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Sunday, 17 November 2024

धरती मा स्वरग चा गढ़भूमि हमारी




वल सारी सटयाड़ी पल सार क्वदयाड़ी

रौंत्याळी डांडियूँ बीच गौं-ख्वाळी हमारी।

मेरा पाड़ा मुल्क देखा हरीभरी हरियाळी

धरती मा स्वरग चा गढ़भूमि हमारी।


हियूँ चूळा कांठा अर मखमली बुग्याळ 

पंच बद्री पंच परयाग, पंच छन केदार 

घर-घरौं बिराज्यान थौळ अर थान 

द्यौ भूमी धरती बसदा द्यौ द्यबता नमाण 

बारा मैना बारा मासा रंगत रंदी भारी  

धरती मा स्वरग छ गढ़भूमि हमारी।


कांठौं की पीठ बटे छीड़ा छन बगणा  

पाखौं की छत्ती बटे छौया छन फूटणा 

बसुधारा मंगरौं बगदो अमृत जल पाणी  

गंगा जुमना कु मैत हियूँ चूळा हिमानी  

कळ-कळ छळ-छळ छप्प-छप्प छळारी ।

धरती मा स्वरग छ गढ़भूमि हमारी। 


बामणी बौडी धै लगाणी चौक का तिर्वाळी

पुंगड़ौं मा हमारा क्वो छ तू घस्यारी 

घात चटमताळ कनि काकी स्या चुनारी 

किलै खाई मास्तौ तुमुल कखड़ी सु हमारी 

तकदक साग भुज्जी छन बाड़ी सग्वाड़ी।

धरती मा स्वरग छ गढ़भूमि हमारी। 


लौ-मान बगत बार पिंगळी छ सार 

नाज-पाणी रड़का-रड़कि भौर्यान घरबार  

मौ-मदद हाथ बड़ौंदा देंदा सौंग सारौ  

खुसी खुसी उच्यांदा लोग मनख्यातौ भारौ 

बण बोट डुखरा पुंगड़ा रमकौंदी बेटी ब्वारी।

धरती मा स्वरग छ गढ़भूमि हमारी। 

बेटी बिदै गीत

 


मेरी लाड़ी मेरी दुलारी

सूनों करि जाणी चा सारी

जनि बणि रै तू लाड़ी हमारी 

तनि तख तौंकि बणि रयाँ प्यारी ।


उदंकार छै मेरी 

घर कूड़ी त्वैसे

अब भणंकार ह्वैगे 

भैर भिर्त त्वै बिन 

दिवा बणि रै तू 

ब्याली तक जन मैत मा

रांकू बणि रै तनि

भोळ बटे सौरास 

परमत रख्याँ तैेे सौरास हमारी 


मेरी लाड़ी मेरी दुलारी


कुखड़ी सी बांग 

छै तू यीं द्यैळी मा 

मयळी बिराळी जन 

घुसेेन्दी छै ब्वे-बुबों मा

जनि कांडा गाड़ी तिन 

हमारा खुट्टियूँ का

तनि तौंका खुट्टियूँ मा

कांडा ना बुड़ण द्यायी 

खुद लगली तेरी हूमूं कैं भारी 


मेरी लाड़ी मेरी प्यारी


रैन्दू छौ तेरु 

घिन्दुड़ी जन फफर्राट  

होन्दू छौ तेरु 

घ्वीड़ा जन तिबड़ाट 

चट्टबट छै जन 

यीं उबरा डिंडयाळी 

छळबट रयां तख 

सौरस्यूँ कि सारी शाळी  

अपणों मा खूब हुयाँ मायादारी 


मेरी लाड़ी मेरी प्यारी


अब सु घौर 

छौ तेरु अपणूं 

माया लगै की 

जिंदगी तखि खपौण 

तख ही छन तेरी 

जिंदग्या का काम धाम

मैत कि छै तू 

द्वी दिनैं कि मेमान  

नाक धौरी अपणूं घरबार संभाळी ।


मेरी लाड़ी मेरी दुलारी

सूनों करि जाणी चा सारी

जनि बणि रै तू लाड़ी हमारी 

तनि तख तौंकि बणि रयाँ प्यारी ।


Adig


Tuesday, 12 November 2024

ईगास बग्वाळ : माधो सिंह भंडारी



हे उत्तराखंडी नै नवांणों इतियास तुमतैं बताणु छौ

देवभूमि का वे युग पुरुष की  गाथा सुणाणु छौ।

पंद्रह सौ नब्बे दशक मा एक वीर पैदा ह्वेनी
वीर सौंणबाग भंडारी का घौर वेन जलम लीनी
जैsकी गाथा जुग बटि ये गढ़भुमी मा गुंजणी रै
वीरभड़ माधो सिंह भंडारी नाम से वा अजर अमर ह्ववे।

वे युगपुरुष की तागत को ऐसास तुमततैं कराणु  छौ
हे उत्तराखंड .........

बाळापण से उटंगरी रयी वा होंणहार चतुरछंट छौ
लौंची उमर मा यी गढ़सेना कु सिपै बणिगे छौ
वीर क्या वा भड़ क्या एक महारणपति छायो
गढ़ नरेश महीपति शाह को शूर सेनापति ह्वायो।

एक महानायक सेनाध्यक्ष की वीरता तुमतैं बताणु छौ
हे उत्तराखंड .......

ज्वान मा को ज्वान छौ वा दौफरी कु भड़ांग छौ
आगौ जनु भभकार छौ वा, उदमातो फौन्दार छौ
अपणी जलमभूमि का खातिर कत्गा लड़ै तेन लड़ीनी
कति दुश्मनौं का मुंड मोड़ीनी,कत्गों की धौंड़ धड़केनी।

यना वीर की वीर गाथा तुमतैं मि बिगाणु छौ
हे गढ़भूमि का नैनवाणो......

मालों का वे महाकालन, हूण दापों का छक्का छौड़ीनी
भारत चीन बोर्डर तैन वोड़ा मुँडरा गाड़ीनी
पाड़ौ पुटुग सुरंग बणाण वळू दुन्यां कु पैलु इंजीनियर ह्वायू
अपणा लड़ीकौ  बलिदान करि वा पाणी कूल बगै ल्यायौ।

यना परोपकारी मणखी कु सत तुमततैं समझाणु छौ
हे उत्तराखंड का .......

थाती माटी का खातिर यनु भगिरथ काम करिगे वा
जन्मजमान्तरा वास्ता मलेथा को उद्दार करिगे वा
एक सिंह बण को, एक सिंह गाय को
एक सिंह माधो सिंह, हैकू सिंह काहे को

इना महाशेर कु शूरत्व आज तुम खुणैं दिखाणू छौ
हे उत्तराखंड का ......

मणखी छौ वा अनमणमाथी को राणियों को रौंसिया छौ
अपणों का खातिर मयाळू मायादार फूलों को हौंसिया छौ
एक बार विजय रथ तौंकु छवटा चीन तलक गैनी
निर्भगी बीमरी लगी जु सदानी तैं घौर बौड़ी नि ऐनी।

मृत्यु शय्या पर बैठ्यां तै पुरूष की रणनीति तुमतैं बताणु छौ
हे उत्तराखंड का.....

साहसी निडर तै भड़न,आखरी दों सिपैयों तैं समझायी
मेरा म्वने खबर दुश्मनो  थैं पता न लगण दयायी
निथर तुम एक भी ज्वान घौर र बौड़ी नि जाला
दुश्मन थैं पता चलि त तुमतैं यखी लमडे दयला।

वे गढ़भूमि का रणबांकुरै आखरी ख्वाइस बिंगाणु छौं
हे उत्तराखंड का.....

