बात वीं समयै च जबारि जमानु बड़ा अर संजैत मवासी होन्दी छै। मवासी गार्जिन बड़ा-बूड़ हूँदा छै। गार्जिना ब्वल्यां फर परिवारा सब्बी छवटा बड़ा काम कर्दा छै पूरो ढब-ढुब (मैनेजमेंट) गार्जिना हाथ रैंदो छै। बल सात पाँचे लकड़ी एक कु बोझ। हर घौर अपणा यूँ दाना सयाणों गैडेन्स फर परिवारे गाड़ी चलोन्दा छै। आज कतिगा घौर मा या जिमदरि परिवारा दाना सयांणा निभाणा छन पता नि। बल अनुभौ से ठुल क्वी गुरु नि होन्द साब। अर अनुभौ आन्दू बाटा हिटी। अनुभौ जीवना टयाड़ा-म्याड़ा बाटों फर ठोकर खै अर सिद्दा सैणा मा ठौ ल्ये होन्द। अजक्यला गुशलखाना फ्वारों मा सुगन्धित साबुण तेलो अस्नान सि जादा पक्को बड़ू अनुभौ छीड़ा छंछड़ों का छपोड़यां आदिमों दिखेन्द।
तबारि ही ब्वोलुला,
किलैकि आज या बात गरुड़ा घिन्दुड़ा ह्वेगी। तबारि भैऽरो काम-धामे जिमेदरि बैखें
रैन्दी त भितरे सैर-समाळ घौरे मालकिण संयाणि लोड़यां (जनानी) कर्दी छै, या मा ददी बौड़ी या जेठी बांठी ब्वारी यी होन्दी छै। यानि घरबार्या, गृहलक्ष्मी।
त साब कानी या छ कि एक बुढ़्याऽक चार लड़ीक छै बल। सब्बी ज्वान जमान। सब्बी
बिवै-बर्याली छै। परिवार मा मनख्योंक घिमसाण छै। पूरी भवनचारी। उबरा डंडयाळी नाती
नतैंणु धिधर्राट भिभड़ाट। खौळा चौक, डोखरा पुंगड़ी
ब्येटी-ब्वार्यों चपळाट। गुठ्यार गाज्यूं रमड़ाट। बोण चानफुर्या बल्दोंऽक डुकुरताळ
त दौंळा फर मुर्रा भैंसी फुंफ्याट-अड़काट। बिरळी सि लेकर घ्वड़ा तक गाजी, स्योण (सुई) सि सांबळ तक औजार, डोखरा पुंगणे लागत सतनज।
रैस मवसि। अन्नाऽक भौर्यां कुठार अर धन्ना भौर्यां गुठ्यार याने गाजी (पशु) धन।
सम्पूर्ण गिरस्थ, जिम्दार मवसि,
दिन रात पन्याळुन पाणि लग्यूं रैन्दू छै।
परिवार मा भैरऽक सब्बी ढब-ढुब बुढ्या अफूं खुद द्यखदू छै अर भितर बुढळी। एक
दिन द्वी झण बूढ़-बुढळिन मिस्कोट करि कि अब घौरे या जिम्दरि कै नोना ब्वारी तैं
दियीं जो किलै कि स्याळ न्याळ भ्वोळ यूने या कूड़ी समाळण, समै फर हम यूं तै दिखाला सिखाला नि त भ्वोळ यूँ कि मवसि ढक्ढ्याना ढुंगा मा
बैठि जाली। हमारु घाम स्येळु पड़िग्ये, बुड़योण मा देर नि। जब
ब्वै-बाबन अपणी बात नोना-ब्वार्यों मा रखिन त वा सब्बी घंघतौळ मा पौड़िग्यां। कि
अब्बी त ब्वै-बुबा ठिक-ठाक राजन-बाजन छाँ किलै अज्यूं बटिन यनु ब्वना। सब्योन मना
करि कि हम भैरऽक काम देखळा भितरै समाळ तुमी कैरा। बूढ़-बुढ्यान तौं तें समझै-बुझैन।
बुबा भ्वोळ ब्याणि तुमुल ही या जिम्दरि निभाण। हमारा ज्यूना-जागन मा देखी सीखी
ल्या। भैराऽक डुट्याळगिरी त क्वै बी कैर देन्दू फर भितरै समाळ मजबूत चैंद, भितरै समाळ मवसिक
चव्वा हूँन्द। तुम सुरु त कैरा दों। जु बि कमि पेसि ह्वली सुधारो बाटु बतौला। त
