फजल जनि घामै झौळ खिड़की बिटि भितर आयी, साकम्बरि ददि का कन्दूड़ बाजिन या सच्चिगो सूणी होलू। अरे दां, परमा दादा चलिग्यौं बल ब्याळी। परमा दादा चलग्यूँ ? पर कख ? पोरों साल त सुणण मा आयी कि सु कै बृद्ध आसरम मा छ जिन्दगी काटणू। क्या तै बृद्ध आश्रम बिटि चलिग्यूँ या यीं धर्ती बिटि। साकम्बरी ददि झस्स झसकिन अर वींकु गात झझर्राट कन लेगे । भितर बिटे एक तौळा-बौळि। क्या सच्ची ? स्या खौड़ स्वरण छौड़ी सरपट खौळा ढिस्वाळ मा ऐन, इना-उना देखी त क्वी नजर नि आयी। पूछदी त कैमा ? जैकि बाच सुणण मा आई सु त चलग्यूं म्येल्यों। क्वो छौ वा ? बाटै कूड़ी, दिन भर बाटापन कति औंणा-जाणा रन्दन।
बाच त तै पला ख्वाळा मंसारामै जनि छै लगणी, पर कख भाजी सु भाट यति छांट। ? सु मंसाराम भाट बि भटकणू रैंद सुबेर बिटिन ब्यखुन्दा तलक सर्रा गौं-मुल्क मा नारद मुनि जनु। मनै-मन बडबड़ान्द ददि कु मन सर्रा पृथी रिंगण लग्यूं अर स्या झप्प बैठिगे तखमु खौळा डीप मा। जितम धकध्याण लेगे। हे ब्वे ! यु क्या सूणी मिन ? अर स्या अफूं मा यी सवाल-जबाब कन लगिं।
एक ज्यू बोन्नू हे राम सच्ची त नि चलग्यूं निर्भगी मथि? दुसरु ज्यू बोन्नू कि, जाण द्या रे ! मेरु क्या गयूँ। मेरु क्या रिस्ता छौ वे दगड़। क्या लगद रे साकम्बरी सु तेरु, जै ऊणि यति म्वन बचण होण लग्यूं ? क्या दिनी वेन त्वे तैं? जिन्दगी भरा आँसू ! तिसाळी माया। दुन्यां कु तिस्कार ? भाज्यूं छौ सु र्निभगी किलक्वारी मारद जुंगड़ौ नोना तैं छोड़ि। हट !... जाण द्या मस्ता तैं । जख बि जाउन। मथि जाउन या मुड़ि। अर स्य मन ज्यू तैं जरा ठौ द्योण लगीं । पर ! मन कै अनिष्ठ भै मा थर्रथराण लेगे अर ज्यू खाड़ मुड़ि खडयीं माया तैं खरौळण बैठगे ।
अरे निर्भगी ना बोल ? क्या बोन्नी तू, कि क्या रिस्ता च तै दगड़ ? आखिर तैका नौ कि तू यीं बुढ़ापा तलक नाक मा फुल्ली पैरणी। फुल्ली..। हौं रे... लोंग पैरणी।
ऐ ब्वे !..... क्या अब मि विधवा ह्वेगी ? ऐ ना रे ना !... यनु निरासपंथ ! ना भै ना।
अर वींका हियारमल भितर बिटि किल्ल किलक्ताळ मारि। स्या चड़मताळ खड़ि उठिन अर खौळा डीप बिटे फेर इना-उना हैरण लगी। अर अन्दा बिमोळी मा ज्यू भितर धाद लगाण लेगे। ऐ मंसा। ऐ रे मंसाराम ? मास्तों कख भाज्यूं रे तू ? बोलि द्ये कि तिन मैं खिजौैणा वास्ता मजाक करि। झूठौ रैबार छ या। पर नजर का आखिर कूणा तक तैकु क्वी अत्तस-पत्ता नि छौ। फेर मनै-मन सोचणि कि परमा सच्ची कु मौरिगे क्या ?