लड़णै रय्याँ पिछने हटणू रय्यां फिर घौर बौडी जयां तुम
मेरा शरील तैं त्यौल मा लपोड़ी हरिद्वार मा जगे दियां तुम।
यीं बीर गाथा कु परमाण इतियास हमूतैं बतौंदा
त्याग समर्पण की मिशाल आज मलेथा की खुशाली समझौंदा।

देवथाती का वीं युग पुरुष की प्रेरणा तुमतैं सुझाणु छौ
हे उत्तराखंड का .....

लोक गाथा पंवाणों मा तै वीर की कथा औंदी
बग्वाळ मा नि पौंछी सु त गढ़वाळन बग्वाळ नि मनेनी
इग्यारा दिन मा जब वा भड़ लाम बटे घौर बोड़ी ह्वेनी
तब गढ़ देशन बगछट ह्वे बग्वाळ मनेनी।

अपणा सपूत का खातर लोगों की श्रद्धा बताणू छौ
हे उत्तराखंड का.....


*** वे समै मा मलेथा कु लोक व्यवहार***

बारा बित्या मास अर छई ऋतु चली गैनी
बारा ऐनी भेलो बग्वाली सोला शरद पूरा ह्वेनि
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।


करुणा कनि रे राणी बौराणी, धरती पछाड़ खाणी रैनी
हिन्क्वाण पड़ी रौ गौं ख़्वाळो, हाथ क्वी धाणी नि लगीं
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किलै नि आयी

चौंल छड़याँ का छड़याँ रैग्यां दाल दौलीं की दौळी रै ग्यायी
ऊनि रैग्ये बासमती च्यूड़ा, थौला कांकर टंग्यां रैनी
सब्बि ऐना घौर बौड़ी की, मेरु माधो किले नि ऐनी।

हे मेरा नै नवाणों यू छै बीरभड़ माधो कि कथा
स्वोना आंखरों से लिख्यों  रैलू वे पुरुष की शौर्य गाथा ।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

संकलन सभार:-
हरिकृष्ण रतूड़ी रचित और श्री डॉ यशवंत सिंह कटौच द्वारा संपादित एवं संशोधित गढ़वाल का इतिहास, डॉ बीरेंद्र सिंह बर्तवाल रचित गढ़वाली गाथाओं में लोक और देवता और डॉ नंदकिशोर हटवाल जी के ग्रंथ चांचडी झुमाको से। 

Saturday, 9 November 2024

स्वीणा उपन्यास

 


ना ब्वे निकमु त ना । स्वीणा त भलु छौ पर, होलु कबि मेरु यो स्वीणा सच्च ?? ”आला कबि पाड़ का दिन“ ? यु छ स्वीणा उपन्यासा नायक बंशी कु रैबार सवाल अर दगड़ मा छन स्वीणा उपन्यासौ सार।

स्वीणा उपन्यासै पूरी जात्रा कना बाद उपन्यासा आखिर लेन मा ज्वा यु रैबार मिली अर सवाल उठि वा हमारा उत्तराखण्ड मा चिरंजिवी, चिरायु छ। चिरंजिवी, चिरायु इलै कि अब हमारू राज्य क्वी लौंच्या नवाण ना बल्कि ज्वान समझदार राज्य बणिगे बल। राज्य का ज्वा स्वीणा हमारा आंदोलनकरियून देखिन, ठिक ठिक उनि स्वीणा पढ़यूँ लिख्यूँ बिरोजगार झांझी संगठनों नेता बंशि बि द्यौखणू। कि हमारा जड़ जंगळ जमीन बचीं रावो, घौर गौं रिता ना हो, अपणा यी पाड़ मा रुजगार हो, ज्वानों तैं भैर ना भटकण पड़ौ, पढ़याँ लिख्यूँ तैं सरकारी नौकरी मिलो, हमरि भाषा संस्कृति सैंदिष्ट रावो, लोग राजन बाजन रावो, दारू प्यै कैकि मवसी घाम ना लगौ। यु मात्र एक संजोग छ या इना स्वीणा यीं राज्य का तमाम ज्वान द्यौखणा छन ख्वणी-ख्वणी ? किलै कि राज्य बण्यां 25 साल बाद बि पाड़ै अर पाड़ियूं कि मूल स्थिती जनि कि तनि छ जादा कुछ नि बदली। कुछ बदली त सूना होणा गौं मा रोड़ो जाळ अर पढ़यां लिख्यौं का बूरा हाल। असल मा कन हूँण चैणू छौ अर होणू क्या छ ? येकु जबाब कैमु नि ।   

      आज आम आदिमा नौना तैं सरकरि नौकरी मिलण मतलब ऐवरेस्ट चढ़ण बरोबर छ। आज तलकै कुछैक  सरकारन अपणा वोट बैंका वास्ता तराई जिलों मा बिधर्मी बसैन त कुछैकन भैरा भू माफियूं तैं इन्वेस्टा नौ फर पाड़ै जमीनै बंदर बांट करि। अब सुणण मा औणू कि बल बंगाल्यूँ तै पाड़ी राज्य मा विशेष दर्जा अर रियायत द्यौणू को धर्मात्म कारिज होणू बल। वादा/सौं-करार कुछ बि हो पर पाड़ै ज्वानी अर पाणी आज बि पाड़ा काम नि औणी बिल्कुल ना। हाँ कुछ काम औणी त वा नेतौं की औणी ज्वा वूंका झंडा डंडा पैथर छन अपणू भबिस्या द्यौखणा। यनु भबिस्या यीं उपन्यासा नायक बंशिन बि त खौजी कि कै बाटू ह्वै चम्म चम्माक टुक्खू फर पौंछी जै सकद। भले बशि झांझी यी सयी पर स्वीणा द्यौखणों अधिकार वेकु बि छन। भले आज हमारा लोकतांत्रिक द्यौश मा सब कुछ चीजों अधिकार छ पर मिल्दो सब कुछ नि यु सच्च छ।

      श्री राकेश मोहन खन्तवाल जी द्वारा रचित उपन्यास स्वीणा“ 112 पन्नौ मा 31 अध्यायों पड़ौ ह्वै अपणी जात्रा पूरो करदो। उपन्यास बिनसर प्रकाशन बटे 2023 मा प्रकाशित होयूं बसरते मेरा हाथ यु पौथी अब्यौर लगी। उपन्यासै भूमिका सिद्धहस्त साहित्कार डॉ0 प्रीतम अपछ्याण जिकी र्वे-हैंसि-सोचूं कु ऐनाशिर्षक से लिख्यूँ छ। जख कै पोथी भूमिका क्वी सिद्धहस्त कलम लिखदी त वीं पोथी अकल सकल पैली दिखी जांदी। अब भूमिका मा क्या च अर पोथी सकल अकल कन छ येका वास्ता आपथैं स्वीणातैं पढ़ण ही पढ़लो।

      उपन्यासा सीन पटल लंबा नि छन बल्कि छ्वटा छ्वटा भागों मा पटाक्षेप करियूं, ज्वा कानियूँ तैं जादा नि खिंचद। उपन्यास मा पात्रौं औनार बिनारौ खूब भलू चित्रण होयूँ, जैमा पात्रै कद-काठी, चाल-ढाळ काम-धाम आदि पाठकों तैं कमति समै मा पात्र उणि समझण बिंगण मा मदद देन्दी। द्यौखा बल -:

