आज सफरौ तिसरु दिन छै। टरेन मा बैठ-बैठि पवन उक्ताण लगिन। पूठा बिणाण लग्यांँ छै। छुट्टी आन्दा दां जति मन मा चपळाट ज्यू मा घबळयाट रैन्दू वापस जान्द बगत द्वीगुण स्यूंताळ उदास। तीन दिनों समै कब्बी खिड़की बटिन भैर त कब्बी भितर रेला ढब्बाऽक छत नजर टांगी टांगी कटिग्ये छै। निन्दन बि कति औण। उन बि इकुलकार मनखी स्येन्दू कम चा। उन त अजक्याल समै समाण उणि मुबेल काफी च, पर जब घंघतोळ, चिन्ता-मंथा ह्वो त मन मुबेल पर कख लगोण छै। बिचारु जीवन का सुपन्यूँ मा अंदाबिमोळी छै घुमणु, ज्वार भाटा मा मन अर ज्यू उछहणु छै। मुबेल मनोरंजन से वेतैं खीज औणि छै। मत्याळु मूड़ कु बैरी घंघतोळ। इलै वा स्येणु कम अर बिज्यूं जादा छै। बिज्यूं रोणों हैकु कारण अपणा समाने समाळ बि छै। वेतैं अपणा सीनियरों कि बात टक याद छै बल, कि भुलाराम ट्रेन मा बल्द ब्येची ना सिंयां रे । विशेष करि यूपी बिहार बंगाल मा। स्येगि त समान ह्वाई तब !
बिज्यां
बिज्यां मा तैका सुमिरणे टरेन बि खूब भाजणी छै। सुमिरण मा हर बगत गिरस्थिक नै नै
औंनार नै ढब औंण्यां जाण्यां। पर टिकणु क्वै बि ना। मने रप्तार सुपरसोनिक से बि
जादा। मन का बुबा कु क्या जाणु करण धरण त कुछ नि पर खालि उड़णू रैन्द। कब्बी कखि अर
कब्बी कखि। अग्ने भगदी ट्रेने रफ्तार दगड़ पिछने सर्कदी बथौं सर्साट से बि तेज
दनकोणी छै भविस्या स्वेणा।
भैर
दुन्यें कत्गा औनार। ना ना परकार का चित्र-चरेतर। नजर भले भैर भितर कुछ बि द्येखणी
ह्वावो पर सुमिरण अफूं मा हौरि कुछ द्येखणु अर पकाणु। घ्ंाघ्तौळ इत्गा कि जाळ मा
फंस्यूँ माछु सि फफड़ाणु छै। निकळणु क्वे बाटू नि। अब त सिकार होणे च। यीं गिरस्थि
मा कैकु सुर्वा कैकु स्वाद। अरे मि क्या यख सब्बों कु सुर्वा बण्यूँ छ। अब समझ मा
आणु गिरस्थिक जंजाळ। जिदग्यो माया जाळ। लोभ दिखायुं, मौत
लुकायीं। या लोभ ना ह्वो त आदिम कुछ ना कारो। जोगी फकीर ह्वेकिन बि क्वी फैदा नि।
वा जादा छाँ लठमलठै मा। पुटुगे आग कख चैन फर रोण देन्दी। यु छुट्टी त कनि कटिन
मेरी आत्मा जणदी पर हैका दां छुट्टी तक कुछ ना कुछ फैसल ल्येण पड़लु निथर पिंकीं ?
हिर्ररऽऽ, झस्स् !
हाँ ! इन
मेरु दुश्मन बि ना कैरो।
भगदी टरेन
मा भैर द्येखणी चीजों तैं अपणी गिरस्थी संगसार दगड़ रळयो मळयो कर्दू। स्वाणा
गुटमुटकार मकानों तैं अपणु भबिस्योक मकान देखदू त कोठियूंऽक देखी हव्वा मेल त्यार
कर्दू। कब्बी हैसियत देखी असांगु चितान्दू त कब्बी कै चमत्कार की कल्पना कर्दू।
यदि होता किनर नरेश में। झ्वपड़ी तैं
अद्येखी कनु छै। छी, यां से बड़या त मेरु पठाल छा मकान छ। सैरों मा
नजरा आखिर कूणा तलक सैंणे-सैंण। सैणी जागा, पुगड़ी। हे
बापा ! यूँ त छाँ असली जिमदार, किसाण। जु
इत्गा बड़ी जनता तैं पळणा छाँ। हमारा पाड़ मा क्या जमीन च। अंगुळ जोत। सालभर कैदी
कमर अर चार मैनों गाळु बि ना।
भैर नाना
परकार का चित्र विचित्र। जै औनार का तराजु फर अफूं तैं त्वोल्दू तै फर वा हळकु पड़
जान्दू। गंगा, यमुना, गौमती, घाघरा, गंडक, मानन्दा अर कतिगा छव्टी बड़ी नद्यां पार कैर्याली छै यीं तीन
दिन मा। अब जात्रा कु आखिर पड़ौ। भारते सबसे बड़ी नदि ब्रह्मपुत्र बचीं छै। जेन आज
रात पार ह्वे जाण। ऋषीकेष बटिन आज ठेठ कोकराझार तलक उत्तर परदेश, बिहार, बंगाल अर
असाम पांच राज्यों तलक कु बाटू पुर्याली। भ्वोल फेर चढ़ि जैलु अरुणाचले पाड़यों फर।
अरेऽऽ वा
अरुणाचल अपणा गढ़वाळ का जनु पाड़ी मुल्क त छ। गाड़ धार उकाळ उन्दार एकनस्या। उनि
सडक्यों बेन्ड। कुड़ी काखड़ी जर्रा हैका किसम की। मनखी माणिके औनार बिनार ग्वोरा
चिट्टा। छवटा गुटमुटकार, घळमळकार। चिपाड़यां नाका क। यख बटिन सब्बी
पूर्ब्या एशिया वळा मंगोल्या बिरादारी का होन्दन बल। भैंस त मिन तख देखी नि पर
गौरु बल्दा छवटा नसल का। बखरा तख भुतड्या टेपा, खालि
पेटवाळ, द्वी चूंड सिकार नि। हमारा यख कन गद्दी लख्वटा
होन्दन बड़ा तगड़ा। ऊँचा डाना तलक अन्न पाणि पौंछणा भारी बोज्या। हां एक बात त छ तै
मुल्क मा, पुजनीय चौंर गै खूब छ। पर तख क मनखि जात तैकु
दूध घ्यू बि खान्दन अर म्वना बाद तैकि सिकार बि, या बात
मेरा समझ मा नि ऐन। अपणा चश्मा बदिन अपणु धरम रीति रिवाज सब्यूं कु श्रेष्ठ। कै
खुणि क्या बोलि सकदन।