साब, भैरे सब्बी धाणें जिमेदरि ज्यठा नोने ब्वारिन हाँ ब्वोली, फर भितर घरबार मा बैठणु क्वी ब्वारी राजि नि ह्वेन। सब्यूं तैं भैरो बोल (काम)
ठिक लगदू। भैर वळु कुछ ना कारो पर वेकु काम अर मान जादा चितेन्द जबकि द्याळ मु वळु
दिन भर फुल्यारि कुखड़ी जनि रिंगणी रैन्द पर वीं कि कामें क्वै हिणती-गिणती नि
चितेन्द, जब कै दिन क्वी द्याळ मु रावो त तब पता चल्दू कि कमर कत्गा सिद्दी रैन्द।
आखिर सब्यूंन सौ-सळा करि या जिमेदरि सबसि कण्सी ब्वारी तैं सौंपिन। कण्सी
ब्वारी सब्बी मेद्यूँ मा हुस्यार अकलवान लकारवान छयी। जेठा-बांठों सि अग्ने हुणतळि
होण वींन ठिक नि माणि,
पर सब्योंक मनोणा बाद वा त्यार ह्वेगी। अब घरबारे मालकिण छव्टी ब्वारी। सिं
ब्वारिन ब्वोली कि तुमुन मितैं अगल्यारा बणे मेरु मान बड़ेन मि ना नि ब्वनी, छवटि होण सि बड़ोंऽक ब्वल्यूं मान रखण मेरु धरम च। पर ! एक बात च। तुम सब्बयूँ
तैं उनि कन पड़लु जनु मि ब्वलुलो। सब्यून हाँ ब्वोली हुँग्रा दिनी। घौऽरा सब्बी
काम-काजे सौ सल्ला,
मिस्कोटा बाद आखिर मा वींन ब्वोली कि भ्वोळ बटिन क्वे बि मनखी कखि बटिन बि
आवुन त देळी मा रित्ता हाथ नि औण चयेन्द। चै वा चीज क्वी कठ्यार-मठ्यार (कूड़ा-करगट)
यी किलै ना ह्वावो। अखार्द चीजे बि भिज्यां कीमत होन्दी। अब वा मवसि नै ब्वारी
हरकण-परखण पर पैल्यां जन गिरस्थिक होण-खाणा बाटा दौड़ण लगिन।
एक दिन बुढ्या (सौरा जी) कखि बटिन ओणा छै। वूं तें क्वे बि चीज बाटापन अखार्द
नि मिलिन त बुढ्या निरसे ग्ये कि आज द्याळ मु ब्वारी समणि क्या जबाब द्यूलु। इनि
सोचद सोचदा बुढ्या डरौ-मर बाटा छै हिटणूं। तब्बी बुढ्या तैं बाटा मा एक म्वर्यूं
गुरौ (सर्प) दिखिन,
बुढ्यान सोचि-तौळि कि या म्वर्यूं सर्प क्या काम ऐ सकद पर खालि हाथ जै कि
ब्वारी चमकै (डांट) खाण सि बड़या यीं सर्प उठये जौं। अर बुड्यान म्वर्यूं सांप लाठा
पर चम्म उठेन अर द्येलि मा पौंछिग्ये।
जनि चौक मा पौंछि बुड्यान भैर बटि धै लगै ऐ ब्वारी पाणि ल्यो बा, ब्वारीऽऽ..... आज कुछ नि मिली ले, या च एक जैरिलु म्वर्यूं
गुरौ। ब्वारिन उबरा बटि बाज दिनी जी ल्योणु पाणि, तुमु थौ बिसावा। अर जु
तुमारु लियुं तै तें मथि धुर्पळा मा फर्रे (फेंक) द्यावा।
वे का बाद ना ब्वारिन अर ना ससुर जिन यीं म्वर्यां गुरौ बारा मा छुंवी बत
करिन। तीन चार दिन बाद जब बुढ्या तैं फाम (याद) ऐन कि यार मथि धुर्पळा मा मेरु
म्वर्यूं सर्प फरायूं छै द्यखुला तैका क्या हाल छ । इनि ना ह्वो कि कीड़ू सड़ी गळि
जों अर तैका जैरिला कांडा भुयां खौळ मा ऐ छवटा बड़ा तैं बुड़ी जौं। गुरौ कांडा बि
विषैला होन्दन बल।
त साब जनि बुढ्या मथि
धुर्पळा मा गई तैका आखाँ खुल्यां का खुल्यां रै गिन।
धुर्पळा मा वीं गुरों जगा
स्वोनों हार पड्यूं छै।
स्वोनों हार सि म्वर्यां