बंशि जनु बैख ईं दुन्यां मा कम होंदन, ग्वारु चिट्टु, हट्टु कट्ठु, लम्बि काळि पठुलि, नीलि आँखि, तड़तड़ड़ि नकुड़ि, अर सुहाँदि दंतुड्यूँ कि छपाग। भगवानल जन वेथैं तन दे, तन सुन्दर मन बि दे। सीधु सच्चु मिलणसार, दया भाव रखण वळु मनखि छौ बंशि। एक हैका पात्रौ चित्रण द्यौखा -  विधायक साब, मूँछ कटा, लम्बा चौड़ा, लटकदी तौंदधारी मिठ्ठि गिच्ची कु जड़कटू। यनु चारत्रिक वर्णन पाठक का मन मा पात्रै एक छवी बणैं द्यनी ज्वा कै ना कै रूप मा हमारा होर-पोर रंदन। यु हि एक सल्ली लिख्वारै पच्छायाण होन्दी।

      उपन्यासै सबसे बड़ी उपलब्धि यु छ कि लोकभाषा अर संस्कृति का हिसाब से जनु लोकाचार साहित्य मा अपेक्षित होन्दू बिल्कुल भैर नि, यु ही हमारो ठेठ लोकाचार लोकव्यवार छ। उपन्यास मा लोकवाणी मा क्वी नकलीपन नि। एक संवाद द्यौख बल -:

बकबास बंद कैर । बड़ि करम तिड़ोण वळि अयिं। तु क्वी राष्ट्रपत्या औलाद छै। बखरेळ कि औलाद छै तु ?

निरभै माचदा.... मेरु बब्बा त मान मर्जादा इज्जतदार वळु छौ। त्वेमा क्या छ ? 

पैंसा छै मा पैंसा।

थू..... स्य पैंसा फर ...। जो मान मर्जादा से बड़ो होणु।

अच्छा ?

तै गिच्चौ बंद राखा...। न ह्वा जू फोड़ी दयूँ कोखि। मेरु बुल्युं छ मेरा मैत्युं खुणि नि बुन कुछ वा।

बुनै मिन, क्या कनै तिन ?

क्या कनैई .... ले त ...। अर छीलन मरीं दे घपागताळ।

जख आम लोकवाणी अर लोकव्यवार औणा पखाणों बिगैर पूरा नि होंदू वख साहित्य भाषा मा रस्याण अर लालित्य नि आंद। हमारा औणा पखाणा ही हमारी लोकवाणी तैं रस्याण का दगड़ हमारी भाषै गैराई अर गूढ़ता तैं लक्षित करदी। कानी मा श्री खन्तवाल जिन यीं बातौ पूरौ ध्यान रखि, जरोरतसुदा जगा फर मंजूरसुदा औणा पखाणौं सुन्दर परयोग होयूं छ। उनि जख आम लोकवाणी बिगैर गाळियूँ कि पूरी नि होन्दी, अर आम लोकारचार मा यु बुरो बि नि माण्येन्दो, इना गाळी कु बि रौंसदार अर रंगमत परयोग होयूं छ। एक संवाद द्यौख बल -:

हे बामण कख लगीं तेरि झगुलि टोपिलि डाळ ?

हे बामण क्या बोनू छ ? अंक्वे देखी जरा।

मेरि गणत ई बतोणि।

कांडा लगला तेरि गणत पर। स्यूँ आँख्यूँ मा रिटला गरूड़..। अंक्वे हेरी जरा।

धौंपा सुबदन तैं बिरजू बामणौं बतायूं बाटु भले पाठकों तैं अटपटू लगलो पर हालात अर आम समाजौ रौ-भौ मनखी कि मनसा विचार बदली द्यन्नू। जबकि धौंपा सुबदन तैं पता छौ कि सु बाटू निहोण्यां र्निबिज्या छन फिर बि वा अपणा सिद्दा लड़ीक तैं दारू प्यैंणू बोल्दी। अर इना कुछैक नाटकीय कथानक कमजोर कानी पक्ष तैं बि इंगित करदन, पर यनु भौत कम छ जखमु जरा कमजोरी औंदी कानी अग्नै फेर दड़दड़ी ह्वै दौड़ण लगि जांदी।   

      स्वीणा उपन्यास हमारी वर्तमान व्योवस्था को एक दस्तावेजीकरण बि छन। लिख्वार लमडाळ चंट झुट्यारौं फर चट्टाक चटकताळ मारदू अर इनि सक्या तब्बी आंद सब समाजा प्रति कलम सजग अर बिजी रैंदी।  येतैं उततराखण्डै दिशा-दशै सैंदिस्ट औनार बोली जावो त बिल्कुल गलत नि होलू। दारू कु धिवाड़ौ अर राजनिती को मनस्वाग आज पाड़ै पाड़ियत तैं चपट कनि। विधायक गुरूपाल सिंह रावत जना कतिगा र्निमुख नेता कुर्सी फर जूंक जनु चिपकी आम जंता तैं चूसणी। कुर्सी का वास्ता नेता लोग कै हद तलक अपणाी मनख्यात अर जमीर तैं मारदन तैकु बड़िया चित्रण होयूं छ। उपन्यास मा उत्तराखण्डै जड़ समस्या पलायन, शिक्षा अर शिक्षकों दशा, आम समाजौ रौ-भौ सब्बी मूल कारणों कु कारकीय चित्रण कन मा उपन्यासकार सफल से बि अब्बल छन।

      दारु प्यै भाग मा उदंकार होलू भले यु बात हमूतैं नाटकीय लगली फर आज का प्रसंग मा हमारा नीति नियंता नेतागण यनु ही द्यौखणा अपणी कुर्सी वास्ता। मेरी टुपली वास्ता हैकै झगुली घाम लगी जावो यीं बातै चिंता स्यता कपड़ा वळौं काळु मन नि करदू। क्वौ जीतणू कनक्वै जीतणू यु सवाल ऐना जन साफ छ? ज्वा जति द्वी नम्बरी छ वा वति एक्का कु तुरूप साबति होन्दू। ज्वा जति दागी सु वति माननीय। सत्तर अस्सी का दशक बटे चुनौ जीतणौं यु फंडा आज हथकंडा बणि मुख्य हथियार बणिगे। अज कैतैं पता नि कि प्रधान से संासद तक सब अपणा वोटा वास्ता बोतळ अर नोटों इस्तमाल हथियार को रूप मा करदन। पार्टी बि वूतैं टिकट देंदी जैमा पैंसा छन जैमा यीं हथियार चलाणों सगौर छ। चुनौ जिती गुरूपाल जना नेता भबिस्या नीति नियंता बणि जांद। यु सोचाणें बात छ कि आज बि भारतौ आम वोटर जगरूक नि। अर पूरा द्यौस मा आम वोटर को छ ? गरीब । ज्वा एक पव्वा अर हजारा नोट मा बिकी जांद। नेतौं पिछनै लेन लगाैंण वळा जादाकर घन्तु अर मुतग्या जना झांझी होन्दन ज्वा दारू पैथर अपणू भबिस्या चौपट करदन अर नेतों भबिस्या बणौंदन। सामायिकी को यनु चित्रण देखी लगदो कि उपन्यासकार यूँ छीड़ा छपौड़यूं मनखी छ, पर सच्च मा बिगरैलो चित्रण करयूँ, जै चित्र तैं आम समाज घौखणू भौगणू पर चुप्प दांत किट्टी लगै सौणू वेतैं सच्ची कलम नि सै सकदी अर यनु खन्तवाल जिन साबित करियूँ स्वीणामा। 