उन त वा
मुलुक अपणा पाड़ जनु छ,ै पर पता नि किलै तै धर्ती पर मन नि लगदू। बस
जशवंतगढ़ का अलौ। तै दस हजार फिटे ऊँचै मा लगद इखमु क्वे अपणु छ। छैं बि छ। हमारु
पुरुखु। गढ़वळी वीर पुरुष। द्यो अबतार। आज बि तौंकि आत्मा तै धर्ती क रक्षा कनी छ।
एकीस साल मा देश तैं बचे अफूँ द्यबता बणिग्ये। तीन सौ चीनियूँ काल। फौजन बि तै
वीराऽ सब्बी न्यूज निसाण समाळी धर्यां तख जशवंत मन्दिर म्यूजिम मा। वा बन्दूक, ड्रेस, सीटी, खुखरी, बेज रैंक
यत्यादी। वा डाळो ठंगरु बि उनि च जै मा वून अपणी आखिर सांस देसा वास्ता दीनि।
द्ययबता बणिन नै पीड़ी वास्ता। वा क्या फौजी क्या गढ़वळि जवान छ ? जैका गात जशवंतगढ़ शौर्य थाति फर झझर्राट ना ह्वावो।
तै
अरुणाचल मा डाळी बोट जरा कमति छन। जादा खड़खड़ा डाना। मन नि लगणु कारण या बि ह्वे
सकद कि फौजी इक्वाण बौर्डरों फर भैरा मनख्यूँ से कटयूँ रैन्दू इलै चितान्दू वा
नखरु। मिन यीं द्वी साले नोकरी मा बिंग्याली फौज्यूँ तैं। वा भैर बटिन जत्गा
कठक्वोर जनु कड़कड़ोे लग्दू भितर बटिन उत्गा क्वांसू हिंलास, मयळु घुघ्तु। निरकसि खुदेड़। चै क्वी पुराणु ह्वो या नै नै।
सिनीयर ब्वना छाँ कि बल वे कश्मीर मा त खूब ज्यू लगदू। भले वख लडै़ भिडै़ जादा छ
पर हमारा गढ़वाळ से भी जादा रौंत्यळु छ बल। वा होलदार साब तखै खूब पुल्बैं लगान्दू
रैन्दू।
रुकदी
भगदी रेल का दगड़ पवने सुमिरणें माळा गंठयाण कब्बी छूटदी कब्बी रुकदी त कब्बी
सर्रासर गंठी कि बथों पुळ बणें देन्द। यकुलू समै काटण तैं इनि माळा गंठयाणु बि भलु
साधन छ बल। निथर आदिम उकत्याटन मोरि जों।
बिच बिच
मा कब्बी चाय वळा त कब्बी फैरी वळा इकुलांस तैं बिराड़ी जान्दा छाँ पर वा घूमि फिरी
अपणा ख्वाबो मा ऐ जाणु।
तै
अरुणाचल त भारी नखरु ठंडु, चस्सऽू छ। यख बटिन गात झझर्राट कनु। निर्भगी
लामा कने रैन्दा ह्वला बारामासी तख। पर याऽ ! अपणी जलम भूमि सब्यों तैं प्यारी लगद
बल। एक बात त छं छ भाई हमारा उत्तराखण्ड मा। हमारा पिस्तरी पुराणोंऽन भिज्यां मेनत
करिं ह्वेली। जु पाड़ काटी सीड़ीनुमा डोखरी पुंगड़ी बणेन। तै आसाम अरुणाचल का लोग
पिस्तरी अकाजु लगणा मितैं। तख हमारा इना सीड़ीदार पुंगड़ा नि छ। सुद्दी उनि पाखों फर
बीज बुति रैंन्दू। अरे हाँ हमारु होलदार साब बुनु त छै कि ये पूरबे तर्फा संगती
इनि छ। मेघालै मणिपुर। अर कुछैक मध्य परदेस अर दक्षिण भारत मा बि इनि सुद्दी पाखों
मा खेति कर्दा बल। हौर अडिग साब ब्वनु छै कि कांगो अफ्रीका मा बि इनि छ बल।
हों यार !
तब त हमारा उत्तर भारता पुराणा खूब मेनती किसाण रै ह्वला। गढ़वाळ कुमौं हिमाचल अर
कश्मीर तक एक नस्या खेती पुंगड़ी छन। यार कस्ट कारिज जन बि ह्वावो पर फौज म फिर्री
फंड मा देश विदेस सर्री पृथी त घूमणू मिली जान्द। निथर आम नोकर सा बसे बि कख च
इत्गा घूमण। आदिमें सर्री जिन्दगी पैंसों कुट्यरि पर अंग्वाळ बोटीं रैन्दी।
कथा-बाता जग-जात्रा क्वे क्वे हिकमती अदिम कैर सकदू। निथर सब्बी मेरा बाबा जन छ।
बामणी गौं बुढ्यान बद्री नि द्येखि।
रेलवे
स्टेसन पर क्वी दौड़णा छायी क्वी आराम से टेलणा। क्वी यकुला। क्वी द्ववकुळा। कुछ नै
नै जोड़ा। कुछ छवटा बाळों हथ पकड़ी जाणा। कै
कि क्या मंजिल कुछ पता नि। पर खुटटा कै का नि टेक्यां, बस हिटणा लग्यां दिन रात। संगसार भौ सागर। मथि बटिन सान्त
अर भित्र एक गद्दाग्वोळी, हलचल। इत्गा हमारा यख बोण मा डाळा नि छन जत्गा
सैरों मा मनख्यूं भिभड़ाट। हे बाबा कूड़ौं जंगळ। कै गळी भितर घुसग्यां त सर्री पृथी
जुगपट। ऐ रांऽऽ हमारा पाड़ मा कन दिखेन्दू दूर तलक रौंत्येळी पृथी।
जति चित्र
वा भैर देखणु ततिगों तैं अपणी जिन्दगी मा ज्वड़णु। ज्वान जमान जनान्यूं मा अपणी
पिंकी देखणु। भला सैर समाळ वळा नोन्याळों तैं भविष्ये औलाद। बूढ़ बुढ़यों तैं अपणी
ब्वै बुबा फर ल्यी जाणु।
मनख्योंक
घिमसाण मा पवन यकुलु निरा यकुलु। अगल बगला लोगों दगड़ हूँ हाँ मा औपचारिक छुवीं बत।
चित चंचळ मन उडंगर। एक घ्ंघतौळ। जबारी ज्यू ब्वनु पिंकी दगड़ फोन मा बच्यान्दू।
बार-बार फोन से पिंकी बि उक्त्येगी छै स्या बि अब फोन काटण लगिन। मन मा स्वचणु
ब्याळी त कन रुणाट लगाणी छै। आज ऐग्ये त्रिया चरेतर फर। ब्वै ठिक ब्वनी छै त्येरी
ब्वारी ?