अर जबाब बि अफूं ही द्योणि कि कख बचण छौ तेन तै बृद्ध आसरम मा। अरे र्निभगी पितरौं मड़ान बि नसीब नि ह्वे त्वे तैं। हेरां कुलक्षणी कैन करि होलि तेरि गत्ति तख तै परद्योस मा। कैन करि होलि तेरि कपाळ क्रिया ? त्वे उणि केन मूंडी होलू मुंड ? हजार परकारा सवाल। द्वी-द्वी नौन्याळ छन तेरा ज्यून्दा जागन्दा पर त्वे कुलक्षी तैं भलो जीवन रास नि ऐन।
कै हैंका जगा जाणें बात रन्दि त सु मंसाराम सदानि चारै यखमु ऐ टक्क लगै काटण लगान्दू, कि बौजि मिन फलाण-फलाण बात सूणि परमा भैजी बारा मा। पर.... आज जब बात सच्ची होलि त तब्बी त तेन अलुकां ह्वे मेरा कन्दूड़ा मा खबर डाळि अफूं अलुका ह्वेग्यं। साकम्बरि ददि सोचदी धम्म भुयां खौळै दानणी पर अड़ासू लगै बैठिगे, अर ज्यू भितर हिंकरा-फिंकर डाड मन लगि। मन अर ज्यू कु कणाट भैर ना ओ, जिमत कटकटौ कने कोसिस कन लगि कि तै उणि मिन एक डाड नि मन, दाँत कट्टी लगै स्या चुप्पऽऽ... सन्नऽऽ....!
स्या ददि स्ये छज्जा अर घुर्रपळै पठाळ तैं करि-करी ह्वे घूरण लगि, ज्वा वींकु अपणी ज्वान पीठी मा बौकि लयीं छै। तै कूड़ि तें हैरण लगिं ज्वा वींका ज्वान पस्यौ बदिन बण्यूं छौ, तौं मौर-संगारौं तैं हैरण लगिं ज्व वींका गोळा हंसुळौ बेची धनि मिस्त्रिन बणै छौ। क्या त्याग नि करि मिन यीं कूड़ी बाना अर मितैं क्या मिली स्याळ-न्याळ जीवन भरौ तरास ? पस्त-पलौक तै दानणी अड़ासा पर पसरि ददि वीं दुन्यां मा घुमण लैगे जबार बिटे वीन तै परमानन्दौ हाथ पकड़ि छौ लौंची उमर मा।
अजक्याल चौं तरिफां धर्ती बसंत का ज्चानि उलार मा छै मगन होयीं। आड़ू खुमानी डाळा फुन्नौ बदिन झकमककार लकदक छां होयां, तौं फुन्नौ पर भौंरा अर म्वारियां छै गुनगुनाणा। डाळौं मा पौथल्यूं छौ किबचाट मचायूँ। साळी अग्ने आँखोड़ा डाळा मा घुघतौं घुरघराट छौ लग्यूं। ये साल वलि सार गिवांड़ि अर पल्ली सार सट्याड़ि छै लगी। लोग बाग अजक्याल गिवांणू मा छा मौळ ढौळणा अर सट्याड़ियूं मा यग्वोड़ लगाणा। तबार तक सुबेरौ पिंगळू घाम साकम्बरी ददि द्याळ बिटे चार पुंगड़ा उन्द तक चलिग्ये छौ। हरीं-भरीं गिवांण सारि मा ग्यूँ चौपत्या ह्वेगे छै अर लय्यां पिंगळा फुन्ना सुरसर्या बथौं दगड़ चांचड़ी छै ख्यौलणा। पल्ली सार सट्याड़ियूं मटमैलो रंग अज्यौं तलक उनि छौ किलैकि साटी झंगौरु अज्यूं एकपत्या ही छौ होयूं।
गौं-द्येळयूं मा फजलौ अन्वेणि-कल्यौ र्वटि छै पकणि। ये बातै गवै घामैं किरणों दगड़ घौर-घौर बिटे अगास मा उठदी धुवैं लकीर द्योणि छै। दगड़ मा घर-घर बिटे औन्दि फरणा छौंके खुसबू। कुछेक बेटी-ब्वारी दथुली कर्छुला कुचाड़ी एक हैका तैं धादाम-धाद लगै बौंण छै दनकणि। कुछेक मर्द माणिक सट्याड़ियूं मा छां दनाळू मय्या लगौंणा। गौं कु सुरेश पंडेजी मंगरा बिटे नयै-धुयै पाणी बंटा कांधी धौरि अपणी धुन मा छौ गैत्री मन्त्र बड़बड़ान्द हिटणू। पर ददि तनि बेसुध छै खोयीं।
चौं दिशों मा मधुमासै स्वाणी सुगन्ध छै फैलीं। बण बुराँसा फुन्नौ बदिन लालपट अर भीटा-पाखा फ्यूँलिन छौ पिंगळपट होयां। मुड़ी गाडा़ उदिस्याण मा हिलांसौ विरह बिलाप छौ सदानी तरौं, ह्याँ- ह्याँ। पार क्वेलाखा बौंण बिटे घ्वीडौं अड़काट छौ सुणेणों। आहा प्रकृति को यनु वैभव बंसत मा यी दिखेन्दो पर ददि तैं तै वैभव से क्या ल्हीण-दीण ?