उपन्यास कु मूल कानी तत्व स्वीणा छ, अर स्वीणा भलो, बुरो नाटकीय, अप्रत्याशित कुछ बि अंट संट उटपटांग ह्वै सकदो चै वेमा झांझी बंशि अपणा झांझी संगठना जुझारूपन अर आंदोलना वजै सि सरकार गिराण मा सफल ह्वै मुख्यमंत्री किलै नि बण जांद। पर यखमु एक बार गौर कन वळी छ कि मनखी चैतना मा कै चीजौ चिंतन बिगैर वेकु स्वीणा नि औंदू। जब कखी ना कखी क्वी बात चेतना मा एक मामुली अंश रूप मा विराजमान होन्दी तब्बी वा सुपन्यां मा औंदी यु वैज्ञानिक तथ्य छ। पर जब चेतना मा मामुली अंश ना बल्कि पूरौ पाड़ हौंद त स्वीणा औण बि वाजिब छ अर वूंतैं साकार कनो संघर्ष बि। उन त सब्बी साहित्यकारों कलम फर कविता, कानी, व्यंग, आलेख आदि रूप मा राज्यै यनि औनार बिनार औणी रयी फर जतिगा बड़ी समस्या छ उतिगा बड़ा रूप मा श्री खन्तवाल जिकि कलमन देखी वा वूंकि कलम की विलक्षणता छ।

      उपन्यास मा अणमणमाथी पात्र आपतैं द्यौखणूं मिलला, जख धौंपा सुबदन अपणा लड़ीकौ भबिस्या दारू मा द्यौखदी वखि राधा जनि बड़ा बिधायक बुबे बेटी अपणी व्बे कि मौतक बदला अपणा बुबा सि लेणू एक झांझी दगड़ ब्यौ करदी। घन्तु, मुतग्या माझांझी जख वर्तमान मा अंग्वाळ बोटी अग्वाड़ी पिछवाड़ी सौचणें सक्या नि रखद वखि कीड़ि अर कीड़ि व्बे मजबूर पात्र छन ज्वा बिधाता कि लेखी हालतों मुकाबला करदन। जन कि कुर्सी जाणा बाद हर नेता बौंफर ह्वे खौ बाग बणि जांद, विवेक शुन्य ह्वै कैकि हत्या कनु उतारौ ह्वै जांद यनु चित्रण उपन्यास का आखिर मा बिधायक गुरूपाल सिंगौं दिखेन्द।   

      उपन्यास मा भाषा शिल्प देखी जावो त एक सल्ली भाषा शिल्पी पच्छयाण हौंद, जख मि द्यौखणू वर्तमान गढ़वली लेखन जादाकर हिन्दी का ऐना से लिख्येणू पर श्री खंतवाल जी कलम अज्यूँ अपणा धार-खाळ, उबरा-डंडियाळी, गौं -ख्वाळौं मा टकटकी छ। निथर आज ठेठ गढ़वळी ना त व्यौवार मा रयीं अर ना ल्यौखण मा। गढ़वळी मानकीकरण की बात करै जावो त कलम यीं बाटा हिटणें कोसिस त करदी पर फेर अपणा ठेठ राठी का धौर दम खम्म सि बाटू नापण सौंग चितान्दी जनुकि मि अपणी दशौल्या मा चितान्दू।

      आज सगर्व बोली सकदा कि यु काल गढ़वळी साहित्य को स्वर्णिम काल छ किलै कि जति आज रचैंणू तति पैली कै काल मा नि रचैगे छौ। पर क्या गढ़वली रचनात्मकता सयी दिशा मा जाणी छ ? यो अपणा मा एक सवाल बि छन अर ऐना विशेषा का चश्मा से उत्तर बि ह्वै सकदो। सोशियल मिडीया का यीं चट्ट छप्पास, दप्प दिखास, लैक अर वाह्ह वाही का काल मा अच्छा साहित्य रचणें गुंजैश कमि छ, किलैकि यीं दौर का लिख्वार ल्यौखणू छांट जल्दीबाजी कना जै कारण सि सद्य साहित्य कम रचैणू। चलो जु बि जन बि छ संतोष यीं बातौ छ कि लिखैंणू छ। यामा कविता खूब छन रचैंणी अर छपैणी पर ! गद्य मा राकेश भै जना कुछैक साहित्कार ही छन जु धीरज धिर्घम पर ल्यौखणा। स्वीणा उपन्यास का माध्यम सि उत्तराखण्डा हाल स्वाल ल्यौखण दां लिख्वार बौर्डरौ सिपै जनु चकचकौ चौकस रयूं कि क्वी चीज छूटौ ना, वून सर्तक ह्वै क्वी बात छवाड़ी नि। 

      चलो लिख्वार त अपणू धरम निभौंणा पर एक हौर जटिल सवाल छ कि यीं साहित्य तैं पढ़ण वळा कति छन ? सैद जबाब हम साहित्य बिरदरी ही जण्दी। वूंतैं ना सवाल ना जबाब जौंका वास्ता क्वी कलमकार अपणू बगत खपै पूरो ग्रन्थ रचणूं। अब हमरी भाषा साहित्य क्ज्ञ वास्ता यु एक चिंता को विषै ना बल्कि ज्यूण मरणू सवाल छ। कुछैक साल पैली जबार प्रिंट मिडीयौ जमानू छौ लोग बाग पढ़ी ल्हीन्दा छा जनि तनि पर आज सबकुछ मुबैला दौर मा आम आदिमें किताब पढ़णें आदत जाणी छ, बगत ही नि कैमा, मुबैल सि फुर्सत मिलौ त तब क्वी पढ़ौ। यामा छ्वटा बड़ा दाना सयाणा सोब सामिल छ।

      मितैं व्यक्तिगत राकेश भै पर गौरव छ कि अपणी भाषा संस्कृति अर अपणी जलड़यूँ खातर समर्पण अपर्ण यी छ कि एक साहित्यकार ठेठ अपणा गौं बबीना दुधारखाळ बटे कमति सौंग पत्ता मा उपन्यास जना सद्य गद्य तैं रंचणू। जै गद्यै सगत जरोरत आज हमारा साहित्य तैं छ वेका वास्ता राकेश भै लगातार लग्यां छन। स्वीणा राकेश मोहन खन्तवाळ जिको तीसरौ उपन्यास छ, ये से पैली वून मुसक्यामारअर मायाजाळउपन्यास लिख्यूँ छ। उपन्यास का अलौ श्री राकेश मोहन ख्न्तवाल जिकि साहित्य जात्रा भौत लम्बी छ, जेमा कविता, कानी, जीवनी, अनुवाद फिल्मी पटकथा आदि विधा कु लेखन शामिल छ। यांका अलौ साहित्कार व्यक्तिगत जीवन मा समाजसेवा, पर्यावरण सेवा अर शैक्षिक कारिजों मा निरंतर लग्यां रंदन। श्री राकेश मोहन खन्तवाल जिका आत्मसंयम अर कर्मयोग हम सब्यूँ तैं प्रेरणा छ कि अपणी माटी अपणी पितृकूड़ी मा बिगैर संसाधनों का बि कालजयी साहित्य रचै जै सकद। अर सीख छ कि लगन सि कै बि काम करला त रिद्धी सिद्धी प्रसिद्धी पिछने दौड़ी आली। स्वीणाउपन्यास सद्य कृति का वास्ता भै श्री राकेश मोहन खन्तवाल जितैं यीं दीपसांग बौर्डर बटे सलामी देन्दू शुभकामना देन्दू।   

                                                                  @ बलबीर राणा अडिग

Tuesday, 8 October 2024

उज्याळा दिन जरूर आला

   