ना ना मि
गलत स्वचणु।
अरे सीं बिचारी तैं बि कख टेम। दिन का एक
पैर बोण ढपकणु, हैका पैर पुंगड़ूं मा खटकणु। या त छ पाड़ै नारी
पाड़ जन जिन्दगी। सुबेर बटिन राति तक फुल्येर कुखड़ी जन रिंगणी रैन्दी गिरस्थिक हौर
पोर। ब्वै बि सुद्दी रैन्दी तैका पिछवाड़ी पड़ीं। अरे यार मि बि कति बेवकूफ आदिम छ
हर बगत फोन कर्ला त कैतें रोस नि आलू।
रात
ह्वेगी। पेन्ट्रीकारऽक वेटरोन सब्यूं तैं खाणु खवाली छै। भैर जुगपट अन्ध्यारु।
डाळी बोट भगदी ट्रेन बटि इन लगणा जन उनिन्द मा झोक मना ह्वला, झप्प। ढगमग ढगमग।
ट्रेनाऽक
भितरो घपघ्याट बन्द ह्वेगी। सैयात्रीयोन लेट औफ कर्याली छै अर निन्द्रा देवी कु
खखरार्ट सुरु। पवनल अटैची खुटटा तर्फां अर बैग सिराणा धरीं आँखा बन्द करिन। स्येणे
कोसिस। पर निन्द राणी धौरा नि पड़णी। तैका समणी छुटटी पौछण से लेकर खतम होण तलक कु
वा घटनाक्रम नाचण बैठग्ये। तीन ब्येली तीन रात हर बगत एक मैना छुट्टी कु सीन।
सब्बी गिचु बजे सवाल पर सवाल कर्दा। जबाब क्या ब्वलूंँ। कुछ मुख बिचकै जन्दा त कुछ
दांत कताड़ी खिजान्दा। आज तेईस साले यीं लौंचि उमर तलक कै बातन इत्गा सुमिरण चिन्तन
मंथन कनू मजबूर नि करिन। यख तक रंगरुटी कि आफद आतुरी खैरिन बि ना।
ठिक एक
मैना पैली छुट्टी पौंछणा हैका दिन फजल अन्वेणी (नास्ता) बगत ब्वै सोबती कु बबड़ाट
लग्यूं छै। वा अपणी बिदागत छै लगाणी मीमा, अर मि
बिगैर हाँ ना कु डिसीप्लीन से चुपचाप छै सुणु, जन कि मि
फौज मा अपणा सीनियरों कु लेक्चर सुणदू। थकुला उन्द ब्वैन जु चार कणकै रवटि धरीं छै
वूं तैं मि गिच भित्रै भितर बिगैर खाब ख्वोलि मळकाणु छै।
ब्वै, क्या ब्वन ब्यटा। कैमा लगाण या बिदागत। ब्वना त ब्वारिन
नराज होण नि ब्वना त घरकूड़िन नि होण। क्या जि करुं एक तातु दूध छ ह्वयूं बाबाऽऽ।
तातु दूध। ना घुटेन्दू न थुकेन्दू। वा छ घाम दोफरा ऐग्ये अबार छिन उठणा। चला उठण
बैठण जबारी बि ह्वलु पर इत्गा लकार बि नि छ कि सर्रपट अपणा काम परे लगि जौला। पर
तौं कि तर्फां बटिन जुगपट हुयूँ। खाण पीण सोब वा मुबेल च। काम कु काल बणग्ये वा
मुबेल। पता नि क्या च तैफर लग्यूं। दिन रात चिपक्यां छिन। तुयी ब्वोल। यीं
गिरस्थिन कने होण। द्वी बल्दऽग डांगा बंध्या पाळी फर। भुख्खा तिसाळा। एक गौड़ी तैकु
बि भुखन अड़काट लगयूं । ऐरां बिचारी कु सत द्याख जन बि ह्वो द्वी पोळी दूध द्येणे
लगीं शाम सुबेर चा रंग्योंणा खातिर। अब वा बि पटपटकार सुखिग्ये बिगैर
हर्रां-तर्यां घासऽक। वा छिन पुंगड़ों मा झाड़ जम्यूं । बांजा पड़यां। जब मि फर सक्या
छै त द्वी पत्या होण तक द्वीग्वोड़ लगे देन्दू छै। गौं ख्वाळा वळा र्खिसेन्दा छाँ, कि स्या मल मुलक्याऽक पुंगडों मा क्या भबकारु मच्यूँ नाज क।
मि मल्या मुल्की जरुर छै पर जिमदरी अर लकार मा मिन यूँ गंगड्यों तैं लात मारिन।
सुदी नौं का गंगड्या। तु मेरु एकीऽ बीजे काखड़ी छ बाबा। स्वोचि छै कि भलि लकारवान
कारगसि ब्वारी ल्योला, पर त्वेन अपणा मने करिन। चम्म उठै ल्यायी
बिगैर गरै नक्षतर जुड़यां। बिगैर सूत ब्येंत देखी। अकाजु मुल्के। वा छ कूड़ी पुंगड़ी
घाम तापणि। तों रांड मास्तोन जर्रा सी बि नोनी हाथ गिरस्थी फर नि लगेन। अरे तति छै
तुमारी बेटी सक्स्याट्या त, साबेण किलै नि बणेंन ? किले डाळी यु जंजाल मेरा नोना मुंड मा ? मितैं भारी उबाळ औणु तैं ब्वारी का ढंग ढाळ देखि। ना जाण कन
ह्वली तुमारी होणि खाणि।
हमुन त
अपणा बारा गारा पिस्याली बाबा जन बि पिसिण छायी अब तुमारी। अब हमारु ब्याखुन्दा दा
घाम धार मा चलग्ये। बस बुडेणु मा अबैर च। ज्वान जमाना मा यु द्ये जतिगा थिड़िन
उत्गा खूब खैन बि अर लगैन बि। आज शरेल ड्वोर बणग्ये, फांगा
