Search This Blog

Thursday 26 March 2020

अठ्वाड



1.
वे का मन मा न जाण
क्या आयी, खाण-खाणें
वेंन झट गैणु तौड़ि
अर साळी पल तर्फां
चल्ग्यिे जौ पुंगड़ा उज्याड़
गुस्यांणिल धै लगैन
घौऽर त ओ
त्वेतैं ये अष्टमी मा मिन
अठ्वाड़ोंऽ नि द्यायी त,
मेरु नौं रौत्यांण नि,
बागिन यति क्या सूणीऽ
झपा-झप द्वी चार
हर्रा जौ का गफ्फा मारिन
अर
डौरिन चुपचाच दौंळा पर ऐग्ये
कि कखि गुस्यांण
सच्ची न द्ये द्यौं
अठ्वाड़ मा ।

2.
अठ्वाड़ से पैलि
वेऽका सिगों फर
चिफळापट त्योळ,
रंगिळा, पिंगळा फुर्का लगाई गयां
मुंड द्वी तर्फां बटिन
म्वटि बर्तोंऽन बांध्ये ग्यों
चौं दिशा बटिन
हजारों लोग
सीटी बजाणा छाँ
स्वींताळ कना छाँ
बाजा भुंकरा घमकाणा छाँ
खुशी मनाणा छाँ
अर,
वा बिचारु बेजुबान
ताण लगाणु छै
दौळा फर जाणूंऽ।

3.
रंग बि रंगा चक्र मा
वे कु मुंड
संड/मुसंडोऽन बर्तोंऽन थाम्यों छै
वामणों मंत्रों उच्चारण/आह्वान
बाजा-भौंकरा, ताळ-कंकसाळों नाद
सातों असमान पौंछणु छै
नंगा धड़ंगा पस्वांऽ हाथों फर
फर्सा, खडगा चमकणा छै
अर, वा वेबस बागीइन्तजार कनु छै
खडगे च्वोटेऽ
अठ्वाड़ खतम होंणें
मनख्योंऽ का जितम स्येळि पणें
अपणा ल्वै छराक फर
तौं घर/गौं
हर्रां-भर्रां होंणें।

4.
भै साब
आज बी
वखी छ हमारी
बुँखाळे कालिंका माता
कुरुड़े नन्दा भगवती
अर उनि छ
घर-घर बिराजमान
ईष्ट देबी माँ दुर्गा
आज बी वा
अपणा भगतोंऽ  
मनोकामना पूरी कनी
आर्शीवाद देणि
छप्पर फाड़ी
पर !
तनि धै नि लगाणी,
कि !
मितै अठ्वाड़ ल्या
हजारों बेजुबानों बलि कैरा
नृशंग हत्योंऽ तमासु बणांऽ।

रचना: बलबीर सिंह राणा 'अडिग'
मटई बैरासकुण्ड, चमोली

No comments:

Post a Comment