   उन त श्री गिरीश सुन्द्रियाल जी फर ल्यौखणां वास्ता मेरी अवोध कलम अज्यूँ अजाण छ पर अपणी अडिगता से बोली सकदू कि अगर आपक हिया मा अपणी लोकमाटी वस्ता सच्चिगौ पिरेम अर श्रद्धा छ त आप गिरीश सुन्द्रियाल बणि सकदन। आज सुन्द्रियाल जी हमारा लोक मा कै नौ का मोताज नि छन। विशुद्ध लोकतत्व आपै कलमें पच्छयाण छ, गीत, कविता, कानी, संस्मरण, शोधात्मक आलेख, निबन्ध, मुखाभेंट साक्षात्कार आदि साहित्यै क्वी बि विधा इन नि छ जैफर आपन अपणा सृजन का बीज नि बूतिन हो, बूती ही नि बल्कि आज आपक सृजनों डाळौ पन्द्रा से मथि पोथियूँ रूप मा पल्लवित ह्वै झकमक्कार बणि फूलणूं फलणूं छ। 
हिन्दी मा एक कावत छन कि ‘हाथ कंगन तैं आरसी क्या, पढ़यां लिख्यां तैं फ़ारसी क्या’ ? मि त अब जरोरत मैसूस कनु कि गिरीश भै का साहित्य पर शोधौ बगत ऐगे। कै साहित्यकार का साहित्य मा लोक तत्वै गैरे सुद्दी नि दिखेन्दी, असली लोकसृजन तैं लोक जीवन तैं काटण यी नि बल्कि ज्यूण पड़दू, भुगतण अर बौकण पड़दू तब जु पसिना लारा धारा बगदा सु जान्दन वीं डाळी जौड़यूँ तक गैरा। तब फूळदी डाळी तब लगदा फल। उमर का इतिगा कम समै मा गढ़वळी साहित्य मा ज्वा सृजन श्री सुन्द्रियालजिन करि वा वूंतैं आम से खास बणोंणा वास्ता भौत छ। अपणा स्वतंत्र लेखन का अलौ उत्तराखण्ड लोकभाषा इस्कोल पाठयकम्र तैयार कन, चिठ्ठी पत्री, अंज्वाळ अर गढ़वळी लोकगाथाओं जना पोथियूँ संकलन अर संपादन, गढ़वळी का नवांकुर कलमकारों पोथयूँ मा भाषीय अर व्याकरणीय फ्रूफ रिडिंग कन जना काम आपक निस्वार्थ साहित्य स्यवै औनार छ, यीं सेवा परताप उत्तराखण्ड सरकारन बि आपतैं ”उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान 2023“ द्ये सच्चा साधक को मान बड़ायी। 
यीं रैबार मा श्री सुन्द्रियालजिका पूरा साहित्य तैं नि बिरै सकदू पर इतिगा बोली सकदू कि हमारी मातृभाषा संवर्धन संरक्षण मा आपौ सृजन अविच्छिन्न छ, गढ़वळी साहित्य मा आप जुगों तलक जुगराज रैला। उत्तम सृजनात्मकता अर मयाळा कंठ का रूप मा आप फर माँ सरस्वती अर माँ वीणा कु असीम वरदहस्थ छ, मैं क्या पूरो गढ़वाळ मुरीद छन आपक कृतत्व कु। समग्र कृतत्व का ऐथर बड़ी प्रेणा द्यौण वळी बात यु छ कि जख आज हमारो आम लोक समाज पाश्चात्य रंग का तरफां भाजणूं तख पूरी सुन्द्रियाल मवसि अपणा लोक तैं सींचण फर मैसीं छ। हमारा लोकसाहित्य का सशक्त हस्ताक्षर श्री सुन्द्रियाल जी सबसे पंसदीदा सृजन विधा गीत छ, यीं सृजनै अग्नै लपाग मा आपा गीत संग्रै ”आला उज्याळा दिन“ का वास्ता भौत भौत बधै अर शुभकामना। यीं काराकोरम पास चैना बोर्डर बटे भरोसु नि बल्कि यकीन करदो कि आप जना साधकों परताप हमारी भाषा मा उज्याळा दिन जरूर आला।  


बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’ 

द्वारा 56 सेना डाकघर 

Wednesday, 18 September 2024

पितृ स्तुति : हरिगीतिका छन्द (गढ़वळी)



दिव्य  दृष्टा  हमारा  रचैता, वंदन  बार  बार  चा।

सेवा-सौंळी च पूज्य पितरो, नमन तौं हरबार चा।१।


तुम यी छन जीवनक आधार, तुमूं पालणहार चा 

तुमारा आशीर्वादन हमूं, फलियाँ झकमकार चा।२।


अब ऋषि छन तुम गैंणा बणिग्याँ, नाथ तुमू माथ चा।

बंसावळयूँ  की हौंणि खाणि, सोब  तुमरा  हाथ  चा।३।


तुमारा नितर तर्पण अर्पण, पितृपक्ष श्रद्धांजलि चा।

कखड़ी मुंगरी ऋतु फलफूल, हमारि भावांजलि चा।४।


झट आवा तै द्योलोक बटे, परोस्यूँ पिंड प्राण चा।

रै होली कुछ अधीती तीस, धरियूँ पितृप्रसाद चा।५।


आशीष रख्याँ अपड़ि जलड़यूँ, दियाँ सुखि वरदान चा। 

राजी  रैली  संतति  पितरो, रैलु  तुमरो  मान  चा।६।


सभी  जोगी योगी अल्प मृत्यु, पितरौ धै  नमाण  चा।

अन्न पाणी पय स्वधा पितरो, द्यबता प्रथम स्थान चा ।७।


जीवन  खपांदू  मनखी अपड़ु, औलाद  खातरा चा। 

लखड़ू जळीकि पिछने औन्दू, सब्यूँ की जातरा चा।८।


ऋण होंदो पितरोंक हमूफर, हम  वूंक  परताप  चा।

पितृऋण चुकाणू श्राद्ध बाटू, नित जीवन त्रिताप चा।९।


सनातन  धरम मायी  यकुलो, यीं  दुन्याँ व्यौवार चा। 

अपणा पितरों का खातर यनु, श्रद्धा को त्यौवार चा।१०।

@बलबीर सिंह राणा 'अडिग'

Tuesday, 20 August 2024

सौंणा मैने धाद



 सौंणा मैना (अगस्तै) धाद मिली, उन त धाद का सब्बि अंक हमारा साहित्या दस्तावेज छन पर अगस्त को यो अंक ऐतिहासिक दस्तावेजी अंक छन, ऐतिहासिक इलै कि यु हमारा लोकसाहित्य, लोकगीत अर लोकसंस्कृति का शिखर पुरुष श्रद्धेय गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी का सृजनै स्वर्णजयंती अर उमरै हिरक जयंती पर आधरित अंक छन दगड़ मा हमरि लोकभाषा अर संस्कृति की मानक मासिक पत्रिका धादै स्वर्णजयंती, सुंदर संजोग। ये दां यु मेरु सुभाग रौ कि श्रद्धेय नेगी जी का जलमबारा दिन बारा अगस्त संस्कृति विभाग प्रेक्षागृह देरादून मा ये पावन दिन कु साक्षी रयूँ। जख वूंका सौ गीतों पर श्री ललित मोहन रयालजी कि रची शौधपोथी कल फिर सुबह होगीको लोकार्पण बि ह्वेन। जु अपणा मा विलक्षण प्रतिभा कु द्योतक छन। आजौ यु रैबार ये पोथी पर ना बल्कि धाद का अगस्त अंक पर पैटाणू। आप विद्वानोंक बोलण सच्चू छ कि गढ़वाळ तैं बिगण हो त श्री नरेंद्र सिंह नेगी तैं बींगा गढ़वाळ समझ मा ऐ जौलु। गढ़वालै आत्मा तैं इतगा सिद्धहस्ता से सैद कै साहित्यकार कलाकारन चित्रित करि हो। श्री नेगी जी पर जति बोला कम ही छन सु व्यक्तित्व गढ़ावळ सागर छन या बात आप विद्वनोंल धाद का ये अंक का बड़िया समझण अर बींगण वळी भाषा मा समझायूँ ।  