सुखगिन, त यांकु मतलब नि छ कि हमुन कुछ नि करि ह्वलु।
अब निरसक्या कु बबड़ाट ही रयुं। यीं बबड़ाट पर छन आँखा दिखाणा। मि त ब्वनु बजर पड़यां
ये गिच्चा पर। स्वचदू ना ब्वलूं पर आँखा समणी उजड़दू सयेणु नि छ। जबारी तलक आँखा
खुल्यां छाँ यनु असंगळया गैळ चरेतर नि देखि सकदू। मेरा आँखा बुजणा बाद तुम जनु बि
कारो कैर लियां। अरे बाबा अपणा होन्दा खान्दा कै तैं भल नि लगदन। तुमारा भले
वास्ता च यु गिचो बबड़ाट कनु। अब त्वे मा नि लगाण छुंवी त कैमा लगाण। मेरी आस सास
तुम ही त चा। बाबा हम बि सीं ज्वानी बाटा हिटद आज बुढापे उकाळ पौंछिन।
एक दिन
द्वफरे भडांग छा ढळक्यां बाद सब्यूं कि स्येळी पड़ीं जान्दी। स्वाणा ग्वोळ घळमळकार
गंगळवड़ा बणण तैं छीड़ों मा लमडेण पड़दू। कतिगा बटोयूं लत्ति ठोकर खाण पड़द। सुबगत तैं
गिच्चू बूजी अर कुबगत तैं दांत किटी सौंण पड़द। नाक-नाकि अपणु भैर भितर समाळ कैर
यीं दुन्यां दगड़ खयेन्दू। चौताऽ मैनो उमैलु मौळयार बारा मेना खरड़ खाण बाद आन्द।
भैंस कु लेण खाण खुणे पैली अफूं भैंस बणण पड़द। बाकी तु समझादार छ। मिन क्या ब्वन।
अर ब्वै, ब्वारी कि काटेण (चुगली) लगाण लगाण हिंकर
फिंकर करि सकस्याण लगिन छै।
पवन पूरा
साल भर बाद छुट्टी मा अयूं छै। लेंसडौन रंगरुटी पूरा कना बाद ठेठ अरुणाचल बोर्डर
पर पैली पोस्टिंग चलिग्ये छै। द्वीयेक साल तक त छुटटी औण जाण ठिक रैन। पर द्वी
हजार बीस करोना काल मा छुटटी कु टपटयाट ह्वेग्ये छै। अप्रेल मई मा छुटटी पलाण
बणयूं छै। पर लौकडौन का वजे से बोडरा सिपै बी अपणा जागा ग्वाड्यां छै। जनि लौकडोन
खुलिन उनि चीन निर्भगी कु मरिन। तैन गलवान मा पंगा क्या कैर कि सियाचिन गिलेसियर
से अरुणाचल तक पूरो चीन बोर्डर हाई अर्लट मा। या मा पैली कर्तव्य देश बचौंण, छुट्टी-छाटी बादे बात। होण कर्द सालभर ह्वेग्ये छै।
उनि बि
अरुणाचल तवांग बैलीऽक पन्द्र सतरा हजार फिटे ऊँचै फारबट पोस्ट टाईगर हिल, संगेस्टर, केटू बटिन
गुवाहाटी तलक पौंछण मा ही हप्ता दस दिन लगि जान्दा। बाज बाज पेस्ट बटिन एक दिन भरौ
पैदल बाटू रोड़ सेट तलक। अर तख बटिन कत्गा ट्रांजिट कैम्प पार कना बाद कखि गुहाटी
मा रेल अर जाज कु मुख दिखेन्दू। निरचट पाड़ी मुल्क। मथि फार्रबट बटिन छट छूटिन
उन्दार जंग, अर फेर जंग बटिन चड़ा-चड़ी उकाळ जशवंतगढ़ शीला
तक। कब्बी बीच मा रोड़ खराब ह्वेगी त रावा टंग्यां जखा तखि। जशवंत गढ़ शीला पास
ह्यूं बदिन ढकिन त हौर आफद। कै दिन तलक रावा ट्रांजिट कैम्प मा पड़या। कैकि
अमरजेन्सी ह्वो चौ ना ह्वो। मथि बटिन सरकारी औडर।
पवन नयुं
नयुं रंगरुट सिपै ठेरु। मथि बटिन सिधो निमाणु। कै कि चारे चंट चालाकी नि कर्दू।
बाना मारि सिनियरों तैं कौ-बौ नि लगान्दू। झूटा सौं खै परिवार वळों तैं बिमार नि
कर्दू। कि साब मिन त छुटटी जाणे च। भौत अमरजेन्सी छ।
गिरस्थी
मा क्वी आदिम इकुलो नि होन्द साब, इकुला
होन्दन वे का विचार अर करम। छवटी म्वटी झंझट सुख दुख जीवन मा चलणु रैन्द। क्वो च
वा बिल्कुल सुखी सन्ती। बस जर्वत होन्दी अपणेस की मिलणसार की। सुबेदार अडिग साब
ब्वनु छै कि पैली हमारु जमाना मा छिठ्ठी बोर्डर मा पौंछण से पैली घौरे समस्या
निबटी जान्दी छै बल। घौर वळा बि दिर्घम धीर रैन्दा कि नोनु बोर्डर पर छ चट ऐ नि
सकलो। इलै सब्ब मिली जुली वेकि समस्या देखदा छायी। पर अजक्याल कैका खुट्टा कांडु
क्या बैठिन, कैकु खुट्टु क्या म्वड़िन, चट चटाक फोन। कि भाई झट ओ लो, यख त
भिज्यां आतुरी ऐग्ये। आतुरिन त औणे छ। द्वार बाटा दिन बटिन ब्वारी परिवार से अलग
चलि जाणी उन्द। द्ववकुला का इकुला ह्वे जाणा। त तै सिपैन कने सान्ति रौण डियूटी
फर।
साल भर
बाद घौर पौंछी त छुट्टी कि रगां चंगी फुर्र उडिग्ये। स्वोचि छै कि कुछ दिन ब्वारी