गौं-मुल्क सदानी चारै अपणि दिनचर्या मा छौ मैस्यूं, आम लोगूं फर प्रकृति का उलारौ जादा फरक नि पड़दू किलैकि वूंका वास्ता या जीवनो एक उपक्रम मात्र रैंदू। गिरस्थी हपड़-धपड़ मा कैतें र्फुसत, सुबेर बिटे व्याखुनी तलक गिरस्थि सीं पर जुत्यां बल्द। मौळयार मधुमासौ फरक होन्दू त उलार्या जिकुड़ियूं पर, जनु कि मैत वास्ता खुदेन्दी नै-नै बिवायीं बेटी, दूर परदेस बोर्डर पर तैनात बेटुलों ब्वारी, वलि धार, पलि धार, मथि गौं, मुलि गौं ज्वान मायादार, उगैरा-उगैरा। प्रकृति का यीं उलारौ फरक चितान्द क्वासां गितैर, कवि, लिख्वार जौन, प्रकृति का यीं श्रृंगार पर गीत कविता रचण, कानी ल्योखण। भौसागर छ साब यु धरती। नाना परकार का चित्र चरेतर, ‘कै कि जिन्दगी तैली कैकी सीली’। ज्यूणा वास्ता मात्रा द्वी रुवटी का अलौ बौत्तर सालै साकम्बरी ददि तैं क्या प्रकृति क्या परिवर्तन, ‘सौणा मैना अंधा तैं सदानि धर्ती हरिं-भरिं’।
साकम्बरी ददि कि जिन्दगी मा ज्वानी त आयी पर बसंत नि फूल्यूँ कब्बी खिलपत ह्वे। फजलै घामें कौंळी किरण आशा ल्ही त आयी पर सु आशा दुफरा चढ़चढ़ा घामें भंड़ांग मा निरपट सुखी छै। जिन्दगी लौंचि ज्वानी बिटे आज बौत्तर साल तलक चौमासै घीड़ मा जन थीड़णी रायी। अहो ! बड़ी बिदागत छन साब। किस्मत बोला चै जिन्दगी बिडम्बना, आज तक उमरौ तिहाई हिस्सौ यकुली जी वीन। नारी सत बोला चै मजबूरी पर इकुलांस कु पर्याय रयी वींकु जीवन।
उन्नीस सालै रौंपा-धौंपा बान्द, ढै हाथै लम्बी धौंपेलि ल्ही ऐ छै स्या यीं कुड़ि पर अर आज स्यता गिण्यां चुण्यां बाबुला जन सुख्यूँ बुटुग रैगे छौ मुंड मा। माया कन पाप छौ क्या ? मायै यति बड़ी सजा भगवान द्योलो वींन सौचि नि छौ।
आज से ठीक तिरपन साल पैलि, शिवरात्री म्यळा दिन बैरासकुण्डा गेठा मा छै स्या फुंक्याळी चदरि पैरि दगड़यो दगड़ छांछड़ी ख्यनी।
‘छ्यम्वटों कु ठंडौ पाणि बाँजा डाळियूं कि छाया,
किलै पौड़ि होलि लोन्डा घनघौर माया’।
चांचड़ि रंगमत मा पता नि कै दां डसाक लगिं तै मल्ला गौं परमानन्द पर पता नि चली। तै परमानन्दन आंक मा धरिं या ज्यू फर लगै कि सु ज्यू जंजाळ बणिगे। तै दिन बिटे सु हफ्ता मा द्वि-चार बार घौर-गौं, बण-बोट कखि भी चुट्यायूँ-टपकायुँ मिलण ऐ जान्दो छौ। द्वारा गातै साकम्बरी कळबळी-तळबळी ज्वानी पर सु परमानन्दन यनु मौळयूं कि भौंर जनु रिंगणू बैठयूं। दिन-ब-दिन भेंट-घाट बड़ण से आखिर दां आगा सामणी घ्यू गौळिन अर स्या बि परमानन्दै माया मा घळबट मौळेगे। अब तेरा बिगैर मि ना अर मेरा बिगैर तू ना, राजुली-मालुशाही, हीर-रांझा बणिन।
