“ना ब्वे निकमु त ना” । स्वीणा त भलु छौ पर, होलु कबि मेरु यो स्वीणा सच्च ?? ”आला कबि पाड़ का दिन“ ? यु छ स्वीणा उपन्यासा नायक बंशी कु रैबार सवाल अर दगड़ मा छन
स्वीणा उपन्यासौ सार।
स्वीणा
उपन्यासै पूरी जात्रा कना बाद उपन्यासा आखिर लेन मा ज्वा यु रैबार मिली अर सवाल
उठि वा हमारा उत्तराखण्ड मा चिरंजिवी, चिरायु छ। चिरंजिवी, चिरायु इलै कि अब हमारू राज्य क्वी लौंच्या नवाण ना बल्कि
ज्वान समझदार राज्य बणिगे बल। राज्य का ज्वा स्वीणा हमारा आंदोलनकरियून देखिन, ठिक ठिक उनि स्वीणा पढ़यूँ लिख्यूँ बिरोजगार झांझी संगठनों
नेता बंशि बि द्यौखणू। कि हमारा जड़ जंगळ जमीन बचीं रावो, घौर गौं रिता ना हो, अपणा यी पाड़ मा रुजगार हो, ज्वानों तैं भैर ना भटकण पड़ौ, पढ़याँ लिख्यूँ तैं सरकारी नौकरी मिलो, हमरि भाषा संस्कृति सैंदिष्ट रावो, लोग राजन बाजन रावो, दारू प्यै कैकि मवसी घाम ना लगौ। यु मात्र एक संजोग छ या
इना स्वीणा यीं राज्य का तमाम ज्वान द्यौखणा छन ख्वणी-ख्वणी ? किलै कि राज्य बण्यां 25 साल बाद बि पाड़ै अर पाड़ियूं कि मूल स्थिती जनि कि तनि छ
जादा कुछ नि बदली। कुछ बदली त सूना होणा गौं मा रोड़ो जाळ अर पढ़यां लिख्यौं का बूरा
हाल। असल मा कन हूँण चैणू छौ अर होणू क्या छ ? येकु जबाब कैमु नि ।
आज आम आदिमा नौना तैं सरकरि नौकरी मिलण मतलब ऐवरेस्ट चढ़ण
बरोबर छ। आज तलकै कुछैक सरकारन अपणा वोट
बैंका वास्ता तराई जिलों मा बिधर्मी बसैन त कुछैकन भैरा भू माफियूं तैं इन्वेस्टा
नौ फर पाड़ै जमीनै बंदर बांट करि। अब सुणण मा औणू कि बल बंगाल्यूँ तै पाड़ी राज्य मा
विशेष दर्जा अर रियायत द्यौणू को धर्मात्म कारिज होणू बल। वादा/सौं-करार कुछ बि हो
पर पाड़ै ज्वानी अर पाणी आज बि पाड़ा काम नि औणी बिल्कुल ना। हाँ कुछ काम औणी त वा
नेतौं की औणी ज्वा वूंका झंडा डंडा पैथर छन अपणू भबिस्या द्यौखणा। यनु भबिस्या यीं
उपन्यासा नायक बंशिन बि त खौजी कि कै बाटू ह्वै चम्म चम्माक टुक्खू फर पौंछी जै
सकद। भले बशि झांझी यी सयी पर स्वीणा द्यौखणों अधिकार वेकु बि छन। भले आज हमारा
लोकतांत्रिक द्यौश मा सब कुछ चीजों अधिकार छ पर मिल्दो सब कुछ नि यु सच्च छ।
श्री राकेश मोहन खन्तवाल जी द्वारा रचित उपन्यास ”स्वीणा“ 112
पन्नौ मा 31 अध्यायों पड़ौ ह्वै अपणी
जात्रा पूरो करदो। उपन्यास बिनसर प्रकाशन बटे 2023 मा प्रकाशित होयूं बसरते मेरा हाथ यु पौथी अब्यौर लगी।
उपन्यासै भूमिका सिद्धहस्त साहित्कार डॉ0 प्रीतम अपछ्याण जिकी ‘र्वे-हैंसि-सोचूं कु ऐना’ शिर्षक से लिख्यूँ छ। जख कै पोथी भूमिका क्वी सिद्धहस्त कलम