तैं कखि घुमोला हनीमून टेप । ब्यौ का बाद भैर घुमणों कु मौका नि मिली। कुछ दिन
ब्वे तैं ल्यी जौला बजार पुन। जर्रा भल भला लारा लता ल्योला। वीं विचारिन सदानी
खंतड़ों मा कटेन। पर घौर मु ब्वारी अर ब्वै कु र्खितु देखी मि निरसीग्ये। एक तर्फां
ब्वै कु अपणा जमाना कि किड़किड़ी। जन मैन करि उन तुम बि कैरा। हैका तर्फां ब्वारी
नयुं जमाना कु झरफर। फफर्राट। काम कम अकल जादा। मुबेल सोस्यल मिडीया मा सर्री
दुन्यां कु नोलेज पर अपणा खुट्टोक मैल साफ कने हैस्यत नि।
छुट्टी
औणा दिन जनि अटैची डंडयळि मा धैर छै पिंकी कु रुणाट सुरु। कि तेरी ब्वैन मेरी नि
खाणी करिं। जिट घड़ी बिस्तर मा पूठु क्या टेकिन बुढ़ळी बबड़ाट सुरु ह्वे जान्द। जर्रा
थौ खाण वीं का आँखा बिणान्द। सुबेर हुर्रमुर बटिन राति दस बजि तक सीं कु जन्दरु छ
बण्यूँ। इत्गा बड़ि जमीन मथि बटिन गौं वळों कि छवोड़ी फर्रायीं इजार बिजार। गौं कि
अद्दा सार फर अंग्वाळ बोंटी। एक घड़ी कमर खड़ु नि। वा च ग्वोठ ढांगाऽन भर्यूं। कै
कामा का नि। चरपाणी डाना बटिन बांज क सुगट्या ल्येण-ल्येण मेरी पीठ चूडी़ग्ये। कै
दगड़ छुंवी नि लगाण देन्दी। जर्रा फोन पर क्या बैठिन तैकु बरमड़ तति जान्द। अनपड़
गंवारन क्या जाणि दुन्यां क्या होन्द। सीं कि कचर कचर गुलामदरी मेरा बसे नि। अगर
तुमुन अपणा बाबा जन इनि म्वोलों मादो बणि चुप रोण त मिन एक दिन झप्प नन्दाकिणी मा
फाळ मारि देण।
हे मास्तो
! अब तातु दूध ब्वै तैं ना बल्की पवन तैं ह्वेगी छै। कैतें भल अर कैतें बुरु ब्वली
जावों। एक तर्फां माँ कि ममता गरों। हैका तर्फां जीवन सौंजड्ये माया भारी। कैतें
बोगण ध्यूं कै तें छाला लगोंवु।
बुबा अजब
सिंग बिल्कुल अजब गजब निरखालिस खस्या। जतगा सिद्दो बत्गा बांगु, नखरु। गौं समाज मा उठण बैठण जुगपट। कब्बी कबार गौं पंच्येति
मा बैठण मजबूरी छै। किलै कि दगड़या परमानेन्ट गौं कु बंदरोळु अर बंज्याण कु
चौकीदार। कै का को-कारिज सुख दुख मा सामिल होण दगड़ये तर्फां बटिन पूसौऽक घाम। ऐरां
बिचारन बाळापन बटिन ढुंगा डोळी करिन। क्वे फन, सल सुब
कुछ नि सीखिन। मोटू दिमागा कु मनखी। मोटू लगोण मोटू खोण। अद्दा गौं कु हल्या।
काठेऽ धर्ती पर काठ कु मनखी। पीठन सदानी बोज भारा बोकिन। पढ़ै लिखे मा बि अजाण।
पाँच पास। मात्र आंखर पच्छयाण। बस द्वी ढांगा बल्दोंऽक पुछयड़ू मड़काण मा जिन्दगी
निकळी ग्ये छै। पवन का अग्ने द्वी नोनी छै ज्वा समै पर बिवाली छै। आखरी संतान
पवन पितरोंक आश्रीवाद से फौजी बणग्ये।
द्वी साल बटिन तैका परताप ही देखणु छै बुड्या गात पर द्वारा खंतड़ा अर टंगड़ों पर
सुलार।
बाबन
सुबेर द्वी ढांगा बल्दाऽक मेलण अर दिन भर निरपट बोक ह्वे जान्दू बोण। ब्यखुन्दा
कान्धा मा एक लखड़ू गिन्डका ल्ये आन्दू। घौर ऐ द्वी सौड़ तमाखु अर चार टिकड़ा चूना खै
फसोरिपट ह्वे जान्दू। अब ब्वारी अर सासु भितर क्या चलणु कब्बी ध्यान नि
देन्दू।
उन त पवने
उमर अजक्याला हिसाब से इनि घर गिरस्थी पेच पचरा मा फंसण वळि नि ह्वे छै। तेईस साल
कु लौंच्या ज्वान। वीं का उमर का दगड्या अज्यूं कोलेजों मा छाँ पढ़णा। मोज मस्ती
कना। पर इत्गा कम उपर मा ब्यौ करि गिरस्थी झंझट तैकि अपणा मर्जि कि पाळीं छै।
बल अकल अर
उमर तैं भेंट नि होन्दी साब। जबैर उमर रैन्दी आदिम तैं अकल नि औन्दी। जब अकल औन्दी
तब उमर उलारा बाटा लगि जान्दी। पवनल जनि ज्वानी बाटा खुट्टा बड़ेन। छाळी पतळी बाज
म्वटी गरौं ह्वे। जीन्स हार्मोन्स बदळयां, सरेला
अदेख्या जाग बाळ जामिन। क्वांसू पौध लगुली बणि हाथ द्येण लगिन। तबारी यीं क्वांसा
हाथों पर पिंकी कु हथगुळु मिलीन। द्वीयों कु बाटा घाटा इस्कोल मा उठण बैठण ह्वेन।