अग्ने जब ब्यौ कने बात आई त जात बिरादर बीच मा औण लगे। साकम्बरी झिंक्वाण जजमाने नौनी अर परमानन्द नोटियाळ बामण। क्या करे जौं। तबार अजक्यालों जन खुलम-खुल्ला जात बिरादरी ऐथर ब्यौ कनो समै नि छौ अर ना बिगैर जलमपत्री जुड़यां अपणा मरजी से क्वी ब्यौ कैर सकदो छौ। मर्जी कु ब्यौ मतलब भै-भयात, जात-बिरदरी नाक काटण। ये संगसार मा सब्बी चीजों इलाज छ पर नाक पर लगीं छिंछयाटौ क्वी इलाज नि। अर स्ये नाको छिंछयाट खुन्दक बणि जांद बाज-बाज मामलों मा त।
वीं जमाना मा ब्यौ सामाजिक व्योवस्था से ही होन्द छौ, ब्वे-बुबा कि मर्जी पर। क्या अंडवाण जमानु छौ साब सु बी। लाटो-ब्यंगणों, काळौ ब्वनर्या जन बि छन जै ऊणि बुबाऽन द्येनी बाबा बोली वेखुणी रौण पड़दो अर लाटी-बैरि जैतें भी बाबा बर्ये लयूं स्या ही रखण पोड़दी। इन मा बाज-बाज त कुकर्याण भी कैर देन्दा छया। मर्द द्वी-द्वी ब्यौ त जनानी द्विघर्या तिघर्या ह्वे जान्दी छै। पर इना करम सौ मा द्वी चार यी दिखेन्दा छां बाकी त जलम-जलमौं दगड़ू, सात जलम कु साथ, एक हैका पर विस्वास, त्याग सर्मपण म्वन बचण तक। सात फ्यरौं कसम बचनो पर जिंदग्यौ बाटू। विस्वास पर बिस भी अमृत ह्वे जान्द। तब्बी त साकम्बरी ददि तै उन्नीस सालै ज्वानी बिटे आज तक एक धोकादारा नौ कि लोंग पैरी तैकि कूड़ी फर छै धुवाँ लगोणिन।
सच्च अर सत छन कि माया-मुस्क प्यार-पिरेम धरम नीती नि द्योखद। यु आदि काल बिटे जनि-तनि छ, कथा-बत्तों मा बि कति कथा इना बिजातीय पिरेम परसंग का मिलद साक्यूं बिटिन।
साल भर लुक्का-छुपी मिलण-जुलण का बाद हैका साल वीं शिवरात्री म्यळा दिन बैरासकुण्डा गेठा बिटे परमानन्द अर साकम्बरी सट्ट उन्द भाज्यान। लोगूं का सक-सुब से बचणा वास्ता पैलि बिटे फुल फिट प्लानिंग बणे छौ द्वियूंल, यां वास्ता द्वियां अलैद बाटा हिटी सड़क तक पौंछिन। ब्यौ संस्कार कख होण छौ इना भजेड़ मायादारों कु। फेर भैर कैन पूछण छौ कि तुमारो ब्यौ हुयूँ छै कि ना ? द्वियां स्वेणि-मैंस बणि ठीक तीन साल तक रयां तै केदार घाटी तरिफां। तबार तक घौर गौं मा जति छीं-छां होण छौ सु भी खूब होयूं। उन बि यणमण्यां पातरचार बोला या मायादारों छुवीं-छाँ लोगूं का गिच्चा पर खूब रन्दन। रिस्ता बिजातीय हो त अपणि जात्या इज्जता बाना हर क्वी बसग्याळा गंडयाळा सींगा खड़ा करि देन्दू। गौं मा तौं बुढ़िळयूं कि सत अर धरम की कछड़ी पूरी नि होन्दी ज्वा अपणा छन तिघर्या किलै नि रयां हो, छी-छी कन जमानु ऐगे या! अर सु दाना बैख अपणी जात की नाक का खातिर पौंठा पळयौन्दन जोन अपणा छनि ऊँच नीच सोब कुर्चीन हो।