धाद मासिका ये अंक मा धादा सम्पादक अर हम सबूंका प्रिय लोककलम का सशक्त हस्ताक्षर श्री गणेश खुगशाल गणी जिका सारगर्भित सम्पदाकीय का दगड़ तैरा विद्वानोंल श्रद्धेय नेगी जिका सृजन अर रचनाधार्मिता पर अपणी नजर अर नजरिया पैटायूँ। चौदवूं लेख श्री पंकज सुन्दरियाल जीकि कविता छन। सुन्दरियाल जी अपणी कविता का आखिर मा ल्योखद कि तुम जनो क्वी नि ह्वै, बिल्कुल सच्ची बात अब्बी त ना पर भबिस्या मा होलू क्वी जरूर, किलै कि या धरती बगत बगत फर अपणा सच्चा पुत्रों तैं जलमेन्दी।  

      पत्रिका मा पैलो शौधात्मक आलेख श्री देवेश जोशी जिको छन जैमा श्री जोशी जीन नरेंद्र सिंह नेगी जी का सृजन मा लोकतत्वउकेर्यूं। लेख जोशी जिको मानव विज्ञान, साहित्यै गैरी परख अर आपार शब्द संपदा तै बतान्दू। श्री जोशीजी जति सिद्धस्त रचनाकार छन वति गूढात्मक अर संवेदनशील विवेचनाकार समिक्षक छन। आलेख मा जोशी जीन श्री नेगी जीक सृजनता को बारिकी सि विश्लेषण करियूँ। श्री जोशी जी रूसी कवि रसूल हमजातोव अर श्री नरेंद्र नेगी जी तैं एकी औनारा व्यक्तित्व बतांद कि अपणी माटी अपणी भाषा से सच्चु आत्मीय लगौ कु प्रतिफल छन कि यूँका सीमित क्षेत्रीय सृजन हौणा बाबजूद बि जगप्रसिद्ध छन। कास ये बात अपणों से मुख मौड़ी पछिमें तर्फां भाजणी नईं पीढ़ी बिंगो कि उन्नती कु पैलु ड्वार अपणा घौर बटे खुलद।

      पत्रिका मा दुसरो लेख हमरि लोक अर लोकभाषा शब्द संपदा का स्तम्भ भाषाविद श्री रामाकांत बेंजवाल जी को छन जेमा श्री बेंजवाल जीन श्री नेगी जीका सृजन मा हल्दीहाता मांगळ गीतसंकलन पर अपणी नजर रखी, कि श्री नेगी जीन हमारा लोक मा इना-उना विखर्यां, अद्दा-पूरा मांगळौं तैं इकठ्ठा अर संगीतबद्ध कैर अपणा कंठ सि हौर बि लोकप्रिय बणायी, ज्वा हळिदीहाथ नौ कैसेट का रुप मा आम लोक जनमानस तक पौंछी। दगड मा यूँ मागळौं तैं नयाँ साज सज्जा अर कलेवर मा धरी श्रीमती उषा नेगी जीन पल्लवित करि, ज्वा आज हमारा करिजोंमा स्टेटस सिम्बल बणी। 

      पत्रिका मा तीसरु संस्मरणात्मक आलेख उत्तराखंड साहित्य रत्न श्री गिरीश सुन्दरियाल जी को छन, आलेख मा सुन्दरियाल जीन अपणा गीतूँ बिज्वाड़ मा श्रद्धेय नेगी जिकी छत्रछाया तैं कुतग्यळी अर कौंकळी लगाण वळा अप्रीतम संस्मरण से रखी। सच्ची मा देखा त हमारि ये पीढ़ी का लोक साहित्यकार, कवि, गीतकार, लोकसंस्कृति पिरेमियों अर गवव्यूँ कि सृजनता को बीज नेगी जिका सृजनता से यी अंकुरित ह्वेन। साब क्वी बि व्यक्ति अपणा च्वैसा फिल्ड मा अग्नै पौंछणा वास्ता एक आदर्श छवि रखद अर वे छवि तैं अराध्य रुप मा पूजी अपणू करम करद। अर सु आईडियालॉजी व्यक्ति तैं प्रेणा द्ये प्रेरित करदी अर लक्ष्य चुँळखी पौंछाणूं हाथ पकड़ी गौळा तरान्दी। सैद करमों कु यां सि बड़िया प्रतिफल क्या होन्दू जख सुन्दरियाल जी पौंछयां अर बड़ा सिद्धहस्त सि अपणी मातृभाषै जात्रा सकुटुम्बदरी कना। आलेख मा श्री सुन्द्रियाल जी एक बात टक्क लगे बोलदन कि जै लेखन का कन्टेंट मा ज्यान होली वा यी ज्यूंदू रैलो। बगत कलम कागज खर्चणा बाद जब तुम संतुष्ट नि त समाज कनक्वै संतुष्ट ह्वै सकद। बिल्कुल गुरुजी वर्तमान लिख्वार सोशियल मिडीयै यीं झ्टट-पट्ट झूट्टी वाह-वाही मा कन्टेंट उना दी द्ये पाणा ज्वा एक आदर्श समाजा वास्ता चैन्द। चलो आम अर खास मा फरक बि त हौंण जरूरी छन। नेगीजी प्रतिष्ठा मा आपक गीत सर्व नेगी चालीसा छन। 

      पत्रिका मा चौथु आलेख गढवळी लोकसाहित्य अर संस्कृति का पुरोधा श्री नन्द किशोर हटवाल जिको छन जैमा हटवाल जीन माँ नन्दादेवी लोकगीत, राजजात अर नरेन्द्र सिंह नेगीजी शिर्षक मा माँ नन्दादेवी जागरों कि लोकप्रसिद्धी पर शोधात्मक विवरण दियूँ छन। आलेख मा नरेन्द्र सिंह नेगीजी अर संजदारों अथक श्रमसाधना से कन-कन पड़ौ ह्वै माँ नन्दा का जागर कैसेट का रूप मा ऐन, अर जागर का कुछैक यी सिद्धहस्त जणगुरौं से भैर आम लोक का गिच्चा मा श्रद्धै पाती बणिन। या ही विद्ववता कु प्रतीक छन कि आम द्यौखण मा जु मात्र गीतोंकि एक कैसेट छन वेतैं लोकममर्ज्ञ विशेष मा शेष ढूंढी अतिविशेष बणैं द्यन। हमारी लोकगीत विरासत चाँचड़ी झुमैला समाळण वळा अर नन्दा की कथा का नटककार श्री हटवाल जी से जादा क्वी मनखी माँ नन्दा कु मर्म समझै सकलो। जन कि हटवाल जिका कानी संग्रे भयमुक्त बुग्याल मा संकलित कानी मेरा भुलाकानी को नायक डीडी (देवीदत्त) कैलखुरा उर्फ द्यब्वा गौं मा अपणी पीठी दीदी की आसा अपेक्षा अब साब बणि नि समझदू, उन नेगीजी तैं आजै साब ख्वाब द्यौखण वळी पीढ़ी कति समझली यु एक यक्ष प्रश्न छन हम सब्यूँ तैं।