द्वीयां एकी क्लास हेस्कूल मा। पक्का दगड़या बणग्यां। एक गळज्यू पाणि। अर कौंळा
लगुला कबारी माया मुस्क का ठंगरा लिपटी टुकु पौंछिन पता नि चलि।
पिंकी कम
उमर मा ही खूब द्ये कि डिल डौल। द्वारा गाते कलोड़ी। पैल्वाण भैंसे छां (छांस) खूब
प्येन म्येळयो, तब्बी त इत्गा डमडमी-गमगमी ह्वे ह्वली। बुलाण
बच्याण मा चटक-फटक। उन त स्कूल का कतिगा डांट सीं दगड़ लेन मने कोसिस कर्दा पर वा
कैतैं घास नि डाळदी। पवन कु सच्चूपन अर सिद्दोपन वींतैं क्या छाजिन कि ज्यू ज्यान
पवन पर सोंपणु त्यार ह्वेन। पवन जनि बारा पास कना बाद भर्ती ह्वेन तनि पिंकी का
पंख बि खुलण लगिन।
उड्यारा
पुटुग अर धारा ढुंगा मा बैठि कि तैका ही स्वेणा दिखायां छाँ। बल जनि मि भर्ती
ह्वोलु तनि त्वे डवोला बिठै ल्यी जौलु। हम बि एक दिन भैर सैरों मा अपणी गिरस्थी
बसोला। त्वेतें पिंकी घस्येरी ना बल्कि पींकिन मेडम बणोंलु। पिंकिन बि बारा कलास
से अग्ने इस्कुल नि देखी। ना त तैका बाबान हिमत करि। बल बेटी माटी काम घौर गिरस्थी
कु। काम-धाम, सल-सगौर सीख जाली त भ्वोल सौरास मा हमारु नाक
नि कटेली। जन कि सल-सगौर नोन्यूं का नौ से बणि ह्वलु।
जनि पवने
रंगरुटी पूरी ह्वेन तनि तैन ब्वे बुबा मा तत्कळि लगेन। बिगैर टिपड़ा जुड़यां झटपट
द्वी मैनें छुटटी मा पिंकी तैं ब्वै ल्यायी। पिंकी ब्वै बाबा तैं बि क्या चैणु
छायी। यीं जमाना मा गरीबे नोनी तैं सरकारी नोकरी वळु जवैं मिलण बुग्यालें खाक छाणि
कीड़ा जड़ि मिलण बरोबर च।
वे दिन
जबारी भितर ब्वै पवन मु अपणी बिदागत (आपबीती) लगाणी छै तबारी पिंकी भैर बटिन कन
सुणें लगिं छै। वींन जब सुणी कि पवन ब्वै छुंवि चुपचाप सुणणु अर मेरी तर्फां बटिन
कुछ नि ब्वनु त वा गुस्सा मा लाल पिंगळी ह्वेगी। अर चम्मऽ मथि डिंडयळि गेन अपणा
कमरा भितर बटिन टप कुंडी मारी कोप भवन मा चलग्ये। अब खा माछा। कन नि मेरा काबू मा
औन्द। यीं कोप भवन से कन-कना राजा माराजा जनानी बस मा ह्वेन। पवन त इकढय्पुळया
फौजी जी ठैरु। कल्यो रुवटी खाणा बाद जनि पवन मथि डंडयळि गयुं त भितर बटिन कुंडी
चड़ि देखी। वा समझग्ये छै मिसकोट क्या छ। तेन ड्वार भड़कायी अर सौं करार वचन द्ये।
पिंकी तैं मनाणे कोसिसि करि। पर भितर पिंकी तर्फां बटिन क्वे उत्तर नि ऐन। वा कौ
बौ मा भैर भितर कन लगि। ब्वै बुड्या त छै पर अजाण ना। ब्वैन ब्वारी मिसकोट बिगी त
वा घौर बटिन बोक (किनारा) लगण वास्ता ननड़ाट मा दथुली अर ज्यूड़ू निकाळी, झुक्यां कमर ल्ये पुंगड़ा तर्फां चलग्ये।
भौत मनोणा
बाद कखि पिंकिन डवार ख्वोली। तैकु टुख्येरा जन मुंड कर्यूं छै अर मुख उसयूं। पर वा
अपणा मा डंटी रै, कि या मितें उन्द ल्यी जो या त मिन त्यारा
समणि फांस खै द्येण। पवनल खूब समझैन बुझैन कि ठकुरेणी अब्बी मेरी पोस्टिंग नेफा
बोर्डर पर छ। वख हमारु ठिकोण ही भल नि छन त त्वे तैं कख ल्यी जों। मि उनि बि अब्बी
नयूं रंगरुट छ। एक साल बाद पोस्टिंग कै पीस मा आली त त्वे जरुर दगड़ ल्यी जौला। पर
पिंकिन तैकि एक नि माणी। पिकिंन ब्वोली हाँऽ जन मितैं पता नि ह्वलु। बाना बणाण मा
तुम मर्द बड़ा उस्ताद होन्दन। दगड़ा नि ल्यी जै सकणु त सैर बजारों मा जि धैर द्ये।
जन हौर फौज्यूं धर्यां। अब मि तेरी व्बै दगड़ एक रात बि नि कटेण्या।
पवन भिज्यां
घंघतौळ मा पड़ग्यूं। यु क्या आफद ऐन। अब्बी इतगा लेख नोकरी बि नि छन कि गिरस्थी भैर
बसे साकू। अर ना अज्यूं गिरस्थिक कु अनुभौ, अत्ता
पत्ता। वे दिन कने ना कन पिकीं कु गुस्सा शांत करि पर हर बगत तैकु रुसाण लग्यूं
रैन्दू।
घौर मु अब
रोज क काम ह्वेगी छै। पिंकी पल्यासोर नि कर्दी। अर ब्वैु कु भैर भितर एक
फफत्याट। बाबाऽ तर्फां बटिन गरुड़ा