छुयूँ गरमा-गरमी मा जजमानल बामणों पर अर बामणोंन जजमानों पर नालिस करी। जजमानों अभ्योग छौ कि तुमुल हमारी इज्जत पर हाथ डाळी। अर बामणन बोली तुमारी स्या नौनिल हमारु गोत्र असुद्ध करियाली। अगर द्वियां गौं मा यी रैन्दा त आग जादा भड़कदी फर तौंका गौ बिटे मुख लुकौंणा वजै से सु आग कुछैक दिन मा अपणा आप स्यळैन।
तबार तीन साल तक तै आगा फिलिंग क्या छार भी नि रायी जबारी साकम्बरी अर परमानन्द सालभरौ नौन्याळ कोळी डाळी घौर बौड़ी ऐन। परमानन्दे ब्वे ममता कु तिरस्कार नि कैर साकी, वींन खुसी-खुसी ब्वारी अर नाती तैं अंग्वाळ बोटी सांखि लगेन। हाँ नोटियाळ बिरादरिन सु मवसी अपणा भात से अलैद त करि छौ। अब द्वी मायादार अपणा नौना दगड़ गिरस्थी चलाण लग्यां। कुछैक मैना तक त साकम्बरी का ब्वे-बुबा तैं भी भारी रौंस छौ कि वींन हमारु नाक काटी पर स्याळ-न्याळ बगत दगड़ तौंका नाकौ छिंछयाट बि निमणिन। अब सु बी बार त्यवार अर चैता मैनो आळु-कल्यौ बुज्याड़ी बरोबर द्यौण लग्यान।
द्वि साल तलक गिरस्थी ठिक-ठाक चलि पर हैका साल पिताम्बर नौकरी बाना फेर फुर्र होयूं। तबार क्या गयूँ कि आजतक बौड़ी नि ह्वेन। कुछेक साल बाद सुणण मा आयी कि तख सलाण पुन तैन डौटियाळौं मार खायी बल तौं कि नौनि चक्कर मा। फिर कुछेक साल बाद खबर आयी कि परमानन्द सिनगर गंगा पार बडियारगढ़ पट्टी मा कै बामणें बैरि नौनी मा घरजवैं रैग्यूँ बल। वा बि तब, जब गौं वळुन सु तै बैरि नौनि दगड़ पकड़यूं बल। अरे अकला ट्यौपू तति स्वाणि बांद ब्वारि छोड़ि सु बैरि मिली त्वेतैं ज्यूणू। पर अकल अर आदत कु क्या बोन्न। ‘आफूं जौं जख करम ल्ही जौं तख’।
ऐरां ‘जब बिगड़ी बल काम तब आयी बैसाखु बाबा कु नाम’। साकम्बरी तैं तब पछतौ होयूं कि कनु गू खाई ज्वा ये ट्यौळा अर ढीला लंगोट्या पिछनै लगिं मि। परमा पिरेमी ना रूप कु रसिया लम्पट आदिम। आम द्खण मा औन्दू कि ब्यसनी को ब्यसन छूटी जान्द फर ढीलो लंगोट कु लम्पटपन नि छूटदो जिन्दगी भर। ‘कुनेथ्यूं कु कुकरम हून्दे छन एक दिन’। ‘म्यार लाटा बांगा खुट्टा राला त एक ना एक दिन भेळ पड़लो ही’। चोरीचार अर लम्पटचार द्वी इना चार छन जु एक दिन आदिम तैं अक्ष बिटे फर्स फर पटकै देन्दा। बुरा करम करि कति बि सावधनी राखा पर ‘ह्यूँ मा हग्यूँ एक दिन सै ह्वे ही जान्द’।
