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Sunday 16 April 2017

****मातृ भाषा अर नयीं पीड़ी****

1. मातृ भाषा

जै भाषाक माहौल मा
आँखा ख़्वली
जै भाषा मा ब्वैsन
लाड़ प्यार करि
ब्वन सिखण से पैली
जै भाषा तें
अवोध मन बिंगी जांद
जू भाषा ब्वै की दुधे धार दगड़
शरीर मा पोंछद
वे खुणि बोल्दा मातृ भाषा
अर मातृ भाषा
जीवन पर्यंत म्वरदी नी ।

2. नयीं पीड़ी

मेरु क्या दोष च
ब्वैन हिन्दी मा लाड़ करि
बुबान अंग्रेजी मा प्यार
स्कूलम हिंगलिश सीखी
त मेरी मातृ भाषा
क्या ह्वे।

@ बलबीर राणा "अडिग"
www.ranabalbir.blogspot.in
उदंकार से

1 comment:

  1. अर मातृ भाषा
    जीवन पर्यंत म्वरदी नी ।

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