पत्रिका मा पाँचवां आलेख श्री हिमांशु शेखर बेंजवाल जीको छन। जैमा श्री बेंजवाल जी सात समोदर पार अमेरिकै धरती बटी रैबार पैटान्दा कि श्री नेगी जिका गीत कनक्वै परबासी भैबन्दो तैं अपणी थाती माटी से जोड़ी रखदा। खुद शब्दौ अर्थ हिन्दी मा याद अर अंग्रेजी मा रिमेम्बर बोले जांद। पर ज्वा व्यापकता खुद मा छन सु याद अर रिमेम्बर मा नि छन। मेरा बिंगण सि खुद मनखी भावनात्मकता कु वा प्रतीक छन जेमा अतिरेक पिरेमें कौंकळी अर क्वांसा मन-पराणें वा अद्यौखी स्थिति छन जै तैं बिगैर मैसूस करि नि जाणी सकदन। बल दूरा मनखी तैं जादा खुद लगेन यु अनुभौ मेरु आज तलक अपणा मुल्क गौं गुठ्यार सि दूर रै खूब मैसूस करियूँ। बेंजवाल जीक लेख परबासियूँ कि खुद, हौंस-उल्लास श्री नेगी जिकी सृनै व्यापकता बतौंदन।

      पत्रिका मा छटवां संस्मरणात्मक आलेख सब्बि धाणी देरादून का बाना नरेन्द्र सिंह नेगीशीर्षक से गढवळी कवितों का सशक्त हस्ताक्षर अर सब्बि धाणी देरादून गीत का लिख्वार श्री वीरेन्द्र पंवार जीको छन। आलेख मा श्री पंवार जीन सब्बि धाणी देरादून गीतक जलम, कर्मजात्रा अर लोक प्रसिद्धी जात्रा कु विवरण दियूँ छन। आज यु गीत एक मुहावरा का रुप इस्तमाल होन्द त ये का पैथर श्री पंवार जिकी समाज पर कुराड़ जनी करीकरी नजर अर रचनाधर्मिता कु द्योतक छन। ये गीतन उत्तराखण्डियत वास्ता श्री नेगी जिकी व्यंग धारणा तैं हौर तागत दिनी, कि नेगी जिन बोली त कुछ न कुछ त छ। इलै श्री पंवार जीन शिर्षक मा, “का बाना जोड़ीयु ये गीतै उपलब्धि तैं बतान्द। चै उच्ची तड़तड़ी नाका खातर हो या उन्नति, सच्च मा आज देरादून हौणकारी को पर्याय बणिगे। भैसाब अगर देरादून मा मकान जमीन छन त तब द्यूलु लौड़ी हाथ। त बोला ! नोनू तैं लौड़ी नि मिलण्यां साब अजक्याल, सु छन पैंतीस साला कुंवारा बैठयाँ ब्योली जग्वाळ मा।

      पत्रिका को सातवां आलेख हमारा लोक संस्कृति का संग्यौर श्री गिरीश बडोनी जिको छन जैमा श्री बडोनी जीन नेगी जिका गीतों मा खुदै औनार बिनारौ विशलेषण करियूँ। जन मिन मथि बोली कि खुद मनखी भावनात्मकता कु वा प्रतीक छन जेमा अतिरेक पिरेमें कौंकळी अर क्वांसा मन-पराणें वा अद्यौखी स्थिति छन जै तैं बिगैर मैसूस करि नि जाणी सकदन पर बडोनी जीन नेगी जिका गीतों मा नाना परकारा खुदै औनारों तैं बिरै, ज्वा हमारी माँ-बेणियूँ खैरी, भैजी-भुल्लौं अपण्यास अर दाना-सयाणों हौंस-रोंस तैं बतौन्दी ज्वा हमारा लोक मा सम्माहित छन। बडोनी जिको बोलण छन कि पहाड़ा अर खुद एक हैका पूरक छन अर यों दुयों तैं समझण अर समझाणों काम नेगी जी पिछला पचास साल बटे कना छन। सच्च मा हमारा पहाड़ी लोक का अभौ अर प्रभौ सि खुद यखा जन मानस कु भावनात्मक बिन्दु रयूँ।

      आठवां संस्मरणात्मक आलेख हमारा लोक गीतों तैं पिक्चर पर्दा पर ल्यौंण वळा कुशल फिल्म निर्देशक अर गीतैर श्री अनिल बिष्ट जिको छन जैमा बिष्ट जीन नेगी जिका गीतों तै फिल्मांकन कनै जटिलता अर सार का बारा मा अपणू अनुभौ लिख्यूँ। जटिल इलै कि श्री नेगी जीका गीतौं कि गैराई नापण आसान काम नि, अर ज्व लोग नापणा वूँ वास्तव मा सिद्धहस्त गोताखोर छन वूंमा बिष्ट जी जना कुशल फिल्म निर्देशक हो चै नेगी जी रचनाधर्मितता का लिख्वार। आलेख मा बिष्ट जीन एक क्लिष्ट बात बोली कि जब नेगी जिका गीतुं का असल किरदार समाज का बीच होंन त मि बनावटी कलाकरों ल्हेकि कतना बड़ि चुनौती ल्हेकि छौं कैमरा अग्वाड़ी वूं तैं खड़ा कनू। सच्च मा ज्वा डिमांड फिल्म मैकिंगै छन सु असली किरदार मा नि अर ज्वा फिल्म मैकिंगै डिमांड पूरो कना सु असली किरदार नि। यु ही छन नेगी जिका गीतों कि गैराई। अर असली तैराक गोताखौर बिष्ट जी जना लोग छन ज्वा गीतौं कि संवेदना इन बींगद कि वूंका जिकुड़ा चीरा पड़द।  “छैल नि मिललु कखि बौड़ी कि ऐजैई मैमु, चळि कि सी बाण रखी, हाथ ना पसारी कैमु, बिरड़ी की कुपथ ना जैई, दोफरा का बटोई। सच्च मा जन बिष्ट जी बोना ईं गीत तैं आम लोग, जैमा मि बि सामिल छौं कि, कै बटोई घाम मा छैल बैठणू पर नि उकैरियूँ बल्कि एक गवाण्यां पिरेमी कु अपणा परदेशी मिरेमी वास्ता कु पथ नि जाणू रैबार छन। श्री बिष्ट जी आप भी नेगी जिकी यीं जात्रा का सै जात्री छन आप हमारी लोक की अमानत छन।  

      नौंवां शोधपरक आलेख नै छंवाळी का कवि कानीकार श्री धर्मेन्द्र नेगी जिको छन। ढांडौं का माछा उड़ै देन्दा उड़ौण वळा। अपणी हास्य अर व्यंग्यात्मक गजल कविता का माध्यम सि समाजै नस पकड़ण वळा नेगी जीन गढरत्न नरेन्द्र सिंह नेगी जी का गीतों मा हास्य-व्यंग्य पर शोधपरक काम करि। हमारा लोक मा कै बि बात अर काम फर एक आम शब्द को इस्तेमाल हौन्दू कि  चला फूऽका। पर व्यंग्यकार बोलदन फूऽका ना भै, जगावा। किलै रौंण द्या जी, जन छन बोने पड़लौ, सै त सै, गलत त गलत। मुखमुलाज्या आम मनखी नेचर होन्द फुक्का रौंण द्या। पर व्यंग्यकारौ चश्मा कु लेन्स मुखमुलाज्या नि होन्द। व्यंग्यकार अपणी बात रखलो चै ढंग क्वी बि हो। व्यंग्य हैंसी-हैंसी चोट करदू जै सि कटाक निगुरी पड़दी पर घौ नि होन्द। यनु सुद्दी नि हिल्दी राजगद्दी, नरेन्द्र सिंह नेगी जिका गीतों से। श्री धर्मेन्द्र भैल खूब बरीक कातिन श्री नेगी जिका हास्य-व्यंग्य गीतों पर। नेगी जी अपान सार्थक विवेचना पाठकों तक पौंछाई, साधुवाद।

