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Wednesday, 29 June 2016

ज्यूणु सारू


जब आँखि सुदि-सुदि
टबराण लग जांद
गोळी गलघटि अर
कोंकालि ह्वे जांद
अथा मंखियोंक बीच
एकुलांस चितेन्द
रौंतेला डाना-कांठा
फुलोंक बगवान मा भी
मन नि रिझेंन्द
रंगीला पिंग्ला
पोथुलोंक बीच
ज्यू घुघुती बणि रैंद
अर
नजर एकsss टक
कखि दूर
कुछ खुज्यान्द
ये खुणि लोग
ख़ुदक लक्षण बोना
खुद हो या माया
जु भी च
बिमारी भलि नि
फर
ज्यूणु सारू भल च।

@ बलबीर राणा 'अडिग'

Monday, 27 June 2016

आखिर दों

मन्खियात का सारा ज्यूण जिंदगी
निथर काटम्-काट मा कटे जाली जिंदगी
कुदरत की दियीँ सामोण ठुकरोण नि च
आखिर दों लखड़ों दगड़ छार त बणली जिंदगी।

@ बलबीर राणा 'अडिग'