गुरौ जाग कने ऐन या बि एक होरि कथा छ।
धर्ती पर हर पराणी हर जीव कु अपणु-अपणु हलण-चलण दुन्यांदरी पर्थ परमत होन्दी।
मनखी त मनखी ह्वेन पर होरी जी-जबानो बि अपणु जीवनचर्या कु वैभौ होन्द। पोन-पंछी
कीड़ा-मक्वड़ा सब्यूं अपणी गिरस्थी अपणी औनार-बिनार होन्दी। संगसार भौसागर बल। इनि
पंछ्यों मा एक दुर्लभ पंछी छिन गरुड़। गरुड़ तैं हमारा धरम शास्त्रों मा भगवान माने
जान्द। कश्यप ऋषी कु बेटा। भगवान विष्णु कु बाहन। तेज बुद्धी नजर अर बड़ू शरेल।
सतजुग सि द्वापर त्रेता तक गरुड़ भगवाने कथा सि ग्रंथ भौर्यां छिन। पर आज यीं कलजुग
मा यु दुर्लब पराणी मनख्यूँ का अन्ध आधुनिकरण सि नठेणा धोरा पर छिन। गरुड़ा बारा मा
एक रोचक बात इनि छै कि गरुड़ अंडा द्येण सि पैलि अपणा घ्वलणा मा कुछ ना कुछ स्वोनु
ल्यान्दू बल। बिगैर स्वोनु वा अंडा नि
देन्दू अगर द्येलु बि त वा अंडा सड़ि जान्दा बल। हैकि बात कि गरुड़ इना उना अंडा नि
देन्दू वा सबसे खतरनाक कैलास पर्वते चट्टान पर घ्वल्यणु लगान्द। जख कि घाम हवा का
अलो क्वे बि पराणी पौंछि ना साकू।
वूं दिनो मा याने जबारि तै बुढ्यान म्वर्यूं सर्प धुर्पळा मा फेंक्यूं छै
तबारि कखि कै गौं का कै गदना मा क्वे जनानि नयेंणि छै बल। अर तैका अपणा लारा-लत्ता, गेणा-मेणा किनारा ढुंगा मा धर्यां छै। गरुड़ स्वेली होण सि पैलि स्वोने टो मा
छै। गरुड़े नजर मथि अगास बटि भुयां धर्ती मा किर्मुली बि बिरै द्यावन। जनि गरुड़े नजर जनानी स्वोने हार पे पड़िन तेन
चम्म हार उठैन अर स्वां अगास मा। जनानिन तैका बाद क्या मुंड कपाळा करि ह्वलु पता
नि।
बल पुटगे आग निर्भगी होन्दी साब। जातक नमाण सब ढा-डाम सै जावो पर पुटगे ढा नि
सै सकदू। ब्वले बि जान्द कि यीं धर्ती मा सब्बी खाणु कु त अयां छन जीबन नमाने
सर्री लडै यीं पुटगा खतिर छन। त साब जनि गरुड़ स्वोनु हार मुख मा ल्ये अपणा रस्ता
मा उड़णु छायी तनि तै कि नजर बुढ्याऽक धुर्पळा मा पड़यां तै म्वर्यां सर्प पे पड़िन।
गरुड़ कु बैरी सर्प। सौतळया भै। तैकु प्यारु भोजन। अब गरुड़ बिसरीग्यों कि वेका गिचा
पर हार बि च। भोजना अग्ने बड़ा-बड़ा सूट-बूट, बुद्धी-सुधि, दर्जा धार्यों तैं बि रपटणा झपटणा देखी सकदन। त तै जातकन वा गुरौ कख छवड़ण छै।
तैन झप्प मोर्यां गुरौ फर झपाक मारिन अर फुर्र। हार धुर्पळा मा अर सर्प गरुड़ा गिचा
पर कैलासे तर्फां।
अब बुढ्या कण्सी ब्वारी अकल-औनार पर गौरब छै कनु। सदानी दाना सयाणों तैं अपणी
अकल बड़ी नि चिताण चैन्द। नै छंवाळी, नै पीढ़ी कु भले अनुभौ अयाणी
रैन्दी पर कब्बी-कब्बी अकल सयाणी ह्वे जान्द। जिन्दग्या रुमुक दां आज बुढ्यान
अखार्द चीजे किमत बींगी छै ।
अखार्द - बेकार
कथा : बलबीर राणा ‘अडिग’
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