लिखदी त वीं पोथी अकल सकल पैली दिखी जांदी। अब भूमिका मा क्या च अर पोथी सकल अकल
कन छ येका वास्ता आपथैं ”स्वीणा“ तैं पढ़ण ही पढ़लो।
उपन्यासा सीन पटल लंबा नि छन बल्कि छ्वटा छ्वटा भागों मा
पटाक्षेप करियूं, ज्वा
कानियूँ तैं जादा नि खिंचद। उपन्यास मा पात्रौं औनार बिनारौ खूब भलू चित्रण होयूँ, जैमा पात्रै कद-काठी, चाल-ढाळ काम-धाम आदि पाठकों तैं कमति समै मा पात्र उणि समझण
बिंगण मा मदद देन्दी। द्यौखा बल -:
बंशि
जनु बैख ईं दुन्यां मा कम होंदन, ग्वारु
चिट्टु,
हट्टु कट्ठु, लम्बि काळि पठुलि, नीलि आँखि, तड़तड़ड़ि
नकुड़ि,
अर सुहाँदि दंतुड्यूँ कि छपाग। भगवानल जन वेथैं तन दे, तन सुन्दर मन बि दे। सीधु सच्चु मिलणसार, दया भाव रखण वळु मनखि छौ बंशि। एक हैका पात्रौ चित्रण द्यौखा
- विधायक साब, मूँछ कटा, लम्बा
चौड़ा,
लटकदी तौंदधारी मिठ्ठि गिच्ची कु जड़कटू। यनु चारत्रिक वर्णन
पाठक का मन मा पात्रै एक छवी बणैं द्यनी ज्वा कै ना कै रूप मा हमारा होर-पोर रंदन।
यु हि एक सल्ली लिख्वारै पच्छायाण होन्दी।
उपन्यासै सबसे बड़ी उपलब्धि यु छ कि लोकभाषा अर संस्कृति का
हिसाब से जनु लोकाचार साहित्य मा अपेक्षित होन्दू बिल्कुल भैर नि, यु ही हमारो ठेठ लोकाचार लोकव्यवार छ। उपन्यास मा लोकवाणी
मा क्वी नकलीपन नि। एक संवाद द्यौख बल -:
बकबास
बंद कैर । बड़ि करम तिड़ोण वळि अयिं। तु क्वी राष्ट्रपत्या औलाद छै। बखरेळ कि औलाद
छै तु ?
निरभै
माचदा.... मेरु बब्बा त मान मर्जादा इज्जतदार वळु छौ। त्वेमा क्या छ ?
पैंसा
छै मा पैंसा।
थू.....
स्य पैंसा फर ...। जो मान मर्जादा से बड़ो होणु।
अच्छा
?
तै
गिच्चौ बंद राखा...। न ह्वा जू फोड़ी दयूँ कोखि। मेरु बुल्युं छ मेरा मैत्युं खुणि
नि बुन कुछ वा।
बुनै
मिन,
क्या कनै तिन ?
क्या
कनैई .... ले त ...। अर छीलन मरीं दे घपागताळ।
जख
आम लोकवाणी अर लोकव्यवार औणा पखाणों बिगैर पूरा नि होंदू वख साहित्य भाषा मा
रस्याण अर लालित्य नि आंद। हमारा औणा पखाणा ही हमारी लोकवाणी तैं रस्याण का दगड़
हमारी भाषै गैराई अर गूढ़ता तैं लक्षित करदी। कानी मा श्री खन्तवाल जिन यीं बातौ
पूरौ ध्यान रखि, जरोरतसुदा जगा फर
मंजूरसुदा औणा पखाणौं सुन्दर परयोग होयूं छ। उनि जख आम लोकवाणी बिगैर गाळियूँ कि
पूरी नि होन्दी, अर आम लोकारचार मा यु
बुरो बि नि माण्येन्दो, इना गाळी कु
बि रौंसदार अर रंगमत परयोग होयूं छ। एक संवाद द्यौख बल -:
हे
बामण कख लगीं तेरि झगुलि टोपिलि डाळ ?