ट्यौळी ट्वपली, अकल कु ट्यौपू । मास्तौ घौर मु तति स्वाणि जनानी, स्वाणु नोनु, ब्वे-बाबा दगड़ पूरो परिवार। यकुला नौना-ब्वारी घरबार। छक्की जमीन जैजाद, गाजियूँ भरियूँ गुठयार। टळटळा भौर्या नाजा कुठार। इना भवनचारी गिरस्थी कु अफिमान करि वा छन गंगल्वड़ा जनु लुड़कदो, रगड़दो, घिसदो, कुटदो घरजवैं बणिन। बल ‘घरजवैं’ ना सौरासौ ना मैतौ। जै को चूसा तैको चुर्णयां। घरजवैं ठैरो। क्वी बोलदो अजी चमोल्या जी ये काम कोरि द्या।, क्वी बोलदू चला जी दशोल्या जी तख ह्वे ऐ जावा। सर्रा गौं कु भारी-बोझ्या परमानन्द। परमानन्द छौ त नोटियाळ फर तख टीरी मा लोग वे तैैं दशोली चमोल्यौ होण सि चुगलेट मा चमोल्या जी, दशोल्या जी ही पुकारदा ही छया।
उमर सयाणी होणा दगड़ नै गिरस्थी माया मा परमानन्दन अपणी पितर कूड़ी अर बाल बच्चों तर्फा ढुंगा फरकाली छौ। कबार ज्वानी बीती कबार बुढापा ऐन पता नि चलि। तख बडयारगड़ै स्या बिचरि बैरि कज्याणन बि समै पर दुन्यां छौड़ि दिनी छै। जबार तक मनखि का खुट्टा खूब चलणा रैन्द तबार तक वेतें कै सारु-संग्ययोरै जर्वत नि होन्दी पर जब शरेल असंगळया बणि जान्द तब पौ-औलाद जर्वत नि जरुरी ह्वे जांद। पर परमा तैं बुढ़ापा मा पौ-औलादो सुख नसीब नि छौ म्येल्यौ। तख बडियारगढ़ मा तैकु एक लड़ीक अर एक नौनी ह्वेन। द्वियां समै फर बीवै बर्येन, नाती नतीणा भी खूब छया। अब बुढापा नाति-नतीणू घ्याळ मा काटणो बगत छौ पर भाग कख ल्हीगेन। पता नि नौना-ब्वारिन घौर बिटे निकाळी या अफूँ नाड़यूं भगवान जाणों, बल एक दिन बुढ्या परमानन्दन घौर बिटे अपणी फंची उच्यैन अर ठीक पौंछयूँ दिल्ली। कुछेक दिन उनि भटकणू रौ बल तख, अर आखिर दां पौंछिन एक बृद्ध आश्रम मा।
आज तैयी बृद्ध आश्रम बिटे परमानन्दा चलि जाणें खबर भैरपन सूणी साकम्बरिन। कै हैका जगा गयूँ या मथि सच्च क्वो बतालो। स्या घंटा भर बिटे भितरे-भितर कणांट छै कनि। परामान्नदा घौर बिटे दीननौठ होणा कुछेक साल बाद सै-सौरा सुरग बासी ह्वेगे छै। यकुली मनख्याणिल जमीन-जैजाद, गाजी-बाखरी मा जनि तनि सु नौनू सुर्जमणी बारा तक पढ़ायी। नौनू भलो आंकुरी-अकलवान निकळी अर इस्कूल छौड़द यी चट फौज मा भर्ती ह्वेन। कुछेक साल तक तैकु झ्वळा तमळा खूब पणस्याई, गौं ख्वाळा मा खूब आर-सार करि। पर जनि ब्यौ करि ब्वारिल द्वार बाटो बाटू त्यारु नि होण दिनी अर फुर्र उड़िन नोना दगड़ पल्टन मा। आज तीस साल ह्वेगी यीं कूड़ी कि यकुली जग्वाळ करद। ब्वारी का उन्द जाण बगत बयालिस सालै फुंक्याळी साकम्बरी बौत्तर सालै कुबड़ी धनौळी बणिगे छै। सु सुर्जमणी फौज बिटे सुबदारी पिन्सन बी ऐगेे, कासीपुर मा मकान मालिक बि बणगे। एक ज्वान नाती एक नतीण छ। नाती-नतीण जबार तक छव्टा छया साल द्वीयेक साल मा ऐ जान्दा छां घौर। अब बड़ी पढ़ै कना बल इलै टेम नि होणू। सुर्जमणिन बाळापना होस हवास मा औणा पर जब अपणा बाबै कानि सूणी त सु सरम का मारि हट ह्वेन अर तेन तै बुबा तैं तैका करम अर अपणि जिन्दगी तैं अपणा करम पर रखण छोड़िन इलै तेन बुबा परमानन्द तैं कब्बी याद नि करि। क्वी पूछदू तेरु बुबा कख त सु जबाब देन्दू मौरिगे।
