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Sunday, 26 July 2015

SOS बस्ग्याल

जेठ ज्वानि कु, तातु उमाळ
बैठिग्ये बस्ग्यालक उलार देखी
तेरु रुसाण संशय कनु विधाता
कखि बौगी न जों,
ज्यु झुराणु तेरु गुस्सा देखी।

SOS =safe our sole मितें बचावा मेरी ज्यान जाणी
© सर्वाधिकार सुरक्षित
www.ranabalbir.blogspot.in

Saturday, 18 July 2015

मेरु सौंण


डांडा छान्यों मा रंगत ऐे होळी
एक तरफ बल्दों की लड़े
दुसर तरफ बखरों की टोली।

गिचा कताड़ी ब्वे धै लगाणी
भितर ल्यो भैंसा तें थ्वोरु बिब्लाणी।

सुरुजु देखा रंगमत हुयुं च
चौ चक्की खेलण मा धै नि सुणु च।

पार डांडा देखा बरखाक् भिभ्डाट्
छिड़ा गदनो कु छिड़-छिछड़ाट।

पुंगडा पातळा लकदक होला
काखड़ी मुंगरि आलू छैमुला।

बस्ग्याली ब्यखुन्दा आनंद-आनंद
घ्यू दूधे रेलम-पैल रोज सग्रांद।

दिन मा गोरु दगड़ जाणे रोंस लगीं च
पल्या गों की गोरी कु स्वाल अयुं च।

भ्वौल, वल छाला अपणा गोरु लियाँन
सेणां तमलों बैठी त्वे दगड़ छ्वीं लगाण।

कनु निर्मल जीवन छै निश्चल माया छै
आजक फिकर ना भ्वोळक चिन्ता छै।

बरखा का छीड़ मा लतर-पतर् गात
ड़ाला ऐथर धर्युं रेन्दु हाथ मा हाथ।

सरूली गौड़ी पुछै्यड़ी खड़ा करि दनकणी
धौल्या, कल्या बल्दों तें खूब सन्काणी।

सैद यु काल नि रयूँ अब समय नि रयूँ
यादों की थैला की #अडिग तेरी कल्पना रयीं।

भैतिकताक भोग, डंडा-मरूड़ा भी चड़िग्ये
आपार सुख देणु वाळू जीवन अब नि रै ग्ये।

कुछ भी ब्वाला भैजी भुलाओ
ठण्डु माठु करि ज्यु जगाओ।
 
जै जीवन मा ज्यादा तीस-तृष्णा नि रौंदी
वु ही जीवन सच-मुच कु बैकुण्ड माण्येन्दु।

द्वी गत्ये सौण बि. सम. 2072

रचना:- बलबीर राणा "अडिग"

@ सर्वाधिकार सुरक्षित।

 

 

Sunday, 12 July 2015

बक्या/पुच्छयारु


बोल भोट्या बोल
सच्ची अपणा मन की खोल
बोल बचन  ल्ये ज्यूंद्याल
समझ मा आली त हाँ बोली
निथर ना बोली
तेरी पूछ जांचणा कु विषय
दो पायी नि यु चौपई कु संशय
घात नि जैकार नि
कैकु आँखार नि
तेरु बगुट्या हर्ची च
कैकु नि यु दर्वाल्युं की करमात च
हाँ प्रभु !!!!
सच्चा छां तुम
साकसात छाँ
मेरी जिंदगी का उद्धार छां
जन बोलला तन करुलु
तुमारा थान भेट पावड रखलु
फर
मेरु बगुट्या मितें दे द्या
हाँ ठिक च
ये थाली मा सौ रुपया होर डाल
जमानु बदलिगे
महंगाई ह्वेगे
लोग!!
कट्यां मा मुतणुक तय्यार नि
मिन भी क्ले मुतण
ल्यो बीड़ी पिलो ।
स्वाट...स्वाट...सू....सू.....

रचना :-बलबीर राणा 'अडिग'