हे
बामण क्या बोनू छ ? अंक्वे देखी
जरा।
मेरि
गणत ई बतोणि।
कांडा
लगला तेरि गणत पर। स्यूँ आँख्यूँ मा रिटला गरूड़..। अंक्वे हेरी जरा।
धौंपा
सुबदन तैं बिरजू बामणौं बतायूं बाटु भले पाठकों तैं अटपटू लगलो पर हालात अर आम
समाजौ रौ-भौ मनखी कि मनसा विचार बदली द्यन्नू। जबकि धौंपा सुबदन तैं पता छौ कि सु
बाटू निहोण्यां र्निबिज्या छन फिर बि वा अपणा सिद्दा लड़ीक तैं दारू प्यैंणू
बोल्दी। अर इना कुछैक नाटकीय कथानक कमजोर कानी पक्ष तैं बि इंगित करदन, पर यनु भौत कम छ जखमु जरा कमजोरी औंदी कानी अग्नै फेर दड़दड़ी
ह्वै दौड़ण लगि जांदी।
स्वीणा उपन्यास हमारी वर्तमान व्योवस्था को एक दस्तावेजीकरण
बि छन। लिख्वार लमडाळ चंट झुट्यारौं फर चट्टाक चटकताळ मारदू अर इनि सक्या तब्बी
आंद सब समाजा प्रति कलम सजग अर बिजी रैंदी।
येतैं उततराखण्डै दिशा-दशै सैंदिस्ट औनार बोली जावो त बिल्कुल गलत नि होलू।
दारू कु धिवाड़ौ अर राजनिती को मनस्वाग आज पाड़ै पाड़ियत तैं चपट कनि। विधायक गुरूपाल
सिंह रावत जना कतिगा र्निमुख नेता कुर्सी फर जूंक जनु चिपकी आम जंता तैं चूसणी।
कुर्सी का वास्ता नेता लोग कै हद तलक अपणाी मनख्यात अर जमीर तैं मारदन तैकु बड़िया
चित्रण होयूं छ। उपन्यास मा उत्तराखण्डै जड़ समस्या पलायन, शिक्षा अर शिक्षकों दशा, आम समाजौ रौ-भौ सब्बी मूल कारणों कु कारकीय चित्रण कन मा
उपन्यासकार सफल से बि अब्बल छन।
दारु प्यै भाग मा उदंकार होलू भले यु बात हमूतैं नाटकीय
लगली फर आज का प्रसंग मा हमारा नीति नियंता नेतागण यनु ही द्यौखणा अपणी कुर्सी
वास्ता। मेरी टुपली वास्ता हैकै झगुली घाम लगी जावो यीं बातै चिंता स्यता कपड़ा
वळौं काळु मन नि करदू। क्वौ जीतणू कनक्वै जीतणू यु सवाल ऐना जन साफ छ? ज्वा जति द्वी नम्बरी छ वा वति एक्का कु तुरूप साबति
होन्दू। ज्वा जति दागी सु वति माननीय। सत्तर अस्सी का दशक बटे चुनौ जीतणौं यु फंडा
आज हथकंडा बणि मुख्य हथियार बणिगे। अज कैतैं पता नि कि प्रधान से संासद तक सब अपणा
वोटा वास्ता बोतळ अर नोटों इस्तमाल हथियार को रूप मा करदन। पार्टी बि वूतैं टिकट
देंदी जैमा पैंसा छन जैमा यीं हथियार चलाणों सगौर छ। चुनौ जिती गुरूपाल जना नेता
भबिस्या नीति नियंता बणि जांद। यु सोचाणें बात छ कि आज बि भारतौ आम वोटर जगरूक नि।
अर पूरा द्यौस मा आम वोटर को छ ? गरीब
। ज्वा एक पव्वा अर हजारा नोट मा बिकी जांद। नेतौं पिछनै लेन लगाैंण वळा जादाकर
घन्तु अर मुतग्या जना झांझी होन्दन ज्वा दारू पैथर अपणू भबिस्या चौपट करदन अर