घिन्दुड़ा। पवन बि कुछ कुछ बाबा पर जयूं छै कमति ब्वलाण बच्याणे आदत। उन त खूब
हौस्यार समझदार मनखी। कमति ब्वलाण बच्याण से वा ब्वारी अर ब्वै तैं जादा नि समझे
सकणु छै, बस द्वी जुबान। तुम चुप रावा। हल्ल ना कैरा।
कन अरमान
ल्ये छुटटी अयूं छै। उन त फौज्यूं तैं ना होली ना बग्वाल। अनध्यारी बिनध्यारी मा
कब्बी कबार त्योवारों पर ऐग्यां त धन भाग समझा। फौज्यूं जब छुटटी तब बग्वाळ ऐगास।
पर ऐरां दा पवने त होरि बग्वाल ह्वोणि छै। पूछदू त कैतें पूछदू।
गौं का
दाना सयाणा ब्वल्दा अरे ब्यटाराम ब्वारी कब्जम धैर जर्रा। दनकोण लगो। सुद्दी ना रो
तनि फौजि इकढयपुल्या चाल मा। तेरी ब्वारी डवोळा परे पिंगळी पिठैं अज्यूं मठये
(मिटी) नि । गिरस्थिक अ ब तक कु पता नि। अज्यू बटिन घौर बटि दीननोठ होंणु बाटु
लगाणा किलै ? अरे कुछ साल जर्रा गौं मा रै दुन्यांदारी सीख
ल्या। जब अयांणाऽक सयाणा ह्वे जाला तब सोचि सकदन। पर सुद्दी उगटण्यां किर्मुलिक
पांख लग्यां दुन्या फर। थाती हरण पूत मरण। क्या नि छ यीं गिरस्थी मा, गौं मा। घर-पुंगड़ी, गाजी-पाती, भै-भयात, स्वारा-भारा, यार-आबत, म्वन-बचण, उठण-बैठण। जबारी भले बुरै, लकार
संस्कार समझण बिंगणु टेम होणु उनि फुर्र उड़ि जाणा। निरपट ब्वै बुबा का अपीड़ ह्वे
जाणा। यनु मा अस्गारन नि लगण त क्या लगण। जब छिन मास्तों फर खैरी औणि तब छिन यख
वीं पितरों भूत नचोंणु औणा। साला कुबुद्धि। बेअकली जमानु। तमाम देस्वाळ मनखि सरदार, बिहारी, डयोट्याळ
यख बटिन बटौळी ल्यी जाणा अर यखक छाँ सैंणा सैंचार छोड़ि सैरों मा सौ गज का सेठ
बण्यां।
अपणु
गंवाणी समाज पीठी पीड़ा जाणदन। स्याळ न्याळ अपणेस ही काम औन्दी। नाळ वारण से आखिर
लखड़ू सत तक को दगड़ु निभान्दा। आऽ हाऽऽ अपणी च्वोखी माटी। सुद्ध हवा पाणी। क्या नि
छ यख ? पर जर्रा हिकमत चयेंणी च। क्या आज सै पैली यख
मनखि नि रेन ? क्या पाड़ फर यु डोखरा पुंगड़ी अफूं बणिन ? खाली तमस्या बणि औणा फोटो खिंचण। पित-पितो जमानु। कौंळा
क्वांसा। वा च नकली अन्न साग भुज्जी खै चालिसक बाद दवै फर गुजर बसर कना। क्या ब्वना
बल तखुन्द बगल पडोसी तक कु पता नि चलद, क्वो च, क्या च, कन च।
म्वन बचणों दगड़ू पुर्येण दूरेऽ बात। छन मनख्यूं दिन रात ड्वार ढक्यां रैन्दा बल।
खाणु पीणु त ह्वे पर हवा पाणी बि म्वल्या होन्दू बल। ना कैर बाबू उगटणहार कु काम।
तै ब्वारी तैं समझौ बुझौ अर जर्रा दुन्यादारी सिखौवू।
अब नयीं
छंवाळी दगड़या ब्वोल्दा। अरे यार पवन। युं बुढ़या ढांगों कि ना सूण। पिंकी का बि
अपणा स्वेणा च। स्या त्येरी क्या ब्वल्दन बल, लव मैरेज।
नाक कटण वलि बात। लोग क्या ब्वोल्ला। वीं कि बि अपणी जिन्दगी छ। ल्यी जो दगड़ा मा।
जन वा बुनि तनि कैर। निथर सैरों मा किराया फर धैर द्ये। आज जाण भ्वोल जाण। एक दिन
यख बटिन सब्यून उन्द जाणे चा। यीं काठे धर्ती फर त वीं निर्भगी रैलु जै कि क्वे
नोकरी चाकरी नि छ। त्वे तैं त भगानल राज नोकरी दियीं च। अर तु छै कि वीं बिचारी
तोहीन कन पर लग्युं। जब वीं विचारी ज्वानी फर बोला (बोल) ढांगा लगि जाला तब क्या
फैदा उन्द लि जे। लंगलंगी लगुली बिगैर गीजै (खुराक) कि सुखण लगीग्ये।
तुयी
ब्वोल। क्या च यख। साल भर हटगा तोड़ी मेनत। स्याळ न्याळ दुकनि कु मुख देखण। सर्री
मेनत गुणी बान्दरों अर सुंगरों का पुटुग। बिमार तैं अज्यूं बि सांगा मा ल्यी जाण
पड़णु अस्पताल। एक छुवटी सी बिमरी टेस्ट बि ठेठ दयारादूण।
वा छिन
उत्तराखण्डे सरकारें मुख्यमंत्री पैदावार बड़ै जनता तैं ठगोणी। बीस साल मा पूरी
किरकेट टीम। यख नेता अर चकड़ैत उमेला, जनता
दुख्यारा। स्कुला नौ फर बि जै रामजी कि हुयीं। कखि मास्टर घाम तापणा बिगैर