      दसवां लेख श्री इन्द्रेश मैखुरी जीको छन जौं मा श्री मैखुरी जीन श्री नेगी जिका जनगीतों पर विवेचना करि। उन त नेगी जिका सब्बी गीत जनगीत ही छन, जन कि अनिल भैऽन बोली कि नेगी जीऽक गीतों का असली नायक नायिका हमारो समाज छन ज्वा वूँ गीतों तैं समझणा, गाणा अर अफूँ तै वे गीता भितर चिताणा। फिर बि भारतै एक बिचारधारा जन आन्दोनल अर जनपक्ष जन सराकारौं का गीतों तैं जनगीत नौ देन्दी, वूँ कु बोलण बि सई छ कि जौं गीतों सि समाज मा जाग्रति आवो अर समाज अपणा हक हकूकों खातिर क्रान्ति पर ऐ जावो सु जनगीत छन। श्री मैखुरी जीऽन नेगी जिका जनगीतों पर धाद मा पैली बार सार्थक विवेचना पैटाई हमारु धनभाग, निथर ये बिचारधारा लोग लोक की हर बात तैं अपणा आराध्य चै ग्वेरा से जोड़दन। 

      इग्यारवां आलेख उत्तराखण्डै मादेबी नौ सि प्रसिद्ध कवयित्री, समीक्षक, निबन्धकार बिदुषी, कुशल मंच संचालक अर लोक भाषाविद दीदी श्रीमती बीना बेंजवाळ जीको छन। जों मा श्रीमती बेंजवाल जीन नेगी जी का गीतों मा माँ-बणि फर विवेचनात्मक अर रागात्मक आलेख पैटायूँ। उन त मर्द जनानी सब्बी लिख्वार चराचर जगत का तमाम चीज-वस्तों पर संवेदनशील होन्दन फिर बि जै फर बीती वेन रीती वळी बात छ। नेगीजी गीतों मा माँ-बण्यूं आत्मैं सच्ची पुकार माँ-बेणि ही भलिकै जाण सकदी। कै मर्मज्ञ साहित्कारै कलम यी इना झंकृत शब्द व्यंजना उकैर सकदी कि नरेन्द्र सिंह नेगी जीन माटि का मनै बात बींगी, छीड़ा छंछड़ों भौंण सूणि, हिमालै को माथम गूणि, निठाणेंदी अर बिबलांदी धरति कि बिपदा समझि, डांड्यूं की खैरी अर पुंगड्यूं कि जिकुड़ि मा साक्यूं बिटी दबीं पिड़ा पछयाणी। श्रीमती बेंजवाल दीदिन प्रेम, संजोग, बिजोग, वियोग सब्बी श्रृंगारों पर रच्यां नेगी जीका गीतों कि समिक्षा अपणा नारी तत्व से हमू तक पौंछायी दीदी आपै कलम तैं नमन।    

      पत्रिका मा बारवूँ आलेख डॉ योगेश धस्माना जिको छन जैमा डॉ धस्माना जीन श्री नेगी जिका जीवन जात्रा को परिचै दियूँ, कि जीवना कन-कना उडंगर टेड़ा-मेड़ा बाटू हिटी बाळौ नरु आज एक्सप्रेसवे का रुप मा हम सब्यूँ का प्रेरणा पुरुष नेगी दा बण्यान। सच्ची मा हमारा नरु दा खैरी का अंध्यारा मा ख्वजयां बाटा हिटी सुख का उज्याला मा अपणी लोक जात्रा नि बिर्सियां। डॉ धस्माना अपणा आखिर पैरा मा बोलदन कि पाड़ै तरां अपणा सिद्धान्तों पर अडिग रै नेगी जीन सरकारों तैं ऐना दिखौणों काम करि। ईं निर्भीकता अर जनपक्षै आवाज उठाणा वजै सि सरकारी पुरुषकार वूं से दूर रैन। पर सच्ची बात कि हमारा लोकजन नायक यीं धरती मा गढ़वाळा अस्तित्व तक अमर राला । पर बात या बि छन कि अगर सरकार अग्नै इनि उपेक्षा करली त गढ़वळयूँ तैं नेगी जिका किये का सिला मांगणा वास्ता जनचेतना ल्हेकि सड़क्यूँ मा ना उतरौ, सरकार का कन्दूड़ तक अडिग की बात पौंछण जरुरी छ। 

      संस्मरण का रुप मा पत्रिकौ तेरवां आलेख साहित्यकार कवि अर गढ़लोक का मर्मज्ञ विद्वान श्री सतीश कालेश्वरी जिको छन जैमा श्री कालेश्वरी जीन प्रेम श्रृंगार कु कंयारु गीत क्या दिन क्या रात ए जी हो”, कि जीवन जात्रा ल्येखी, कि कनुक्वै या गीत नेगीजी अर अनुराधा निराला जीका कंठ मा बिरजी बरखा कैसैट कु लोकप्रिय गीत बण्यूँ। भैजी अपणा लोक से भैर रै किन बि आपक चेतना अपणा लोक का वास्ता धूमदी हमारु यु लोक आप जना सब्बी लिख्वारों को ऋणी रैलू।

      यु छन साब सौंणा मैने धाद मासिकै औनार, ज्वा नरेन्द्र सिंह नेगी मा हमारा लोक कु परिचै करान्द। मेरु व्यक्तिगत मानण छन कि पैली त अपणी बाणि निथर लाटै बाणिहमूतैं यनु शोधात्मक लेख संकलन नै पीढ़ी तक पौंछाण पड़लू, यु जरुरी नि जर्वत छन गढ़वाळा खातर। अब आप बोलला कि पौंछणा त छन। अर मि बोनू नि पौंछणा। जी साब इलै नि पौंछणा कि नै पीढ़ी गढ़वळी त छवाड़ा हिन्दी बि नि पढ़णी। हिंग्लिस रीलों का चक्कर मा सर्री संतति हौर कख भाजणी। चम्म-चम्माक फेमस होणू कुछ बि करेगा कु नजरिया समाज मा हावी छन। त मेरी गुजारिश आप सब्बी से छन कि यूं सब्बी आलेख प्रिंट अर इलैक्ट्रिोनिक मिडीया माध्यमों से हिन्दी मा करे जावो ताकि नरेन्द्र सिंह नेगी जी तैं आम नै पीढ़ी पढ़ अर बींगी साको। यु पीढ़ी तनमण्यां जीवन नि ज्यौणि साब ज्वा वूँ तैं नेगी जीका गीत चस्स झस्स करो। 

      नेगी जिका कुछैक गीतों पर कुछ साल पैली मेरी बि इन्नी चस्साक, झस्साक छै ज्वा मेरी सुबदरी रेस मा कखि बिरड़ी सि ग्यां। फेर कोसिस राली कि अपणा लोक की यीं लोक बाज तैं उकेरणुं बाटू माँ नन्दा द्येली। भगवान सि प्रार्थना छन कि भगवान श्री नेगी तैं चिरायु रख्याँ अर हम वूंकि शताब्दी जयंती मनाउन। बस चिन्ता यीं बातै छन कि औण वळा समै मा मातृभाषै यु जात्रा मात्र धरोहर ना बणि रावो।

                                                                  जै हिन्द जै गढ़वाळ

                                                                 बलबीर राणा अडिग 

                                                                मार्फत 56 सेना डाकघर