क्वारा नाज अर ज्यून्दा मनखी कति परकार होन्दन साब। चलो परमानन्द टयौळि-ट्वपलि रयूँ तब तैकी तति गत्ति-पत्ति ह्वेन, पर साकम्बरी ददि कु त तै ज्वानि बिटे आज तक एकी परकार रयूं अर वा परकार छौ, तिसाळी मायादार, अतृप्त सुवागिण। सु परमा दगड़ ज्वानी उमाळ मा नि भाजि छै बल्कि पिरेमों एक स्वाणु घौर बसाणू भाजि छै, जख भैर भितर पिरेमों बथौं हो, पिरेमों आसण-बासण हो। जिन्दगी भर परमा दगड़ एक गळज्यू घुघती बणि घुराणी रैली, पर ऐरां कैन सोचि छौ कि चौबीस साल मा ही तळबळी ज्वानी सूखी जाली एक धोकादार मनखी पल्ला पकड़ि। बल ‘जात कु घोड़ू औलाद कु बछरु’, तै सुर्जमणी वास्ता सर्रि ज्वानी घिसीं, पस्यौ का छीड़ा बगायी पर तैन बि ‘अछैला घामौ तौ’ ही दिनी। अरे ब्वारी सब्यूं कि ऐन, भैर बि सब्बी बसणा, पर तेरा जन अपीड़ क्वी-क्वी होन्दू, तिन खर्चा पाणि द्ये मेरि तिसळि मायै तीस बुथ्याणे कोसिस त करि पर तू कब्बी यीं ब्वे धौरा नि आयी जिन्दगी भर।
बाप-ब्यटा जति निठुर ह्वेन स्या वति जिदेर। वींन सती सावित्री अर अनुसुया कु बाटू नि छोड़ी। पूरा जीवन भले भितर बिटे कड़ाणी रयी पर भैर ऐंऽ नि ओण दिनी।
आज जै परमानन्दा नौ कि नाक मा लोंग पैरि शरेल स्यूं सुहाग छाला जाणू त्यार छौ होयूँ तैका छाला पौंछणें खबर सूणी स्य छटपटाण छै लगि। घंटा भर तक तै अडासा पर बेसुद सकस्यांदी स्या अचाणचक उतळी ह्वे चिल्लाण लगि। ऐ रे मंसाराम ! ऐ भाट, ऐ मंसा। कख गयूँ रे सु परमानन्द ? ऐ कख गयूँ रे वा धौकादार ? सच्ची चलिग्ये सु भगवान मु। अरे बांमण उन्द चुट्यै द्यूँ रे यीं नाकै लोंग ? बोल चुटयै द्यूं ? साकम्बरी ददि पागल जनि भट्याण लेगे, पछाड़ खै डाड मना दगड़ वींन चट्ट.... रुंगड़ि स्ये नाकै लोंग अर उन्द चुट्यै दिनी। रून्दी रून्दी अफूं तै बोन्न लगि अरे साकम्बरी उन त तिन सारो जीवन विधवा जन काटि पर आज तू सचिगे विधवा ह्ेगी रे !! विधवा .... ।
ऐरां भगवान आज वीं तिसाळी मायादार, अतृप्त सुवागिणें डाड सुणण वळू क्वी नि छौ तख नजीक ज्वा वींकु कणाट सूणी द्वी बचन अपण्यांसा बोली देन्दो। कथाकार : बलबीर राणा ‘अडिग’

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