इस्कूल्यां त कखि मास्टर बिगैर इस्कूल्या। जनि सड़क गौं तलक ऐनी उनि विकास दयारादूण
भाजिन। अरे यार पवन त्वेन द्येखि नि परसि जगतु भैजी का नोना अयां छां घौर। अरे
क्या मस्त अंग्रेज लगणा छाँ यार। इतगा छवटू सी नोनु कन अंग्रेजी फुकणु छै। अर बौ
का झर्कफर्क विल्कुल देस्वाळी हिरोइन। यख वीं का गात फर रैंदा छाँ पस्यो लारा, लर्का तर्का। नोना ब्वारी ज्न्दिगी बणाण त यख कुछ नि धैर्यूं भैजी। जा कै कि ना सूण तेरी
ब्वारी ठिक ब्वनी।
अब पवन
तैं सच्ची कु तातु दूध ह्वेगी छै ना थूकेन्दू ना घुटयेन्दू। कि कै कि जी सूणों।
पूरा एक मैना छुट्टी इना गद्दाग्वोळी (ऊआफोह) मा बितग्ये। घर्या काम क त वा पैल्या
बटि सगेर्या छै। भैर होळ-तांगळ भीड़ा-पगार। ब्वारी दगड़ पुंगड़ा पाटल अर बण बूट। अपणी
तर्फां से पिरेम की क्वे कमी नि। यीं छुट्टी मा सौज्ड़यों दगड़ गप्प सप कछड़ीबाजी नि ह्वे सकी ।
घौरा हालत
इना ह्वेग्यां कि भितर एक तर्फां ब्वै कु रबड़ाट छै त हैका तर्फां ब्वारी ततड़ाट।
खौण खाण बगत ब्वै कु मुख फर्कायूँ रैन्दू त राति ब्वारि पीठ। एक तर्फां ब्वै की
बुढ़ापे नौ ढगमगाणी द्येखदू त हैका तर्फां ज्वान ब्वारी छलारों मा उछळदी। फुऽक्क आग
लगा कटिग्ये एक मैना। घौर बटि औणा दिन ब्वै अर व्बारी द्वीयों कु खूब छै रुणाट
लगयूं जनु कि मिन कब्बी नि दिखेण ह्वलु। सै बात बि छै। फौजी मनखी गोली मुख पर कु
आदिम। पर ये बाते चिन्ता फौजी नि कर्दा। आशावाद पर ज्यूण वळा इन्सान जु छाँ।
अब राति
इग्यारा बजे ट्रेन ल बरमापुत्र पार कैर रप्तार कम कर्याली छै, पर तैका सुमिरणे रप्तार अज्यूं सर्रपट। तबारी टवांऽऽ वांऽऽ।
रेलन लम्बू होरन दिनी। अर झकऽ झकऽ झक झऽम्म। ट्रेन रुकग्ये। दगड़या यात्री कबारी
समान बांधी तैयार ह्वे झामताम ल्ये उठण बैठिन तै खुणि पता नि चलि। वा हबड़ाट मा खड़ु
उठि। कै सैयात्री मा पूछी भै साब गोहाटी आ गया। जबाब मिली। हाँ भाई। अरे कहाँ खोये
हुए हो आगे डिब्रुगढ़ जाना है क्या ? पवनल क्वी
जबाब नि दिनी। सबड़ाट मा अटेची सामान पांजी अर भैर प्लेटफोर्म मा उतरग्यूँ। हाथ मा
अटेजी कांध्युन बैग मुंड खाड़ डाळि प्लेटफोम से भैर अपणा फौजी ट्रांजिटकैम्पा तर्फां
बाटा लगिन।
ट्रांजिटकैम्प पौंछी त तख भैर मु हौर फौजि दगड़यूं भिभड़ाट लग्यूं छै। देस का कूणा कूणा का जवान क्वी पवन का जनि छुट्टी काटि औणा त क्वी एक जगा बे हैका जगा टेम्परेरी डियूटी बटिन। अलग अलग यूनिट रेजिमेन्ट का। पर सब्यूं पच्छयाण एक। औडर एक। भारता जवान, सैनिक। सब्यूं तैं ट्रांजिट कैम्प कु सी एच एम भट्ये-भट्ये एकी औडर छै पास कनु। सभी ट्रांजिट अपणी ड्रेस बदली करो। यूनिफोर्म पहनकर अपना छुट्टी का कागज लेकर एन्ट्री करवावो। कल मत कहना साब मेरा नाम कौनवाई में क्यों नही आया।
ड्रेस पैणी सुरु ह्वेग्ये छै कर्म भूमि कु काम। आदेशों फर कदम रखण। जनि कर्तव्या बटा हिटण सुरु त एक मेना से भारी मुंड हळकु। ज्वा तातु दूध एक मेना से तै का गिच डामणु छै अब तेकि चस्साक नि लगणी छै। सेनिक कर्तव्य पथे ड्रेस पैरि किलै गिरस्थी क अण्मणा डाम स्येळा पड़ जान्दा ह्वला या बात तौं फौज्यूं तैं पता ह्वली हमुन क्या बिंगण।
कहानी -
बलबीर राणा अडिग
9 Apr 2021
https://udankaar.blogspot.com/
वाह अडिग जी ! लाजवाब बिगरैलि कानि .. ठेठ अपर भासै रस्यांण .. रंगत ऐ ग्ये बाँचिक ! 👍👌🙏
ReplyDeleteभौत सुंदर कहानी गुरु जी👌👌🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद अर्चना गौड़ भुली।
Deleteधन्यवाद आदरीण ममगाईं जी, अर्चना गौड जी । आप मेरा ब्लोग पर अयां अर प्रतिक्रीया रुप मा अपणु आशीष वचन देनी यां कु ज्यू से आभार
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