नेतों भबिस्या बणौंदन। सामायिकी को यनु चित्रण देखी लगदो कि उपन्यासकार यूँ छीड़ा
छपौड़यूं मनखी छ, पर सच्च मा बिगरैलो चित्रण
करयूँ,
जै चित्र तैं आम समाज घौखणू भौगणू पर चुप्प दांत किट्टी लगै
सौणू वेतैं सच्ची कलम नि सै सकदी अर यनु खन्तवाल जिन साबित करियूँ ”स्वीणा“ मा।
उपन्यास
कु मूल कानी तत्व स्वीणा छ, अर स्वीणा
भलो,
बुरो नाटकीय, अप्रत्याशित कुछ बि अंट संट उटपटांग ह्वै सकदो चै वेमा
झांझी बंशि अपणा झांझी संगठना जुझारूपन अर आंदोलना वजै सि सरकार गिराण मा सफल ह्वै
मुख्यमंत्री किलै नि बण जांद। पर यखमु एक बार गौर कन वळी छ कि मनखी चैतना मा कै
चीजौ चिंतन बिगैर वेकु स्वीणा नि औंदू। जब कखी ना कखी क्वी बात चेतना मा एक मामुली
अंश रूप मा विराजमान होन्दी तब्बी वा सुपन्यां मा औंदी यु वैज्ञानिक तथ्य छ। पर जब
चेतना मा मामुली अंश ना बल्कि पूरौ पाड़ हौंद त स्वीणा औण बि वाजिब छ अर वूंतैं
साकार कनो संघर्ष बि। उन त सब्बी साहित्यकारों कलम फर कविता, कानी, व्यंग, आलेख आदि रूप मा राज्यै यनि औनार बिनार औणी रयी फर जतिगा
बड़ी समस्या छ उतिगा बड़ा रूप मा श्री खन्तवाल जिकि कलमन देखी वा वूंकि कलम की
विलक्षणता छ।
उपन्यास मा अणमणमाथी पात्र आपतैं द्यौखणूं मिलला, जख धौंपा सुबदन अपणा लड़ीकौ भबिस्या दारू मा द्यौखदी वखि
राधा जनि बड़ा बिधायक बुबे बेटी अपणी व्बे कि मौतक बदला अपणा बुबा सि लेणू एक झांझी
दगड़ ब्यौ करदी। घन्तु, मुतग्या
माझांझी जख वर्तमान मा अंग्वाळ बोटी अग्वाड़ी पिछवाड़ी सौचणें सक्या नि रखद वखि कीड़ि
अर कीड़ि व्बे मजबूर पात्र छन ज्वा बिधाता कि लेखी हालतों मुकाबला करदन। जन कि
कुर्सी जाणा बाद हर नेता बौंफर ह्वे खौ बाग बणि जांद, विवेक शुन्य ह्वै कैकि हत्या कनु उतारौ ह्वै जांद यनु
चित्रण उपन्यास का आखिर मा बिधायक गुरूपाल सिंगौं दिखेन्द।
उपन्यास मा भाषा शिल्प देखी जावो त एक सल्ली भाषा शिल्पी
पच्छयाण हौंद, जख मि द्यौखणू वर्तमान
गढ़वली लेखन जादाकर हिन्दी का ऐना से लिख्येणू पर श्री खंतवाल जी कलम अज्यूँ अपणा
धार-खाळ,
उबरा-डंडियाळी, गौं -ख्वाळौं मा टकटकी छ। निथर आज ठेठ गढ़वळी ना त व्यौवार
मा रयीं अर ना ल्यौखण मा। गढ़वळी मानकीकरण की बात करै जावो त कलम यीं बाटा हिटणें
कोसिस त करदी पर फेर अपणा ठेठ राठी का धौर दम खम्म सि बाटू नापण सौंग चितान्दी
जनुकि मि अपणी दशौल्या मा चितान्दू।
आज सगर्व बोली सकदा कि यु काल गढ़वळी साहित्य को स्वर्णिम
काल छ किलै कि जति आज रचैंणू तति पैली कै काल मा नि रचैगे छौ। पर क्या गढ़वली
रचनात्मकता सयी दिशा मा जाणी छ ? यो
