब नि सुण्येन्दी वीं की
चुँ चूँ वळि बाज
भैजी अब किलै.................
थौ खै बैठ जर्रा सी भुला
बतान्दू यीं कु राज
किलै नि दिख्येणी घिन्दुड़ी
बिगान्दू त्वे तैं आज।
भुला जब नि रैन्दू कखि
ज्येणु कु ढंग ढाळ
तब नि लगदु भुला
कै फर पराज।
इलै नि दिखेणी भुला
घिन्दुड़ी तेरा छाज।
दुश्मन बणिन मनखी
वीं कु घ्वोळ उजाड़ी
कूड़ों मा लेंटर पड़ी की
तैन रौणे जाग नि पायी।
अपणा प्वथल्यूँ का बाना
तैन छोड़ी साज बाज
इलै नि दिखैणी भुला
घिन्दुड़ी हमारा छाजा।
नि रायी खादर धूर्पळू
पठाली दार बांस
कीड़ा रसेंन खाद ल निरपट
खाणु पडिं तरास।
भुखन मोरिन कुछ
कुछ चल्गये दूर दराज
इलै नि दिखैन्दी भुला
घिन्दुड़ी हमारा छाजा।
भैजी अब किलै नि ........
भुला इलै नि .......
*शब्दार्थ*
छाज- छज्जा
लगु - लगो, लगाव
नाज - अनाज
पराज - खुद / याद
खादर - आळो /आला (मकान की दिवालो पर वस्तुओं और पक्षियों के लिए बनाए गए स्थान)
दार बांस - मकान में लगने वाली लकड़ी की बल्लियां (बल्लियों बाहरी छोरों में बची जगह पर भी गौरया अपना घौंसला बनाती थी।)
@ बलबीर राणा *अड़िग*
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