Search This Blog

Sunday 19 May 2024

गजल


छुस्स-छुस ओंण-जाण नि ख़्यालों तरां,
झक्क बसंत बणी ओंण हर सालों तरां।

माया हक मा नि च तड़तड़ू  कुळें बणण,
झुकी भ्यौटणू सीख नारंगी डालौं तरां।

बिस्वास देणू हिट्टी जाण पड़द हिया मा,
बिस्वास नि दियेंन्दू हैकों मु स्वालौं तरां।

अपण्यांसा छौया नि फूटद लठ्ठ मारी,
अपण्यास उणि बासण पड़द स्यालौं तरां।

बैठी जा धिरगम बण सयी उत्तर जनु,
किलै छ इख्वरी उठणी सक सवालों तरां।

भरम वळा इतियास बि भरमै द्यन अडिग,
सयी इतियास ख्वै जांद ख्यालों तरां।


@ बलबीर राणा 'अडिग'

No comments:

Post a Comment