अपणा मा एक सवाल बि छन अर ऐना विशेषा का चश्मा से उत्तर बि ह्वै सकदो। सोशियल
मिडीया का यीं चट्ट छप्पास, दप्प दिखास, लैक अर वाह्ह वाही का काल मा अच्छा साहित्य रचणें गुंजैश
कमि छ,
किलैकि यीं दौर का लिख्वार ल्यौखणू छांट जल्दीबाजी कना जै
कारण सि सद्य साहित्य कम रचैणू। चलो जु बि जन बि छ संतोष यीं बातौ छ कि लिखैंणू छ।
यामा कविता खूब छन रचैंणी अर छपैणी पर ! गद्य मा राकेश भै जना कुछैक साहित्कार ही
छन जु धीरज धिर्घम पर ल्यौखणा। स्वीणा उपन्यास का माध्यम सि उत्तराखण्डा हाल स्वाल
ल्यौखण दां लिख्वार बौर्डरौ सिपै जनु चकचकौ चौकस रयूं कि क्वी चीज छूटौ ना, वून सर्तक ह्वै क्वी बात छवाड़ी नि।
चलो लिख्वार त अपणू धरम निभौंणा पर एक हौर जटिल सवाल छ कि
यीं साहित्य तैं पढ़ण वळा कति छन ? सैद
जबाब हम साहित्य बिरदरी ही जण्दी। वूंतैं ना सवाल ना जबाब जौंका वास्ता क्वी
कलमकार अपणू बगत खपै पूरो ग्रन्थ रचणूं। अब हमरी भाषा साहित्य क्ज्ञ वास्ता यु एक
चिंता को विषै ना बल्कि ज्यूण मरणू सवाल छ। कुछैक साल पैली जबार प्रिंट मिडीयौ
जमानू छौ लोग बाग पढ़ी ल्हीन्दा छा जनि तनि पर आज सबकुछ मुबैला दौर मा आम आदिमें
किताब पढ़णें आदत जाणी छ, बगत ही नि
कैमा,
मुबैल सि फुर्सत मिलौ त तब क्वी पढ़ौ। यामा छ्वटा बड़ा दाना
सयाणा सोब सामिल छ।
मितैं व्यक्तिगत राकेश भै पर गौरव छ कि अपणी भाषा संस्कृति
अर अपणी जलड़यूँ खातर समर्पण अपर्ण यी छ कि एक साहित्यकार ठेठ अपणा गौं बबीना
दुधारखाळ बटे कमति सौंग पत्ता मा उपन्यास जना सद्य गद्य तैं रंचणू। जै गद्यै सगत
जरोरत आज हमारा साहित्य तैं छ वेका वास्ता राकेश भै लगातार लग्यां छन। स्वीणा
राकेश मोहन खन्तवाळ जिको तीसरौ उपन्यास छ, ये से पैली वून ‘मुसक्यामार’ अर ‘मायाजाळ’ उपन्यास लिख्यूँ छ। उपन्यास का अलौ श्री राकेश मोहन
ख्न्तवाल जिकि साहित्य जात्रा भौत लम्बी छ, जेमा कविता, कानी, जीवनी, अनुवाद फिल्मी पटकथा आदि विधा कु लेखन शामिल छ। यांका अलौ
साहित्कार व्यक्तिगत जीवन मा समाजसेवा, पर्यावरण सेवा अर शैक्षिक कारिजों मा निरंतर लग्यां रंदन।
श्री राकेश मोहन खन्तवाल जिका आत्मसंयम अर कर्मयोग हम सब्यूँ तैं प्रेरणा छ कि
अपणी माटी अपणी पितृकूड़ी मा बिगैर संसाधनों का बि कालजयी साहित्य रचै जै सकद। अर
सीख छ कि लगन सि कै बि काम करला त रिद्धी सिद्धी प्रसिद्धी पिछने दौड़ी आली। ”स्वीणा“ उपन्यास
सद्य कृति का वास्ता भै श्री राकेश मोहन खन्तवाल जितैं यीं दीपसांग बौर्डर बटे
सलामी देन्दू शुभकामना देन्दू।
@
बलबीर राणा ‘अडिग’