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Tuesday 5 December 2017

क्षणिकाएं


1.
गीला हाथोंल
थामणु च
सुख्यां रेतक रिश्ता
ये सोची की कि सैद
हथग्वलि नमिल
कुछ देर रुक जाला
अजक्याला ये औडाल से।
2.
बगत बगद च
उकाळ उँदार
द्वि तरफ़ दिन रात
रुखि रुड़ी, गीलू बसग्याल
पूसे ककड़ाट बसन्ते फुलार
बिगैर थो खै
चलणु रैन्द
लिखणु रैन्द
जीवन कु बेsखाता।
3.
उन पैली बटिन
तय त नि छ
पर !
सुख- दुःख
उथान पतने बी
एक उमर होंदी
जलम भर क्वे नि निर्तन साब।
 4.
यु चखळ पखळ
सुदि नि पायी
अपणु म्वोळ माटू करि
भैंस दगड भैंस बणी
तब जे किन आयी।
 5.
क्या स्वचणा ?
ख्वाब गैणा जन
चम चमकद दिखेंण चेंद
झल कीड़े चार दिखणा त
समझो मंजिल पर
पोंछण मुश्किल च।
                                         
*@ बलबीर राणा "अडिग"*

1 comment:

  1. बहुत अच्छि लगी क्षणिकाएं

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